NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पुलिस सुधार पर सुप्रीम कोर्ट के अनिवार्य निर्देशों का पालन कहीं नहीं हो रहा
राज्य सुरक्षा आयोग (SSC) को यह सुनिश्चित करने का प्रस्ताव दिया गया था कि राज्य सरकारें राज्य पुलिस पर अनुचित प्रभाव या दबाव का इस्तेमाल नहीं करे।
सबाह गुरमत
30 Sep 2021
Police
Image courtesy : The Wire

अंतरराष्ट्रीय अलाभकारी समूह कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) के हालिया निष्कर्षों से पता चलता है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रकाश सिंह और अन्य बनाम भारत संघ के मामले में अपने 2006 के फैसले में पुलिस सुधार के निर्देश जारी किये जाने के 15 साल बाद भी किस तरह इन निर्देशों का पालन "न तो कोई एक राज्य, और न ही केंद्र शासित प्रदेश पूरी तरह से कर पा रहे हैं।

21 सितंबर, 2021 को जारी एक रिपोर्ट में सीएचआरआई ने प्रकाश सिंह की ओर से सूचीबद्ध सात निर्देशों के सिलसिले में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) के प्रदर्शन पर बारीकी से छानबीन की। ये निर्देश जिन क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं,वे हैं:

I. राज्य सुरक्षा आयोगों (SSC) का गठन  

II. पुलिस महानिदेशक (DGP) का कार्यकाल और नियुक्ति

III. प्रमुख क्षेत्र-स्तरीय पुलिस अधिकारियों का न्यूनतम कार्यकाल

IV. जांच-पड़ताल और कानून व्यवस्था को अलग करना

V. पुलिस प्रतिष्ठान बोर्ड (PEB) का गठन

VI. स्वतंत्र पुलिस शिकायत प्राधिकरण (PCA) की स्थापना

VII. राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग (NSC) की स्थापना

सिर्फ़ एक सूबा राज्य सुरक्षा आयोग वाले निर्देश का अनुपालन करता है

राज्य सुरक्षा आयोग (SSC) को यह सुनिश्चित करने का प्रस्ताव दिया गया था कि राज्य सरकारें राज्य पुलिस पर अनुचित प्रभाव या दबाव का इस्तेमाल न करे। यह रिपोर्ट किसी भी राज्य को अनुपालन नहीं करने वाले राज्य के रूप में तब वर्गीकृत करती है, जब उसने ऐसा आयोग गठित नहीं किया हुआ होता है, या इसके गठन के आवश्यकता शर्तों को पूरा नहीं करता है, या एसएससी की सिफारिशों को बाध्यकारी बना देता है।

भले ही 28 में से 27 राज्यों (ओडिशा को छोड़कर) ने एक-एक एसएससी की स्थापना की है, लेकिन कर्नाटक इकलौता ऐसा राज्य है, जो अपने एसएससी को बाध्यकारी सिफारिशें करने का अधिकार देता है और इसने अदालत के निर्देश पर आंशिक रूप से अमल करने का फैसला लिया है।

पीईबी के निर्देशों का अनुपालन करते सिर्फ़ दो राज्य

अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ कर्नाटक ही दो ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने पुलिस प्रतिष्ठान बोर्ड (PEB) को पूरी तरह सशक्त बनाया है।इसमें डीजीपी और चार अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शामिल हैं। उनका काम पुलिस अधीक्षक (SP) और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों के लिए स्थानांतरण, पोस्टिंग और पदोन्नति सहित सेवा से जुड़े मामलों की निगरानी करना और डिप्टी एसपी के पद के नीचे और उससे भी नीचे के अधिकारियों के लिए पोस्टिंग और स्थानांतरण पर सिफारिशें करना था।

28 में से 20 राज्यों को पीईबी के निर्देशों का अनुपालन नहीं करते हुए पाया गया। इस तरह, उन फैसलों पर नियंत्रण बनाये रखने का खतरा राजनीतिक कार्यपालिका की ओर से है, जबकि यह काम पुलिस की ओर से स्वतंत्र रूप से किए जाने चाहिए था।

अन्य निर्देशों का अनुपालन निराशाजनक

इसके अलावा, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड,सिर्फ यही दोनों ऐसे राज्य हैं,जहां डीजीपी के कार्यकाल और चयन से जुड़े निर्देश का पालन करते हैं। इसके अलावा, महज पांच राज्य ही संघ लोक सेवा आयोग को इस पद के लिए उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्टिंग को लेकर शामिल करते हैं, और सिर्फ छह राज्य अपने पुलिस प्रमुख के लिए दो साल की कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान करते हैं।

इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, सिर्फ सात राज्यों में उम्मीदवारों की स्वतंत्र शॉर्ट-लिस्टिंग की गयी थी, और केवल 13 राज्य ही राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना पुलिस नेतृत्व की ओर से लिए जाने वाले फैसले को सक्षम करने को लेकर एक अंदरूनी व्यवस्था देते हैं।

कानून और व्यवस्था के कार्यों के साथ जांच-पड़ताल को अलग करने के मुद्दे को लेकर जहां 16 राज्यों ने कथित तौर पर 'कुछ उपाय' किए हैं, वहीं मिजोरम ने मिजोरम पुलिस अधिनियम, 2011 में इस अलगाव का सबसे सुव्यवस्थित व्यवस्था प्रस्तुत की है। राज्यों की ओर से किये गये इन उपायों में विशिष्ट अपराधों या चुनिंदा भौगोलिक क्षेत्रों के लिए पुलिस थानों में विशेष जांच इकाइयां स्थापित करना भी शामिल है।

 सिर्फ एक राज्य की ओर से राज्य स्तरीय पीसीए का गठन  

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर कदाचार और कुछ खास तरह के कदाचार के मामलों में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जनता की शिकायतों को देखने के लिए पुलिस शिकायत प्राधिकरण (PCA) की स्थापना को अनिवार्य किया था। लेकिन, इसका अनुपालन सिर्फ एक राज्य अरुणाचल प्रदेश ने राज्य-स्तरीय पीसीए के निर्देशों का अनुपालन किया है, जबकि एक भी राज्य को जिला-स्तरीय पीसीए स्थापित करने का पूरी तरह से अनुपालन करने हुए नहीं पाया गया है। बिहार, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने तो राज्य स्तर पर भी किसी तरह के पीसीए का गठन नहीं किया है।

विशेष रूप से तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य की सरकार ने यह आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के उस शासनादेश को शामिल करने से इनकार कर दिया कि पीसीए के गठन से पुलिस के खिलाफ उन्हें "हताश" करने वाली "झूठी शिकायतें दर्ज करने को लेकर उग्रवादी 'तत्वों' को एक मंच मिल जायेगा।"

सीएचआरआई की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पीसीए का "जैसा-तैसा ढांचा" सरकारी प्रशासकों और पुलिस अधिकारियों के सदस्यों की अगुवाई स्वतंत्रता की कमी के साथ-साथ उसके दायरे को भी कम कर देती है।इससे "पुलिस कदाचार और क्रूरता के खिलाफ एक प्रभावी उपाय के रूप में इसके उभरने में सक्षम हो पाने की संभावना नहीं रह जाती है।"

दिल्ली सहित सभी केंद्र शासित प्रदेश या तो इनमें से ज़्यादातर निर्देशों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं या फिर महज आंशिक रूप से ही अनुपालन कर रहे हैं।

पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है।

यह लेख मूल रूप से द लीफ़लेट में प्रकाशित हुआ था।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

15 Years Since SC Mandated Directives for Police Reforms, no State/UT in India Fully Compliant

Criminal Justice System
Supreme Court

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License