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राजनीति
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यूएस-ईरान टकराव की लाचारी
सुलेमानी की हत्या के बाद, तेहरान अमेरिका के साथ सीधे युद्ध तो नहीं चाहता है, लेकिन वह "प्रतिरोध की धुरी" को तेज़ कर सकता है।
एम. के. भद्रकुमार
09 Jan 2020
Translated by महेश कुमार
Iran-US tension
ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली ख़ामेनी क़ासिम सुलेमानी के ताबूत के सामने इबादत करते हुए, तेहरान, 6 जनवरी, 2020। उनकी दाहिनी तरफ़, राष्ट्रपति हसन रूहानी, मजलिस के अध्यक्ष लारिजानी और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के कमांडर जनरल हैं।

दो जनवरी को करिश्माई ईरानी जनरल हसन सुलेमानी की हुई हत्या के बाद के सप्ताह में एक नई गतिशीलता आई है। यह तीन स्तरों पर नज़र आती है।

सुलेमानी की अंतिम विदाई के दौरान ईरान के भीतर उभरी सार्वजनिक जन भावनाओं का पैमाना चौंका देने वाला था जिससे एक बात तो सौ प्रतिशत निश्चित हो गई कि मंगलवार को समाप्त होने वाले शोक के साथ, तेहरान अमेरिका के ख़िलाफ़ "गंभीर बदला" लेने के लिए सुप्रीम लीडर अली खमेनी की प्रतिज्ञा को पूरा करने का काम शुरू करेगा।

ज़ाहिर है, कल सुलेमानी के अंतिम संस्कार के दौरान उभरे भावनात्मक दृश्य इस बात को रेखांकित करते हैं कि करिश्माई कमांडर अयातुल्ला खमेनी के लिए एक बेटे की तरह था, जिसका दुःख उनके लिए काफ़ी व्यक्तिगत है।

यह बदला कौन सा रूप लेगा यह अभी देखा जाना बाक़ी है। ईरान अमेरिका के साथ युद्ध नहीं चाहता है, लेकिन "प्रतिरोध की धुरी" को तेज़ कर सकता है। ईरानी अधिकारियों द्वारा दिए गए कई बयानों से पता चलता है कि उनके निशाने पर दुनिया और क्षेत्रीय स्तर के अमेरिकी सैन्य ठिकाने होंगे।

अभी तक तो ईरान का इरादा अमेरिका के क्षेत्रीय सहयोगियों, विशेष रूप से इज़रायल पर कोई आरोप लगाने का नहीं है। (महत्वपूर्ण बात, एक भी ईरानी अधिकारी ने सुलेमानी की हत्या में इज़रायल के शामिल होने के मामले में उंगली नहीं उठाई है)। 

खाड़ी के अरबी निज़ाम ने ईरान से स्वतंत्र रूप से आश्वासन मांगा है, इसके लिए उन्होंने सऊदी उप रक्षा मंत्री प्रिंस ख़ालिद (क्राउन प्रिंस और रक्षा मंत्री मोहम्मद बिन सलमान के भाई) को जल्दी में वाशिंगटन दौरे के लिए रुख़सत कर दिया था। प्रिंस ख़ालिद ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपीओ और रक्षा सचिव मार्क एस्पर से मुलाकात की। 

रियाद सार्वजनिक रूप से ट्रम्प प्रशासन को संयम बरतने का आग्रह कर रहा है। दो दिन पहले, क़तर के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान बिन जसीम अल थानी (जो शाही परिवार के हैं) तेहरान में थे और राष्ट्रपति हसन रूहानी ने उनकी अगवानी की थी। खाड़ी अरब देशों को किसी भी प्रत्यक्ष अमेरिकी हमलों के ख़िलाफ़ ईरानी प्रतिशोध में किए जाने वाले हमले से बड़ी क्षति होने की चिंता है।

इस बीच, एक दूसरी घटना यह है कि इराक़ ने अमेरिकी सेना को देश छोड़ कर जाने की मांग की है। इराक़ी संसद के इस क़दम को वाशिंगटन पहले से समझने में विफल रहा और उनकी इस मांग पर प्रतिक्रिया देने के लिए उस पर भारी दबाव है।

बेल्टवे में भ्रम की स्थिति है। इराक़ ब्रिगेड के अमेरिकी कमांडर जनरल विलियम सीली ने  "इराक़ की संप्रभुता के संबंध में" कहा कि, अमेरिकी नेतृत्व वाले सैनिक गठबंधन को "आने वाले दिनों और हफ़्तों के दौरान हटा लेगा।" लेकिन सेना को इराक़ से बाहर निकालने के लिए एक सुरक्षित और कुशल तरीक़े को अख़्तियार किया जाएगा।”

जनरल ने कहा कि "हम इन अभियानों का संचालन अंधेरे के दौरान करेंगे ताकि किसी भी ऐसी  धारणा को कम किया जा सके कि हम इराक़ में अधिक अलाइन्स की सेना ला रहे हैं।"

लेकिन पेंटागन ने इस पत्र का या कह कर खंडन कर दिया कि यह पत्र बहुत ही "ख़राब तरीक़े से लिखा गया है।" रक्षा सचिव मार्क एस्पर और संयुक्त चीफ़्स के चेयरमेन जनरल मार्क माईले  ने जल्दबाज़ी में इस बात से इनकार कर दिया कि अमेरिका इराक़ से सैनिकों को बाहर निकाल रहा है।

बेशक, यह समझ से बाहर की बात है कि जनरल सीली या जनरल माईले और एस्पर ने ट्रम्प की मंज़ूरी के बिना ख़ुद ऐसे विरोधाभासी फ़ैसले लिए हैं। ज़ाहिर है, ट्रम्प अपना मन नहीं बना पाए हैं।

पेंटागन के कमांडरों को अबू महदी अल-मुहांडिस की हत्या के बाद इराक़ में उभरी अमेरिका  विरोधी भावनाओं के विशाल पैमाने के प्रति सचेत रहना चाहिए, जो वास्तव में ईरान समर्थित (लेकिन इराक़ी राज्य-स्वीकृत) कमांडर थे और जो युद्ध से पीड़ित शिया मिलिशिया समूह के प्रमुख भी थे।

वे वास्तविक रूप से इस बात का आंकलन करेंगे कि इराक़ में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति निरंतर रूप से असमर्थनीय बनी हुई है। लेकिन राजनीतिक तौर से इस बिंदु पर ट्रंप का खींचतान का विकल्प बेहद नुकसानदेह होगा।

दूसरी ओर, इराक़ में विभिन्न ठिकानों पर बिखरी हुई 5000-अमेरिकी सेना की टुकड़ी को संघर्ष का सामना करना पड़ेगा। कोई भी 1983 में हुए बेरूत बम विस्फ़ोटों की तर्ज पर फिर से होने वाले हमले की संभावना से इंकार नहीं कर सकता है- जो हमला 23 अक्टूबर की रात को बेरूत में एक समुद्री परिसर पर हुआ था और जिसमें 241 अमेरिकी सैनिक मारे गए थे, इस हमले ने रीगन को लेबनान से सैनिकों की वापसी का आदेश देने के लिए मजबूर कर दिया था।

ट्रंप इस बात का अंदाज़ा लगा रहे होंगे कि वे ईरान को धमकी दे सकते हैं और इसे इराक़ी मिलेशिया समूहों पर लगाम लगाने के लिए मजबूर कर सकते हैं। लेकिन यह एक ग़लत धारणा है। इसके अलावा, कई सशस्त्र फ़्रीव्हीलिंग इराकी मिलिशिया समूह मैदान में हैं, जिनमें से कुछ 2003 के अमेरिकी आक्रमण के बाद शिया विद्रोह में लड़े थे।

हालाँकि, एक तीसरा टेम्प्लेट भी है जो अधिक बुनियादी है और जो अब उभरने का संघर्ष कर रहा है जिस पर अभी तक उचित ध्यान नहीं गया है: वह है ईरान द्वारा रविवार को पांचवें और अंतिम चरण की घोषणा, जिसके तहत अमेरिका के 2015 परमाणु समझौते (जिसे जेसीपीओए के रूप में भी जाना जाता है) से वापसी का जवाब देगा जिसे मई 2018 में किया गया था।

ईरान ने घोषणा की है कि वह अब जेसीपीओए (JCPOA) के तहत "सेंट्रीफ्यूज की संख्या ... को सीमित करने के लिए बाधित नहीं है और उसके उत्पादन में वृद्धि की क्षमता और उसके प्रतिशत और समृद्ध यूरेनियम और अनुसंधान के विस्तार सहित समझौते का पालन नहीं करेगा।"

यह एक नपा-तुला निर्णय है। इसका मतलब यह नहीं है कि ईरान जेसीपीओए (JCPOA) को ख़त्म कर रहा है, लेकिन उसके मैट्रिक्स को अप्रभावी बना रहा है। विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ के अनुसार, ईरान अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) को अपने परमाणु अनुसंधान की समीक्षा करने की अनुमति देना जारी रखेगा, और अगर देश के ख़िलाफ़ प्रतिबंध हटा दिए जाते हैं, तो वह जेसीपीओए (JCPOA) में फिर से शामिल होने को भी तैयार होगा।

यकीनन, इसका मतलब है कि जेसीपीओए उनका अंतिम बाण हो सकता है, लेकिन फिर, ऐसा ज़रूरी नहीं है। ईरान के पास अपने संवर्धन स्तर को तुरंत 20 प्रतिशत तक बढ़ाने का अधिकार है, लेकिन वह ऐसा नहीं करेगा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) को निरीक्षण की अनुमति देगा।

परमाणु नीति पर इस तरह के नपा-तुले दृष्टिकोण का असर अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव पर पड़ सकता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि तेहरान ने शोक की अवधि के दौरान यह घोषणा की थी। कोई ग़लती न हो, के निर्णय पर सर्वोच्च नेता अली खमेनी की छाप है।

ईरान का यह रुख बताता है कि तेहरान कूटनीति के लिए एक संकीर्ण खिड़की छोड़े हुए है। यूरोपीय संघ ने ज़रीफ़ को ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के विदेश मंत्रियों के साथ शुक्रवार को ब्रुसेल्स में मुलाकात के लिए आमंत्रित किया है।

सवाल यह है कि क्या यह खिड़की व्यापक रूप से खुलेगी या शीघ्र ही बंद कर दी जाएगी। यदि यह खुली रहती है, तो ट्रंप के "अधिकतम दबाव" के दृष्टिकोण (ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिबंध) को अनिवार्य रूप से कुछ बिंदु पर इसमें लाया जाएगा, और समग्र यूएस-ईरान गतिरोध में पूरी तरह से नई गति लाई जा सकती है।

ट्रंप डेमोक्रेट्स और अमेरिकी मुख्यधारा की मीडिया की आलोचना के दबाव में है ताकि वे मौजूदा टकराव को रोक सके। जिस तरह के हालात हैं, अगर आगे के महीनों में टकराव बढ़ता है, तो ट्रंप का दोबारा से चुना जाना ख़तरे में पड़ सकता है।

अभी यह संभव है कि ट्रंप ईरान के "गंभीर प्रतिशोध" के पैमाने को इस स्तर तक झेले जिससे वार्ता या बातचीत के लिए रास्ता खुला रहे। इसकी उम्मीद कम है लेकिन नाउम्मीदी से कुछ उम्मीद रखना बेहतर है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

IRAN
Iraq
USA
Donald Trump

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