NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
प्रख्यात इतिहासकार डी एन झा की श्रद्धाजंलि सभा: वैज्ञानिक व धर्मनिरपेक्ष इतिहास लेखन की ज़रूरत पर डाला गया प्रकाश
केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान व ISCUF के तत्वाधान में डी एन झा की श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन किया गया।
अनीश अंकुर
18 Feb 2021
प्रख्यात इतिहासकार डी एन झा की श्रद्धाजंलि सभा

प्रख्यात इतिहासकार डी एन झा की श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन मंगलवार को केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान तथा अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन (इसकफ) द्वारा पटना स्थित केदार भवन में किया गया। श्रद्धाजंलि सभा में इतिहासकार, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी व सामाजिक कार्यकर्ता इकट्ठा हुए। सर्वप्रथम डी एन झा की तस्वीर पर पुष्प अर्पित किया गया।

केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान के सचिव अजय कुमार ने श्रद्धाजंलि सभा की शुरुआत की और इतिहास में उनके अहम योगदान पर प्रकाश डाला।

महिला नेत्री निवेदिता झा ने डी एन झा के जीवन और उनकी कृतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा “डी एन झा ने कलकत्ता से बी ए की पढ़ाई की और उसके बाद पटना विश्वविद्यालय से एम ए और आर एस शर्मा के अधीन पीएचडी की। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का जब फैसला आया तो उन्होंने इसे बहुत निराशाजनक बताया। उनकी प्रसिद्ध किताब 'होली काऊ' की 2002 से 2017 तक 26 संस्करण छपे।"

ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी के पूर्व चेयरमैन व इतिहासकार इम्तियाज अहमद ने बताया "उनका अपने विद्यार्थियों और जानने वाले के साथ बड़ा आत्मीय रिश्ता बन जाता था। डी एन झा जिस तरह से मिथ उत्पन्न किये जा रहे हैं, उसको काउंटर करने वाले लोगों में थे। इतिहास की बेहतर धारा को आगे बढ़ाने वाले लोगों में आर एस शर्मा के बाद वो बड़े नाम थे।"

पटना विश्विद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर रहे अवध किशोर प्रसाद ने कहा "वह हमारे गुरु थे। मैं जे पी आंदोलन के कारण क्लास नहीं कर सका तो भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। यह वाकई में एक सहिष्णुता का एक उदाहरण हो सकता है। उन्होनें आगे बताया दिल्ली जाते वक्त उन्होंने ढेर सारे क्लास नोट्स दिए। उनके बहुत सारे लेक्चर सिलेबस में शामिल किए गए। प्रसाद ने डी एन झा के काम का जिक्र करते हुए कहा कि कोई ऐसा मुल्क नहीं है जहाँ पहले लोग जानवर नहीं खाते थे। सभ्यता का विकास धीरे-धीरे होता है। कई शास्त्रों में भी यह है। वैदिक काल में युग में पशुओं की बलि दी जाती थी। गरीबों ने इसका विरोध किया क्योंकि उनको तो देवताओं से मिलना था नहीं। उनके ऐसे इतिहास लेखन में साइंटिफिक टेम्पर झलकता है, जिसका होना अच्छी बात है।" 

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस पटना सेंटर के चेयर पर्सन पुष्पेंद्र ने बताया "डी एन झा की खासियत थी कि वे बहुत पहले चीजो को देख लेते थे जैसे कि खान-पान के सवाल को लेकर समाज मे भेद पैदा होना। उन्होनें आगे कहा इतिहाकारों की पृष्ठभूमि को समझने की जरूरत है। इतिहासकारों का काम समाज जोड़ना है। आज इतिहास के नाम पर समाज को तोड़ा जा रहा है।"

पटना विश्विद्याल में इतिहास के एक और प्रोफ़ेसर राजेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा "शिक्षण कार्य में हम दोनों समकालीन थे। हालांकि वह हमसे कुछ सीनियर थे। उन्होंने इतिहास के शोध कार्यों में लंबी पारी खेली। जब उनकी किताब होली काऊ आई तो बहुत विरोध हुआ। गोमांस के विषय पर पहले भी लोगों ने काम किया है। जनसंघ के लोगों ने चुनाव जीतने के लिए इसका राजनीतिकरण किया। डी एन झा हमारे लिए पटना विश्विद्यालय के महत्वपूर्ण पिलर थे।"

साहित्यकार प्रेम कुमार मणि ने बताया "हम लोगों ने उनको पढ़ा है। उन्होंने हमें सामाजिक जीवन में इतिहास का महत्व बताया। इतिहास को देखने की दृष्टि दी। आज इतिहास को हथियार बना कर हमले किए जा रहे हैं। मानसिक श्रम और शरीरिक श्रम में प्राचीन काल में अंतर कर लिया गया। और इसी वजह से मध्य काल में शूद्रों पर हमले बढ़े। वर्ण व्यवस्था में जो सबसे कम काम करेगा वो ऊपर रहेगा। डी एन झा की किताब प्राचीन भारत सबको पढ़नी चाहिए। पावर का केंद्र मंदिर था इसीलिए उस पर हमले ज्यादा हुए होंगे। अशोक और औरंगजेब में बहुत समानता है लेकिन एक महान और दूसरा ऐसे है। आज आर एस एस और उनकी पार्टी जिस तरह से इतिहास का इस्तेमाल कर रहा है उसके बारे में सोचने की जरूरत है।"

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सेंट्रल कमिटी के सदस्य अरुण मिश्रा ने डी एन झा को एक एक्टिविस्ट हिस्टोरियन बताया। आज पूरी दुनिया के जितने भी इतिहासकार हैं, उनकी दृष्टि मार्क्स से अलग नहीं है। आज जिस डिस्कोर्स को लाने की कोशिश हो रही है, वो एक तरह का फ्रिंज है। डी एन झा इस तरह की बातों के खिलाफ थे। इतिहास का जो कोरम होता है, उसमें बहुत डिबेट होता है। और यही तरीका भी होता है। झा सच कहने से घबराते नहीं थे। वह अंत तक सक्रिय रहे। सारे खतरों को झेलते हुए भी वह खड़े रहे।"

श्रद्धाजंलि सभा को संबोधित करते हुए सी.पी.आई के राज्य कार्यकारिणी के सदस्य रामबाबू कुमार ने कहा "प्रोफेसर डी एन झा प्रगतिशील इतिहास की धारा को आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति थे। आज सत्ता के समर्थन से गाय के नाम पर मोब लॉन्चिंग का काम किया जा रहा है।"

सामाजिक कार्यकर्ता व इंजीनियर सुनील सिंह ने बताया “ वह एक वारियर की तरह लड़े। जैसे गैलीलियो ने बताया कि पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ घूमती है, तो उस पर हमले हुए। गुलियानी की कविता है दुआ करो कि जो आज हो रहा है वह कल न हो। डी एन झा ब्रूनों और गैलीलियो की तरह सच कहने वाले थे।"

मानवाधिकार कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण ने 1974 में लिखे उनके एक पुराने पेपर की चर्चा करते हुए कहा "समूचा इतिहास समकालीन होता है। जब जनगणना शुरू हुई तो उसके आधार पर हिन्दुकरण की राजनीति की शुरुआत हुई। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में ही राज्य को अधिकार है कि वो जमीन पर कब्जा कर सकता है। डी एन झा एक इकोनॉमिक हिस्टोरियन भी थे।"

केदारदास के अध्यक्ष नवीन चंद्रा ने कहा “इतिहास को प्रकरण में देखना चाहिए यही मार्क्सिस्ट पद्धति है। इतिहास समय है यह पीछे नहीं जाता। डी एन झा अंत तक सीपीआई में रहे और सक्रिय रहे। डी एन झा बताते थे कि पहले इतिहास में बहस की पूरी जगह थी, लेकिन आजकल ऐसे दक्षिणपंथी आ रहे हैं, जो बात ही नहीं कर सकते।”

श्रद्धाजंलि सभा को पी.डी. एस. एफ के राधेश्याम ने भी संबोधित किया। चर्चित इतिहासकार ओ.पी.जायसवाल ने अपने सन्देश में कहा कि डी एन झा सिर्फ एकेडमिक शख्सीयत ही नहीं बल्कि एक्टविस्ट भी थे। कम्युनिस्ट पार्टी सी.पी.आई के सदस्य थे। पार्टी के कार्यों में भी सक्रियतापूर्वक भाग लिया करते थे।

सभा में इस पर भी रोशनी डाली गई कि किस प्रकार साम्प्रदायिक ताकतों ने डी एन झा को परेशान किया, मुकदमों में फंसाया और उन्होंने किस तरह इन सबका मुकाबला किया।

श्रद्धाजंलि सभा में शामिल प्रमुख लोगों में शिक्षाविद अक्षय कुमार, इसकफ के रवींद्र नाथ राय, कानूनविद ज्ञानचन्द्र भाद्वाज, अधिवक्ता मदन प्रसाद सिंह, छात्र नेता विश्वजीत कुमार, बिजली कर्मचारियों के नेता डीपी यादव, रंगकर्मी जयप्रकाश, इंसाफ मंच के इरफान अहमद फातमी, सामाजिक कार्यकर्ता व कवि तुषार उपाध्याय, हरदेव ठाकुर , संस्कृतिकर्मी सुमन्त शरण, अशोक कुमार सिन्हा, गालिब खान, एटक नेता ग़ज़नफ़र नवाब, आंगनबाड़ी कर्मचारियों के नेता कौशलेंद्र कुमार वर्मा, फिल्मकार राकेश राज, छात्र नेता सरोज, आदि थे ।

DN Jha
ISCUF
Supreme Court

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • असद रिज़वी
    CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा
    06 May 2022
    न्यूज़क्लिक ने यूपी सरकार का नोटिस पाने वाले आंदोलनकारियों में से सदफ़ जाफ़र और दीपक मिश्रा उर्फ़ दीपक कबीर से बात की है।
  • नीलाम्बरन ए
    तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है
    06 May 2022
    रबर के गिरते दामों, केंद्र सरकार की श्रम एवं निर्यात नीतियों के चलते छोटे रबर बागानों में श्रमिक सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं।
  • दमयन्ती धर
    गुजरात: मेहसाणा कोर्ट ने विधायक जिग्नेश मेवानी और 11 अन्य लोगों को 2017 में ग़ैर-क़ानूनी सभा करने का दोषी ठहराया
    06 May 2022
    इस मामले में वह रैली शामिल है, जिसे ऊना में सरवैया परिवार के दलितों की सरेआम पिटाई की घटना के एक साल पूरा होने के मौक़े पर 2017 में बुलायी गयी थी।
  • लाल बहादुर सिंह
    यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती
    06 May 2022
    नज़रिया: ऐसा लगता है इस दौर की रणनीति के अनुरूप काम का नया बंटवारा है- नॉन-स्टेट एक्टर्स अपने नफ़रती अभियान में लगे रहेंगे, दूसरी ओर प्रशासन उन्हें एक सीमा से आगे नहीं जाने देगा ताकि योगी जी के '…
  • भाषा
    दिल्ली: केंद्र प्रशासनिक सेवा विवाद : न्यायालय ने मामला पांच सदस्यीय पीठ को सौंपा
    06 May 2022
    केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच इस बात को लेकर विवाद है कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाएं किसके नियंत्रण में रहेंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License