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भारत
राजनीति
अप्रैल के बाद से मनरेगा में दो करोड़ आवेदकों को नहीं मिला काम
लॉकडाउन में काम न होने के चलते योजना में काम करने के लिए इच्छुक लोगों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है, लेकिन MGNREGA की चादर बढ़ती मांग के लिए छोटी पड़ रही है।
सुबोध वर्मा
19 Jun 2020
मनरेगा

एक अप्रैल को इस वित्तवर्ष की शुरुआत के बाद से अब तक ढाई महीने गुजर चुके हैं। इस दौरान महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGA) में करीब़ 7.3 करोड़ लोगों ने आवेदन किया है। इस योजना में 40,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त प्रावधान के बावजूद, योजना का लाभ लेने के लिए जो मांग उठ रही है, उसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल से अब तक करीब़ दो करोड़ लोगों को काम देने से इंकार कर दिया गया है। काम की मांग करने वालों के कुल आंकड़े का यह 28 फ़ीसदी हिस्सा है (नीचे चार्ट देखें)। 

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रोज अपडेट होने वाला यह आंकड़ा ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा इसी काम के लिए प्रबंधित वेबसाइट पर देखा जा सकता है।

हर साल मांग और दिए गए काम के बीच अंतर बरकरार रहता है। उदाहरण के लिए, पिछले साल 1.45 करोड़ लोगों को काम देने से इंकार कर दिया गया। लेकिन इस साल स्थितियां ज्यादा परेशान करने वाली हैं। अभी इस वित्तवर्ष के सिर्फ़ ढाई महीने निकले हैं, लेकिन काम न पा सकने वाले लोगों की संख्या पिछले वित्तवर्ष के कुल आंकड़े को पार कर चुकी है।

कुछ राज्यों में तो काम देने से इंकार करने में ख़ास सक्रियता दिखाई है। उत्तरप्रदेश में करीब़ 34 लाख लोगों को काम देने से इंकार कर दिया गया। ग्रामीण रोजगार गारंटी के तहत प्रदेश में आवेदन करने वाले लोगों की कुल संख्या का यह 36 फ़ीसदी हिस्सा था। वहीं राजस्थान में 33 लाख, पश्चिम बंगाल में 20 लाख, मध्यप्रदेश में 17 लाख, छत्तीसगढ़ में 14 लाख, बिहार में 14 लाख, तमिलनाडु में 12 लाख और ओडिशा में 11 लाख लोगों को काम नहीं मिल पाया। 
MGNREGA में बड़ी संख्या में लोगों को काम देने को लेकर कई राज्य सरकारें अपनी पीठ थपथपा रही हैं। लेकिन जिन लोगों को काम नहीं मिल पाया, उस आंकड़े से ही राज्यों द्वारा योजना को लागू करने के तरीके की असली तस्वीर सामने आती है।

24 मार्च से लागू देशव्यापी लॉकडाउन ने प्रभावी तरीके से भारतीय अर्थव्यवस्था के ज़्यादातर हिस्से को बंद कर दिया है। इससे 12 से 15 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गई हैं। क्योंकि इनमें से ज़्यादातर लोग अनौपचारिक रोज़गार में लगे थे, जिन्हें कम भत्ते मिलते थे और उनके पास थोड़ी ही बचत है। इन लोगों को बहुत जल्दी भुखमरी का सामना करने पर मज़बूर होना पड़ा। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत काम बंद हो गया, लेकिन 20 अप्रैल तक सरकार को कोई सुध ही नहीं थी। लाखों लोग बेरोज़गार थे, ख़ासकर वे मज़दूर, जिन्हें सरकार ने अपने हाल पर छोड़ दिया था। यह लोग बड़े शहरों से दूर-दराज के अपने गांवों-कस्बों में पहुंचे थे, उन्होंने MGNREGS में काम लेने की कोशिश की। आख़िर उनके पास छोटी-मोटी आय का सिर्फ़ यही एक साधन बचा था। 
इस तरह काम की मांग करने वालों में सर्वकालिक मासिक उछाल आया, जिसके तहत तीन करोड़ चौबीस लाख परिवारों को इस साल मई में काम दिया गया। (नीचे चार्ट देखें)

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आमतौर पर काम के आवेदन गर्मियों के महीने में बढ़ते हैं, जब रबी की फ़सल की कटाई का मौसम ख़त्म होता है। जैसा आप ऊपर चार्ट में देख सकते हैं, 2019 में मानसून आने के पहले अप्रैल, मई और जून के महीने में काम पाने वाले परिवारों की संख्या बढ़ गई। क्योंकि इस दौरान खरीफ की फ़सल लगना शुरू होती है।

लेकिन इस साल लॉकडाउन के चलते चीजें बुरे तरीके से हिल गईं। पहली बार अप्रैल में काम पाने वाले परिवारों की संख्या पिछले महीने से कम हो गई। मार्च में काम पाने वालों के 1.59 करोड़ के आंकड़े से गिरकर यह संख्या 1.11 करोड़ हो गई। लेकिन जैसे ही मई में MGNREGS गतिविधियां शुरू हुईं, इस आंकड़े में बहुत तेज उछाल आया। 17 जून तक करीब़ 1.2 करोड़ परिवारों को काम दिया जा चुका था।

इन उछाल भरे आंकड़ों के बीच हमें उन लोगों की बड़ी संख्या दिखती है, जिन्हें काम नहीं दिया गया। इसकी वज़ह राज्यों सरकारों को पर्याप्त फंड न मिलना, उनके तंत्र का इतनी बड़ी संख्या में लोगों को संभाल पाने की अक्षमता या फिर लोगों को काम की जरूरत पर गंभीर ध्यान न देना है। 

लेकिन लाखों लोगों की एकमात्र आजीविका के साधन को नजरंदाज करना उनसे धोखेबाजी है। वह भी ऐसे वक़्त में जब नौकरियां पैदा किए जाने की दूसरी नीतियां बुरे तरीके से असफल हो रही हैं। जबकि इस कठिन दौर में मोदी सरकार से लोगों को सीधे नग़द की राहत मिल पा रही है, जिसकी नीतियों ने आंखों पर काली पट्टी बांध रखी है।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
 

Over 2 Crore MGNREGA Job Seekers Turned Back Since April

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