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आंदोलन
भारत
राजनीति
मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मज़दूरों ने दिखाई ताकत, व्यापक बंदी,  किसान-छात्र भी साथ आए
इस देशव्यापी हड़ताल में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ देश के 250 से ज्यादा किसान संगठन और छात्र भी शामिल रहे। इस दौरान श्रम नीतियों के साथ सीएए-एनआरसी और छात्रों के दमन का भी उठा मुद्दा।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
08 Jan 2020
all india general strike

केंद्र सरकार की 'श्रम विरोधी' और 'जन विरोधी' नीतियों के ख़िलाफ़ आज, बुधवार को देशव्यापी आम हड़ताल का व्यापक असर रहा। यह हड़ताल प्रमुख रूप से श्रम सुधार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निजीकरण के खिलाफ थी। इसमें 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों एटक, सीटू, ऐक्टू, सेवा, एचएमएस, टीयूसीसी, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ यूटीयूसी और इंटक ने हिस्सा लिया।

श्रम संगठनों ने इस हड़ताल को ऐतिहासिक बताया है। उनके दावे के मुताबिक इसमें करीब 25 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया।

यूनियनों की 12 सूत्रीय मांगों में न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा जैसे मुद्दे भी शामिल थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ हड़ताल में शामिल नहीं था, जबकि मजदूरों के साथ कंधा से कंधा मिलाते हुए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले देश के 250 से ज्यादा किसान संगठन भी भारत बंद में शामिल रहे। किसानों-मजदूरों के साथ एकजुटता दिखाते हुए वामपंथी दलों और उनसे जुड़े छात्र, युवा व महिला संगठनों के लोग बड़ी संख्या में आज सड़कों पर उतरे।

जिस समय इस आंदोलन की रणनीति बनी थी तब इसके केंद्र में मुख्य रूप से केंद्र सरकार की मजदूर व किसान विरोधी नीतियां थीं। लेकिन इसी बीच सीएए और एनआरसी, छात्रों का दमन, उनकी फीस वृद्धि का मुद्दा और 5 जनवरी को जेएनयू पर हमला सबकुछ इसमें शामिल हो गया है। अब ये सभी मुद्दे आज के आंदोलन का हिस्सा रहे।

आंध्र प्रदेश में बंद में हिस्सा लेने वाले कांग्रेस, वाम नेताओं को हिरासत में लिया गया

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के 'भारत बंद' के आह्वान पर विशेषकर विशाखापत्तनम में सार्वजनिक क्षेत्र के विभिन्न उपक्रमों में अधिकतर कर्मचारी हड़ताल पर रहे। अधिकतर बैंक भी बंद रहे।         

आंध्र प्रदेश के प्रमुख शहरों में वाम दलों और ट्रेड यूनियनों द्वारा रैलियां निकाली गईं। विजयवाड़ा में राधम सेंटर से लेनिन सेंटर तक रैली निकाली गई। मचिलिपत्नाम में कोनेरू सेंटर से रैली निकाली गई।

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तिरुपति से मिली खबरों के अनुसार पुलिस ने युवा संगठनों को ‘शव यात्रा’ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पुतले ले जाने से रोका।
विजयवाड़ा में आरटीसी बस अड्डे के बाहर राजमार्ग पर धरना दे रहे कांग्रेस, भाकपा और माकपा नेताओं को हिरासत में ले लिया गया।
सीपीआई के राज्य सचिव के रामकृष्ण ने अपने और माकपा तथा कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार किए जाने की निंदा की।
उन्होंने कहा, ‘‘ हमने महज भाजपा नीत केन्द्र सरकार की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ बंद का आह्वान किया लेकिन पुलिस उग्रता दिखा रही है।’’

केरल में हड़ताल का भारी असर 

वाम मोर्चा शासित केरल में कर्मचारियों और मज़दूरों की देशव्यापी हड़ताल का करीब-करीब हर जगह असर दिखा। केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) और निजी आपरेटरों की बसें सुबह से ही सड़कों पर नहीं दिख रही थीं। 

तिरुवनंतपुरम में केएसआरटीसी की नगर और लंबी दूरी के मार्गों की बस सेवाएं बंद रहीं। सड़कों पर वाहनों और ऑटो रिक्शा की आवाजाही भी कम थी। 

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लेकिन सबरीमाला तीर्थयात्रियों को हड़ताल से छूट दी गई। अयप्पा के भक्तों को पंबा तक जाने के लिए केएसआरटीसी की बसें मिल रही थीं। 
राज्य में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों से जुड़ी ट्रेड यूनियनें हड़ताल में शामिल थीं। 

मुख्यमंत्री पी . विजयन और अन्य मंत्री भी कार्यालय नहीं गए। बुधवार को होनी वाली मंत्रिमंडल की बैठक भी एक दिन पहले ही कर ली गई थी। 

रेलवे सूत्रों ने कहा कि हड़ताल से रेल सेवाओं पर असर नहीं पड़ा है और रेलवे स्टेशन पर कोई प्रदर्शन भी नहीं हुआ है। 
 
पंजाब-हरियाणा में बैंकिंग सेवाएं प्रभावित; परिवहन सेवाओं पर भी दिखा असर

मज़दूर संगठनों की ओर से बुलाई गई हड़ताल में बुधवार को पंजाब और हरियाणा में सार्वजनिक बैंकों, परिवहन विभाग, डाक घर और किसानों के कई संगठनों ने हिस्सा लिया। 

सरकारी बैंकों के कर्मचारियों के हड़ताल में हिस्सा लेने से पंजाब और हरियाणा में बैंकिंग सेवाओं पर असर पड़ा है।
ट्रेड यूनियन कर्मियों ने पंजाब में लुधियाना, जालंधर और बठिंडा समेत कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन किया और अपनी मांगों के समर्थन में सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।

जालंधर में ट्रेड यूनियन कर्मियों द्वारा काम बंद रखा गया। पंजाब में लुधियाना समेत कुछ जगहों पर सार्वजनिक परिवहन सेवा प्रभावित हुईं। 
हरियाणा में, सार्वजनिक परिवहन सेवा पर भी असर रहा। 

उत्तर प्रदेश में हजारों बिजलीकर्मियों ने किया कार्य बहिष्कार

निजीकरण के लिये विद्युत अधिनियम में किये जा रहे संशोधन वापस लेने, पुरानी पेंशन बहाली और संविदा कर्मचारियों को नियमित करने की मांग को लेकर राष्ट्रव्यापी आह्वान के तहत बुधवार को उत्तर प्रदेश में हजारों बिजलीकर्मियों ने कार्य बहिष्कार किया।

बिजली कर्मचारियों की राष्ट्रीय समन्वय समिति ‘नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ एलेक्ट्रीसिटी एम्प्लाइज एंड इंजीनियर्स (एनसीसीओईईई)’ के आह्वान पर उत्तर प्रदेश के ऊर्जा निगमों के तमाम कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियर तथा अभियन्ताओं ने कार्य बहिष्कार कर अपने—अपने दफ्तरों के बाहर प्रदर्शन और सभाएं कीं।

हड़ताल में शामिल ‘ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि उत्तर प्रदेश में 45 हजार बिजलीकर्मियों समेत देश के 15 लाख विद्युतकर्मियों और अभियंताओं ने कार्य बहिष्कार किया। बड़े उत्पादन गृहों, 400 तथा 765 के.वी. पारेषण तथा सिस्टम ऑपरेशन की शिफ्ट के कर्मचारियों को कार्य बहिष्कार से अलग रखा गया है ताकि बिजली का ग्रिड पूरी तरह फेल न हो।

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उन्होंने बताया कि राजधानी में बिजलीकर्मियों ने शक्ति भवन के बाहर विरोध सभा का आयोजन कर अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाजी की। इसके अलावा प्रदेश में सभी बिजली दफ्तरों पर भी प्रदर्शन किये गये।

दुबे ने कहा कि निजीकरण के विरोध के अलावा बिजली निगमों के एकीकरण, पुरानी पेंशन बहाली, वेतन विसंगति और संविदा कर्मियों के नियमितीकरण की मुख्य मांगों के प्रति केन्द्र तथा राज्य सरकार के ध्यानाकर्षण के लिये कार्य बहिष्कार का निर्णय लिया गया है।

उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में प्रस्तावित संशोधन सम्बन्धी विधेयक अगर पारित हो गया तो सब्सिडी और क्रास सब्सिडी तीन साल में समाप्त हो जाएगी। इससे किसानों और आम उपभोक्ताओं के लिये बिजली महंगी हो जाएगी जबकि उद्योगों और व्यावसायिक संस्थानों की बिजली दरों में कमी की जाएगी। हर उपभोक्ता को बिजली लागत का पूरा मूल्य देना होगा जिसके अनुसार बिजली की दरें 10 से 12 रुपये प्रति यूनिट हो जाएंगी।

उन्होंने कहा कि बिजली कर्मचारियों की मुख्य माँग इलेक्ट्रिसिटी एक्ट में संशोधन को वापस लेना, इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की पुनर्समीक्षा और राज्यों में विघटित कर बनाई गयी बिजली कंपनियों का एकीकरण कर बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण का केरल और हिमाचल प्रदेश की तरह एक निगम बनाना है।

दुबे ने बताया कि अन्य मांगों में विद्युत् परिषद के विघटन के बाद भर्ती हुए कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन प्रणाली, बिजली कर्मियों को मिलने वाली रियायती बिजली की सुविधा बरकरार रखना, समान कार्य के लिए समान वेतन, ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर नियमित प्रकृति के कार्यों के लिये संविदा कर्मियों को वरीयता देते हुए तेलंगाना की तरह नियमित करना, बिजली का निजीकरण पूरी तरह बंद करना और प्राकृतिक संसाधनों को निजी घरानों को सौंपना बंद करना मुख्य हैं।

बंद से गोवा में जनजीवन प्रभावित

सरकार की ‘‘जन-विरोधी’’ नीतियों के खिलाफ मजदूर संगठनों की ओर से बुलाई गई हड़ताल के दौरान गोवा में जनजीवन प्रभावित रहा।

‘गोवा कन्वेंशन ऑफ वर्कर्स’ के बैनर तले विभिन्न मजूदर संगठनों ने पणजी के आजाद मैदान में एक जनसभा की।

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राष्ट्रीयकृत सहित अधिकांश बैंक सामान्य रूप से काम कर रहे हैं, जबकि कुछ निजी उद्योगों में बंद का असर दिखा।

एटक महासचिव क्रिस्टोफर फोंसेका ने आजाद मैदान में मौजूद करीब 2000 लोगों को संबोधित करते हुए कर्मचारयों से ‘‘ केन्द्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों’’ के खिलाफ प्रदर्शन करने की अपील की।

उन्होंने कहा कि पूंजीवाद समर्थक केंद्र की नीतियों ने ‘‘ मजदूर वर्ग की कमर तोड़ दी है।’’

कर्नाटक में भी असर दिखा

ट्रेड यूनियनों की देशव्यापी हड़ताल का कर्नाटक में थोड़ा असर रहा।     कृषि उपज विपणन समिति के यार्ड में हड़ताल का कुछ असर दिखा। वहां मजदूर काम पर नहीं थे। 

बंद से असम में जनजीवन प्रभावित

हड़ताल के कारण बुधवार को असम में आम जनजीवन प्रभावित रहा और सड़कों से वाहन नदारद रहे तथा दुकानें भी बंद रहीं।

दुकानें और बाजार बंद रहे, लेकिन दवा की दुकानें खुली रहीं। शैक्षणिक संस्थान खासकर स्कूल बंद रहे। कॉलेजों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में पूर्वनिर्धारित परीक्षाएं सामान्य तरीके से आयोजित हुईं।

अधिकतर निजी कार्यालय बंद रहे लेकिन राज्य सरकार के कार्यालय खुले रहे। 

ओडिशा में भी व्यापक असर 

देशव्यापी हड़ताल का समूचे ओडिशा में व्यापक असर देखने को मिला। राज्य के कई हिस्सों में ट्रेन एवं बस सेवाएं प्रभावित रहीं। ट्रेड यूनियन कर्मियों ने 24 घंटे की हड़ताल के समर्थन में रेल पटरियों और सड़कों को जाम किया। वाम दलों एवं कांग्रेस के समर्थक भी बंद की हिमायत में सड़कों पर उतरे। राज्य के अधिकतर हिस्सों में दुकानें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रहे। कई जिलों में शैक्षणिक संस्थान भी बंद रहे।

बैंकिंग संचालन भी प्रभावित रहा। अस्पतालों और एंबुलेंस जैसी आपात सेवाओं को बंद से अलग रखा गया। राज्य सरकार ने कर्मचारियों को अपने संबंधित दफ्तरों में जल्दी पहुंचने के लिए पहले ही दिशानिर्देश जारी किए थे।

भुवनेश्वर के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) अनूप साहू ने बताया कि हड़ताल के दौरान कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए 15 प्लाटून (प्रत्येक प्लाटून में 33 जवान) तैनात किए गए।

बंगाल में हिंसा की छिटपुट घटनाएं

बुधवार को आहूत एक दिन की हड़ताल के समर्थन में मजदूर संगठनों के साथ ही वामपंथी दलों और कांग्रेस समर्थकों के प्रदर्शनों के चलते पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों में सड़क और रेल यातायात प्रभावित हुआ। कई स्थानों से हिंसा की छिटपुट घटनाएं भी सामने आई।

पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग किया जिसके बाद झड़प शुरू हो गई और इसके बाद कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

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पुलिस ने बताया कि दमदम तथा लेक टाउन इलाकों में वाम समर्थकों और तृणमूल समर्थकों में झड़प हुई। हालात पर काबू पाने के लिए भारी पुलिस बल को घटनास्थल पर भेजा गया।

टॉलीगंज, बेहाला, एस्प्लांडे और जादवपुर समेत शहर के कई इलाकों में भारी पुलिस तैनाती देखी गई। उत्तर बंगाल के कुछ इलाकों में तृणमूल कांग्रेस ने हड़ताल का विरोध करते हुए रैलियां निकालीं।

राजस्थान में भारत बंद का मिलाजुला असर

'भारत बंद' का राजस्थान में मिलाजुला असर देखने को मिला। 

बैंक कर्मचारियों की यूनियन के प्रतिनिधि महेश मिश्रा ने बताया कि जयपुर में एलआईसी भवन के सामने प्रदर्शन किया गया जिसमें बैंक और एलआईसी कर्मचारियों ने भाग लिया।

राजस्थान रोडवेज के सीटू से संबद्ध कर्मचारियों ने भी हड़ताल में भाग लिया। राजस्थान रोडवेज वर्कर्स यूनियन (सीटू) के महासचिव किशन सिंह राठौर ने कहा कि रोडवेज में सीटू से जुड़े लगभग 3,000 कर्मचारी हैं जिन्होंने भारत बंद में भाग लिया।

हड़ताल का असर चूरू, गंगानगर, सीकर में बसों के संचालन पर पड़ा। हालांकि जयपुर शहर में बाजार खुले और सार्वजनिक परिवहन सेवा पर ज्यादा असर देखने को नहीं मिला।

बिहार में भी व्यापक असर

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बिहार में भी देशव्यापी हड़ताल का काफी असर देखने को मिला। राजधानी पटना समेत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में ट्रेड यूनियनों के साथ वाम संगठनों, महिला और छात्र संगठनों ने भी रैली निकाली और सभाएं कीं। 
 
उत्तराखंड : ट्रेड यूनियन की हड़ताल में छाया छात्रों पर हमले का मुद्दा

देहरादून में लगातार हो रही बरसात के बीच कुछ छतरियां ताने और कुछ भीगते हुए लोग श्रमिकों के हितों के लिए नारे लगाते रहे। देश की सभी ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर बुलाई गई हड़ताल में दोपहर करीब बारह बजे हिंदी भवन पर संघर्षशील लोग जुटे। इनमें मजदूरों के अलावा किसानों के संगठन, छात्र संगठन और हड़ताल के समर्थन में शामिल लोग थे। धरना प्रदर्शन के बाद देहरादून के विभिन्न मार्गों में निकली  रैली में दिल्ली में छात्रों पर हुए लाठीचार्ज की भी निंदा की गई। छात्रों पर हो रहे हमले बंद करने के नारे लगाए गए।

केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त आह्वान पर हल्द्वानी में भी प्रदर्शन किया गया। सीपीआई-एमएल के प्रदेश सचिव राजा बहुगुणा ने कहा कि आज के प्रदर्शन में श्रमिक हितों की बात तो की ही गई, श्रमिक भी छात्रों के उपर हो रहे अत्याचार को लेकर मुखर हुए। सस्ती शिक्षा और फीस कम करने की छात्रों की मांग को श्रमिक संगठनों ने अपना समर्थन दिया साथ ही जेएनयू-जामिया में छात्रों के उपर किए गए हमले का विरोध किया। जेएनयू के वीसी को हटाने की मांग की। प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति के लिए ज्ञापन सौंपा गया। 

देशभर में बैंकिंग सेवाओं पर पड़ा असर

दस केंद्रीय मजदूर संगठनों की ओर से बुलाई गई देशव्यापी हड़ताल में बैंक कर्मचारियों के शामिल होने से बुधवार को बैंकिंग सेवाओं पर असर पड़ा।

हड़ताल की वजह से देश में कई जगहों पर सार्वजनिक बैंकों की शाखाओं में नकदी जमा करने और निकालने समेत अन्य गतिविधियां प्रभावित रहीं।

ज्यादातर बैंक पहले ही अपने ग्राहकों को हड़ताल और उससे बैंकिंग सेवाओं पर पड़ने वाले असर के बारे में ग्राहकों को बता चुके थे। बैंक कर्मचारियों के सगठनों एआईबीईए, एआईबीओए, बीईएफआई, आईएनबीईएफ, आईएनबीओसी और बैंक कर्मचारी सेना महासंघ ने हड़ताल का समर्थन करने और इसमें भाग लेने की इच्छा जाहिर की थी।

अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने पीटीआई-भाषा को बताया कि बैंक कर्मचारियों ने 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रव्यापी हड़ताल के आह्वान का समर्थन किया।

उन्होंने कहा, "हमने बैंक विलय, निजीकरण, शुल्क वृद्धि और वेतन से जुड़े अन्य मुद्दों को लेकर सरकार की नीतियों का विरोध किया है।"
ऑल इंडिया रिजर्व बैंक एंप्लॉयज एसोसिएशन (एआईआरबीईए) और ऑल इंडिया रिजर्व बैंक वर्कर्स फेडरेशन (एआईआरबीडब्ल्यूएफ) और कुछ बीमा यूनियनों ने भी हड़ताल का समर्थन किया।

आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के सदस्यों के साथ विभिन्न क्षेत्रीय महासंघों ने भी हिस्सा लिया। 

उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया, "हम महंगाई, सार्वजनिक कंपनियों की बिक्री, रेलवे, रक्षा, कोयला समेत अन्य क्षेत्रों में 100 प्रतिशत एफडीआई और 44 श्रम कानूनों को संहिताबद्ध करने (श्रम संहिता) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।"

कौर ने कहा कि हमारी अन्य मांगों में सभी के लिए 6000 रुपये न्यूनतम पेंशन, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थम मूल्य (एमएसपी) और लोगों को राशन की पर्याप्त आपूर्ति शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि दिल्ली में बारिश आंदोलन पर असर नहीं डाल सकी है। कौर ने कहा, "हमें पूरे देश भर से खबरें मिल रही हैं। भेल के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए हैं। ऑयल यूनियन हड़ताल पर है। पूर्वोत्तर, ओडिशा, पुडुचेरी, केरल और महाराष्ट्र में बंद की स्थिति है।"

देश भर में हुई हड़ताल की तस्वीरें 

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हिमाचल प्रदेश

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मध्य प्रदेश

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गुरुग्राम

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मुंबई 

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तमिलनाडु 

(समाचार एजेंसी भाषा के कुछ इनपुट के साथ)

Jan 8 Strike
Modi Anti-People Policies
unemployment
Joblessness
Economic slowdown
Farmer distress
CAA-NPR-NRC
Fee Hikes
Workers’ Unity
Central Tus

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