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भारत
राजनीति
दिल्ली दंगों में पुलिस की जांच ‘पक्षपातपूर्ण’ और ‘सांप्रदायिक’ है
पुलिस का कहना है कि आंदोलन की वजह से उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए और पुलिस देश भर की लॉकडाउन के बावजूद लगातार गिरफ़्तारी कर रही है।
तारिक़ अनवर
30 Apr 2020
Translated by महेश कुमार
Delhi violence
फाइल फोटो

नई दिल्ली: उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 23 फ़रवरी से भड़के दंगों में पुलिस की कथित भूमिका को लेकर पहले से ही आलोचना हो रही थी लेकिन अब मानवाधिकार समूहों और नागरिक समाज संगठनों ने दिल्ली हिंसा में पुलिस द्वारा की जा रही जांच और उससे संबधित गिरफ़्तारियों को "पक्षपातपूर्ण" और "सांप्रदायिक" क़रार दिया है। ये गिरफ़्तारियाँ कोविड-19 के कारण तालाबंदी के बावजूद भेदभावपूर्ण ढंग से जारी है।

दिल्ली पुलिस के अनुसार, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन जिनका आयोजन शाहीन बाग़, जामिया मिलिया इस्लामिया, सीलमपुर, खुरेजी, इंद्रलोक और हौज़ रानी में किया गया था – ये विरोध प्रदर्शन ही उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा का कारण बने और हिंसा में 55 लोग मारे गए और 300 से अधिक लोग घायल हुए हैं।

24 अप्रैल को गिरफ़्तार की गई शिफ़ा-उर-रहमान उर्फ शिफ़ा खान को नई दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने 10 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया है। “आरोपी को दिल्ली के भीतर सीएए/एनपीआर/एनआरसी के ख़िलाफ़ विभिन्न स्थलों पर विरोध प्रदर्शन को स्थापित करने में सहायक शामिल पाया गया है, इन विभिन्न विरोध स्थलों अर्थात जामिया, शाहीन बाग, सीलमपुर, खुरेजी, इंद्रलोक और हौज रानी में नफरत भरे भाषण देने और वहाँ मौजूद बड़ी तादाद में आवाम को भारत सरकार और अन्य समुदायों के ख़िलाफ़ भड़काने की वजह से दंगे हुए हैं, उक्त बातें ”दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल, जो कि दंगों के पीछे की साजिश की जाँच कर रही है, ने एक कमर्सियल जिला न्यायाधीश, संजीव जैन, के समक्ष सुनवाई के दौरान कही।

विभिन्न जगहों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के अलावा, जांचकर्ताओं ने कहा कि दंगों के लिए हथियारों और विस्फोटकों की खरीद के लिए भारी धनराशि लगाई गई थी। पुलिस ने उन लोगों से "विशाल" वित्तीय डेटा मिलने का दावा किया हैं जिन्हें अब तक गिरफ़्तार किया गया है।

विवादास्पद सीएए, एनपीआर और एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे रहने वाले कार्यकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की शस्त्र अधिनियम और गंभीर धाराओं को लगाने के साथ गैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम (पीडीपीपीए) के नुकसान की रोकथाम के तहत गिरफ़्तार किया गया है। 

गिरफ़्तार कार्यकर्ताओं में खालिद सैफी, कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां, आम आदमी पार्टी (आप) के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन, छात्र कार्यकर्ता गुलफिशान, जामिया समन्वय समिति की मीरन हैदर और सफूरा ज़रगर और अब शिफ़ा-उर-रहमान शामिल हैं जो जामिया मिलिया इस्लामिया (AAJMI) के छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष हैं। 

पुलिस ने कहा कि कम से कम दो संगठन और कई अन्य संदिग्ध लोग उनकी रडार पर हैं और उन्हें भी गिरफ़्तार किया जाएगा।

इन सभी को एफआईआर संख्या 59/2020 के तहत गिरफ़्तार किया गया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा "पहले से नियोजित" थी और एक "गहरी" साजिश का परिणाम थी। महिलाओं और बच्चों को कथित तौर पर सड़कों को जाम करने करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। कथित तौर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्र उमर खालिद और उसके साथियों ने यह साजिश रची थी - सभी दो समूहों से जुड़े हुए हैं।

एफ़आईआर में आरोप लगाया गया है कि उमर खालिद ने विभिन्न जगहों पर भड़काऊ भाषण दिए। रपट आगे कहती है कि उसने 24 फरवरी और 25 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की राष्ट्रीय राजधानी यात्रा के दौरान मुस्लिम समुदाय के सदस्यों से सड़कों और अन्य सार्वजनिक स्थानों को अवरुद्ध करने की अपील की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य कथित तौर पर अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्मों पर यह प्रचार करना था कि भारत में मुसलमानों को 'प्रताड़ित' किया जा रहा है।

प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि हथियार और विस्फोटक खरीदे गए और उन्हे बाकायदा इकट्ठा किया गया, जिनमें उत्तर-पूर्वी दिल्ली में मौजपुर, जाफराबाद, चांद बाग, गोकलपुरी और शिव विहार जैसे मोहल्ले शामिल हैं। महिलाओं और बच्चों को कथित तौर पर क्षेत्र में तनाव और दंगे भड़काने के लिए 23 फरवरी को जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन के सामने उतार दिया गया था।

एफ़आईआर 6 मार्च को दर्ज की गई, और केसों में आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) 124 ए (राजद्रोह), 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 353 (सार्वजनिक कर्मचारी पर हमला), 186 (लोक सेवक के काम  में बाधा), 212 (हमलावर को छिपाना), 395 (डकैती), 427 (शरारत), 435 (तबाही मचाने का कुचक्र रचना), 436 (गोलीबारी करना), 452 (घरमें घुसना), 454 (छिपना), 109 (अपहरण), 114 (बहकाना) 147 (दंगा करना), 148 (हथियार के साथ दंगा करना), 149 (गैरक़ानूनी भीड़ करना), 124A, 153A (दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 34 (संयुक्त इरादे से कार्य करना) लगाई गई हैं, इसके अलावा पीडीपीपीए की धारा 3 और 4, आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 तथा यूएपीए की धारा 13, 16, 17 और 18 लगाई गई है। ये केस अपराध शाखा ने दर्ज़ किए हैं और विशेष सेल इनकी जांच कर रहा है।

पुलिस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली और शाहदरा जिलों के विभिन्न पुलिस थानों में सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में 750 से अधिक एफआईआर दर्ज की हैं।

40 दर्ज़ एफ़आईआर के तहत, जिन्हें न्यूज़क्लिक ने हासिल किया है, जांचकर्ताओं ने लगभग 130 लोगों को हिरासत में लिया है। एक को छोड़कर, बाकी सभी एक खास समुदाय के सदस्य हैं। मुक़दमा लगाए गए लोगों में से सत्रह जमानत पर बाहर हैं।

वकील और एक्टिविस्ट्स ने इसे कपटपूर्ण कार्यवाही कहा है।

कई राइटस समूहों, नागरिक समाज संगठनों और वकीलों ने पुलिस कार्रवाई को "एकतरफा", "मनमाना", "पक्षपातपूर्ण" और "भेदभावपूर्ण" बताया है। 23 फरवरी से 27 फरवरी के बीच हुई दिल्ली हिंसा के दौरान, पुलिस का रवैया कुछ मामलों में या तो निष्क्रिय या फिर तुरंत कदम न उठाने का रहा है वह भी ज्यादातर मुस्लिम इलाकों में ये रवैया देखा गया। दिल्ली में 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद यह हिंसा सबसे भयावह थी।

कम से कम चार प्रसिद्ध वकीलों ने 11 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा है, जिसमें पुलिस द्वारा लोगों को स्टेशन बुलाना, हिरासत में लेना और उन्हे हवालात में रखना जैसे संबंधित मुद्दों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा कि यह उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित एफआईआर के सिलसिले में राष्ट्रीय तालाबंदी के दौरान हो रहा है।

हमारे सीमित अनुभव के अनुसार, “दंगा-संबंधी एफ़आईआर (लॉकडाउन से पहले) में गिरफ़्तारी, कई मामलों में बहुत कम थी, क्योंकि जिन अपराधों में गिरफ़्तारी की कोशिश की जार ही थी, वह एफ़आईआर में कथित तौर पर गंभीर अपराधों में नही आते थे, जैसे कि हत्या, हत्या का प्रयास और आगज़नी। इसलिए इन मामलों में अगर कोई गिरफ़्तारी का एकमात्र आधार सबसे अच्छा होता तो तो वह वीडियो फुटेज में दिखाया गया है कि (जो तथ्य को नज़रअंदाज़ करते हैं कि गिरफ़्तार किए लोग वहीं के थे जहां दंगे हुए थे) और असंपुष्ट गवाहों के बयान में भी दर्ज़ है। ज्यादातर मामलों में, जब उन्हे पहले पेश किया गया तो पुलिस ने किसी को भी हिरासत में लेने की मांग नहीं की थी, जो दर्शाता है कि जांच के लिए गिरफ़्तारियों की आवश्यकता नहीं थी।

“इसके अलावा, पुलिस के पास इस बात का भी कोई उचित आधार नहीं था कि गिरफ़्तार किए गए लोग फरार हो जाएंगे या फिर सबूतों के साथ छेड़छाड़ करेंगे। इस तथ्य का आधार यहा है कि कुछ मामलों में, दंगा-संबंधी एफआईआर में लॉकडाउन से पहले गिरफ़्तार किए गए व्यक्तियों को जमानत दे दी गई थी।” अधिवक्ता निकिता खेतान, मेनका खन्ना, तारा नरूला और सोवांजन शंकरन ने इस बारे में लिखा है।

जमात उलमा-ए-हिंद (JUH), एक मुस्लिम संगठन है जिसने पुलिस के ख़िलाफ़ भी उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, उसने पुलिस पर "पक्षपातपूर्ण", "भेदभावपूर्ण" और "सांप्रदायिक" होने का आरोप लगाया है।

“एक क़ानून लागू करने वाले अधिकारी के रूप में पुलिस अधिकारी की भूमिका मानव जाति की सेवा करना, उनके जीवन और संपत्ति की रक्षा करना, निर्दोषों पर हिंसा और अव्यवस्था से रक्षा करना और जाति और पंथ के भेद के बिना सभी के संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित करना तथा शांति बनाए रखना है। लेकिन दुर्भाग्य से, पुलिस ने अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ अमानवीय व्यवहार दिखाया है, जो कि खुद दंगा पीड़ित हैं। विशेष रूप से दिल्ली के मामले में, गिरफ़्तारी का तरीका निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं है।” उक्त बातें जमात उलमा-ए-हिंद ने न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की एक पीठ को बताया, जिस पीठ ने शहर की पुलिस को निर्देश दिया है कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, 1997 के मामले में निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करें।

दिल्ली पुलिस का कहना है कि 'गलत प्रचार उन्हें रोक नहीं पाएगा।'

दिल्ली पुलिस ने 20 अप्रैल को ट्विटर पर एक बयान जारी किया: और कहा कि “जामिया और उत्तर-पूर्व दिल्ली में दंगों के मामलों की जांच करते हुए, दिल्ली पुलिस ने अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से किया है। की गई सभी गिरफ़्तारियां वैज्ञानिक और फोरेंसिक सबूतों के विश्लेषण पर आधारित हैं, जिसमें वीडियो फुटेज, तकनीकी और अन्य सबूत शामिल हैं।

दिल्ली पुलिस ने आगे बयान में कहा, “क़ानून के शासन को कायम रखने और मासूमों को न्याय दिलाने, और उत्तर-पूर्व दिल्ली में दंगाईयों, दंगा करने के लिए उकसाने वालों को सज़ा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। पुलिस को उन निहित स्वार्थों, ग़लत झूठे प्रचार और अफ़वाहों से नहीं डिगाया जा सकता है जो तथ्यों को अपनी सुविधा के हिसाब से मोड़ने की कोशिश करते हैं। हम अपने आदर्श उद्देश्यों- शांति, सेवा और न्याय को पाने के लिए अथक परिश्रम करते रहेंगे। जय हिंद।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

Activists Slam ‘Communal’ Probe even as Delhi Police Continues Arrests of Anti-CAA Protestors

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