NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर अटेवा का लखनऊ में प्रदर्शन, निजीकरण का भी विरोध 
21 नवंबर को लखनऊ के इको गार्डेन में नेशनल पेंशन स्कीम यानी एनपीएस को रद्द करने, पुरानी पेंशन सिस्टम यानी ओपीएस को पुनः बहाल करने और रेलवे के निजीकरण पर रोक लगाने की मांगों के साथऑल इंडिया टीचर्स एंड एम्प्लॉयज वेलफेयर एसोसिएशन (अटेवा) के बैनर तले हज़ारों कर्मचारी इकट्ठे हुए।
सरोजिनी बिष्ट
22 Nov 2021
ATEWA

"संघर्ष की कभी हार नहीं होती, अगर मांगे जायज हैं, जनहित में तो सरकार को झुकना ही पड़ता है और इसका ताजा उदाहरण है सरकार द्वारा तीन कृषि कानून को वापस लेना, हमारा आंदोलन भी जायज है हमारी मांगे भी जायज हैं, भले ही इसमें और वक़्त लगे लेकिन हमें उम्मीद है कि अंत में जीत हमारे संघर्ष की ही होगी" 

यह कहना था उन तमाम कर्मचारियों का जो 21 नवम्बर को लखनऊ के इको गार्डेन में नेशनल पेंशन स्कीम यानी एनपीएस को रद्द करने, पुरानी पेंशन सिस्टम यानी ओपीएस को पुनः बहाल करने और रेलवे के निजीकरण पर रोक लगाने की मांगों के साथ, ऑल इंडिया टीचर्स एंड एम्प्लॉयज वेलफेयर एसोसिएशन (अटेवा) के बैनर तले इकट्ठा हुए थे।

इन मांगों को लेकर अटेवा लंबे समय से संघर्षरत है। अयोध्या, आजमगढ़, मऊ, बरेली, बलिया, बनारस, फैजाबाद, अंबेडकर नगर, देवरिया, गोरखपुर, फिरोजाबाद सहित अन्य जिलों से पचास से ज्यादा संगठनों के लगभग पचास हजार की संख्या में कर्मचारी पहुंचे थे। तो वहीं अटेवा के बैनर तले एक्टू से सम्बद्ध इंडियंस रेलवे एम्प्लॉयज फैडरेशन (आईआरएएफ) ने भी शिरकत की और रेलवे के निजीकरण का विरोध कर पुरानी पेंशन लागू करने की मांग की। 

विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही एक बार फिर उप्र में पुरानी पेंशन का मामला तेजी पकड़ता जा रहा है। उप्र चतुर्थ श्रेणी राज्य कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष रामराज दुबे ने बताया कि सरकार के खिलाफ सब एक साथ लड़ाई लड़ेंगे। उनकी रैली में पूरे प्रदेश से हजारों की संख्या में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि पुरानी पेंशन की लड़ाई में यह शंखनाद रैली निर्णायक साबित होगी। अटेवा के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा कि कृषि कानूनों की तरह न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) व्यवस्था को वापस लेकर लाखों लाख शिक्षकों-कर्मचारियों व अधिकारियों को बुढ़ापे में पुरानी पेंशन का संबल प्रदान करें। 

अटेवा के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुमार बंधु का कहना है कि नई पेंशन नीति की विसंगतियां लगातार सामने आ रही हैं। सरकार की यह नीति हमारे बुढ़ापे की लाठी छीन रही है। मौजूदा समय में कर्मचारियों और शिक्षकों की संख्या बहुत बड़ी है। इसको नजरअंदाज कर कोई भी पॉलिसी नहीं बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि जो हमारी मांगों को अनसुना करेगा हम उसे बाहर कर देंगे। कर्मचारी संगठनों का दावा है कि पुरानी पेंशन को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनाएंगे। उप्र में अभी 13 लाख कर्मचारी ऐसे हैं, जिनको पुरानी पेंशन का लाभ नहीं मिलता है। अगर हर कर्मचारी के परिवार में चार सदस्य भी जोड़ें तो करीब 52 लाख लोग सीधे प्रभावित हो रहे हैं। 

आख़िर क्या है यह ओ पी एस और एन पी एस

2004 के बाद नियुक्त सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना के स्थान पर नई पेंशन योजना लागू की गई, जो कि सही मायने में देखा जाए तो पेंशन योजना है ही नहीं। यह एक शेयर बाजार पर आधारित प्रणाली है, जिसमें किसी भी प्रकार की न्यूनतम गारंटी नहीं है। पुरानी पेंशन योजना सरकारी कर्मचारी के बुढ़ापे की लाठी है, तो दूसरी ओर नई पेंशन योजना उसके साथ केवल छलावा। इस योजना में शामिल कर्मचारी को 60 वर्ष की उम्र के बाद मामूली मासिक पेंशन मिलती है, जबकि पुरानी पेंशन योजना में इतनी ही सेवा के बदले अच्छी मासिक पेंशन मिलती है। नई पेंशन योजना में कर्मचारियों का पेंशन के नाम पर जमा पैसा यूटीआई, एसबीआई तथा एलआईसी के पास जाता है जो इसको शेयर मार्केट में लगाते हैं। सेवानिवृत्ति के समय जो बाजार भाव रहेगा, उसके अनुसार कार्मिक को पैसा मिलेगा।

ये भी पढ़ें: शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने वाले सैकड़ों शिक्षक सड़क पर प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं?

अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक सुरक्षित भविष्य देती है। जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी. ओपीएस में किसी कर्मचारी ने कितने भी साल की नौकरी की हो, चाहे कम या ज्यादा साल, पेंशन की राशि अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी. इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिट कांट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशि इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल किया गया है और एन्यूटी राशि कितनी है। एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है। रिटायर होने पर कुल रकम का 60 फीसदी एकमुश्त निकाल सकते हैं और शेष 40 फीसदी रकम से बीमा कंपनी का एन्यूटी प्लान खरीदना होता है। जिस पर मिलने वाले ब्याज की राशि हर महीने पेंशन के रूप में दी जाती है। 

आंदोलनों के इसी क्रम में पिछले दिनों एनपीएस व निजीकरण के खिलाफ संयुक्त कर्मचारी सम्मेलन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में संम्पन्न हुआ। 13 नवम्बर 2021 को हुए इस सम्मेलन में भारी संख्या में रेलवे कर्मचारियों के साथ शिक्षक और केंद्र व राज्य के  कर्मचारियों ने भागीदारी की।

संयुक्त कर्मचारी सम्मेलन के मुख्य वक्ता-  राष्ट्रीय अध्यक्ष (फ्रंट अगेंस्ट एनपीएस इन रेलवे FANPSR) व विशिष्ट सचिव (नेशनल मूवमेंट ऑफ ओल्ड पेंशन स्कीम NMOPS) सरदार अमरीक सिंह कहते हैं कि यदि नई पेंशन योजना सही है तो इसे मंत्री, सांसद, विधायक क्यों नहीं ले रहे हैं, हम लगातार नई पेंशन योजना के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, हम लोगों ने नई दिल्ली के रामलीला मैदान में एतिहासिक रैली की है। कॉमरेड अमरीक सिंह के मुताबिक आज केन्द्र सरकार देश की सभी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई रेल, सेल, भेल, कोल, बीएसएनएल, एअर पोर्ट, बंदरगाह, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री सहित जल जंगल जमीन सब कुछ अपने चहेते पूंजीपतियों को सौप देना चाहती है। भारतीय रेलवे जो ढाई करोड़ से भी ज़्यादा यात्रियों को नित्य प्रतिदिन यात्रा कराती है, जो भारत में सबसे अधिक युवाओं को रोजगार देती है, कोरोना संकट यानी कि लॉकडाउन में हम सब कोरोना वैरीयर्स रेलवे कर्मचारियों ने अपने हजारों साथियों की शहादत देते हुए ऑक्सीजन, जीवन रक्षक दवाएं, अरबो टन खाद्य सामग्री सहित आवश्यक वस्तुओं को एक जगह से दूसरे जगह तक़ पहुँचाया। हम सब देश हित में रेलवे संचालन करते हुए अपना पूरा जीवन लगा दे रहे हैं, लेकिन हमारे बुढ़ापे का सहारा पुरानी पेंशन योजना OPS हमसे छीन ली गई है। जिसे पुनः प्राप्त करने के लिए फ्रंट अगेंस्ट एनपीएस इन रेलवे FANPSR लगातार NMOPS के साथ एकजुटता बनाकर संघर्ष करता रहा है। वो चाहे रेलवे के विभिन्न डिवीजन, जोन या उत्पादन इकाइयां हो, यह संघर्ष आगे भी पुरानी पेंशन की बहाली व निजीकरण के ख़ात्मे तक़ जारी रहेगा।

संयुक्त कर्मचारी सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए *इंडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन IREF राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व नेशनल मूवमेंट टू सेव रेलवे NMSR के राष्ट्रीय प्रचार सचिव डॉ. कमल उसरी कहते हैं कि दिल्ली के बॉर्डर पर संघर्षरत किसानों से सीखते हुए रेलवे कर्मचारियों के साथ छात्रों, किसानों, नौजवानों के साथ एकता बनाकर एनपीएस व निजीकरण के खिलाफ देश भर में संघर्ष जारी रखा जाएगा। कॉमरेड डॉ. कमल उसरी ने कहा कि भारतीय रेलवे आम जनता की जीवन रेखा है, इसे सार्वजनिक क्षेत्र में बचाये रखने की जिम्मेवारी सिर्फ़ रेलवे कर्मचारियों पर छोड़ने के बजाय आम अवाम को भी इसे यानी कि रेलवे को सार्वजनिक क्षेत्र में बचाने की चुनौती स्वीकार करते हुए, नेशनल मूवमेंट टू सेव रेलवे के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए संघर्ष को जारी रखना होगा।

बहरहाल आंदोलन में शामिल इन हजारों लाखों कर्मचारियों का कहना है कि यदि नई पेंशन व्यवस्था कर्मचारियों के हित में है तो सरकार लगातार संशोधन क्यों कर रही है। एक पन्ने का जीओ आज गट्ठर का ढेर बन गया है। सरकार को बताना होगा कि ऐसा क्यों हो रहा। कर्मचारी कहते हैं कि सरकार के पास पेंशन देने से भार बढ़ रहा है तो नेताओं को क्यों दिया जा रहा है। इसका आंकड़ा क्यों नहीं जारी किया जाता है।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

नोट- सभी फोटो लखनऊ के ईको गार्डेन धरना स्थल की हैं

Lucknow
Pensioners
pension
ATEWA
NPS
Privatisation

Related Stories

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

लखनऊ: देशभर में मुस्लिमों पर बढ़ती हिंसा के ख़िलाफ़ नागरिक समाज का प्रदर्शन

महानगरों में बढ़ती ईंधन की क़ीमतों के ख़िलाफ़ ऑटो और कैब चालक दूसरे दिन भी हड़ताल पर

पूर्वांचल में ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के बीच सड़कों पर उतरे मज़दूर

देशव्यापी हड़ताल के पहले दिन दिल्ली-एनसीआर में दिखा व्यापक असर

बिहार में आम हड़ताल का दिखा असर, किसान-मज़दूर-कर्मचारियों ने दिखाई एकजुटता

केरल में दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल के तहत लगभग सभी संस्थान बंद रहे

"जनता और देश को बचाने" के संकल्प के साथ मज़दूर-वर्ग का यह लड़ाकू तेवर हमारे लोकतंत्र के लिए शुभ है

क्यों है 28-29 मार्च को पूरे देश में हड़ताल?


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License