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एक बिटकॉइन बराबर तकरीबन ₹17 लाख, यह सोचिए कि क्या बिटकॉइन पैसा है?
1 बिटकॉइन की कीमत तकरीबन 17 लाख़ तक पहुंच गई है। बिटकॉइन की कीमतों में इतना बड़ा इजाफा कैसे हुआ? क्या बिटकॉइन पैसे का विकल्प बन सकता है? 
अजय कुमार
24 Dec 2020
बिटकॉइन

अगर इस समय किसी के पास एक बिटकॉइन होगा तो इसकी वजह से वह कम से कम तकरीबन 17 लाख रुपए का मालिक होगा। खबर आ रही है कि 1 बिटकॉइन की कीमत 24000 डॉलर यानी तकरीबन 17 लाख रुपए तक चली गई है। केवल इस साल एक बिटकॉइन की कीमत में तकरीबन 226 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। इतने बड़े इजाफे को महसूस करने के लिए बैंकों में जमा किए जाने वाले पैसे पर मिलने वाले ब्याज से तुलना करके देखिए। एक बैंक कुल जमा पर सालाना महज 7 से 8% का रिटर्न देता है। लेकिन जिसके पास एक बिटकॉइन होगा उसे सलाना 226% का रिटर्न मिला है। यानी केवल एक साल पहले एक बिटकॉइन की कीमत तकरीबन ₹5 लाख थी। वह बढ़कर इस साल के अंत में तकरीबन ₹17 लाख हो गई। यानी एक साल में 12 लाख रुपए का इजाफा।

इन्वेस्टमेंट पर होने वाले इतने बड़े इजाफे को देखकर हर किसी के मन में यह लालच पनपेगा कि बिटकॉइन में पैसा लगाना चाहिए। लेकिन ठहरिए। यह लालच जायज है या नाजायज यह समझना भी जरूरी है। इसलिए बिटकॉइन क्या बला है? इसमें इतना अधिक इजाफा कैसे हुआ? क्या यह वाकई पैसे का विकल्प है या विकल्प के तौर पर एक मिथक है? पूरी दुनिया में जब इस की धूम मची है तो भारत की जमीन पर इसके लिए क्या रवैया अपनाया जा रहा है? इन सवालों का जवाब ढूंढ लेते हैं।

बिटकॉइन एक तरह की वर्चुअल करेंसी है। इसकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। आधारभूत तरीके से कहें तो इसे क्रिप्टोकरेंसी कहा जाता है। क्रिप्टो करेंसी क्रिप्टोग्राफी शब्द से बना है। क्रिप्टोग्राफी मूल रूप से एक ग्रीक शब्द है। जिसका मतलब होता है 'एक ऐसी लिखावट जिसे वह पढ़ पाए, जिसे उसके कोड का पता हो। यानी एक तरह की इनकोडेड लिखावट। जिसे जरूरी कोड की मदद से समझा जा सकता है।और वही समझ सकता है जिसके पास इसका कोड हो। यानी यह क्रिप्टोकरेंसी केवल एक ऐसे समुदाय के भीतर ही काम कर सकती है, जो कोड को डिकोड कर सकता हो। सतोशी नाकामोतो को वर्चुअल करेंसी ‘बिटकॉइन’ का संस्थापक माना जाता है. अब यह सतोशी नाकामोटो कौन है? इसकी जानकारी किसी को नहीं है. कहने वाले कहते हैं कि यह कोई व्यक्ति, संस्था, संगठन, लोगों का समूह कुछ भी हो सकता है।

 बिटकॉइन को पहली वर्चुअल करेंसी माना जाता है। बिटकॉइन की तरह की लाइटकॉइन, पीरकॉइन, एथेरियम भी वर्चुअल करेंसी है।

बिटकॉइन के मामले में जरूरी बात यह कि इस पर किसी सेंट्रल अथॉरिटी का कंट्रोल नहीं होता है। यानी इसके लिए कोई रिज़र्व बैंक जैसी कंट्रोलिंग अथॉरिटी नहीं होती है। जो यह बताये कि कितनी क्रिप्टोकरेंसी होगी या नहीं होगी। अगर फेक क्रिप्टोकरेंसी जारी हो रही हो तो उसपर कैसे कंट्रोल होगा? कितने बिटकॉइन जारी किये जाने चाहिए और कोई गड़बड़ी आये तो उसके साथ कैसे निपटा जाए।

केंद्रीय अथॉरिटी न होने के आभाव में एक सवाल यह उठता है कि कोई भी व्यक्ति बहुत सारी क्रिप्टोकरेंसी जारी कर सकता है। फेक क्रिप्टोकरेंसी जारी कर सकता है। जैसे अगर रिज़र्व बैंक के सिवाय सबको नोट छापने की इजाजत दे दी जायेगी तो फेक यानी नकली नोटों की बाढ़ आ जाएगी।

 इस परेशानी के जवाब में क्रिप्टोकरेंसी के मॉडल में ब्लॉकचेन मॉडल अपनाया जाता है। ब्लॉकचेन मॉडल यानी एक तरह का ग्लोबल लेजर।एक तरह से खाते की ऐसी किताब जिसे पूरी दुनिया में डिजिटल करेंसी का इस्तेमाल करने वाले अपनाते हैं। जिसमें हर एक क्रिप्टोकरेंसी का रिकॉर्ड रखा जाता है। यानी जब किसी को क्रिप्टोकरेंसी के तौर पर एक बिटकॉइन भेजा जाता है तो इसका मतलब है कि ग्लोबल लेजर में इसका रिकॉर्ड रखा जा रहा है। जैसे नरेंद्र ने अगर राहुल को 100 बिटकॉइन भेजे तो यह ब्लॉकचेन के तहत ग्लोबल लेजर में रिकॉर्ड हो जाएगा। उसके बाद नरेंद्र और राहुल चाहें कितनी भी कोशिश कर लें उसका डुप्लीकेट नहीं बना सकते हैं। क्योंकि रिकार्डेड इंट्री का मिलान किया जाएगा और क्रॉस चेक होने पर उसका बाद में इस्तेमाल नहीं हो पाएगा।

अब सवाल यह भी उठता है कि ब्लॉकचेन में कैसे रिकॉर्ड रखा जाता है? रिकॉर्ड रखने का पैमाना यह है कि कोई भी लेन- देन हो तो सबको पता चल जाए। इसलिए बिटकॉइन देने वाले और लेने वाले के अपने अकॉउंट नंबर की जानकारी पूरे सिस्टम को देनी होती है। साथ में कितने बिटकॉइन का लेन-देन हुआ, इसकी भी जानकारी देनी होती है। चूँकि यह जानकारी इन्क्रिप्टेड तरीके से पब्लिक की जाती है इसलिए इन्क्रिप्टेड मेथड के 'पब्लिक की' के जरिये यह जानकारी सबको मिल जाती है।

इसके अलावा एक 'प्राइवेट की' होती है। इस 'की' यानी कुंजी के जरिये पब्लिक की हुई जानकारी में फेरबदल करने की अनुमति किसी को नहीं मिल पाती है। इसमें फेरबदल वही कर पाते हैं, जिसके पास 'प्राइवेट की' होती है। और 'प्राइवेट की' उसी के पास होती है, जिससे वह लेन-देन जुड़ी होती है। इसलिए किसी अकाउंट के बारें में पब्लिक जानकरी होते हुए भी उसमें तब-तक फेरबदल नहीं की जा सकती है जब तक 'प्राइवेट की' की जानकारी नहीं होती है।

इतनी सारी बातों को समझ लेने के बाद मन में यह कह रहा होगा कि यह काम तो कोई भी कर सकता है। केवल इनकोड और डिकोड करने की है तो बात है।

 लेकिन ऐसा नहीं है। यह बहुत मुश्किल काम है। क्रिप्टोकरेंसी डाउनलोड तो आसानी से किया जा सकता है लेकिन उसके बाद का पचड़ा बहुत मुश्किल है। इसकी इनकोडिंग और डिकोडिंग में बहुत अधिक टाइम लगता है। बहुत अधिक बिजली लगती है। यह एक तरह की मैथमेटिकल प्रॉब्लम की एक सीरीज होती है। इसे हल करके ही एक क्रिप्टोकरेंसी हासिल की जाती है। इसे हल करना आसान नहीं होता है। हर क्रिप्टोकरेंसी के लिए एक नए मैथमेटिकल प्रॉब्लम को सॉल्व किया जाता है। यह काम आम कम्प्यूटर के बूते के बस की बात नहीं होती है। इसके लिए विशेष कम्यूटर की जरूरत होती है। इसके जरिये यह प्रॉब्लम सॉल्व होती है।

यह इतना अधिक जटिल है कि बहुत सारे जानकार इसे करेंसी या पैसे का विकल्प मानने से इनकार करते हैं। किसी भी तरह की करेंसी की एक बेसिक प्रकृति है कि उसमें जटिलता ना के बराबर होनी चाहिए। वह इतना आसान हो कि उसका इस्तेमाल अनपढ़ भी कर सकें।

इस मुद्दे पर फ्री सॉफ्टवेयर मूवमेंट के अध्यक्ष प्रबीर पुरकायस्थ लिखते हैं कि पैसे का इस्तेमाल हम लेन देन के लिए करते हैं। यह एक तरह का एसेट्स होता है। मेरा मानना है कि क्रिप्टोकरेंसी जैसे कि बिटकॉइन का इस्तेमाल कुछ ही तरह के लेन देन के लिए किया जा सकता है। यह पूरी तरह से लेन देन के लिए नहीं बना है। इससे आप सीधे तौर पर जाकर चावल नहीं खरीद सकते हैं। आप एक बिटकॉइन के बदले जो डॉलर मिलेगा उसी से कुछ खरीद पाएंगे। और केवल बिटकॉइन वही हासिल कर पाएंगे जो विशेष कम्प्यूटर पर मैथमेटिकल प्रॉब्लम हल कर पाएंगे। यानी यह सबके लिए उपलब्ध नहीं है। जबकि पैसा सबके लिए उपलब्ध होता है। आप काम कीजिए और पैसा लीजिए। 

हाल-फिलहाल वर्चुअल करेंसी की दुनिया में बिटकॉइन का हिस्सा तकरीबन 60 फ़ीसदी के आसपास है। जैसे पैसा बिना किसी तय सीमा के रिजर्व बैंक जितनी मात्रा में तर्कसंगत समझे उतनी मात्रा में जारी कर सकता है। बिटकॉइन के साथ वैसा नहीं है। बिटकॉइन के टोकन की संख्या निश्चित है। तकरीबन 21 मिलीयन बिटकॉइन ही पूरी दुनिया में जारी किए जा सकते हैं। इसमें से अभी तक तकरीबन 18 मिलियन बिटकॉइन जारी किए जा चुके हैं। जैसे-जैसे बिटकॉइन की मौजूदगी बाजार में बढ़ती जा रही है वैसे ही वैसे मैथेमेटिकल प्रॉब्लम सॉल्व करने की जटिलता भी बढ़ती जा रही है। बिटकॉइन से जुड़ा हुआ सारा खेल 21 मिलीयन के अंदर ही होना है। इसलिए यह सट्टा बाजार की तरह है, इसकी कीमत में उतार चढ़ाव की संभावना बहुत अधिक होती है। इसलिए इसमें लगाए गए पैसे से कमाई हो भी सकती है और पैसा डूब भी सकता है। मौजूदा वक्त में 1 बिटकॉइन की कीमत 6 लाख 68 हजार रुपये है। पिछले साल इन्हीं दिनों यानी 5 मार्च 2019 को 1 बिटकॉइन की कीमत 2 लाख 70 हजार रुपये थे। 15 दिसंबर 2017 को 1 बिटकॉइन की कीमत 12 लाख 59 हजार रुपये थी। कोरोना के शुरुआती दौर में तो बिटकॉइन की कीमत में बहुत अधिक गिरावट आई थी। हाल फिलहाल इसकी कीमत बहुत बड़ी है। ऐसे में आप देख सकते हैं कितनी जल्दी बिटकॉइन की कीमत ऊपर चढ़ती है और नीचे गिरती है। 

प्रबीर लिखते हैं कि एक बैंक का एक क्रेडिट कार्ड एक सेकंड में तकरीबन 60 हजार लेन देन कर सकता है। लेकिन ब्लॉकचेन टेक्नॉलजी के सहारे चलने वाले बिटकॉइन के जरिये एक सेकंड में केवल 3 से 7 लेन देन ही हो पाते हैं। यानी इसके जरिये लेन-देन करने में बहुत अधिक टाइम लगता है। बिटकॉइन का सिस्टम अकॉउंट नंबर के सहारे काम करता है। यानी इसमें किसी के नाम का उल्लेख नहीं होता है इसलिए इसका इस्तेमाल गैरक़ानूनी कामों के लिए किया जा सकने की पूरी संभावना है। मनी लॉड्रिंग से लेकर आतंक के लिए पैसा उगाही करने में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। जब किसी देश का इस पर रेगुलेशन ही नहीं है, किसी तरह का इसपर नियंत्रण ही नहीं है तो कोई भी एक बिटकॉइन के बदले रुपये या डॉलर का किसी भी जगह ट्रांसफर करेगा और उसपर किसी तरह की रोक भी नहीं लग पाएगी।

क्रिप्टोकरेंसी एक तरह की टेक्नोलॉजी पर काम करने वाला सिस्टम है तो यह कतई ना मुमकिन नहीं है कि इसमें सेंध ना लगाई जा सके। इसे हैक किया जा सकता है। इसे हैक भी किया गया है। हाल ही में साउथ कोरियन क्रिप्टोकरेंसी को हैक कर लिया गया। जिसमे बहुत सारे लोगों का पैसा डूब गया।

बहुत सारे देशों में इस क्रिप्टोकरेंसी का क़ानूनी तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। यूनाइटेड नेशंस, यूरोप के कुछ देश, वेनेजुएला जैसे कई देशों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।

जहां तक भारत की जमीन पर बिटकॉइन की बात है तो चार मार्च, 2020 को सुप्रीम कोर्ट का वर्चुअल करेंसी यानी आभासी मुद्रा से जुड़ा अहम फैसला आया था। फैसला यह था कि भारत में अब वर्चुअल करेंसी के जरिये व्यापार किया जा सकेगा। पहले आरबीआई ने इस पर प्रतिबंध लगाया था। आरबीआई ने साल 2018 में वर्चुअल करेंसी को लेकर एक सर्कुलर जारी किया था। इस सर्कुलर के तहत यह आदेश था कि कोई भी बैंक और संस्था वर्चुअल करेंसी के जरिये लेन देन न करे।

वर्चुअल करेंसी के तहत किसी भी तरह की सेवा या सामान के लेन-देन का काम न किया जाए। सरकार की तरफ से पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल 2018 के बजट में कहा था कि "सरकार क्रिप्टोकरंसी और कॉइन को लीगल टेंडर नहीं मानती है। इन्हें खत्म करने के लिए हम सारे कदम उठाएंगे। गैरकानूनी गतिविधियों में इन क्रिप्टो असेट्स के जरिए फाइनेंसिंग को खत्म करने के लिए सरकार सारे कदम उठाएगी।' और इसके बाद भी अचानक से बिटकॉइन की कीमत में बहुत बड़ी कमी आई थी।

इसके बाद वर्चुअल करेंसी पर एक इंटर पार्लियामेंट्री कमेटी भी बैठी थी। इस कमेटी का भी सुझाव था कि वर्चुअल करेंसी को बैन कर दिया जाए। इसकी जगह पर भारत सरकार की तरफ से ऑफिसियल डिजिटल करेंसी यानी आधिकारिक डिजिटल करेंसी जारी की जाए। 

अब देखने वाली बात होगी कि आगे क्या होता है? क्या आरबीआई सुप्रीम कोर्ट के वर्चुअल करेंसी से जुड़े फैसले पर फिर से चुनौती देता है या नहीं? अगर आरबीआई शांत हो जाता है, तो भारत वर्चुअल करेंसी से जुड़ा कैसा नियम कानून बनाता है? इसे कैसे लागू करता है?

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