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भारत
राजनीति
2017: प्रतिरोध का वर्ष
देश भर में औद्योगिक और सेवा दोनों ही क्षेत्रों में श्रमिकों और किसानों ने अपने जीवन के गिरते स्तर, असमानता और धनी वर्गों की लूट के खिलाफ लड़ाई लड़ीI
सुबोध वर्मा
28 Dec 2017
Translated by महेश कुमार
resistance

साल 2017 भारत में बढ़ती विषमता का वर्ष तो रहा साथ ही हर तरह के कामक़ाज़ी लोगों के संयुक्त संघर्ष का वर्ष भी रहाI दर्जनों सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों जैसे बंदरगाहों, इस्पात संयंत्रों, कोयला खदानों, आयुध कारखानों, बैंकों, बीमा कंपनियां आदि में - सरकार द्वारा राष्ट्रीय संपत्तियों का निजीकरण कर निजी उद्योगपतियों को सौंपने के दबाव के खिलाफ श्रमिकों ने हड़तालें की, और निरंतर विरोध कियाI अनुबंध (ठेकेदारों के अंतर्गत काम करने वाले) मजदूरों और 'स्कीम श्रमिक' (सरकारी योजनाओं में नियोजित) ने अक्सर पुलिस हमले का सामना करते हुए कई राज्यों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किएI सड़क परिवहन क्षेत्र में असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों ने छोटी इकाइयों को निचोड़ने और सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण करने के लिए प्रस्तावित कानूनों के खिलाफ लड़ाई लड़ीI उत्तर-पूर्व से गुजरात और हिमाचल प्रदेश से तमिलनाडु तक के औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों ने अपनी आजीविका को बचाने के लिए पुलिस और खरीदे हुए गुंडों के हमलों के खिलाफ डट कर मुकाबला कियाI

संघर्षरत श्रमिकों के बढ़ते आन्दोलनों की वजह से, किसानों की गतिविधियों में लगातार बढ़ोतरी हुयी है, नतीजतन कहीं उन्हें मध्य प्रदेश के मंदसौर में पुलिस की गोलियों का सामना करना पड़ा और अन्य स्थानों जैसे की राजस्थान में अधिकारियों को उनकी माँगों के आगे झुकना पडाI

नवंबर में राजधानी दिल्ली में आयोजित दो अलग बड़े विरोध प्रदर्शनों के द्वारा दोनों ही संघर्षों को एक साथ दिल्ली में ले आयाI जिसमें एक ऐतिहासिक 3 दिवसीय 'महापड़ाव' (बड़े पैमाने का धारणा) था जिसमें लगभग 2 लाख श्रमिकों ने भाग लिया था, और सरकार पर अपनी माँगों को मानने के लिए दबाव बनाने की कोशिश की, माँगों में निजीकरण पर रोक, महँगाई पर नियंत्रण, पीडीएस को मज़बूत बनाने और नव-उदारवादी श्रम कानून में सुधारों आदि को हटाने की माँग शामिल थीI नवंबर में ही किसानों की लंबित पडी माँगों के समर्थन में 2 दिवसीय 'किसान मुक्ति संसद' का दिल्ली में आयोजन किया गया और इसमें करीब एक लाख किसानों ने हिस्सा लियाI इस पड़ाव में उन किसान परिवारों के सदस्य भी मौजूद थे जिनके परिवारों में कर्ज़ और नुकसान के कारण आत्महत्या कर चुके थेI

2017 केवल भारत के कामकाजी लोगों के बीच एक गहरे उबाल का वर्ष नहीं रहा बल्कि वह भारतीय समाज के दो सबसे बड़े वर्गों श्रमिकों और किसानों की बढ़ती एकजुटता का भी वर्ष रहाI यह कई बार कई संघर्षों में देखा गया थाI ट्रेड यूनियनों ने देश भर में 16 जून को विरोध प्रदर्शन किया था जब मंदसौर में किसानों के विरोध प्रदर्शनों पर पुलिस ने क्रूर हमले किये और पाँच किसानों की हत्या कर दीI श्रमिकों ने 9 अगस्त को 150 जिलों में आयोजित किए गए विरोध प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में भाग लिया, जिसे किसानों और अन्य संगठनों के एक संयुक्त मंच, भूमि अधिकारी विरोध आंदोलन ने आयोजित किया थाI किसानों ने 10,000 कि.मी. लम्बी विरोध यात्रा में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया जिसे ‘किसान मुक्ति यात्रा’ का नाम दिया गया थाI

किसानों के संघर्ष

2017 खेती के संकट का वर्ष भी रहा हैI भारी क़र्ज़, अनियंत्रित कीमतों, भूमि अधिग्रहण और कम कृषि मज़दूरी, उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी ने संकट को और भयावह बना दिया है और वह अक्सर आत्महत्याओं की और ले जाता हैI इस कृषि संकट की वजह से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, यूपी, राजस्थान, तमिलनाडु एवं अन्य राज्यों में किसानों के मज़बूत विरोध का सामना करना पडा हैI सरकार ने इन आन्दोलनों को कुचलने की कोशिश की लेकिन मज़बूत संयुक्त किसान आन्दोलन के दबाव के चलते लगभग सभी राज्य सरकारों को ऋण छूट की घोषणा करने के लिए मजबूर होना पडाI सबसे महत्वपूर्ण विजय राजस्थान में हुई जहाँ सरकार बड़े पैमाने पर आंदोलन के बाद विभिन्न माँगों को स्वीकार करने के लिए मजबूर हो गयीI

इन सभी संघर्षों को किसान मुक्ति यात्रा के माध्यम से एक मंच पर लाया गया जिसने देश भर में बढ़ते हुए संघर्षों के लिए किसानों को इकट्ठा करने का काम किया और आखिर में किसानों के सभी मोर्चे दिल्ली में किसान मुक्ति संसद में शामिल हो गएI

मजदूरों के संघर्ष

2017 में श्रमिकों के संघर्षों की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी कि उसमें महिलाओं की बड़ी भागीदारी रहीI यह मुख्य रूप से इसलिए था क्योंकि स्कीम महिलाओं वाले संगठनों और कार्यकर्ताओं ने सरकार के खिलाफ कड़ी लड़ाई लड़ी थीI उनकी निधि (फंड) में कटौती और उन्हें नियमित कर्मचारियों के रूप में मानने से इनकार करना आम हैI देश में लगभग 1 करोड़ स्कीम श्रमिक हैं, जो अनियमित तौर पर या ठेके पर काम हैं, हालांकि वे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं, स्कूलों में मध्यान्ह भोजन, जच्चा-बच्चा देखभाल और पोषण आदि जैसी सालाना सेवाएँ प्रदान करते हैंI वर्ष 2017 के दौरान स्कीम (योजना) कर्मचारियों ने महाराष्ट्र, असम, केरल, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, कर्नाटक, हरियाणा, पंजाब, झारखंड, बिहार, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, असम आदि में विरोध प्रदर्शन कियाI उन्होंने 20 जनवरी 2016 को सफलतापूर्वक एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल भी आयोजित की और उसी दिन सभी जिलों में प्रदर्शनों भी कियाI बाद में 21 अगस्त को, आशा वर्कर (स्वास्थ्य कार्यकर्ता) ने संसद में भारी विरोध किया, और अपनी माँगों के समर्थन में पूरे देश के ग्रामीणों क्षेत्रों से करीब 50 लाख हस्ताक्षर भी प्रस्तुत किएI

इस दौरान एक और जो प्रमुख संघर्ष हुआ वह मोदी सरकार के निजीकरण ड्राइव के खिलाफ थाI अपने साढ़े तीन साल के शासनकाल में मोदी कीतथाकथित राष्ट्रवादी सरकार ने निजी खरीदारों को 1.25 लाख करोड़ रुपये की सार्वजनिक क्षेत्र की परिसंपत्तियों को बेच दिया, और ऐसा कर मोदी सरकार ने हजारों नौकरियों को जोखिम में डाल दिया गयाI पूरे देश में सार्वजनिक क्षेत्रों में श्रमिकों ने इसके विरुद्ध विरोध प्रदर्शन कियेI रक्षा उत्पादन के कर्मचारियों ने जुलाई में 45 दिवसीय रिले भूख हड़ताल कीI तमिलनाडु में, बंदरगाह के कर्मचारियों ने मुनाफे में चल बंदरगाह को अदानी ग्रुप को बिक्री के खिलाफ विरोध किया, अडानी जोकि कथित तौर पर मोदी का नजदीकी हैI भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड के कर्मचारियों ने कर्नाटक में मैसूर और कोलार और केरल के पलक्कड़ जिलों में विनिवेश के खिलाफ मई में हड़ताल कीI मार्च में, कोचीन शिपयार्ड श्रमिक 25% निजीकरण के खिलाफ हड़ताल पर गए थेI अप्रैल में, श्रमिकों ने तीन इस्पात संयंत्रों जिन्हें बिक्री के लिए दिया जाना था (दुर्गापुर, सलेम और भद्रवती) में हड़ताल की, ड्रेजिंग कार्पोरेशन के कर्मचारियों ने अप्रैल माह में काम रोकाI हरियाणा में, राज्य सड़क परिवहन श्रमिकों ने निजी ऑपरेटरों को सौंपने की योजना के खिलाफ प्रदर्शन कियाI पश्चिम बंगाल में 10 ईसीएल खदानों को बंद करने के खिलाफ कोयला खदानों में भारी विरोध हुआI ओडिशा में नाल्को के कार्यकर्ताओं ने निजीकरण के खिलाफ विरोध कार्यवाही कीI 28 फरवरी को पूरे देश के बैंक कर्मचारियों ने सरकार की निजीकरण की योजना के खिलाफ एक दिन की हड़ताल कीI

यहाँ तक कि केंद्र और राज्य दोनों के सरकारी कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने में देरी करने और पेंशन योजनाओं में बदलाव लाने के विरुद्ध 13 लाख से अधिक केंद्रीय सरकार कर्मचारियों ने 16 मार्च को हड़ताल की, जबकि 2 मार्च को राज्य सरकार के कर्मचारियों ने नई पेंशन योजना को वापस लेने की माँग करते हुए दिल्ली में एक बड़े पैमाने पर धरने का आयोजन किया, इसमें काम के आउटसोर्सिंग और अन्य माँगें भी शामिल थींI आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में नगर निगम कार्यकर्ताओं ने काम की निजी ठेकेदारों को आउटसोर्सिंग के विरुद्ध प्रदर्शन कियाI कर्नाटक में, ग्राम पंचायत के मजदूरों ने इसी तरह के मुद्दों पर विरोध कियाI

देश के विभिन्न हिस्सों में सड़क परिवहन श्रमिकों ने तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, कर्नाटक आदि में निजीकरण के लिए प्रस्तावित नए कानून के खिलाफ संघर्ष कियाI निर्माण श्रमिकों,  ज़्यादातर असंगठित क्षेत्र से ने कम वेतन के खिलाफ हरियाणा, पश्चिम बंगाल, सहित विभिन्न राज्यों में मजदूरी, नौकरी के नुकसान और दमन के खिलाफ प्रदर्शन कियाI चिकित्सा बिक्री प्रतिनिधियों द्वारा एक देशव्यापी हड़ताल फरवरी में आयोजित की गई, जिसमें दवाओं की लागत आधारित कैपिंग, शून्य कर और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने की स्थिति के विनियमन की मांग शामिल थीI पश्चिम बंगाल में 300 चाय बागानों के मजदूरों ने 2 दिन की हड़ताल की और अपने लिए बेहतर वेतन की मांग कीI लेकिन इसके लिए उन्हें पुलिस की बर्बरता का सामना करना पडा थाI तमिलनाडु में, मछुआरों ने सरकार के उस कानून के विरुद्ध प्रदर्शन की या जिसमें उन्हें समुद्र में तीन नौटिकल मील से आगे जाने से रोका गयाI कम वेतन के विरुद्ध कई राज्यों में बीड़ी कामगारों ने विरोध कियाI यहां तक कि एलआईसी एजेंटों ने बीमा क्षेत्र के बारे में नीति को लेकर सरकार के खिलाफ अगस्त में दिल्ली में विरोध रैली आयोजित कीI

कई राज्यों में जैसे कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, राजस्थान, असम आदि जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के जरिए ट्रेड यूनियनों और अन्य संगठनों में मूल्य वृद्धि, किसानों के ऋण, नौकरी के नुकशान और अन्य लोगों के मुद्दों के खिलाफ एकजुटता आई हैI

साल समाप्त होने के साथ, इन संघर्षों के आधार पर एक नींव रखी गई - और इसमें कई आन्दोलनों का उल्लेख नहीं है – ये सब आन्दोलन आने वाले महीनों में संघर्ष को बड़े स्तर पर अलगू करने के लिए उनकी मज़बूत बुनियाद बनेंगेI अंततः, मुख्या मकसद तो मोदी सरकार और पिछली सरकारों द्वारा लागू की जा रही जन- विरोधी नीतियों को पलटना है और एक ऐसी राजनैतिक व्यवस्था को लाना है जो आम लोगों पक्ष में नीतियों को लागू कर सकेI

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