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मोदी जी, क्या आपको पता है कि सब्ज़ियां कितनी महंगी हो गयी हैं?
महामारी और लॉकडाउन से तबाह लोग अब ख़ासकर सब्ज़ियों जैसे रोज़मर्रा के खाद्य पदार्थों को लेकर ज़बरदस्त मुद्रास्फीति का सामना कर रहे हैं।
सुबोध वर्मा
16 Oct 2020
Expensive vegetables

पिछले एक महीने में मुद्रास्फीति (वार्षिक मूल्य वृद्धि) में बढ़ोत्तरी हुई है, जिससे परिवार के बजट को एक तगड़ा झटका लगा है। हाल ही में जारी सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि खुदरा मुद्रास्फीति की दर अगस्त में आठ महीने के उच्च स्तर पर पहुंचकर 6.69% से बढ़कर 7.34% हो गयी थी। यह वह सामान्य मुद्रास्फीति है, जिसमें खपत की सभी वस्तुयें शामिल हैं।

खाद्य पदार्थों में हुई मूल्य वृद्धि और भी ज़्यादा कंपा देने वाली है। खाद्य मुद्रास्फीति अगस्त में लगभग 9% से बढ़कर सितंबर में लगभग 11% हो गयी। नीचे दिये गये पिछले एक साल में खाद्य पदार्थों और सभी वस्तुओं के मूल्य सूचकांकों को दर्शाने वाले चार्ट पर नज़र डालें।

price index.jpg

पिछली सर्दियों में ख़ास तौर पर सब्ज़ियों के तहत आने वाले खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी को देखा गया था। लेकिन यह मौजूदा सीमा से आगे निकल गयी है। इसका मतलब यह है कि ग़रीब लोग, जो कि भारत की ज़्यादातर आबादी है, अपने उपभोग व्यय में एक बड़ी कटौती करने की पीड़ा से गुज़र रहे हैं, क्योंकि उनका ज़्यादातर ख़र्च खाद्य पदार्थों पर ही हो जा रहा है।

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले एक साल में रोज़मर्रे के उपभोग के कुछ सबसे ज़रूरी खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है, जैसा कि नीचे दिये गये चार्ट में दिखाया गया है।

price rise.jpg

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आंकड़ों के मुताबिक़, सब्ज़ियों की क़ीमतों में 11%, दालों और उसके उत्पादों की क़ीमतों में 14%, मांस और मछली की क़ीमतों में 17% और खाना पकाने के तेल और वसा पदार्थों की क़ीमतों में 13% की बढ़ोत्तरी हुई है।

यह उन परिवारों पर एक असहनीय बोझ डालता है, जो पहले से ही उच्च बेरोज़गारी दर, कम आय और मंदी वाली अर्थव्यवस्था के दुष्चक्र में फंसे हुए हैं। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के हालिया आंकड़ों के मुताबिक़ औद्योगिक उत्पादन लगातार नीचे जा रहा है, जो पिछले महीनों में गिरावट के बाद अगस्त में 8% की गिरावट को दर्शाता है। ख़ास तौर पर विनिर्माण में 8.6%, जबकि खनन में 9.8% की गिरावट आयी है।

मोदी सरकार का ख़राब प्रबंधन

आधिकारिक हल्कों से प्रचारित किये जा रहे आशावाद की झूठी भावना के बावजूद, आर्थिक बहाली की उम्मीद और रोज़गार में बढ़ोत्तरी धूमिल ही दिखती है। हाल ही में विभिन्न संस्थानों की तरफ़ से की जाने वाली डरावनी भविष्यवाणियों की एक कड़ी में एक नवीनतम भविष्यवाणी के मुताबिक़, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि मार्च 2021 में समाप्त होने वाले इस वित्तीय वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था में 10.3% की गिरावट आयेगी। यह आज़ादी के बाद से भारत के विकास में आयी सबसे बड़ी गिरावट होगी और पूरी दुनिया में सबसे बुरी गिरावट में से एक होगी। आईएमएफ़ की रिपोर्ट ने अनुमान लगाया है कि अन्य ब्रिक्स देशों में चीन 1.9% की बढ़ोत्तरी दर्ज करेगा, जबकि ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ़्रीका की अर्थव्यवस्था में भारत की तरह ही गिरावट दर्ज की जायेगी।

इस सिलसिले में भारत में ख़ास तौर पर खाद्य पदार्थों में आयी तेज़ मुद्रास्फीति, न सिर्फ़ लोगों के लिए एक तगड़ा झटका है, बल्कि यह मोदी सरकार की रहनुमाई में आर्थिक मोर्चे पर पूर्ण पक्षाघात को भी उजागर करता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले साल ही धीमी पड़ने लगी थी, मगर महामारी से लड़ने के लिए मोदी सरकार की तरफ़ से इस साल मार्च में समय से पहले और बिना सोचे-समझे क़ायम किये गये देशव्यापी लॉकडाउन के ऐलान के बाद यह ख़त्म होने के मोड़ में चली गयी है। हालांकि, जून से प्रतिबंधों में लगातार ढील तो दी जाती रही है, लेकिन अर्थव्यवस्था के 'फिर से पटरी पर वापसी' की उम्मीद नहीं रही है। इसमें हैरत की कोई बात नहीं है, क्योंकि अर्थव्यवस्था का बुनियादी मसला ही यही है कि लोगों के हाथों में ख़र्च करने के पैसे नहीं हैं, और इस समस्या का समाधान भी नहीं किया गया है। इससे मांग में गिरावट जारी है, जो उत्पादक गतिविधि और नये निवेश को हतोत्साहित करती है। इस सब के ऊपर, लॉकडाउन के घातक झटके ने लाखों छोटे-छोटे व्यवसायों और औद्योगिक इकाइयों को डुबो दिया है। इन सब के मिले-जुले असर से बेरोज़गारी बढ़ रही है, जिसका नतीजा लोगों की घटती क्रय शक्ति में हो रही बढ़ोत्तरी के तौर पर सामने आ रहा है। मोदी सरकार की अगुआई में भारत इस दुष्चक्र में लगातार पिस रहा है। अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाले कथित उपाय ग़लतफ़हमी पैदा कर रहे हैं-उन्हें आसान ऋण लेने और निवेश का विस्तार करने के लिए औद्योगिक घरानों को प्रोत्साहित करने के लिए निर्देशित किया गया था। ज़ाहिर है, ऐसा हुआ नहीं।

यहां तक कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ़ से नवीनतम उपायों की घोषणा में सरकार के पहले से ही ख़र्च किये गये बजट में कुछ ख़र्चें शामिल हैं, जैसे कि अनुमानित 35 लाख सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी यात्रा रियायत (LTC)। यहां तक कि मांग को बढ़ावा देने वाले इस हताशा भरी कोशिश में इस मक्खीचूस सरकार ने हास्यास्पद शर्तों को निर्धारित कर दिया है, जैसे कि वे सिर्फ़ उन्हीं चीज़ों पर अपने इन पैसों को ख़र्च कर सकते हैं, जिस पर 12% जीएसटी हो!

सरकार के अपने पैसे को ख़र्च नहीं करने के जुनून ने ही इस खेदजनक स्थिति को जन्म दिया है। लेकिन, चीज़ें अब नियंत्रण से बाहर हो रही हैं, जैसा कि ज़रूरी वस्तुओं की लगातार बढ़ती क़ीमतों से ऐसा होता दिख रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है, जो राजनीतिक रूप से विस्फ़ोटक है और जो सरकार के पैरों तले की ज़मीन को खिसका सकता है। इसके बावजूद, मोदी सरकार बेपरवाही से कृषि क्षेत्र का विनियमन कर रही है और पूरे देश में इस बात को लेकर अभियान चला रही है कि यह विनियमन किस तरह किसानों की मदद करेगा। यहां तक कि यह भी साफ़ दिख रहा कि व्यापारी अपने ज़रबदस्त प्रॉफ़िट से पैसे बना रहे हैं और ये पैसे वे सब्ज़ियों की बढ़ी क़ीमतों से बना रहे हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
Do You Know How Much Veggies are Costing, Mr. Modi?

Food price inflation
food price rise
BJP
Narendra modi
Nirmala Sitharaman
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