NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अलास्का वार्ता अमेरिका-चीन संबंधों में ला सकती है बड़ा बदलाव
एंकोरेज वार्ता का सबसे अच्छा नतीजा यह होगा कि अमेरिका अपनी भाषणबाजी बंद कर दे और एक बहुध्रुवीय वैश्विक ढांचे के साथ, लगातार ताकतवर और अहम होते जा रहे चीन के हिसाब से खुद को ढाल ले।
एम. के. भद्रकुमार
24 Mar 2021
अमेरिका-चीन

चीन के साथ अमेरिका के संबंधों की तल्खी पिछले हफ़्ते सतह पर आ गई। अलास्का के एंकोरेज में 18-19 मार्च को अमेरिका और चीन की बंद दरवाज़ों के पीछे हुई वार्ता में कुछ अहम क्षण भी आए। बातचीत के बारे में अमेरिकी दस्तावेज़ पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, जबकि चीन का विस्तृत दस्तावेज़ राज्य परिषद की आधिकारिक वेबसाइट पर डाला गया है।

वार्ता की शुरुआत में चीन और अमेरिका ने एक-दूसरे पर कटुतापूर्ण टिप्पणियां कीं, इस बारे में दोनों ही देशों के मीडिया ने बताया है। इसके बाद औपचारिक फोटो निकलवाने की रस्म निभाई गई। यह सब आधे घंटे तक चला। इस दौरान ज़्यादातर वक़्त CCP के "केंद्रीय विदेश मामलों के आयोग" के निदेशक और पोलित ब्यूरो के सदस्य यांग जिएची द्वारा मजबूती के साथ चीन के खिलाफ़ अमेरिका की हालिया भाषणबाजी का जवाब दिया गया।

यांग के भाषण से अमेरिका के बारे में बहुत सारी चीजें सामने आईं; भाषण से, वार्ता के बारे में अमेरिका का "कृपा करने" वाला रवैया; मानवाधिकारों पर अमेरिकी भाषणबाजी का धोखा; ब्लैक लाइव्स मैटर और अमेरिकी नस्लभेद की गहरी समस्याओं; अमेरिका में सामाजिक और आर्थिक असमानता जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित हुआ। यांग ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि इस दुनिया के ज़्यादातर देश उन सार्वभौमिक मूल्यों को मान्यता देंगे, जिनकी पैरवी अमेरिका करता है, ना ही अमेरिका का मत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जनता के मत को दर्शाता है। दूसरे देश कभी नहीं मानेंगे कि चंद लोगों द्वारा बनाए गए नियम अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का आधार बनें।"

इसमें कोई शक नहीं है कि यांग वहां तैयारी कर पहुंचे थे, जिसके ज़रिए उन्होंने औपचारिक फोटो सेशन को टीवी कैमरों के सामने 'तू-तू, मैं-मैं' में बदल दिया। 1978 में जबसे चीन और अमेरिका ने कूटनीतिक संबंध स्थापित किए हैं, तबसे अब तक कैमरों के सामने एक घंटे तक चले यह तर्क-वितर्क अमेरिका-चीन संबंधों में अभूतपूर्व घटना है।

यहां चीन का क्या उद्देश्य हो सकता था? साफ़ है कि यहां यांग ना केवल चीन के जनमत, बल्कि अंतरराष्ट्रीय श्रोताओं के मत के बारे में भी जागरूक रहे होंगे। यहां उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया कि चीन की अखंडता, मूल हितों और आंतरिक मामलों में दखल देने की अमेरिका की किसी भी कोशिश का जबरदस्त प्रतिरोध होगा और उसके खिलाफ़ जरूरी कदम उठाए जाएंगे। दूसरा, यांग ने दोनों देशों के बीच जारी मतभेदों के बावजूद तार्किकता को मान्यता देने की जरूरत पर भी ध्यान दिलाया।

तीसरा, यांग ने दृढ़ता के साथ यह दिखाया कि चीन की समग्र क्षमता और विकास संभावना अब उस स्तर पर पहुंच चुकी है, जहां अमेरिका की रोकथाम रणनीति कोई मायने नहीं रखती। दूसरी तरफ इस वास्तविकता को मानने से दोनों देशों के बीच एक गैर-दोस्ताना माहौल में भी रणनीतिक धैर्य के साथ सहयोग की संभावना बनेगी। जैसा एक चीनी टिप्पणीकार कहते हैं, "अब वह दिन ख़त्म हो चुके हैं, जब पिटने के बाद प्रतिकार नहीं किया जाता था।"

इसके बावजूद एंकोरेज से टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि "वार्ता के दौरान बहुत सारी ऐसी अहम बातचीत हुई, जिसके बारे में शुरू में योजना नहीं बनाई गई थी।" चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी का अख़बार ग्लोबल टाइम्स एक संपादकीय टिप्पणी में लिखता है, "शुरू में हुई तकरार के बाद, अलास्का में चीन और अमेरिका के बीच दरवाजों के पीछे जारी रणनीतिक वार्ता आराम से चली और इसका नतीज़ा लोगों की आशाओं से ज़्यादा बेहतर रहा। दोनों देश तीन दौर की वार्ता कर चुके हैं। दोनों ने ही अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बातचीत 'समझदारी' भरी रही और दोनों देश कुछ क्षेत्रों में एक-दूसरे के साथ काम करना चाहते हैं।"

बल्कि सिन्हुआ ने बताया कि वार्ता के बाद आखिर में एक कार्यकारी समूह बनाया गया, जिसका काम मौसम परिवर्तन पर सहयोग करना है, साथ ही कई मुद्दों पर विमर्श किया गया। यांग ने वार्ता के बाद कहा कि बातचीत "सीधी, खुली और रचनात्मक" रही। यांग के मुताबिक़, "इस वार्ता से आपसी समझ को बढ़ावा देने में मदद मिली है, हालांकि अब भी दोनों देशों के बीच कुछ मुद्दों पर बड़े मतभेद हैं।"

वार्ता पर एक विश्लेषण में टाइम्स के डेविड सांगर ने शुरूआत में तकरार को कमतर बताते हुए लिखा, "मौजूदा अमेरिका-चीन टकराव, तकनीक पर जारी प्रतिस्पर्धा, साइबर विवाद और दोनों देशों के प्रभाव बढ़ाने वाले कार्यक्रमों का नतीज़ा है।" सांगर लिखते हैं कि "चीन का ताकत तक पहुंच बनाने का तरीका पुराने नेटवर्क को तोड़ना नहीं, बल्कि नए नेटवर्क को बनाना है....उनकी ताकत उनके कमतर परमाणु हथियारों या उनके बढ़ते पारंपरिक हथियारों के जमावड़े से पैदा नहीं होती, यह ताकत उनकी लगातार विस्तार करती आर्थिक ताकत और तकनीकी को उनके द्वारा कैसे इस्तेमाल किया जाता है, इससे आती है।"

सांगर कहते हैं कि बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुल्लिवेन भी अतीत में कह चुके हैं कि "यह मानना गलत होगा कि प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाने के लिए चीन सीधे अमेरिका से सैन्य टकराव मोल लेगा।" सांगर ने सुल्लिवेन का उद्धरण देते हुए लिखा, "चीन के प्रति वैक्लपिक नीति के मूल में यह बात होगी कि वैश्विक नेतृत्व स्थापित करने के लिए अब पारंपरिक सैन्य शक्ति के बजाए आर्थिक और तकनीकी ताकत ज़्यादा अहमियत रखेगी। इस तरह के वैश्विक नेतृत्व को बनाने के लिए पूर्वी एशिया में भौतिक प्रभाव को बनाना पहले से तय शर्त नहीं होगी।"

अब यह देखना बाकी है कि बाइडेन प्रशासन की चीन के रोकथाम की पहेली कितने वक़्त तक जारी रखता है। वाशिंगटन पोस्ट के डेविड इग्नाशियस के साथ एक इंटरव्यू में CIA के निदेशक और रक्षा सचिव रह चुके रॉबर्ट गेट्स ने कहा, "अगर हम देश के सामने मौजूद बड़ी चुनौतियों का समाधान नहीं कर सकते, चाहे वह समस्या अवसंरचना, प्रवासियों, शिक्षा या दूसरे कारणों से जुड़ी हो, तो मुझे लगता है कि तब हम गहरी दिक्कत में जा रहे होते हैं। यह हमारे लिए चीन, रूस या किसी भी दूसरे देश से बड़ा ख़तरा है। सवाल यह है कि हम इन दिक्कतों से पार पा सकते हैं या नहीं।"

गेट्स ने आगे कहा, "हमारे सामने मौजूद सबसे बड़ा ख़तरा व्हाइट हॉउस और कैपिटल बिल्डिंग के दो किलोमीटर के दायरे में है। अगर राष्ट्रपति इससे निपटने का तरीका नहीं खोज सकते और कांग्रेस के नेता इस समस्या पर प्रतिक्रिया देने का तरीका नहीं निकाल सकते, मतलब दोनों मिलकर काम नहीं कर सकते, तो हमने जो विभाजन अब तक देखा है, आगे वो और भी भयावह होने जा रहा है।"

एंकोरेज वार्ता का सबसे अच्छा नतीज़ा यह होगा कि अमेरिका अपनी भाषणबाजी बंद कर दे और एक बहुध्रुवीय वैश्विक ढांचे के साथ लगातार ताकतवर और अहम होते जा रहे चीन के हिसाब से खुद को ढाल ले। सीधे शब्दों में कहें तो चीन ने अमेरिका की शक्ति ना केवल एशिया, बल्कि पूरी दुनिया में कम कर दिया है। इसके लिए चीन ने डोनाल्ड ट्रंप के वैश्विक सहयोग विरोधी रवैये का फायदा उठाया और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में अपना प्रभाव बढ़ा लिया। इसके साथ-साथ चीन ने अपने बहुपक्षीय मंच भी स्थापित किए।

समग्र क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी (जिसमें आसियान देशों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और जापान शामिल हैं) इसका एक उदाहरण है। चीन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका को पछाड़ दिया है। ऊपर से वैश्विक अर्थव्यवस्था को पर्यावरण संकट, भयावह आर्थिक असमानता और दूसरी चुनौतियों से निपटने के लिए बड़े स्तर पर बदलाव की जरूरत है, जिसके तहत नए नियम बनाने के लिए चीन के साथ सहयोग जरूरी है।

यह धारणा कि चीन कानून आधारित शासन व्यवस्था को चुनौती पेश करता है, वह मानकर चलती है कि दुनिया में सिर्फ़ एक उदारवादी व्यवस्था ही है। यहां अमेरिकी हित और उदारवादी व्यवस्था के तत्व एक-दूसरे से अभिन्न हैं। हार्वर्ड के सरकारी विभाग में "वैश्विक मामलों में चीन" के प्रोफ़ेसर एलास्टेयर लैन जॉनस्टन ने "चाइन इन अ वर्ल्ड ऑफ ऑर्डर्स: रिथिंकिंग कॉमप्लायंस एंड चैलेंज इन बीजिंग्स इंटरनेशनल रिलेशन" नाम से एक शानदार निबंध लिखा था। इसमें उन्होंने 8 "मुद्दों पर आधारित तंत्र/ढांचों/व्यव्थाओं" की पहचान की थी। इनमें से कुछ को चीन मानता है, कुछ को नकार देता है और कुछ के साथ चीन रहने के लिए तैयार है। 

वह लिखते हैं, "अगर हम इन बहुपक्षीय व्यवस्थाओं और चुनौतियों को ध्यान में रख कर सोचें, तो यह धारणा कि अमेरिकी प्रभुत्व वाली उदारवादी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को ताकतवर होते चीन से चुनौती मिल रही है, इसमें कोई वैचारिक या प्रयोगसिद्ध परिणाम दिखाई नहीं पड़ता।"

अमेरिका का संकट से जुड़ा अहसास उसकी अपनी समग्र प्रतिस्पर्धी क्षमता में आई कमी से उभरा है। यहीं विरोधाभास है: अमेरिकी प्रभुत्व वाला वैश्विक ढांचा पहले की तरह ही बरकरार है, लेकिन उसकी भीतरी समर्थन शक्ति अब ख़त्म हो रही है। इस विरोधभास को उन मित्र देशों के साथ संबंधों को मजबूत बनाकर ठीक नहीं किया जा सकता, जिनकी अर्थव्यवस्था लगातार सिकुड़ रही है। इसके लिए पहले अमेरिका को घरेलू स्तर पर हालात ठीक करने होंगे।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Alaska Talks Can be Transformative for US-China Ties

 

Alaska
US-China
Joe Biden
Anchorage talks
ASEAN countries
China
US hegemony

Related Stories

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

क्या दुनिया डॉलर की ग़ुलाम है?

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

रूस की नए बाज़ारों की तलाश, भारत और चीन को दे सकती  है सबसे अधिक लाभ

गर्भपात प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ़्ट से अमेरिका में आया भूचाल

अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात

नाटो देशों ने यूक्रेन को और हथियारों की आपूर्ति के लिए कसी कमर

यूक्रेन में छिड़े युद्ध और रूस पर लगे प्रतिबंध का मूल्यांकन

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं


बाकी खबरें

  • CARTOON
    आज का कार्टून
    प्रधानमंत्री जी... पक्का ये भाषण राजनीतिक नहीं था?
    27 Apr 2022
    मुख्यमंत्रियों संग संवाद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों से पेट्रोल-डीज़ल के दामों पर टैक्स कम करने की बात कही।
  • JAHANGEERPURI
    नाज़मा ख़ान
    जहांगीरपुरी— बुलडोज़र ने तो ज़िंदगी की पटरी ही ध्वस्त कर दी
    27 Apr 2022
    अकबरी को देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं था न ही ये विश्वास कि सब ठीक हो जाएगा और न ही ये कि मैं उनको मुआवज़ा दिलाने की हैसियत रखती हूं। मुझे उनकी डबडबाई आँखों से नज़र चुरा कर चले जाना था।
  • बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहारः महिलाओं की बेहतर सुरक्षा के लिए वाहनों में वीएलटीडी व इमरजेंसी बटन की व्यवस्था
    27 Apr 2022
    वाहनों में महिलाओं को बेहतर सुरक्षा देने के उद्देश्य से निर्भया सेफ्टी मॉडल तैयार किया गया है। इस ख़ास मॉडल से सार्वजनिक वाहनों से यात्रा करने वाली महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था बेहतर होगी।
  • श्रीलंका का आर्थिक संकट : असली दोषी कौन?
    प्रभात पटनायक
    श्रीलंका का आर्थिक संकट : असली दोषी कौन?
    27 Apr 2022
    श्रीलंका के संकट की सारी की सारी व्याख्याओं की समस्या यह है कि उनमें, श्रीलंका के संकट को भड़काने में नवउदारवाद की भूमिका को पूरी तरह से अनदेखा ही कर दिया जाता है।
  • israel
    एम के भद्रकुमार
    अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात
    27 Apr 2022
    रविवार को इज़राइली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट के साथ जो बाइडेन की फोन पर हुई बातचीत के गहरे मायने हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License