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ब्रेक्जिट के बाद कोरोना वायरस से यूरोपीय संघ का ढांचा चरमराया
केवल यूरोप नहीं बल्कि यूरोप के सभी देशों का कोरोना वायरस पर आकलन कीजिये। आपको पता लगा जाएगा कि यूरोप कितना कमजोर हो चूका है।  
राकेश सिंह
06 Apr 2020
कोरोना वायरस
Image courtesy: TwitterNew York Post

कोरोनावायरस के पुष्ट मामलों की संख्या 10,000 से अधिक होने के बाद इटली ने अपनी सीमाओं को बंद करने का फैसला 10 मार्च को लिया। अगले पांच दिनों में स्लोवाकिया,  चेक गणराज्य, पोलैंड और हंगरी ने एक के बाद एक अपनी सीमाओं को बंद कर दिया। हालांकि उस समय तक उनमें से किसी में भी पुष्ट कोविड-19 मामलों की संख्या 100 तक नहीं पहुंची थी। स्वाभाविक रूप से इन देशों के नेता अपने क्षेत्रों में इटली जैसा भयानक परिदृश्य पैदा होने से बचने के लिए जल्दी से कार्य करना चाहते थे। हालांकि इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि लोगों की आवाजाही की स्वतंत्रता को सीमित करने के ये निर्णय डॉक्टरों द्वारा नहीं राजनेताओं द्वारा किए गए थे।

मूल रूप से यूरोपीय कामकाजी आबादी को यूरोपीय संघ के किसी भी राज्य में स्वतंत्र रूप से यात्रा करने और बसने में सक्षम बनाने की सोच एक समय बहुत मजबूत थी। संघ के भीतर सीमा नियंत्रण को समाप्त करने के लिये 1985 में पहली बार एक सहमति बनी। जब सरकारों के बीच शेंगेन (लक्समबर्ग में एक छोटा सा गाँव) में सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। सामान्य सीमाओं पर जांच को क्रमिक रूप से खत्म करने पर हुए समझौते के बाद शेंगेन कन्वेंशन पर 1990 में हस्ताक्षर के बाद, शेंगेन एग्रीमेंट का कार्यान्वयन 1995 में शुरू हुआ। जिसमें शुरू में यूरोपीय संघ के सात राज्य शामिल थे।

एक अंतर-सरकारी पहल के रूप में जन्में शेंगेन एग्रीमेंट को अब ईयू द्वारा नियंत्रित होने वाले नियमों के निकाय में शामिल किया गया है। आज शेंगेन क्षेत्र में बुल्गारिया, क्रोएशिया, साइप्रस, आयरलैंड और रोमानिया को छोड़कर अधिकांश यूरोपीय संघ के सदस्य राज्य शामिल हैं। हालांकि बुल्गारिया, क्रोएशिया और रोमानिया वर्तमान में शेंगेन क्षेत्र में शामिल होने की प्रक्रिया में हैं। गैर-ईयू राज्यों में आइसलैंड, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड शेंगेन क्षेत्र में शामिल हो गए हैं।

जिस क्रम में मध्य और पूर्वी यूरोप के देशों में शेंगेन प्रावधानों को निलंबित किया गया, वह इस क्षेत्र के समाजों के बारे में और शायद यूरोपीय संघ के बारे में भी कुछ महत्वपूर्ण संकेत करता है। सबसे पहले इसका एक सामूहिक मनोवैज्ञानिक आयाम है। यहां सीमाओं को बंद करने का सवाल केवल भूगोल या इतिहास से जुड़ा नहीं है, यह अस्तित्व से जुड़ा है।

पूर्वी यूरोप के जिन देशों में साम्यवादी शासन का अंत 90 के दशक में हुआ था, वे दशकों से पश्चिमी यूरोप के साथ जुड़ने की मांग करते रहे थे। केवल आंशिक रूप से ही इसके कारण आर्थिक थे। 1989 में बर्लिन की दीवार गिरने की सभी यादगार तस्वीरों में पूर्वी जर्मनों की भीड़ को देखा जा सकता है। जो मानती थी कि वे सचमुच इतिहास के एक दुष्चक्र से निकल रहे हैं। पोलैंड, हंगेरी, चेक और कई अन्य राष्ट्रों ने ऐसा ही महसूस किया।

साम्यवाद के पतन के बाद नाटो या यूरोपीय संघ जैसे संगठनों में शामिल होने की उनकी इच्छा इसलिये प्रबल थी क्योंकि पश्चिम को संस्थागत स्थिरता और व्यक्तिगत सुरक्षा का गारंटर माना जाता था। विशेष रूप से शेंगेन जोन में शामिल होने को भू-राजनीतिक खतरे के क्षेत्र से अंतत: बाहर निकलने के रास्ते के रूप में देखा गया। ऐसे देशों को 2020 में अपनी सीमाओं को बंद करने के लिए सैद्धांतिक रूप से सबसे पहला नहीं बल्कि अंतिम देश होना चाहिए था।

यूरोप से फिर जुड़ने से इन देशों में एक तरफ आधुनिकीकरण और समृद्धि तो जरूर आई लेकिन उसकी एक गंभीर कीमत चुकानी पड़ी। शेंगेन का एक परिणाम बेहतर शिक्षित कार्यबल का सामूहिक उत्प्रवास रहा है। डॉक्टरों के ब्रेन ड्रेन ने इन देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों के सामने कई नाटकीय चुनौतियां बढ़ाने में योगदान दिया है। महामारी से बहुत पहले हंगरी ने युवा डॉक्टरों के लिए विशेष अनुबंधों पर विचार किया था ताकि उन्हें बड़ी संख्या में पलायन करने से रोका जा सके।

पोलैंड में आधिकारिक ओईसीडी और यूरोस्टेट आंकड़ों के अनुसार, प्रति 1,000 निवासियों पर डॉक्टरों की संख्या केवल 2.4 है। जब ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से डॉक्टरों की अपनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) में नई भर्ती की घोषणा की तो पोलैंड में साफ समझा गया कि ब्रिटेन का लक्ष्य फ्रांस या जर्मनी के डॉक्टर नहीं बल्कि उसके पूर्व के देशों के डॉक्टर हैं। सीमाओं को बंद करने की बात वास्तव में मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों की फिजाओं में काफी समय से महसूस की जा रही है और कोविड-19 का आगमन सिर्फ एक उत्प्रेरक है।

कोरोना महामारी के कारण मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों में सीमाओं के बंद होने से व्यापक राहत महसूस की जा रही है। यह केवल एक क्षणिक अहसास हो सकता है। हालांकि यह दूसरा रूख भी अख्तियार कर सकता है। विशेष रूप से मध्य और पूर्वी यूरोप में असाधारण शक्तियां राजनेताओं के लिए बड़े प्रलोभन का स्रोत हैं।

कुछ सदस्य राज्यों द्वारा कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने के लिए अपनी सीमाओं को बंद करने के फैसले की अस्थायी कठोरता को यूरोपीय संघ कुछ हद तक तो झेल सकता है। लेकिन अगर यह नुकसान अनिश्चित काल तक जारी रहा तो यह यूरोपीय संघ को कमजोर करेगा। महामारी के दौरान राष्ट्रीय सीमाओं को बंद करना एक तर्कसंगत स्वास्थ्य से संबंधित प्रतिक्रिया हो सकती है, लेकिन इसके लंबे समय तक जारी रहने से राजनीतिक परिणाम और अधिक परेशान करने वाले हो सकते हैं। खासकर जब कई यूरोपीय सरकारें अपनी सीमाओं को फिर से कड़ाई से लागू करने लगी हैं।

यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष के पश्चिमी बाल्कन में जरूरी चिकित्सा सामानों पर अभूतपूर्व निर्यात प्रतिबंध ने बाल्कन राज्यों की नाराजगी बढ़ा दी है। जबकि आधिकारिक तौर पर पद संभालने के दो महीने पहले सितंबर 2019 में यूरोपीय आयोग की नई अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन जोर दे रही थीं कि यूरोपीय संघ "बहुपक्षवाद का संरक्षक" बने। इसके ठीक बाद लंबी जद्दोजहद के पश्चात ब्रेग्जिट संपन्न हुआ और ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर निकल गया।  

चिकित्सा उपकरणों के निर्यात पर यूरोपीय संघ का व्यापक प्रतिबंध पश्चिमी बाल्कन देशों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। जो यूरोपीय संघ पर बहुत अधिक निर्भर हैं। सर्बियाई राष्ट्रपति अलेक्जेंडर वुआइकुक ने यूरोपीय संघ के इस फैसले की निंदा करते हुए कहा कि ब्रसेल्स ने कई लोगों को आश्चर्यचकित किया है। यूरोपीय एकजुटता वास्तव में मौजूद नहीं है, जो एक कागजी कहानी थी।

यूरोपीय संघ (तब जिसे यूरोपीय आर्थिक समुदाय कहा जाता है) की स्थापना 1957 की संधि  से अपने सदस्य राज्यों के बीच चीजों, लोगों, सेवाओं और पैसे की आवाजाही की स्वतंत्रता देने के लिये की गई थी। ये चार स्वतंत्रताएं न केवल आर्थिक शक्ति बढ़ाने वाली थीं, बल्कि एक स्थायी शांति की नींव भी बनाती थीं।

यूरोपीय संघ के संस्थापक यूरोप की राजनीति को बदलना चाहते थे। साझा संस्थान और आपसी सहयोग मिलकर भू-राजनीतिक संघर्ष की जगह ले रहे थे। वैश्वीकरण की वर्तमान लहर शुरू होने से पहले ही यूरोपीय संघ एक छोटे स्तर पर वैश्वीकरण का निर्माण कर रहा था। 1980 और 1990 के दशक के आरंभ में यूरोपीय आयोग ने व्यापार और विनिमय के लिए मौजूदा बाधाओं को दूर करने के उद्देश्य से एक अत्यधिक महत्वाकांक्षी "एकल बाजार" कार्यक्रम लागू किया।

जब 1990 के दशक में जब वैश्वीकरण वास्तविक धरातल उतरना शुरू हुआ तो यूरोपीय संघ इसे आकार देने में मदद करने के लिए तैयार था। उसे समझ में आ गया था कि बाजार की प्रतिस्पर्धा में बाधाओं को कैसे कम किया जाए। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के संस्थापक महानिदेशक पीटर सदरलैंड एकल बाजार कार्यक्रम के चरम पर यूरोप के प्रतियोगिता आयुक्त थे। कुछ मायनों में अमेरिका की तुलना में यूरोपीय संघ वैश्वीकरण के साथ अधिक सहज था। आखिरकार यह इस विश्वास पर स्थापित किया गया था कि खुले वाणिज्य और साझा संस्थान, शक्ति की पैंतरेबाजी की तुलना में शांति की बेहतर गारंटी थे।

बहरहाल अंतर्राष्ट्रीय बाजार एकीकरण अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय लोकतंत्र की शक्तियों को सीमित करता है और मतदाता इसे हमेशा पसंद नहीं करते हैं। जब यूरोपीय संघ के नेताओं ने 2005 में एक नया संविधान लाने की कोशिश की तो फ्रांसीसी और डच मतदाताओं ने इसे खारिज कर दिया। बाद में इससे कुछ हद तक कम महत्वाकांक्षी दस्तावेज लिस्बन की संधि को 2008 में आयरिश मतदाताओं ने अस्वीकार कर दिया था। बाद में यह तब पारित हुआ जब 2009 में फिर से मतदान कराया गया।

2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने सीमाओं के पार आसान वित्तीय प्रवाह की समस्याओं को दिखाया। यूरोपीय संघ वित्तीय विनियमन के मामले में विशेष रूप से कमजोर था। जिसका साफ नतीजा हुआ कि बैंक अपने सबसे जोखिम भरे और सट्टा कर्ज को बिना किसी कठिनाई के ब्रिटेन और आयरलैंड जैसे देशों में स्थानांतरित कर सकते थे।

ग्रीस में 2009 में पैदा ऋण संकट के कारण यूरोपीय संघ पर एक बड़ा संकट आया। जैसे-जैसे ग्रीक ऋण संकट बढ़ता गया, सत्ता की राजनीति और जर्मनी के स्वार्थ ने यूरोप के भीतर फिर से प्रवेश किया। दूसरे लोगों के बिलों का भुगतान करने की कीमत पर जर्मन करदाता अब आगे यूरोपीय एकीकरण का समर्थन करने के लिए तैयार नहीं थे। यूरोपीय संघ ने उसके लिये कुछ कड़े आर्थिक सुधारों की शर्त पर बेलआऊट पैकेज दिया। सार्वजनिक खर्च में कटौती के कारण ग्रीस की जनता में बड़ा असंतोष फैला।
   
कोविड -19 का प्रभाव निश्चित रूप से तात्कालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से आगे बढ़ेगा। विशेषज्ञ कोविड-19 के प्रभाव को 2008 के वित्तीय संकट से बदतर होने का अनुमान लगा रहे हैं। कोरोनावायरस महामारी का घातक असर ईयू को एक असहाय संगठन में बदल सकता है। यूरोपीय संघ के विशेषज्ञों ने यूरोपीय एकीकरण का वर्णन करने के लिए "साइकिल सिद्धांत" का इस्तेमाल किया है। उनका दावा है कि साइकिल की तरह यूरोपीय एकीकरण को आगे बढ़ना चाहिए या यह गिर जाएगा।

इसलिए विश्व स्तर पर एक बड़ी भूमिका निभाने की यूरोपीय संघ की महत्वाकांक्षाओं के बावजूद सवाल उठता है कि क्या यूरोपीय संघ आंतरिक संकटों का सामना करने और अपने पड़ोसियों की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम होगा? इस तरह के संकट में फंसे पूरे यूरोपीय क्षेत्र में स्थिति को क्या वह स्थिर कर सकता है? या वह आंतरिक समस्याओं और राष्ट्रीय एजेंडों के आगे विवश हो जाएगा। जिसके बाद बने खालीपन को भरने के लिये कुछ नये खिलाड़ी इलाके में पांव पसारेंगे।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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