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कोविड-19 लॉकडाउन : गुजरात में प्रवासी मज़दूरों पर दर्ज मामले ‘मानव अधिकारों का उल्लंघन हैं’
अहमदाबाद में गिरफ़्तार किए गए 35 मज़दूर भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) के नए परिसर के निर्माण कार्य में लगे थे।
पार्थ एमएन
24 Jun 2020
Translated by महेश कुमार
कोविड-19 लॉकडाउन
image courtesy : The Hindu

18 मई को, गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में 35 प्रवासी श्रमिकों को कथित तौर पर दंगा, पथराव और बर्बरता का तांडव करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। करीब 100 प्रवासी मज़दूर लॉकडाउन में घर वापस भेजने के इंतजाम की मांग करते हुए पुलिस से भिड़ गए थे। उनमें से पैंतीस मज़दूरों को महामारी रोग अधिनियम और आपदा प्रबंधन अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए हिरासत में ले लिया गया था। एक महीने की जेल काटने के बाद, अंतत उन्हें 23 जून को जमानत मिली।

गिरफ्तार करने के बाद, उनमें से 33 को साबरमती सेंट्रल जेल में भेज दिया गया था। अन्य दो को  करीब दो सप्ताह तक संगरोध सुविधा में रखा गया था क्योंकि वे नोवेल कोरोनावायरस की जांच में पॉज़िटिव पार गए थे।  ठीक होने के बाद, उन्हें भी 1 जून को जेल में डाल दिया गया था।

जमानती आदेश ने इस बात को नोट किया कि प्रवासी श्रमिक "पीड़ित अधिक हैं और निश्चित रूप से अपराधी नहीं हैं"। उन्होंने कहा, "लॉकडाउन में, जब आवेदक बिना काम के थे, बिना किसी पैसे के थे और यहां तक कि बिना किसी भोजन के रह रहे थे और ऐसी परिस्थितियों में, उन्हे उनके घर वापस जाने की व्यवस्था करने के बजाय, उन्हें जेल भेज डाल दिया जाता है," आदेश में कहा गया कि "उन्हें हिरासत में रहने की जरूरत नहीं है।" बिना किसी शर्त के, उन्हे व्यक्तिगत बांड के एवज़ में तुरंत रिहा किया जाए।”

9 जून को, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को "आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 के तहत अभियोजन/ शिकायतों की वापसी पर विचार करने को कहा और प्रवासी मज़दूरों के खिलाफ दर्ज अन्य संबंधित अपराधों पर पुन: विचार करने के लिए कहा, जिन पर लॉकडाउन के उपायों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था"।

हालाँकि, गुजरात सरकार ने मामलों को वापस नहीं लिया है, और यह कुछ ऐसी बात है जिससे श्रमिकों को निकट भविष्य में जूझना पड़ेगा। उनके लिए जमानत हासिल करने वाले वकील नीरव मिश्रा ने कहा कि श्रमिकों को उनके गृह राज्य में वापस जाने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन मुकदमा शुरू होने पर उन्हें अहमदाबाद में मौजूद रहना होगा। "यह तब तो ठीक है अगर वे काम के लिए वापस अहमदाबाद आते हैं," उन्होंने कहा। “लेकिन तब क्या होगा जब उन्हे काम के लिए मुंबई जाना पड़े? या क्या होगा अगर वे अपने गांव में रहने का फैसला कर लेते हैं? ये ऐसा वैधानिक तकनीकी मामला हैं, जिसे राज्य द्वारा मुकदमों को वापस नहीं लेने पर बहुत सारी समस्याओं का सामना करना होगा।”

मनोज के छोटे भाई 28 वर्षीय अरविंद ठाकुर, जो कि 35 वर्ष के हैं, ने कहा कि प्रवासी श्रमिक 18 मई को सड़कों पर उतरे गए थे क्योंकि वे अपने घर जाने के लिए बेताब हो रहे थे, लेकिन उन्हे इसकी अनुमति नहीं दी जा रही थी। उन्होंने कहा, ''कंपनी ने उनके झारखंड वापस जाने के लिए किसी भी तरह के परिवहन की व्यवस्था नहीं की थी।'' “लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से उन्हे कोई वेतन भी नहीं दिया गया था। मेरे भाई ने एक महीना जेल में बिताया है। हमारे माता-पिता, उनकी पत्नी, हम सभी चिंतित हैं।”

भारत के अधिकांश प्रवासी मज़दूरों की तरह, मनोज पूरी तरह से मज़दूरी पर निर्भर है क्योंकि उसके पास जोतने के लिए कोई खेत नहीं हैं। अरविंद ने कहा कि, "हम हमेशा से सड़क पर रहे हैं और शहरों में काम करते हैं।" “हम प्रति माह 10,000-12,000 रुपए कमाते हैं। हम इसमें से कुछ पैसा अपने लिए रखते हैं, और कुछ घर भेज देते हैं।”

मनोज और अरविंद दोनों अहमदाबाद में मज़दूरों के रूप में काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद  अरविंद सौभाग्य से घर लौट गया। "एक आपात स्थिति थी," अरविंद ने कहा, इस बात का खुलासा नहीं किया उसे वापस क्यों जाना पड़ा। “मैं घर वापस चला गया जबकि मनोज यहाँ काम करता रहा। फिर लॉकडाउन हो गया और वह फंस गया। हम साल के एक बड़े हिस्से में काम करने की वजह से अपने परिवारों से दूर रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान कोई काम नहीं था और खाने के लिए बहुत कम था, इसलिए वह वापस जाना चाहता था और अपने परिवार को देखना चाहता था।”

अरविंद सोचता है कि उसका भाई काम और अदालत के बीच कैसे तालमेल बैठा पाएगा। "हम देखेंगे," उन्होंने कहा। "अभी, मुझे इस बात की खुशी है कि वह जेल से बाहर है।"

24 मार्च को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। इससे लाखों प्रवासी कामगार, दिहाड़ी मज़दूर बेरोजगार हो गए थे। सार्वजनिक परिवहन के नहीं चलने से, वे कई हफ्तों तक अपने परिवार के पास वापस नहीं जा सकते थे। लॉकडाउन के बाद, कई उदाहरण ऐसे देखे गए जिनमें गुस्साए, असहाय श्रमिकों ने सड़कों पर उतर कर अपनी घर वापसी की मांग को लेकर आंदोलन किया। 18 मई को अहमदाबाद में हुआ यह प्रदर्शन मालिक और सरकारों के खिलाफ इस तरह के विस्फोटों में से एक था।

गिरफ्तार किए गए 35 मज़दूर अहमदाबाद के भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM-A) के नए परिसर के निर्माण में लगे थे। भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM-A) ने परिसर के निर्माण के लिए 300 करोड़ का अनुबंध पीएसपी प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को दिया था। इन दोनों जाने-माने संस्थान/संगठन को मज़दूरों की ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए थी।

पीएसपी के पोर्टफोलियो में दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय का विस्तार, अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट का विकास, और गुजरात विधानसभा का नवीनीकरण करने जैसे काम शामिल हैं।

अहमदाबाद में स्थित एक वकील/कार्यकर्ता, आनंदवर्धन याग्निक ने बताया कि भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM-A) और पीएसपी प्रोजेक्ट्स दोनों ने मिलकर अपने श्रमिकों को तकलीफ़ दी है और 35 मज़दूरों को ऐसी स्थिति में डाल दिया है।

प्रवासी श्रमिकों और पुलिस के बीच हुई इस झड़प के एक दिन बाद, यानि 19 मई को, याग्निक ने आईआईएम-ए जो इन श्रमिकों के प्रमुख नियोक्ता हैं, गुजरात के मुख्य सचिव और तीन अन्य राज्य पदाधिकारियों को इनकी घर वापसी की यात्रा की व्यवस्था नहीं करने के मामले में कानूनी नोटिस भेजा था। अपने नोटिस में उन्होंने आरोप लगाया कि आईआईएम-ए और पीएसपी प्रोजेक्ट्स नहीं चाहते थे कि श्रमिक घर वापस जाएं "ताकि जैसे ही प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी, तो वे फिर से निर्माण कार्य शुरू कर सकते थे, जो अपने आप में प्रवासी श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है"।

लीगल नोटिस का दावा था कि आईआईएम-ए अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979, न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1949 और प्रवासी मज़दूरों के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है।

नोटिस में याग्निक ने दावा किया कि 500 मज़दूर, जो पश्चिम बंगाल और झारखंड से संबंधित हैं, जब वे आईआईएम-ए के नए कैंपस के निर्माण का काम कर रहे थे तो उन्हें लॉकडाउन से पहले न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं मिल रही थी। जबकि लॉकडाउन के बाद तो किसी भी श्रमिक को बिल्कुल भी मज़दूरी नहीं मिली।

नोटिस में कहा गया है कि, अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979 की धारा 14 और 15 के अनुसार, "ठेकेदार और प्रमुख नियोक्ता का यह वैधानिक दायित्व और कर्तव्य है कि वे प्रत्यावर्तन, विस्थापन के मामले में यात्रा भत्ता को सहन करें ताकि प्रवासी श्रमिकों को उनके मूल राज्य में वापस भेजा जा सकें।" 

उसी अधिनियम की धारा 13 में कहा गया है कि श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के अनुसार भुगतान किया जाना चाहिए। याग्निक ने नोटिस में का दावा किया है कि आईआईएम-ए और पीएसपी ने इसका उल्लंघन किया है, जो न केवल न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम का उल्लंघन करता है, बल्कि अंतर-राज्य प्रवासी कर्मकार अधिनियम, 1979 का भी उल्लंघन करता है और इसलिए यह असंवैधानिक कदम है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 और 23 का उल्लंघन भी कहलाता है।”

याग्निक ने कहा कि इन सभी वजहों से मज़दूरों को अपमानित होना पड़ा और 18 मई को हंगामा हुआ। "वे आईआईएम-ए प्रबंधन से मिलना चाहते थे," उन्होंने कहा। "उन्हें परिसर के अंदर जाने तक की इज़ाजत नहीं दी गई। हफ्तों तक किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया।”

आरोपों से इनकार करते हुए, आईआईएम-ए ने 22 मई को कहा कि परिसर के निर्माण के मामले में  पीएसपी को "कुशल, अर्ध-कुशल या अकुशल श्रमिकों को काम पर बुलाने की ज़िम्मेदारी है"। आगे जवाब में कहा गया कि "पीएसपी ने मार्च 2020 के अंत तक श्रमिकों को पूरी की पूरी उचित मज़दूरी का भुगतान कर दिया था,"। "लॉकडाउन के बाद, प्रत्येक श्रमिक के भोजन और विविध खर्चों को कवर करने के लिए पर्याप्त भुगतान किया गया, पीएसपी ने प्रति सप्ताह सभी श्रमिकों को गैर-वसूली के आधार पर भुगतान किया है।"

18 जून को भेजे गए अपने रिज़रोइंडर में याज्ञिक ने कहा कि, आईआईएम-ए ने जिस तदर्थ भुगतान की सूचना दी है वह तथ्य को धोखा देने जैसा है, लॉकडाउन के बाद उन्होने कोई मज़दूरी नहीं दी है, जो उन्हें केंद्र सरकार के निर्देश के अनुसार मिलनी चाहिए थी। "उन्हे भोजन और अन्य विविध वस्तुओं के लिए प्रति सप्ताह न्यूनतम 200-300 रुपये का ही भुगतान किया गया, लेकिन उन्हें उनकी हक़दार मज़दूरी का भुगतान नहीं किया गया है," जवाब में इस बात का जिक्र है।

दिलचस्प बात यह है कि गुजरात हाईकोर्ट के जमानती आदेश में कहा गया है कि पीएसपी के वकील मिश्रा ने खुद कहा है कि लॉकडाउन में, आवेदक बिना किसी काम के थे, बिना किसी पैसे के थे और यहां तक कि बिना किसी भोजन के गुजर कर रहे थे और इन परिस्थितियों में, वे चाहते थे उन्हे उनके घर वापस जाने के लिए इंतजाम किया जाए, जिसकी वजह से 18 मई को यह कथित अप्रिय घटना हुई। यज्ञिक ने जैसा आरोप लगाया था यह ठीक वैसा ही है।

एक टेलीफोनिक साक्षात्कार में, याग्निक ने इसे "मजबूरी पर आधारित श्रम" कहा है।

आईआईएम-ए की 22 मई की प्रतिक्रिया में कहा गया था कि सरकार द्वारा शुरू की गई विशेष श्रमिक गाड़ियों के माध्यम से पीएसपी ने स्थानीय अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित किया था। "जबकि झारखंड और पश्चिम बंगाल के लिए अहमदाबाद से कोई विशेष ट्रेन नहीं थी", जिसकी वजह से "इन दोनों राज्यों के श्रमिक नाराज़ हो गए लगता है"।

उन्होंने आगे बताया कि पीएसपी के मेनेजर ने दो ईमेल 4 और 5 मई को सरकारी अधिकारियों को लिखी जिसमें परिवहन कर्मचारियों से अनुरोध किया गया था।

प्रतिक्रिया के बाद, पीएसपी ने 15 लग्जरी बसों को किराए पर लिया और बिहार और झारखंड के 450 श्रमिकों को वापस उनके राज्य भेजा।

याग्निक ने कहा कि 19 मई को नोटिस देने के बाद यह कदम खुद के "चेहरे को बचाने" के लिए उठाया गया था। उन्होंने पहले ऐसा क्यों नहीं किया?"। "उन्हें विशेष ट्रेनों का इंतजार क्यों करना पड़ा?"

हालाँकि, याग्निक का पत्र इस बात का भी ख़ुलासा करता है कि बस में घर की वापस यात्रा भी किसी यातना से कम नहीं थी। 22 मई को, श्रमिकों को केवल दो वक़्त भोजन मिला, लेकिन "23, 24 और 25 मई को, उन्हें पानी या भोजन के रूप में कुछ नहीं दिया गया था, और जब तक वे अपने राज्य में पहुंचे, तब तक वे  भूख और प्यास से पीड़ित हो चुके थे।”

इस रिपोर्टर द्वारा भेजे गई एक प्रश्नावली का जवाब देते हुए, आईआईएम-ए ने एक ईमेल प्रतिक्रिया में कहा: “आईआईएम-ए को किसी भी मुद्दे पर न तो श्रमिकों और न ही ठेकेदारों ने संपर्क किया था। वे गुस्से में इसलिए आ गए क्योंकि गाड़ियों की अनुपलब्धता के कारण वे बेकार हो गए थे और घर नहीं जा सके। यह समझा जाता है कि कुछ लोगों ने उन्हें (sic) उकसाया। ”आईआईएम-ए ने भोजन या पानी की उपलब्धता के बारे में कोई भी जानकारी होने से इनकार किया है[श्रमिकों के विरोध से पहले]।

एक प्रश्नावली पीएसपी को भी भेजी गई थी, लेकिन न्यूजक्लिक को अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।

याग्निक ने कहा कि अगर आईआईएम-ए जैसा प्रतिष्ठित संस्थान प्रवासी श्रमिकों के साथ ऐसा व्यवहार करता है, तो पूरे देश के सामने यह एक बुरा उदाहरण होगा। उन्होंने कहा, "अफसोस की बात ये है कि कानून का उल्लंघन कानून के पालन करने से अधिक सुरक्षित है।”

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

[आईआईएम-ए की प्रतिक्रिया को शामिल करने के लिए इस लेख को अपडेट किया गया है।]

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख को भी आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-

COVID-19 Lockdown: Migrant Workers in Gujarat Stare at Court Case, Activist Calls Violation of ‘Human Rights’

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