एक जनवरी, 2019 को, केरल के वालनचेरी शहर के एक सेवानिवृत्त पोस्टमास्टर जयराजन ने कथित तौर पर अपने आवास पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। अगले दिन, मासिक धर्म की उम्र वाली दो महिलाओं ने सबरीमाला मंदिर में प्रवेश किया, ऐसा करने वाली वे पहली महिलाएँ बन गयी, यह तब हुआ जब पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने मासिक धर्म की उम्र की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर एक दशक पुराने प्रतिबंध को समाप्त करने का आदेश दे दिया था। राज्य में दक्षिणपंथी समर्थकों ने दो अलग-अलग, असंबंधित घटनाओं को जोड़ने में कोई समय बर्बाद नहीं किया और कथित तौर पर इंटरनेट पर इससे संबंधित नफ़रत और फ़र्ज़ी समाचार को प्रसारित करना शुरू कर दिया, जिसे तुरंत भाजपा आईटी सेल और उसके समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर साझा किया जाने लगा।
“एक और अयप्पा भक्त ने आत्महत्या कर ली। वलोन्चेरी के जयराजन ने माओवादी महिला कार्यकर्ताओं द्वारा सबरीमाला मंदिर को अपवित्र करने के बाद आत्महत्या कर ली। वह 2 महीने के भीतर उपरोक्त घटना से आहत होकर मरने वाले चौथे भक्त हैं। सबरीमाला मंदिर यहाँ एक ऐसा भावनातमक मुद्दा है।” इसे ट्विटर हैंडल @ PartyVillage017 पर पढ़ा जा सकता है। कुछ घंटों के भीतर ही, यह ट्वीट व्यापक रूप से प्रसारित हो गया और कुछ दक्षिणपंथी वेबसाइटों ने इस कहानी को आधार बना कर समाचार लेख भी लिख दिए।
तथ्य की जांच करने वाली एक वेबसाइट ‘बूम’ ने इस फ़र्ज़ी ख़बर का भंडाफोड़ किया है। पुलिस अधिकारियों और जयराजन के परिवार के सदस्यों ने पुष्टि की कि जयराजन की मौत का मंदिर में प्रवेश करने वाली महिलाओं से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि जयराजन ने मंदिर में महिलाओं द्वारा ऐतिहासिक प्रवेश से एक दिन पहले आत्महत्या कर ली थी। हालाँकि, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अभी भी ये ट्वीट मौजूद है, जिसने ख़बर लिखे जाने तक कुछ 1300 रीट्वीट और 1000 लाइक्स हासिल किए थे।

पिछले कुछ महीनों से, केरल में भाजपा सबरीमाला विवाद को लेकर ध्रुवीकरण को तेज़ कर राज्य में अपनी स्थिति को मज़बूत करने की कोशिश कर रही है। हालांकि, सबरीमाला पर यह पहली फ़र्ज़ी ख़बर नहीं है, यह जग ज़ाहिर है कि पिछले कुछ समय से मंदिर में प्रवेश विवाद को लेकर गलत सूचना फैलाना दक्षिणपंथी समर्थकों का केंद्रबिंदु रहा है।
बीबीसी 2018 के एक अध्ययन में जिसका शीर्षक “ड्यूटी, आइडेंटिटी, क्रेडिबिलिटी: फेक न्यूज और ऑर्डिनरी सिटिज़न इन इंडिया” है, और जिसमें पाया गया कि भाजपा के सोशल मीडिया नेटवर्क ने पिछले साल फर्जी खबरों के प्रसार में अन्य दलों को पछाड़ दिया है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि बीजेपी विरोधी एम्प्लिफायर बहुत कम आपस में जुड़े हुए हैं, जबकि बीजेपी के समर्थक एम्प्लिफायर्स आपस में बहुत ही करीबी से जुड़े हुए हैं। इसका मतलब यह है कि बीजेपी समर्थक आपासी ट्विटर के खातों में एक दूसरे के साथ अधिक अतिव्यापी कनेक्शन हैं, इस प्रकार इनके जरिये व्यापक नकली समाचार तेज़ी से फैलता है।
शायद, जब भी किसी धार्मिक मुद्दे से जुड़ी मौत की कोई घटना होती है, तो भाजपा/आरएसएस किसी भी तरह की फर्जी खबर बनाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, 2 जनवरी को, जब उत्तर प्रदेश के रायबरेली में ऊंचाहार क्षेत्र में राम जानकी मंदिर में बाबा प्रेम दास नामक एक पुजारी को फांसी पर लटका पाया गया, तो रूढ़िवादी दक्षिणपंथी सोशल मीडिया हैंडल ने प्रचारित किया कि दास की हत्या "जिहादियों" और मुसलमानों द्वारा की गई थी। कुछ बीजेपी समर्थकों ने पुजारी की फांसी की फोटो को भी साझा किया था, और इस घटना को "आईएसआईएस शैली का आतंकवाद" कहा था।

बूम ने इस घटना से संबंधित पोस्टों की जांच की, और पाया कि पुजारी की मौत में कोई "सांप्रदायिक नजरिया" नहीं था और उन्होंने बलात्कार के मामले में आरोपी बनाए जाने के कारण कुछ दिनों बाद आत्महत्या कर ली थी।
भाजपा समर्थित नकली समाचार गिरोह का एक और सामान्य पहलू है, अन्य पार्टी नेताओं के खिलाफ झूठी खबर फैलाना, विशेष रूप से कांग्रेस और वाम दलों के नेताओं के खिलाफ। पिछले हफ्ते केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के एक चार साल पुराने वीडियो में ‘सोनिया गांधी के दुनिया की छठी सबसे अमीर महिला’ होने के बारे में एक फर्जी दावे को दोहराया था, जो सोशल मीडिया पर फिर से छा गया था। फेसबुक पेज जैसे कि ’द इंडिया आई’, ‘जी न्यूज फैंस क्लब ’और इसी तरह हजारों नेटिजंस तक पहुंचने वाले वीडियो को साझा किया गया था। फैक्ट-चेकिंग वैकल्पिक मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ने तथ्यों का खुलासा करके प्रचार फर्ज़ी करार दिया। यह पता चला है कि यह दावा पहली बार 2012 में बिजनेस इनसाइडर (दावे का समर्थन करने वाले किसी भी स्रोत के बिना) में दिखाई दिया था, जो कि भारत के चुनाव आयोग के पास उपलब्ध सूचना के विपरीत था।

(2012 के दैनिक जागरण में सोनिया गांधी के अमीर होने के झूठे दावों की रिपोर्ट)
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल का एक वीडियो कई सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर व्यापक रूप से साझा किया गया है। एक मिनट के इस वीडियो में केजरीवाल का एक अस्पष्ट उच्चारण के साथ भाषण है जिसमें दावा किया गया है कि वह नशे में हैं। इस तरह के समाचार को ‘अर्नब गोस्वामी’, ‘आइ सपोर्ट नरेंद्र मोदी’ आदि जैसे फेसबुक पेजों पर चलाया गया, यह सब केजरीवाल पर लक्षित था। ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि वीडियो को सबसे पहले फेसबुक पर एक यूजर राजन मादान ने पोस्ट किया था, जिसे बाद में बीजेपी आईटी सेल के सदस्यों ने शेयर किया था। तथ्य यह है कि 29 जनवरी, 2017 को केजरीवाल द्वारा लाइव वीडियो पोस्ट को जानबूझकर धीमा करने के लिए संपादित किया गया है ताकि यह धारणा दी जा सके कि केजरीवाल एक नशे की स्थिति में हैं।

(‘WE SUPPORT NARENDRA MODI’ नाम के फेसबुक पेज से छेड़छाड़ कर प्रसारित किया गया वीडियो।)
जब प्रचलन में बड़े पैमाने पर इस तरह की फर्जी खबरें आती हैं तो ये घटनाएं हिमखंड का एक सिरा ही होती हैं। अब यह स्पष्ट हो गया है कि दक्षिणपंथी सोशल मीडिया ट्रोल्स ने अपनी फर्जी खबरों के प्रसार को तेज कर दिया है, जैसे कि भाजपा ने 2019 के चुनावों से पहले फर्जी खबरों की बाढ़ चला दी हो।
दक्षिणपंथी समर्थकों की फर्जी खबरों में जो आम विषय हैं उनमें झूठे सैन्य घटनाक्रम, धार्मिक मामले, राम मंदिर, झूठी सरकारी उपलब्धियां, सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं, राजनीतिक नेताओं की बदनामी, पाकिस्तान वगैरह शामिल हैं।
इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि पीएम नरेंद्र मोदी ट्विटर पर कम से कम 15 फर्जी समाचार स्रोतों का अनुसरण खुद करते हैं, जिनका मुख्य काम केवल मोदी की जय हो और लगातार फर्जी खबरें फैलाने का है।