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अफ़गानिस्तान: ‘ग्रेट गेम’  खेलने की सनक में अमेरिका ने एक देश को तबाह कर दिया
कुछ दशक पहले अफ़गानिस्तान की अवाम ने अपनी आज़ादी ली थी, लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन और उनके सहयोगी देशों की महत्वाकांक्षाओं ने उसे तबाह कर दिया
जॉन पिलगर
29 Aug 2021
अफ़गानिस्तान: ‘ग्रेट गेम’  खेलने की सनक में अमेरिका ने एक देश को तबाह कर दिया

आज जब अफ़गानिस्तान पर पश्चिम के राजनेताओं द्वारा जो मगरमच्छ के आंसू बहाए जा रहे हैं, उनका प्रचार इतना है कि इसके नीचे असली इतिहास दबा ही रह जा रहा है। एक पीढ़ी से कुछ वक़्त पहले अफ़गानिस्तान ने अपनी आज़ादी ली थी, जिसे अमेरिका, ब्रिटेन और उनके सहयोगी देशों ने तबाह कर दिया।

1978 में एक आज़ादी के आंदोलन में पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ अफ़गानिस्तान (PDPA) ने मोहम्मद दाऊद की तानाशाही को उखाड़ फेंका था। यह बहुत लोकप्रिय क्रांति थी, जिससे ब्रिटेन और अमेरिका भौंचक्के रह गए थे। 

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक़, काबुल में रहने वाले विदेशी पत्रकार यह देखकर "हैरान थे कि हर अफ़गानी, जिसका उन्होंने इंटरव्यू किया, वो इस तख़्तापलट से खुश था।" वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा, "1,50,000 लोग नए झंडे का सम्मान करने पहुंचे… कार्यक्रम में भागीदार लोग भीतर से उत्साह से भरे दिख रहे थे।"

वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा, "सरकार के प्रति अफ़गान वफ़ादारी पर मोटा-मोटी सवाल उठाए जा सकते हैं।" पंथनिरपेक्ष, आधुनिकतावादी और बड़े हद तक समाजवादी सरकार ने दूरदृष्टियुक्त सुधारों की घोषणा की, जिसमें महिलाओं और अल्पसंख्यकों को समानता के अधिकार दिए गए थे। राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया और पुलिस फाइलों को सार्वजनिक ढंग से जलाया गया।

राजशाही के अंतर्गत औसत अफ़गानी की उम्र 35 साल थी, तीन में से हर एक बच्चा शैशव काल में मर जाता था। 90 फ़ीसदी आबादी साक्षर ही नहीं थी। नई सरकार मुफ़्त में स्वास्थ्य सुविधा लेकर आई और बड़े स्तर पर एक साक्षरता कार्यक्रम भी चलाया गया। 

महिलाओं को यहां अभूतपूर्व अधिकार मिले। 1980 के आखिर तक यूनिवर्सिटी के आधे छात्रों में महिलाएं हो चुकी थीं, अफ़गानिस्तान के कुल डॉक्टरों में 40 फ़ीसदी, कुल शिक्षकों में 70 फ़ीसदी और कुल सरकारी नौकरों में 30 फ़ीसदी महिलाओं की भागेदारी थी। 

यह बदलाव इतने क्रांतिकारी थे कि इनका फायदा मिलने वालों को आज भी यह याद हैं। सायरा नूरानी एक महिला सर्जन हैं, जो 2001 में अफ़गानिस्तान से भाग गई थीं, वह कहती हैं “हर लड़की हाई स्कूल और यूनिवर्सिटी जा सकती थी। हम जहां चाहते थे, वहां जा सकते थे, जो चाहते थे, वो पहन सकते थे.... हम कैफे जाते, हर शुक्रवार को नई हिंदी फिल्में देखने सिनेमा जाते....जब मुजाहिद्दीनों ने जीतना शुरू किया, तभी सारी चीजें गड़बड़ होना शुरू हो गईं। यह वह लोग थे, जिन्हें पश्चिम समर्थन दे रहा था।”

अमेरिका को इस बात से दिक्कत थी कि PDPA सरकार का समर्थन सोवियत रूस कर रहा था। लेकिन इसके बावजूद अफ़गानिस्तान की सरकार कभी कठपुतली सरकार नहीं रही, ना ही वहां राजशाही के खिलाफ़ हुई क्रांति को सोवियत समर्थन हासिल था। जबकि अमेरिकी और ब्रिटिश प्रेस यही दावा करते रहे हैं।

राष्ट्रपति जिमी कार्टर के गृह सचिव सायरस वेंस ने अपने संस्मरण में लिखा, "हमें तख़्तापलट में सोवियत संघ के हाथ के कोई सबूत नहीं मिले।"

उसी प्रशासन में कार्टर के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बिगिनिएव ब्रजेजिंस्की थे। वह पोलैंड से आए प्रवासी थे और पागलपन की हद तक कम्यूनिस्ट विरोधी और नैतिक अतिवादी थे। उनका अमेरिकी राष्ट्रपतियों पर प्रभाव 2017 में उनकी मृत्यु तक जारी रहा। 

3 जुलाई 1979 को अमेरिकी लोगों और कांग्रेस को बिना बताए, कार्टर ने अफ़गानिस्तान की पहली पंथनिरपेक्ष, प्रगतिशील सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए चलाए जाने वाले गुप्त ऑपरेशन के लिए 500 मिलियन डॉलर का आवंटन कर दिया।

इस पैसे का इस्तेमाल जनजातीय और धार्मिक उग्रपंथी मुजाहिदीनों को खरीदने, उन्हें रिश्वत देने और हथियारबंद करने के लिए किया गया। अपने अर्द्ध सरकारी इतिहास में वाशिंगटन पोस्ट के रिपोर्टर बॉब वुडवार्ड ने लिखा है कि CIA ने 70 मिलियन डॉलर सिर्फ़ रिश्वत देने पर ही ख़र्च कर दिए। उन्होंने एक सीआईए एजेंट "गैरी" और अफ़गान जंगी सरदार एमनियात मेल्ली की मुलाकात का वर्णन किया है: "गैरी ने मेज पर नग़दी का एक बंडल रखा, 100 डॉलर के नोटों में 5 लाख डॉलर इस बंडल में मौजूद थे। उसे लगा कि आमतौर पर दी जा रही 2 लाख डॉलर से ज़्यादा की रकम देना ज़्यादा प्रभावशाली रहेगा, जिसका मतलब होगा, हम यहां हैं, हम गंभीर हैं।  हम जानते हैं कि तुम्हें इसकी जरूरत है। गैरी जल्द ही सीआईए मुख्यालय से 10 मिलियन डॉलर नगदी की मांग करते हैं, जो उन्हें जल्द मिल जाती है।"

दुनियाभर की मुस्लिम दुनिया से भर्ती किए गए नौजवानों वाली अमेरिका की इस गुप्त सेना को पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी, सीआईए और ब्रिटेन की एमआई-6 द्वारा पाकिस्तान में प्रशिक्षण दिया गया। दूसरे लोगों को ब्रुकलिन, न्यूयॉर्क के इस्लामिक कॉलेज से भर्ती किया गया था। यह कॉलेज ट्विन टॉवर्स के पास ही स्थित था, जिन्हें 2001 में अल-कायदा ने गिरा दिया था। इसी तरह एक नौजवान को भर्ती किया गया था, जिसका नाम ओसामा बिन लादेन था। 

यहां मध्य एशिया में इस्लामिक कट्टरता फैलाने और सोवियत संघ को अस्थिर करने का लक्ष्य था। अगस्त, 1979 में काबुल में अमेरिकी दूतावास ने कहा, "अमेरिका के व्यापक हित....PDPA की सरकार गिरने से पूरे होंगे, भले ही अफ़गानिस्तान में भविष्य के सामाजिक और आर्थिक सुधारों के लिए इसका कोई भी नतीज़ा हो।"

ऊपर के शब्दों को दोबारा पढ़िए। ऐसा बहुत कम होता है, जब इस तरह के नकारात्मक लक्ष्य को इतने खुले ढंग से कहा गया हो। अमेरिका यहां कह रहा है कि एक प्रगतिशील अफ़गान सरकार और अफ़गान महिलाओं के अधिकार भाड़ में जा सकते हैं।

6 महीने बाद, अमेरिका द्वारा पैदा किए गए जिहादियों के जवाब में सोवियत ने पहला आत्मघाती कदम उठाया। CIA द्वारा उपलब्ध कराई गई स्टिंगर मिसाइल के ज़रिए मुजाहिदीनों ने रेड आर्मी को अफ़गानिस्तान से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया। 

अपने आप को नदर्न अलायंस (उत्तरी गठबंधन) कहने वाले मुजाहिदीनों में उन जंगी सरदारों का प्रभुत्व था, जो हेरोइन व्यापार पर नियंत्रण रखते थे और ग्रामीण महिलाओं को आतंकित करते थे। तालिबान एक अति-शुद्धिकरणवादी धड़ा था, जिसके मुल्ला काले कपड़े पहनते थे, जो डकैती, रेप और हत्या के लिए सजा देते थे, लेकिन उन्होंने महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से गायब कर दिया। 

1980 में मैंने अफ़गानिस्तान में महिलाओं के संगठन RAWA (रेवोल्यूशनरी एसोसिएशन ऑफ द वीमेन ऑफ़ अफ़गानिस्तान) से संपर्क किया, जो दुनिया को अफ़गान महिलाओं के दुखों पर चेतावनी देने की कोशिश कर रहा था। तालिबान के दौर में इन्होंने बुरका के पीछे कैमरा रखकर अत्याचारों के सबूत इकट्ठे किए, साथ ही पश्चिम समर्थित मुजाहिदीनों की क्रूरता को भी बेनकाब किया। RAWA की मरीना ने मुझे बताया था, "हमने वीडियोटेप को सभी मुख्य मीडिया समूहों तक पहुंचाया। लेकिन वह यह जानना नहीं चाहते थे...."

1992 में PDPA सरकार को तहस-नहस कर दिया गया। राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह मदद मांगने के लिए संयुक्त राष्ट्र गए। लेकिन वापसी के बाद उन्हें एक स्ट्रीटलाइट से लटका दिया गया। 

1898 में लॉर्ड कर्जन ने कहा था, "मैं मानता हूं कि अलग-अलग देश शतरंज के बोर्ड पर हैं। जहां दुनिया में प्रभुत्व के लिए एक बड़ा खेल खेला जा रहा है।" यहां भारत के वायसराय अफ़गानिस्तान का जिक्र कर रहे थे। एक शताब्दी बाद प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने थोड़े से अलग शब्दों का उपयोग किया। 9/11 के हमले के बाद उन्होंने कहा, "यह कब्जा करने का वक़्त है। केलिडोस्कोप बुरे तरीके से हिल चुका है। अभी टुकड़े टूट हुए हैं। लेकिन जल्द ही वे अपनी जगह ले लेंगे। उनके अपनी जगह लेने से पहले, हमें इस दुनिया का पुनर्गठन अपने आसपास करना है।"

अफ़गानिस्तान पर उन्होंने कहा, "हम मुंह नहीं मोड़ेंगे, लेकिन तुम्हारे इस दयनीय अस्तित्व, जो तुम्हारी गरीब़ी है, उससे बाहर निकलने का कोई रास्ता खोजेंगे।"

ब्लेयर ने अपने मार्गदर्शक अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के विचारों को दोहराया, जिन्होंने बम धमाकों के पीड़ितों से ओवल ऑफिस से बात करते हुए कहा था, "अफ़गानिस्तान के दमित लोग अमेरिका की उदारता से परिचय पाएंगे.....जब हम सैन्य क्षेत्रों को निशाना बना रहे हैं, तब हम खाना, दवाइयां और आपूर्ति भी भूखे और दुख में रह रहे लोगों के लिए गिरा रहे हैं....."

यहां लगभग हर शब्द झूठा था। चिंता की घोषणा, साम्राज्यवादी वहशियत का क्रूर उदाहरण था। 2001 में अफ़गानिस्तान कठिन स्थिति में था और पाकिस्तान की दिशा से आने वाले आपात राहत काफ़िलों पर निर्भर था। एक पत्रकार के तौर पर जोनाथन स्टीले ने बताया कि इस हमले से करीब़ 20,000 लोगों की अप्रत्यक्ष मौत हुई है, क्योंकि सूखे के पीड़ित के लिए आने वाली रसद रोक दी गई और लोग अपने घरों से भाग गए।  

18 महीने बाद मैंने काबुल में कचरे के ढेर में एक जिंदा अमेरिकी क्लस्टर बम पाया, जिसे आसमान के रास्ते गिराया गया पीला राहत पैकेज मान लिया गया था। यह बम खाना खोजने वाले भूखे बच्चों को निशाना बनाते थे। 

बीबी मारू नाम के गांव में मैंने ओरिफ़ा नाम की एक महिला को उसके पति गुल अहमद, उसके परिवार के सात दूसरे लोगों (जिनमें 6 बच्चे थे) की कब्र के पास खड़े देखा। वहां उसके पड़ोस में रहने वाले दो बच्चों की भी कब्र थीं।

एक अमेरिकी एफ-16 विमान साफ़ आसमान से निकला और उसने एमके 82,500 पाउंड का बम ओरिफा के मिट्टी, पत्थर और झाड़-फूंस से बने घर पर गिरा दिया। ओरिफा उस दौरान घर पर नहीं थी। जब वह लौटी, तो उसे सिर्फ़ अपने परिवार वालों की लाशों के टुकड़े मिले। 

कई महीनों बाद काबुल से कुछ अमेरिकियों का समूह उसके घर आया और उसे 15 नोटों वाला एक लिफाफा दिया, जिसमें कुल 15 डॉलर मौजूद थे। वह कहती हैं मेरे परिवार के मारे गए हर सदस्य के लिए 2 डॉलर।

अफ़गानिस्तान पर हमला एक फर्जीवाड़ा था। 9/11 की पृष्ठभूमि में तालिबान ने खुद को ओसामा बिन लादेन से अलग कर लिया था। कई मायनों में तालिबान खुद अमेरिकी ग्राहक था, जिसने बिल क्लिंटन के प्रशासन में एक अमेरिकी ऑयल कंपनी कंसोर्टियम को 3 बिलियन डॉलर की प्राकृतिक गैस पाइपलाइन बनाने की अनुमति दी थी। इसके लिए क्लिंटन प्रशासन के साथ गुप्त समझौता किया गया था। 

बहुत गुप्त तरीके से तालिबानी नेताओं को अमेरिका बुलाया गया और यूनोकाल कंपनी के सीईओ के टेक्सास स्थित मेंशन और सीआईए द्वारा वर्जीनिया के अपने मुख्यालय में उनके साथ बैठक की गई। यहां समझौता करवाने वाले एक शख़्स डिक चेनी थे, जो बाद में जॉर्ज बुश के उपराष्ट्रपति बने। 

मैं 2010 में वाशिंगटन में था। मैंने वहां अफ़गानिस्तान की आधुनिक काल की दिक्कतों के लिए जिम्मेदार, बिजनिएव ब्रजेजिंस्की के इंटरव्यू की व्यवस्था की। मैंने उनसे वहां उनकी आत्मकथा की एक बात का भी जिक्र किया। दरअसल ब्रजेजिंस्की ने कहा था कि सोवियत को अफ़गानिस्तान से भगाने की उनकी बड़ी योजना से "कुछ उद्वेलित मुस्लिम" पैदा हो गए हैं।

“मैंने उनसे पूछा कि क्या आपको कोई पछतावा है?

"पछतावा! पछतावा! क्या पछतावा?"

अब जब हम काबुल के मुख्य एयरपोर्ट पर मची भगदड़ को देखते हैं, टीवी स्टूडियो में बैठे जनरल और पत्रकारों को सुनते हैं जो "हमारी सुरक्षा" को हटाने पर बहस कर रहे होते हैं, क्या अब सही वक़्त नहीं है कि अतीत के सच पर ध्यान दिया जाए, ताकि यह दर्द दोबारा ना झेलना पड़ा?

जॉन पिलगेर पुरस्कार विजेता पत्रकार, फिल्म निर्माता और लेखक हैं। उनकी पूरी आत्मकथा आप उनकी वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं और उन्हें ट्विटर पर @JohnPilger पर फॉलो कर सकते हैं। यह लेख ग्लोबट्रोटर ने प्रोड्यूस किया था।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:-

Afghanistan: US Wrecks Another Country Thinking it’s Playing the ‘Great Game’

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