NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
क्‍या पंचायतों में धर्म और जाति में उलझ रही है कोरोना से जंग?
ग्राम पंचायतों में कोरोना से लड़ाई का स्‍वरूप ही बदल जाता है। यहां की राजनीति से लेकर रहन सहन तक में जाति, धर्म और सामाजिक ताना बाना गहरे तक असर रखता है।
रणविजय सिंह
15 Apr 2020
covid 19

विजय राम (40) बिहार के वैशाली जिले के वफापुर बंथु पंचायत के रहने वाले हैं। दलित बिरादरी से आने वाले विजय राम की पत्‍नी मंजू देवी प्रधान हैं, लेकिन काफी कामकाज़ विजय ही देखते हैं और क्षेत्र में प्रधान (पति) जी के तौर पर जाने जाते हैं। विजय इन दिनों गांव के टोला-मोहल्‍ला में जा-जाकर लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक कर रहे हैं। इसी कड़ी में जब वो सवर्ण जाति से जुड़े किसी बुजुर्ग से मिलते हैं तो उन्‍हें कुछ इस अंदाज़ में समझाते हैं - 

''आप तो हम लोगों से ज्‍यादा जानकार हैं। आप ही लोगों की वजह से हम भी आज पढ़ लिख पाए और यहां तक पहुंचे हैं। कोरोना के बारे में अब हम आपको थोड़े समझाएंगे, आप तो खुद ही समझदार हैं। सोशल डिस्‍टेंस मेंटेन करना है और घर में रहना है, याद रखिएगा।''

 इस समझाने के तरीके से साफ है कि विजय उच्‍च जाति के बुजुर्ग व्‍यक्‍ति को उनसे बेहतर होने का दिलासा दे रहे हैं। समझाने के इस तरीके पर विजय राम का कहना है, ''गांव देहात में जात बिरादरी बहुत मायने रखता है। हालांकि, नए जमाने के लोग इस बारे में ज्‍यादा नहीं सोचते, लेकिन जो पहले के लोग हैं उन्‍होंने इसी में अपनी जिंदगी गुजारी है तो उनको समझाने के लिए यह तरीका आजमाना पड़ता है। हमको तो सबको साथ लेकर चलना है न!''

 भारत में कोरोना के मरीजों की संख्‍या 10 हजार के पार हो गई है। पहले जो मरीज शहरों तक सीमित थे अब वो दूर-दराज के गांव से भी आने लगे हैं। ऐसी स्‍थ‍िति में ग्राम पंचायतों की जिम्‍मेदारी और बढ़ जाती है कि वो कोरोना से बचाव को लेकर क्‍या कदम उठा रहे हैं। पंचायतें शहरों से अलग होती हैं, यहां की राजनीति से लेकर रहन सहन तक में जाति, धर्म और सामाजिक ताना बाना गहरे तक असर रखता है। ऐसे हाल में पंचायतों में कोरोना से लड़ाई इन तमाम पहलुओं को साधते हुए लड़ी जा रही है।

 ऐसी ही लड़ाई उत्‍तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के हसुड़ी औसानपुर के प्रधान दिलीप त्रिपाठी (45) भी लड़ रहे हैं। दिलीप रोज सुबह गांव में लगाए गए पब्‍लिक एड्रेस सिस्‍टम से कोरोना से बचाव की जानकारी चलाते हैं। साथ ही गांव को सेनेटाइज करने से लेकर लॉकडाउन का पालन कराने तक का काम कर रहे हैं। लॉकडाउन को पालन कराने के लिए कई बार उन्‍हें पुलिस की सहायता भी लेनी पड़ती है।

 दिलीप बताते हैं, ''वैसे तो गांव में सब लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं, लेकिन कुछ लोग होते हैं जो जानबूझकर प्रधान की नहीं सुनते। ऐसे लोग हर गांव में मिल जाएंगे। हम इनसे झगड़ा तो कर नहीं सकते, ऐसी स्‍थ‍िति में पुलिस की सहायता ली जाती है। पुलिस एक चक्‍कर गांव का लगाती है, दो-चार लोगों को डांटती फटकारती है तो लोग सही होते हैं।'' 

 यह तो हुई लॉकडाउन पालन कराने की बात। इसके अलावा भी अन्‍य चुनौतियां हैं जिसपर उन्‍हें काम करना पड़ा था। दिलीप बताते हैं, ''लॉकडाउन से पहले ही हमारे गांव में मुंबई से कुछ लोग आए थे। मैंने उन्‍हें घर में ही 14 दिन तक रहने की सलाह दी, लेकिन वो मानने को तैयार ही नहीं थे। ऐसे में मुझे सामाजिक तौर पर यह घोषणा करनी पड़ी कि अगर इनके परिवार से कोई मिलेगा तो उसके लिए भी खतरा है। लोग यह बात समझे और मुंबई से आए लोगों से खुद ही दूरी बनाने लगे। इसके बाद मैंने पुलिस को भी इनकी जानकारी दे दी। पुलिस आई और इन लोगों को घर में ही रहने की हिदायत दी, तब जाकर यह लोग माने हैं, लेकिन अब मुझसे तो दुश्‍मनी पाल ही चुके हैं।''

 कुछ ऐसी ही रंजिश की कहानी उत्‍तर प्रदेश के सीतापुर जिले के पीपरी सादीपुर गांव में भी देखने को मिल रही है। इस गांव के रहने वाले सहबान अली (20) दिल्‍ली में सिलाई का काम करते थे। लॉकडाउन के बाद जब प्रवासी मजदूर दिल्‍ली छोड़ रहे थे तो सहबार भी अपने गांव के 18 लोगों के पैदल ही गांव के लिए निकल गए थे।

 1586934378093_0_IMG-20200404-WA0028.jpg

दिल्‍ली से अपने गांव के लंबे सफर के बाद जब सहबान गांव पहुंचे तो उन्‍हें और उनके साथ आए लोगों को गांव के ही स्‍कूल में 14 दिन के लिए क्‍वारंटाइन किया गया। यहां उन्‍हें खाना नहीं मिलता था तो उन्‍होंने इस बात की शिकायत एक जानने वाले पत्रकार से कर दी। ख़बर छपी और प्रधान पर कार्रवाई हो गई। सहबान के मुताबिक, इस घटना के बाद से ही प्रधान के घर वाले उनसे रंजिश रख रहे हैं। अभी सहबान 14 दिन का क्‍वारंटाइन का वक्‍त गुजार कर घर चले आए हैं और उन्‍हें सलाह दी गई है कि 14 दिन और वो घर में अलग रहें, जिसका वो पालन कर रहे हैं।

सहबान बताते हैं, ''प्रधान के घर वाले दुश्‍मन बने हैं वो तो और बात है, गांव वाले भी मेरे परिवार को गलत तरीके से ही देख रहे हैं। जबसे जमात वाला मामला सामने आया है लोग मेरे परिवार को भी कोरोना फैलाने वाला कहते हैं। हम इन बातों से डर लगता है। लोगों को समझना चाहिए कि हम क्‍यों बीमारी फैलाएंगे, इससे हमें क्‍या फायदा होगा।'' 

 सहबान और उसके परिवार के साथ जो हो रहा है वो कितना ख़तरनाक हो सकता है कि इसका अंदाजा हिमाचल प्रदेश की एक ख़बर से लगाया जा सकता है। बताया जाता है कि हिमाचल के ऊना जिले के बनगढ़ गांव में मुस्‍लिम समुदाय से ताल्‍लुक रखने वाले मोहम्‍मद दिलशाद (37) ने इसलिए आत्‍महत्‍या कर ली क्‍योंकि गांव के लोग उसे ताने मारते थे। जमात के लोगों के संपर्क में आने के बाद दिलशाद ने कोरोना टेस्‍ट भी कराया था, जोकि नेगेटिव आया, इसके बाद भी गांव वाले उसका सामाजिक बहिष्‍कार कर रहे थे। इस बात से दिलशाद इतना आहत हुआ कि उसने आत्‍महत्‍या कर ली।

 यह तो हुई आत्‍महत्‍या की बात। इसके अलावा गांव में कोरोना वायरस के संदिग्‍धों की जानकारी स्‍वास्‍थ्‍य विभाग को देने पर एक युवक की हत्‍या भी हो चुकी है। मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक बिहार के सीतामढ़ी जिले के मधौल गांव के बब्‍लू ने महाराष्‍ट्र से आए दो लोगों की जानकारी स्‍वास्‍थ्‍य विभाग को दी थी। इसके बाद स्‍वास्‍थ्‍य विभाग की टीम गांव पहुंची और इन लोगों से पूछताछ की गई। इस बात से यह दोनों युवक इतना नाराज हुए कि घर वालों के साथ मिलकर बब्‍लू की पिटाई करने लगे, उसे इतना मारा कि उसकी मौत हो गई। इस मामले में 7 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है।  

 पंचायतों की यह कहानियां बताती हैं कि गांव में कोरोना से लड़ाई कितनी मुश्‍किल है। इन कहानियों से आप समझ पाए होंगे कि कैसे पंचायतों में कोरोना से लड़ाई का स्‍वरूप ही बदल जाता है। ऐसा नहीं कि गांव में सेनेटाइजेशन से लेकर सोशल डिस्‍टेंसिंग जैसे बचाव के काम नहीं होते, वहां भी यह सब होता है, लेकिन उसके समानांतर ही ऐसी घटनाएं भी चल रही हैं जो जाति, धर्म और राजनीति का अलग स्‍वरूप दिखाती हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Coronavirus COVID-19 testing india
india coronavirus testing
Coronavirus Pandemic
Social Distancing
panjayath
Delhi
Maharashtra

Related Stories

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

कोरोना काल में भी वेतन के लिए जूझते रहे डॉक्टरों ने चेन्नई में किया विरोध प्रदर्शन

दिल्ली में कोविड-19 की तीसरी लहर आ गई है : स्वास्थ्य मंत्री

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 6,984 नए मामले, ओमिक्रॉन से अब तक 57 लोग संक्रमित

हर नागरिक को स्वच्छ हवा का अधिकार सुनिश्चित करे सरकार

दिल्ली के छठे सीरो सर्वे में 90% से ज्यादा लोगों में मिली एंटीबॉडी

जानलेवा दिल्ली की हवा, 75 प्रतिशत बच्चों को सांस लेने में परेशानी

दिल्ली में कोविड के कारण 2029 बच्चों ने माता-पिता दोनों या किसी एक को खो दिया: सर्वेक्षण

दिल्ली : कोरोना और ब्लैक फंगस के साथ डेंगू ने भी दी दस्तक़

नासिक के अस्पताल में आंखों में आंसू लिए जवाब मांग रहे हैं परिजन, मामले में प्राथमिकी दर्ज


बाकी खबरें

  • protest
    न्यूज़क्लिक टीम
    दक्षिणी गुजरात में सिंचाई परियोजना के लिए आदिवासियों का विस्थापन
    22 May 2022
    गुजरात के दक्षिणी हिस्से वलसाड, नवसारी, डांग जिलों में बहुत से लोग विस्थापन के भय में जी रहे हैं। विवादास्पद पार-तापी-नर्मदा नदी लिंक परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। लेकिन इसे पूरी तरह से…
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: 2047 की बात है
    22 May 2022
    अब सुनते हैं कि जीएसटी काउंसिल ने सरकार जी के बढ़ते हुए खर्चों को देखते हुए सांस लेने पर भी जीएसटी लगाने का सुझाव दिया है।
  • विजय विनीत
    बनारस में ये हैं इंसानियत की भाषा सिखाने वाले मज़हबी मरकज़
    22 May 2022
    बनारस का संकटमोचन मंदिर ऐसा धार्मिक स्थल है जो गंगा-जमुनी तहज़ीब को जिंदा रखने के लिए हमेशा नई गाथा लिखता रहा है। सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल पेश करने वाले इस मंदिर में हर साल गीत-संगीत की…
  • संजय रॉय
    महंगाई की मार मजदूरी कर पेट भरने वालों पर सबसे ज्यादा 
    22 May 2022
    पेट्रोलियम उत्पादों पर हर प्रकार के केंद्रीय उपकरों को हटा देने और सरकार के इस कथन को खारिज करने यही सबसे उचित समय है कि अमीरों की तुलना में गरीबों को उच्चतर कीमतों से कम नुकसान होता है।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 
    21 May 2022
    अठारह घंटे से बढ़ाकर अब से दिन में बीस-बीस घंटा लगाएंगेे, तब कहीं जाकर 2025 में मोदी जी नये इंडिया का उद्ïघाटन कर पाएंगे। तब तक महंगाई, बेकारी वगैरह का शोर मचाकर, जो इस साधना में बाधा डालते पाए…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License