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विधानसभा घेरने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की आशाएं, जानिये क्या हैं इनके मुद्दे? 
ये आशायें लखनऊ में "उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन- (AICCTU, ऐक्टू) के बैनर तले एकत्रित हुईं थीं।
सरोजिनी बिष्ट
17 May 2022
lucknow

लखनऊ के दारूल सफा का बी ब्लॉक स्थित कॉमन हॉल, 15 मई की दोपहर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आई आशा प्रतिनिधियों से भरा हुआ था। ये सारी आशायें "उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन" (सम्बद्ध ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन, AICCTU, ऐक्टू) के बैनर तले एकत्रित हुईं थीं।

 इन्हीं में से एक थीं सीतापुर के हरगांव ब्लॉक से आई राम देवी, जो अभी कुछ दिन पहले माइनर हार्ट अटैक से गुजरी थीं। राम देवी को अटैक क्यों आया और क्यों ये आशायें लखनऊ में जुटी थीं यह जानना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सरकार की कथनी और करनी में फर्क इनके हालात बखूबी बयाँ कर देते हैं, यानी बदला कुछ भी नहीं, सब कुछ वही जस का तस, बस कुछ बदला है तो यही कि इन पर फिर ऐसे कामों का बोझ लाद दिया गया है जिनका कोई भुगतान भी नहीं यानी "फ्री की सेवा" का बोझ। 

अब यह जानना भी जरूरी है कि आशा वर्कर राम देवी को दिल का दौरा क्यों पड़ा। वे कहती हैं अटैक क्यों नहीं आएगा, तीन महीने से काम का पैसा नहीं मिला आगे भी कब मिलेगा कोई निश्चित नहीं बच्चों की स्कूल, कॉलेज की फीस भरना तक मुश्किल होता जा रहा है, पति के पास भी कोई रोजगार नहीं इतनी टेंशन में अटैक नहीं आएगा तो क्या होगा। वह बताती है- उसे दो बार दिल का दौरा पड़ चुका है और उसे अब दिन रात यही डर सताता कि यदि उसे कुछ हो गया तो उसके बच्चों का क्या होगा। राम देवी के मुताबिक जब भी बी सी पी एम ( ब्लॉक कम्युनिटी प्रोसेस मैनेजर, जिसके तहत आशा/ संगिनी काम करती हैं) से महीनों से लटके भुगतान के बारे में कहते हैं तो उनका केवल एक ही जवाब होता है, अभी बजट नहीं आया जब आएगा तो पैसा मिल जाएगा।

गुस्से भरे लहजे में वह कहती हैं- बस अब यदुराई दीदी की तरह मरना बाकी रह गया और जो हालात हैं उसमें अब यह दिन भी दूर नहीं लगता। कौन हैं यह यदुराई दीदी, हमने राम देवी से जानना चाह तो उसने बताया 55 वर्षीय यदुराई जी भी उनकी तरह ही सीतापुर जिले के हरगाँव ब्लॉक की एक आशा वर्कर थीं, जो लंबे समय से आशा के बतौर काम कर रही थीं, बीमार थीं और उस पर लंबे समय से पैसा न मिलने के चलते टेंशन के कारण उनकी इसी 14 मई को मृत्यु हो गई। राम देवी कहती हैं- अगर दीदी जिंदा होती तो आज वह भी इस सम्मेलन में हमारे बीच होती।

अपने तमाम सवालों, आक्रोश और भविष्य में अपनी लड़ाई और धार देने की योजना बनाने को लेकर लखनऊ, सीतापुर, हरदोई, बाराबंकी, जौनपुर, कानपुर, शाहजहाँपुर, बरेली, इलाहाबाद, रायबरेली, मुरादाबाद, मऊ, लखीमपुर, बिजनौर, हाथरस, पपीलीभीत कुसीनगर, गोरखपुर, उन्नाव, अमेठी, प्रतापगढ़, देवरिया, आदि जिलों से आईं करीब 150 आशा प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में भाग लिया। सम्मेलन की शुरुआत उन आशा कर्मियों को श्रद्धाजलि देकर की गई जिन्होंने काम के दौरान अपनी जान गँवाई या आर्थिक तंगी के चलते जिनकी मृत्यु हुई। उनकी याद में दो मिनट का मौन रखा गया। 

सम्मेलन में आये ऐक्टू के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष ‘विजय विद्रोही’ ने कहा कि बहुत कठिन परिस्थितियो में असम्भव कार्यों को सम्भव बना रही, आशा कर्मियो की बात कोई सुनने वाला नही, इनकी सेवायें अनवरत 15 वर्षो से इन्ही बदतर और अमानवीय परिस्थितियो मे जारी हैं,  12 से. तापमान हो 44 से. हो, दिन हो रात हो, महामारी हो या मौसमी बीमारियो का प्रकोप, असाध्य क्षय रोग हो, या और कुछ भी, सब आशा ही को करना है, सरकार के पास इनके लिए काम की योजना है पर बेहतर जीवन की कोई योजना नही है पर हाँ ज़गह-ज़गह प्रभारी और बी सी पी एम नाम के दरोगा जरूर बैठा दिये हैं, जो धमकाने, गला दबा कर बेगार करवाने और जो भी मिले उसका एक बड़ा हिस्सा छीन लेने के काम मे बाखूबी लगे हुये हैं।

विजय विद्रोही कहते हैं- हमारे पास हर जिले से आशाओं कि शिकायत मिलती है कि अपना ही पैसा निकलवाने के लिए उनसे घूस माँगी जाती है यदि घूस न दो तो भुगतान महीनों तक लटका दिया जाता है। पूरे प्रदेश मे लूट का ऐसा बोलबाला है कि कोई केन्द्र नही, जहाँ 20 से 30% तक भुगतान के नाम पर ऊगाही न की जा रही हो, इसके विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत की ज़ा चुकी है, एक आकलन के अनुसार प्रति वर्ष मिलने वाली प्रतितोष राशि से 200 करोड़ यानी 2 अरब रुपये की रकम घूस के रूप में आशाओं से ले ली जाती है और ज़िन कथित कार्यों का कोई पैसा नही दिया जाता, उनके फर्जी भुगतान कर लिए जाते हैं, इस प्रकार 500 करोड़ का वार्षिक डाका आशाओ के हिस्से मे डाला ज़ा रहा है, इसलिये बाऊचर प्रणाली के बजाय भुगतान का सीधा तरीका लिए ज़ाने का प्रश्न है। न्यूनतम वेतन ,राज्य स्वास्थ्य कर्मी के रूप मे शासन की स्वीकृति ,स्वास्थ्य बीमा ,जीवन बीमा जैसे ज्वलंत प्रश्न मूल रूप से संघर्ष के केन्द्र मे हैं। उनके मुताबिक रायबरेली मे मरीज ले जाते समय मार्ग दुर्घटना में मृत आशा मालती व हरदोई मे काम के दौरान हृदय़ाघात से हुई मौत पर, सरकार से 10 लाख का मुवावजा व परिवार के एक सदस्य को नौकरी की मांग की गई है व इन्ही वजहों से 50 लाख के जीवन बीमा कवर की मांग संगठन कर रहा है ।

सम्मेलन में शिरकत कर रहे ऐक्टू के राज्य सचिव कॉ.अनिल ने कहा कि आज की तारीख में आशाओं के जिम्मे जितना काम है, उसमें से तो कई ऐसे हैं जिनका कोई भुगतान भी नहीं, जो यह दर्शाता है कि आज भी हमारे देश में महिला श्रमिकों को दोयम दर्जे का मानते हुए बेगारी का मजदूर समझा जाता है। वे कहते हैं इनको मिलने वाला मानदेय नहीं अपमानदेय है। कितने अफ़सोस की बात है कि दिन रात खटने वाली ये महिला श्रमिक तो हमारे देश के श्रम कानूनों के दायरे में भी नहीं आतीं और वो इसलिए क्योंकि सरकार इन्हे श्रमिक मानती ही नहीं उसकी नजर में तो ये महज सेवक हैं यानी इन्हे तो जनता की सेवा करनी है और उस सेवा के बदले बस जो मिले उसे ले लो।

अनिल जी कहते हैं- इनकी प्रमुख लड़ाई स्थायी करने से लेकर न्यूनतम वेतन लागू करने की है जो इनके पक्ष में होना ही चाहिए, लेकिन शीर्ष पर बैठी जो सरकार देश से नौकरियों में स्थाई बहाली का कानून ही खत्म कर एक "fix term service" ( एक निश्चित समय के लिए नौकरी में बहाली) नाम का कानून लाने की मंशा में है उससे क्या उम्मीद की जा सकती है। वे कहते हैं यहाँ बैठी सरकार को तो कोई चिन्ता नहीं जबकि "international labour organization" (ILO) तक एक भारतीय श्रमिक के जीवन जीने की दैनिक जरूरतों के हिसाब से यह जाहिर कर चुका है कि कम से कम एक श्रमिक को 26 हजार मासिक मिलना चाहिए, तभी उसका जीवन सुरक्षित रह सकता है। वह कहते हैं कि अपने हक़ की लड़ाई तो हर श्रमिक और श्रमिक संगठनों को लड़नी ही होगी ताकि अपने जीवन को सुरक्षित बना सकें।

सम्मेलन में आई आशाओं ने बताया कि चुनाव से पहले प्रदेश सरकार ने जो 750 बढ़ाने की घोषणा की थी वो अभी तक उनके मानदेय में शामिल नहीं हो पाया है यानी जो पहले मिलता था महीने के 2275 रुपये, बस उतना ही है और वो भी आज तक कभी समय पर नहीं मिला लेकिन नई जिम्मेदारियां ज़रुर बढ़ गई हैं। राय बरेली की आशा गेंदावती कहती हैं- इस बार का तो छोड़िये सरकार ने 2018 में जो 750 की बढ़ोत्तरी की थी वो भी आज तक कभी पूरा बढ़ कर नहीं मिली, कभी मात्र दौ सौ तो कभी तीन सौ बढ़कर मिल जाता है बस, वो भी कई महीनों बाद। 

आशा गीता मिश्रा ने बताया कि सरकार इन्द्रधनुष मिशन नाम से एक कार्यक्रम लाई है जिसके तहत गाँव गाँव जाकर आशा को बी सी जी, covid, पेंटा, एम आर और जापानी बुखार का टीका लगाना है। वह कहती हैं- एक आशा के जिम्मे रोज का तीन गाँव है। 9 से 12 बजे तक एक गाँव, 12 से 3 तक दूसरा और 3 से 6 तक तीसरे गाँव का दौरा पूरा करना होता है और सबसे बड़ी बात यह कि इस काम का कोई मानदेय भी नहीं है यानी एकदम निशुल्क अब इससे ज्यादा शोषण और क्या होगा। 

हरदोई जिले से आई आशा कर्मी शांति कहती हैं- हमारे शोषण की हद तो यह है कि अगर अब हम अपनी माँगों के लिए धरना, प्रदर्शन, मीटिंग में शामिल होते हैं तो अधिकारी हमारा पैसा रोकने की धमकी देते हैं बल्कि कई बार तो रोक भी दिया जाता है और उसे निकलवाने के लिए घूस की डिमांड की जाती है। मऊ की उषा यादव साफ-साफ कहती हैं- हमें सरकारी कर्मचारी का दर्जा चाहिए, न्यूनतम वेतन चाहिए, लंबे समय से रुके पड़े मानदेय का अविलंब भुगतान चाहिए और सबसे बड़ी बात हमें सम्मान चाहिए और अपनी इस लड़ाई में यदि हम कुछ बहने शहीद भी हो जायेंगी तो हजारों आशा बहनों की मेहनत सफल हो जायेगी। इन आशाओं से जब यह पूछा गया कि योगी सरकार ने जो हर आशा के हाथ में स्मार्ट फोन पहुंचाने का वादा किया था क्या सबको मिला तो सबका एक ही जवाब था कि आज तक उनके हाथों में सरकार का स्मार्ट फोन नहीं पहुँचा और न ही अब कोई उम्मीद है यानी इस योजना का भी जितना प्रचंड प्रचार किया गया वो भी केवल जुबानी रह गया।

कन्वेंशन मे बरेली से लक्ष्मी, मंजू गंगवार, रायबरेली से सरला श्रीवास्तव, गीता मिश्रा, हरदोई से शांति व हेमलता व निशा जी, जौनपुर से सावित्री, देवरिया से संगीता, सीतापुर से राम देवी, लखनऊ से जग्गा देवी, मऊ से पूनम य़ादव, बाराबंकी से अर्चना रावत आदि ने भी अपने विचार रखे।

कन्वेंशन की अध्यक्षता राज्य सचिव साधना पांडेय व मिड डे मील वर्कर्स यूनियन की राज्य सचिव सरोजनी जी ने की, संचालन रेनू निषाद ने किया। बहरहाल सम्मेलन के अंत में आगामी समय के लिए दो बड़े आन्दोलनों की रूपरेखा तय की गई जिसमें पहला आन्दोलन 4 जून और दूसरा आन्दोलन 12 सितंबर के लिए सर्वसम्मति से तय हुआ। 4 जून को प्रदेश भर मे बकाया मानदेय के भूगतान के लिए प्रदर्शन व 12 सितंबर 2022 को  राज्य कर्मचारी का दर्जा दिये ज़ाने, न्यूनतम वेतन,, स्वास्थ्य बीमा व 50 लाख के जीवन बीमा की गारंटी, काम के घंटे निर्धारित किये ज़ाने आदि मांगो के लिए विधान सभा घेरने का प्रस्ताव पारित किया गया और इस संकल्प के साथ सम्मेलन का अंत हुआ कि जब तक उनकी माँगे पूरी नहीं हो जातीं, तब तक उनका आन्दोलन कभी कमजोर नहीं पड़ेगा।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

ये भी पढ़ें: आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?

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