NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
विज्ञान
भारत
अंतरराष्ट्रीय
चमोली के मंडल में कीटभक्षी पौधों का अद्भुत संसार
चटक रंगों और खुशबू से ये कीटों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इनकी संरचना ऐसी होती है कि करीब आने वाले कीट इनसे चिपक जाते हैं और ये उन्हें अपना निवाला बना लेते हैं। इन पौधों के मुंह के पास बालों जैसी बारीक संरचना होती है, जैसे ही कोई उड़ता कीट इन बालों जैसी संरचना को छूता है, एक फ्लैप खुलता है और पौधा उसे निगल लेता है।
वर्षा सिंह
03 Sep 2020
चमोली के मंडल में कीटभक्षी पौधों का अद्भुत संसार

चमोली में रुद्रनाथ ट्रैक के करीब 22 किलोमीटर पैदल सफ़र के दौरान गीली ज़मीन पर बिछी काई के बीच यूट्रिकुलेरिया के पौधे मिले। ये कीड़े-मकोड़ों को खाने वाले मांसाहारी पौधे थे। जिनके बारे में हमारी जानकारी बेहद सीमित है। वैज्ञानिकों ने भी इन पर बहुत काम नहीं किया। उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के शोधार्थी मनोज सिंह ने यूटिकुलेरिया समेत राज्य में पाए जाने वाले तीन कीटभक्षी पौधों की प्रजातियों की खोज और पहचान की है। चमोली के मंडल में कीटभक्षी पौधों का संरक्षण केंद्र बनाया गया है। जहां आप अचंभित करने वाले इन कीटभक्षी पौधों को देख सकते हैं।

कीटभक्षी पौधों का परिवार

तीन परिवारों (Droseraceae, Nepenthaceae और Lentibulariaceae) की 40 प्रजातियां देश में कीटभक्षी पौधों के रूप में दर्ज हैं। इनमें से सिर्फ तीन प्रजातियां उत्तराखंड में पायी जाती हैं। ड्रोसेरा पेल्टाटा (Drosera peltata), यूट्रिकुलेरिया समूह (Utricularia) और पिंजिकुला अल्पाइना (Pinguicula alpina)। यूट्रिकुलेरिया समूह की कुल 240 प्रजातियों की पहचान की गई है। इनमें से 17 उत्तराखंड में पायी जाती हैं। ड्रोसेरा पेल्टाटा और पिंजिकुला अल्पाइना की एक-एक प्रजातियां राज्य में मौजूद हैं। ड्रोसेरा पेल्टाटा को स्थानीय भाषा में मुखजली भी कहा जाता है। यूट्रिकुलेरिया स्ट्रिएटुला को पापनी नाम दिया गया है। लेकिन सभी पौधों को स्थानीय पहचान और नाम नहीं मिले। पिंजिकुला अल्पाइना, उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के विलुप्त होने की कगार पर आ पहुंचे 16 प्रजातियों में से एक है। यूट्रिकुलेरिया समूह के कुछ पौधे भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे हैं।

ड्रोसेरा पेल्टाटा.png

कीड़े क्यों खाते हैं ये पौधे

अमूमन पेड़-पौधे अपनी खुराक मिट्टी से लेते हैं। जड़ें मिट्टी के पोषक तत्वों को खींचती हैं तो पत्तियां फोटोसिंथेसिस यानी प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से भोजन बनाती हैं। लेकिन मांसाहारी पौधों की जड़ों का काम उन्हें मिट्टी में जमाए रखना है और इनकी पत्तियां भोजन बनाना नहीं जानती। तो खुद को जिंदा रखने की खातिर जरूरी पोषक तत्वों के लिए ये पौधे कीड़े-मकोड़ों का शिकार करते हैं। उनसे उनका नाइट्रोजन चुरा लेते हैं बाकि सब उनके लिए कचरा है।

कैसे करते हैं ये पौधे अपना शिकार

शोधार्थी मनोज बताते हैं कि कीटभक्षी पौधे उन्हीं जगहों पर पाए जाते हैं जहां की मिट्टी में नमी होती है और जरूरी पोषक तत्व पूरे नहीं होते। चटक रंगों और खुशबू से ये कीटों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इनकी संरचना ऐसी होती है कि करीब आने वाले कीट इनसे चिपक जाते हैं और ये उन्हें अपना निवाला बना लेते हैं। इन पौधों के मुंह के पास बालों जैसी बारीक संरचना होती है, जैसे ही कोई उड़ता कीट इन बालों जैसी संरचना को छूता है, एक फ्लैप खुलता है और पौधा उसे निगल लेता है। कुछ पौधों के डंठल पर चिपचिपा गोंद जैसा पदार्थ होता है, जिससे कीट उनमें चिपक जाता है और हिल-डुल नहीं पाता। भोजन पचाने के लिए कुछ पौधों के पास एनज़ाइम्स होते हैं तो कुछ के अपने बैक्टीरिया। कीटों और उनके लार्वा को खाकर ये अपने आसपास इनकी संख्या भी नियंत्रित करते हैं और जैव विविधता में अपना योगदान देते हैं।

चमोली में हैं कीटभक्षी पौधों का समृद्ध संसार

मनोज बताते हैं कि स्थानीय लोग भी इन पौधों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते। ड्रोसेरा पेल्टाटा का इस्तेमाल मुंह के छाले ठीक करने के लिए होता है। स्वर्णभस्मा चूर्ण बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता है। ये मैदानी और पर्वतीय दोनों क्षेत्रों में पाया जाता है। उत्तराखंड में ये चमोली के मंडल, देवलधर, नारायणबगड़, गैरसैंण के साथ अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ के थल केदार के पास पाया गया।

यूट्रिकुलेरिया समूह के ब्रैशियाटा पौधे उच्च हिमालयी क्षेत्र रुद्रनाथ के घास के मैदानों और तुंगनाथ के आसपास मिले। 2-5 सेंटीमीटर लंबे ट्यूब जैसी संरचना वाले पौधे के एक-दो छोटे सफेद फूल और रोएंदार पीला गला होता है। ये उत्तराखंड की दुर्लभ स्थानीय प्रजाति है। इसी समूह का स्ट्रिएटुला अफ्रीका, श्रीलंका, बारत, नेपाल, भूटान, चीन समेत कई देशों में मौजूद है और उत्तराखंड के मंडल और गोपेश्वर में पाया गया।

यूट्रिकुलेरिया स्केंडन्स भी समुद्रतल से 2300 मीटर तक की ऊंचाई पर मंडल घाटी में पाया गया। इसका संसार भी अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान तक फैला है। इसके पीले फूल और रोएंदार गला कीटों को गटकने का काम करता है। यूट्रिकुलेरिया कुमाऊंनिसिस बेहद छोटे कद और 2250 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पाया जाता है।

यूट्रिकुलेरिया पौधे बहते पानी के नज़दीक होते हैं। पानी में बह कर आए कीट-लार्वा या बेहद सूक्ष्म कीटों को इसका ट्रैप सिस्टम पकड़ लेता है, फिर अंदर गटक लेता है। इनके फूल बारिश के दो महीनों के दौरान ही निकलते हैं।

6-7 वर्ष में एक बार खिलता है पिंजिकुला अल्पाइना का फूल

वहीं पिंजिकुला अल्पाइना समुद्र तल से 3000-5000 मीटर तक की ऊंचाई पर पाया जाता है। सिक्किम और जम्मू-कश्मीर में भी पाए जाने वाले इस पौधे में 6-7 वर्ष के अंतराल पर फूल आते हैं। इतनी देरी से फूल खिलने का मतलब कि बीज बनने की प्रक्रिया भी इतनी ही लंबी होती है। मनोज सिंह कहते हैं ये पौधे ज्यादातर बर्फीले क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां भूस्खलन जैसी प्राकृतिक मुश्किलें बनी रहती हैं। यदि एक बार भी भूस्खलन या अन्य किसी वजह से पौधा खत्म हो गया तो वहां से पूरी तरह मिट जाता है। इसीलिए ये विलुप्त होने की कगार पर आ पहुंचा है। हरे रंग की इसकी चौड़ी पत्तियों पर कीड़े चिपके हुए दिखाई देते हैं। ये पौधे भी औषधीय गुणों वाले होते हैं।

उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि कीटभक्षी पौधों पर उत्तराखंड में बेहद कम काम हुआ है। पिछले वर्ष इन पौधों के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। चमोली के मंडल केंद्र में कीटभक्षी पौधों की प्रजातियों को संरक्षित किया गया है। वह बताते हैं रिसर्च एडवाइजरी बॉडी ने इस प्रोजेक्ट के लिए पांच वर्ष का समय दिया था। लेकिन शोधार्थी और कर्मचारियों ने एक वर्ष के भीतर ही राज्य में मौजूद सभी प्रजातियां संरक्षित की हैं। संजीव कहते हैं कि देश के दूसरे हिस्सों में भी हम इन पौधों को देखना चाहते हैं। ताकि इन पौधों को ज्यादा बेहतर तरीके से समझा जा सके। इन पर वैज्ञानिक अध्ययन किया जा सके।

Plants
Flowers
Droseraceae
Nepenthaceae
Lentibulariaceae
Sea Plants
Plants & Algae
Nature
Environment

Related Stories

क्या इंसानों को सूर्य से आने वाले प्रकाश की मात्रा में बदलाव करना चाहिए?

जलवायु परिवर्तन, विलुप्त होती प्रजातियों के दोहरे संकट को साथ हल करने की ज़रूरत: संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिक

बर्ड फ्लू और कोरोना के बीच जैव-विविधता के खतरे से आगाह करता है पॉलीनेटर पार्क

कुदरत का करिश्मा है काई, जो बन सकती है आपके गले का हार

तेज़ी से पिघल रहे हैं सतोपंथ और ऋषि गंगा ग्लेशियर

जैव विविधता के संकट में चमोली में मिले दुर्लभ ऑर्किड फूलों ने दी उम्मीद

जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं!


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License