NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
2018 - बेरोज़गारी बढ़ाने वाला वर्ष
रोज़गार का संकट जारी है, जिसे सरकार द्वारा तेज़ी से बढ़ाया जा रहा है क्योंकि उसके पास आँकड़ों के साथ घालमेल करने के अलावा अन्य कोई समाधान नहीं है।
सुबोध वर्मा
29 Dec 2018
Translated by महेश कुमार
UNEMPLOYMENT

अगर 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी द्वारा एक स्पष्ट वादा किया गया था, तो वह यह था कि वे हर साल एक करोड़ नौकरियां देंगे। लगभग पांच साल गुज़र गए है अब यही वादा केंद्र में उन्हें और उनकी सरकार को डुबो देने का वादा बनता नज़र आ रहा है।

इस वादे को पूरा करना तो दूर की बात है, मोदी सरकार के कार्यकाल को युवाओं के लिए निरंतर बढ़ती रोजगारहीनता के रूप में चिह्नित किया गया है - विशेष रूप से शिक्षित युवाओं के लिए –जो इससे सबसे अधिक पीड़ित हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के नवीनतम सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, समाप्त होने वाला वर्ष भी कोई अपवाद नहीं है: जनवरी 2018 से बेरोजगारी में बढ़ोतरी लगातार पांच प्रतिशत से  बढ़कर 28 दिसंबर को 7.3 प्रतिशत हो गई है।

Rising Joblessness.jpg

याद रखें: सीएमआईई स्पष्ट रूप से उन लोगों के बारे में बेरोजगारी को परिभाषित कर रहा है जो बिना नौकरी के हैं और सर्वेक्षण के समय सक्रिय रूप से नौकरियों के अवसरों की तलाश कर रहे हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होने वर्तमान में नौकरियों की तलाश न करने का फैसला लिया है और जो हालात से निराश, गैर-उम्मीद और थक गए हैं। अगर आप इन नंबरों को जोड़ते हैं तो बेरोजगारों का हिस्सा पिछले अनुमान से बढ़कर 9-10 फीसदी हो जाएगा। उदाहरण के लिए, अगस्त 2018 में, कड़े तौर पर परिभाषित बेरोजगारी दर 5.67 प्रतिशत थी, जबकि सीएमआईई द्वारा प्रकाशित मई-अगस्त 2018 में यह दर भारत में बेरोजगारी की सांख्यिकीय प्रोफाइल के अनुसार, 7.87 प्रतिशत थी।

अगस्त में, स्नातकों में बेरोजगारी 14 प्रतिशत के बराबर थी, जबकि उसी प्रकाशन के अनुसार 20-24 वर्ष के व्यक्तियों के बीच बेरोजगारी 32 प्रतिशत थी। इसलिए, वर्ष के अंत में, दोनों और भी अधिक बढ़ जाएंगे अगर  दोनों को जोड़े तो कुल बेरोजगारी दर में दो प्रतिशत से अधिक की वृद्धि मिलती है।

इसी तरह, अगस्त में महिला बेरोजगारी 22 प्रतिशत से अधिक थी, और साल के अंत तक इसमें ओर बढ़ोतरी हो गई होगी।

कई अन्य तरीके हैं, जिसके जरिये देश में यह स्पष्ट दिखाई देता है, हालांकि यह सत्तारूढ़ भाजपा को दिखाई नहीं देता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में, 7.2 करोड़ लोगों ने इस साल 15 दिसंबर तक काम के लिए आवेदन किया था। वित्तीय वर्ष के ख़त्म होने में अभी भी तीन महीने से अधिक समय बचा है, काम के लिए संपर्क करने वाले व्यक्तियों की संख्या एक रिकॉर्ड बनाती नज़र आ रही है। पिछले वर्ष 2016-17 में यह उच्च आँकड़ा था जब 8.5 करोड़ लोगों ने इस योजना के तहत काम की मांग की थी। उल्लेखनीय बात यह है कि इस तरह की योजनाओं से मोदी सरकार के वित्तीय दबाव के परिणामस्वरूप 1.29 करोड़ लोग काम न पाने की वजह से वापस लौट गए और उन्हे सरकार ने काम देने से इनकार कर दिया, हालांकि योजना के मुताबिक सभी आवेदकों को काम प्रदान करना अनिवार्य है। इस योजना की शुरुआत के बाद की यह सबसे अधिक संख्या है, सरकार के इंकार ने बेरोजगार लोगों की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। फिर से, तीन महीने बचे हैं, और यह संख्या आगे बढ़ने के लिए तैयार है।

हालाँकि प्रधानमंत्री यह घोषणा करना जारी रखते हैं कि भारत अब दुनिया का सबसे बड़ा सेल फोन निर्माता है - जिसका अर्थ है कि इस क्षेत्र में बहुत सारे लोगों को रोजगार मिल रहा है, यह किसी भद्दे मजाक से कम नहीं है। भारत हर साल 1.2 करोड़ लोगों को अपनी कामकाजी उम्र की आबादी में शामिल कर रहा है और कुछ लाख लोगों को कम मज़दूरी वाले रोजगार मुहैया करा रहा है, जिससे समस्या का समाधान संभव नहीं है।

लेकिन ऐसा ही है जैसे मोदी और उनके सहयोगियों ने नौकरियों के संकट को संभाला है - धोखे से, हाथ की सफाई और संख्या की धोखाधड़ी से। विभिन्न अवसरों पर, मोदी और उनके मंत्रियों की टोली ने कहा कि इतनी सारी नौकरियां पैदा हुई हैं - कभी 70 लाख, कभी 40 लाख, तो कभी कुछ और। उन्होंने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के नामांकन डेटा का उपयोग कर बार-बार यह दिखाने के लिए किया कि नौकरियां पैदा हो रही हैं; जबकि, यह केवल भविष्य निधि कवर के तहत लाए गए लोगों की संख्या को दर्शाता है। ये नए श्रमिक हो भी सकते हैं या नहीं भी। लेकिन मोदी और उसके सहयोगी हमें सहर्ष बताएं कि ये नई नौकरियां कहां हैं।

इसी तरह, विभिन्न रोजगार सृजन योजनाओं को यह साबित करने के लिए उद्धृत किया जाता है कि नौकरियों का विस्तार कैसे हो रहा है। लेकिन ये भी डेटा में घालमेल करने के गुर हैं। मिसाल के तौर पर, संसद में एक मंत्री ने कहा कि 17.6 लाख नौकरियां प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के तहत पैदा हुई। यह मानकर इसे प्रोजेक्ट किया गया था कि प्रत्येक परियोजना के लिए जिसके लिए बैंक सब्सिडी मंजूर की गई थी, वह 12 नई नौकरियों का सृजन करती है। जबकि इस तरह की धारणा का कोई आधार नहीं है - वास्तव में ऐसे उद्यमों के एकमात्र सर्वेक्षण से पता चला है कि ऐसी इकाइयों में औसत रोजगार सिर्फ सात का है। लेकिन इसकी कौन परवाह करता है! मोदी और उनके सहयोगी बैठे-बैठे संख्याओं को जोड़ते रहते हैं।

वर्ष, 2018, इस प्रकार का वर्ष रहा है जिसमें बढ़ती बेरोजगारी देखी गई, और इसके बारे में झूठ गढ़ा गया है। इस साल कामकाजी लोगों, विशेष रूप से युवाओं में, बेहतर नौकरियों की मांग, और निश्चित रूप से, अधिक नौकरियों की मांग की एक बड़ी चाहत देखी गयी है। आगामी वर्ष के आम चुनाव में, मोदी को इन सबका जवाब देना होगा।

Employment
unemployment
UNEMPLOYMENT IN INDIA
CMIE
2018 employment
prime minister
Narendra modi
chunavi rajniti
चुनावी जुमला
General elections2019

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License