NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
FCRA की शर्तों में थोड़ी राहत – देर से लिया गया सही फ़ैसला
सरकार की पहलकदमियों का स्वागत किया जा रहा है लेकिन सवाल अब भी बना हुआ है कि पिछले साल से जारी महामारी के भीषण संकट काल में विदेशी अनुदान विनिमयन कानून में बलात और एकतरफा संशोधनों की ज़रूरत क्या थी?
सत्यम श्रीवास्तव
21 May 2021
FCRA की शर्तों में थोड़ी राहत – देर से लिया गया सही फ़ैसला
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

18 मई 2021 को भारत सरकार के गृह मंत्रालय और उसके मातहत विदेशी अनुदान विनिमयन विभाग ने गैर -सरकारी संस्थाओं को थोड़ी राहत दी है। ऐसी कई संस्थाएं जो विदेशी अनुदान लेने की पात्र तो हैं लेकिन 31 मार्च 2021 तक संशोधित एफसीआरए कानून में अनिवार्य कर दिये गए एफसीआरए अकाउंट नहीं खोल सकीं। ये अकाउंट अनिवार्य रूप से दिल्ली में स्थित संसद मार्ग की स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की ही शाखा में खोले जाने थे।

इस आदेश में कहा गया है कि अब नया खाता खोले जाने की समय सीमा 30 जून तक बढ़ा दी गयी है। यानी 30 जून तक ऐसी संस्थाएं जो विदेशी अनुदान लेने के लिए पात्र हैं अब 30 जून तक अपने मौजूदा एफसीआरए अकाउंट में अनुदान ले सकेंगीं। 1 जुलाई 2021 के बाद उन्हें अनिवार्य रूप से नए खाते में ही अनुदान लेना होगा।

इसके अलावा महामारी की विभीषिका को देखते हुए और गैर-लाभकारी संस्थाओं की सामाजिक कल्याण के लिए प्रतिबद्धता को महसूस करते हुए 18 मई को ही एक अन्य आदेश में ऐसी संस्थाओं को गृह मंत्रालय और विदेशी अनुदान विनिमयन विभाग ने फौरी राहत दी है जिनके विदेशी अनुदान पात्रता के नवीनीकरण नहीं हो पाये थे या सितंबर 2021 तक होने थे। इस आदेश में ऐसी संस्थाओं को नवीनीकरण की बाध्यता से फौरी छूट दी गयी है जिनकी पात्रता 29 सितंबर 2020 को समाप्त हो चुकी थी या 30 सितंबर 2021 को समाप्त होने जा रही थी।

फिलहाल इन दोनों पहलकदमियों का स्वागत किया जा रहा है लेकिन सवाल अब भी बना हुआ है कि पिछले साल से जारी महामारी के भीषण संकट काल में जहां मौजूद हर संसाधन का विवेकपूर्ण ढंग से नियोजन और उनका सहभाग लेने की ज़रूरत देश के सामने थी तब बीच मँझधार में विदेशी अनुदान विनिमयन कानून में बलात और एकतरफा संशोधनों की ज़रूरत क्या थी? अगर ज़रूरत थी भी तो उन्हें और भी लचीला बनाए जाने की थी न कि बेहद सख्त।

इसे पढ़ें: महामारी के वक़्त विदेशी सहायता में आ रही अड़चनेः एफसीआरए में कड़े संशोधन के कारण रास्ता रुका

एक खबर के अनुसार हालांकि हाल भारत सरकार और गृह मंत्रालय ने सूचना के अधिकार के तहत दायर एक याचिका में यह बताने से साफ इंकार कर दिया है कि विदेशी अनुदान विनियमन कानून में संशोधन क्यों किए गए हैं। वेंकटेश नायक ने इस संबंध में दो याचिकाएं लगाईं थीं जिनमें उन्होंने इस संशोधन विधेयक से जुड़े कैबिनेट नोट, पत्राचार और फाइल नोटिंग्स की प्रति मांगी थी। इसके जबाव में गृह मंत्रालय के जन सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी ने ‘राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए इन दस्तावेजों को देने से इंकार कर दिया है।

20 मई 2021 को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इसी संबंध में एक मामले की सुनवाई करते हुए सरकार को आदेश किया है कि ऐसी संस्थाएं जो विशेष रूप से कोविड संकट में काम कर रही हैं या करने की इच्छुक हैं उन्हें अविलंब पाबंदियों को हटाया जाये। विदेशी अनुदान विनिमयन कानून की धारा 11 के तहत पूर्वानुमति की शर्तों को लचीला बनाया जाये।

देश में महामारी की विभीषिका और संसाधनों की अभूतपूर्व किल्लत को देखते हुए यह मांग पिछले एक महीने से ज़ोर पकड़ रही है कि इस संकट काल में गैर-लाभकारी संस्थाओं की भूमिका को सरकार समझे और उन पर थोपी गईं पाबंदियों को तत्काल हटाये ताकि वो इस संकट काल में अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने में सक्रियता से जुड़ सकें।

नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कान्त भी गैर- लाभकारी संस्थाओं की उस भूमिका को स्वीकार करते रहे हैं जो पिछले साल लगभग इन्हीं दिनों, कोरोना और देशव्यापी लॉक डाउन के कारण देश में उत्पन्न अफरातरफ़ी के दौर में इन्होंने निभाई थी। यही वजह रही कि इस बार भी अमिताभ कान्त इन संस्थाओं को आगे बढ़कर काम करने का आह्वान करते रहे हैं। हालांकि पिछले साल और इस साल के बीच खुद भारत सरकार ने इन संस्थाओं को संसाधानविहीन बना दिया और यहीं एक सोची समझी नीति का नितांत अभाव दिखलाई पड़ता है।

इसे पढ़ें: राष्ट्रीय आपदा में नागरिक समाज की मदद, अमिताभ कान्त की पहल और कुछ ज़रूरी सुझाव

इस दिशा में आईटी सेवा उद्योग की संस्था नैसकॉम ने 13 मई को कोविड के बढ़ते मामलों से मुकाबले के लिए देश में विदेशी मदद की राह आसान बनाए जाने के लिए भारत सरकार को कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिये थे। इनमें प्रमुख रूप से फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेग्युलेशन ऐक्ट (एफसीआरए) में अस्थायी तौर पर नरमी लाए जाने की मांग की थी।

चौतरफा उठती हुई इन मांगों और सुझावों पर ध्यान देते हुए फिलहाल सरकार ने कुछ राहतें गैर-लाभकारी संस्थाओं और वैश्विक सहयोग हासिल कर सकने की अपनी क्षमताओं को हालांकि बढ़ाया है लेकिन इससे सरकार के दूरदृष्टि दोष की समस्या ही उजागर हुई है।

कांग्रेस नीत संयुक्त प्रतिशील गठबंधन की सरकार के दूसरे कार्यकाल के अंतिम कुछ वर्षों यानी 2011-14 तक यह आरोप लगाए गए कि यह सरकार नीतियों के मामले में पेरालाइज्ड यानी अपाहिज हो चुकी है। इसके पास या तो कोई ठोस नीतियाँ बची नहीं हैं या इसकी नीतियों में कोई तारतम्यता नहीं है। ज़रूर दूसरे कार्यकाल के अंतिम कुछ वर्षों में संप्रग सरकार कई मोर्चों में विपथित हुई थी और एक केंद्रीय कमान का नितांत अभाव दिखने लगा था और ये भी सही है कि सरकार का अंदरूनी बल कमजोर पड़ा था। इससे सरकार के आलोचकों को यह उचित ही लगा था कि सरकार की तमाम नीतियों में निरंतरता या आपसी तारतम्यता का अभाव है।

लेकिन अगर उस दौर की तुलना अगर आज की मौजूदा सरकार से की जाये तो यह कहना मुनासिब है कि यह सरकार न केवल दूसरे कार्यकाल में बल्कि शुरू से ही नीतियों के मामले में ‘सीजोफ़्रेनिक सिंड्रोम’ की शिकार है। यहाँ नीतियाँ बनाने के लिए मौजूदा परिस्थितियों को आधार बनाने तक की सलाहियत नहीं है। नीतियाँ अगर देश काल और परिस्थितियों के हिसाब से नहीं बनायीं जाएँ तो वो नीतियाँ न केवल अप्रासंगिक होती हैं बल्कि देश का बड़ा नुकसान करती हैं।  

विदेशी इमदाद को लेकर भारत की कूटनीतिक हिचकिचाहट और उसका सलीके से नियोजित ढंग से उपयोग न कर पाने को लेकर न केवल आंतरिक रूप से बल्कि विदेशों में भी सवाल उठने लगे हैं ऐसे में जिन गैर-लाभकारी संस्थाओं के माध्यम से अधिकारपूर्वक यह इमदाद हासिल हो सकती थी और उसका सार्थक उपयोग हो सकता था, उसे भारत सरकार ने न जाने किस ख्याल से बाधित किया। समझ से परे है। होना तो यह चाहिए था कि भारत सरकार पिछले साल के तजुर्बे से सबक लेते हुए इन संस्थाओं को गरिमामय ढंग से प्रोत्साहित करती और विदेशों से इमदाद जुटाने के लिए अप्रासंगिक क़ानूनों को लचीला बनाती। यह सरकार हमेशा यह दावा करती रही है कि विकास के रोड़े बने लगभग 1300 कानून सरकार ने रद्द कर दिये हैं।

उनकी समीक्षा अलग से हो सकती है लेकिन इस वक़्त जब देश कोरोना और कोरोना के बचाव के लिए अपनाए गए अविवेकी निर्णयों से इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है तब एफसीआरए जैसे कानून को बेहद लचीला बनाए जाने की ज़रूरत थी।

अभी के लिए जो फैसले लिए गए गए हैं उनका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिए कि कोरोना और उससे उत्पन्न परिस्थितियाँ महीने दो महीने की अवधि का मामला नहीं हैं। देश के स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, रोजगारों, और समग्र विकास पर इसके निशान लंबे समय तक रहने वाले हैं। इसलिए जो उदारता अभी दिखलाई गयी है उसे आने वाले समय में बनाए रखना होगा।

(लेखक पिछले 15 सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं। समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।)

FCRA
SBI
NGOs
Ministry of Home Affairs
BJP
Modi Govt

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • food
    रश्मि सहगल
    अगर फ़्लाइट, कैब और ट्रेन का किराया डायनामिक हो सकता है, तो फिर खेती की एमएसपी डायनामिक क्यों नहीं हो सकती?
    18 May 2022
    कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है कि आज पहले की तरह ही कमोडिटी ट्रेडिंग, बड़े पैमाने पर सट्टेबाज़ी और व्यापार की अनुचित शर्तें ही खाद्य पदार्थों की बढ़ती क़ीमतों के पीछे की वजह हैं।
  • hardik patel
    भाषा
    हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दिया
    18 May 2022
    उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे गए त्यागपत्र को ट्विटर पर साझा कर यह जानकारी दी कि उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
  • perarivalan
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    राजीव गांधी हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट ने दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया
    18 May 2022
    उम्रकैद की सज़ा काट रहे पेरारिवलन, पिछले 31 सालों से जेल में बंद हैं। कोर्ट के इस आदेश के बाद उनको कभी भी रिहा किया जा सकता है। 
  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना मामलों में 17 फ़ीसदी की वृद्धि
    18 May 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 17 फ़ीसदी मामलों की बढ़ोतरी हुई है | स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में 24 घंटो में कोरोना के 1,829 नए मामले सामने आए हैं|
  • RATION CARD
    अब्दुल अलीम जाफ़री
    योगी सरकार द्वारा ‘अपात्र लोगों’ को राशन कार्ड वापस करने के आदेश के बाद यूपी के ग्रामीण हिस्से में बढ़ी नाराज़गी
    18 May 2022
    लखनऊ: ऐसा माना जाता है कि हाल ही में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत के पीछे मुफ्त राशन वित
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License