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दिल्ली के बॉर्डर पर जश्न के बीच किसानों के होंठों पर एक ही सवाल: 'सरकार ने क्यों की इतनी देर'
किसान आंदोलन के केंद्र सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर मौजूद प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे तब तक घर नहीं लौटेंगे, जब तक कि संसद में विवादास्पद कृषि क़ानूनों को वापस लेने के लिए एक विधेयक पारित नहीं हो जाता।
रौनक छाबड़ा
20 Nov 2021
farmers’ movement
सिंघु बॉर्डर पर कृषि क़ानूनों को निरस्त करने के ऐलान के बाद जश्न मनाते किसान। फ़ोटो:रौनक छाबड़ा

सिंघु/टिकरी बॉर्डर: बांटी जा रही मिठाइयां, मुस्कुराते चेहरे, तेज़ संगीत और ख़ुशी ज़ाहिर करते हवा में लहराते हाथ-ये ख़ुशी के मंज़र थे, जो राष्ट्रीय राजधानी के उन बॉर्डर पर देखे गये, जो विरोध स्थलों में बदल गये थे। शुक्रवार को आंदोलनकारी किसानों ने कहा कि वे तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों को रद्द करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बावजूद यहां डटे हुए हैं।

केंद्र सरकार में "विश्वास नहीं रह जाने" के बाद किसानों ने कहा कि वे "घर वापस तबतक नहीं जायेंगे", जब तक कि इस हालिया फ़ैसले को "लिखित रूप में" दर्ज नहीं कर लिया जाता है, यानी कि संसद में इन क़ानूनों को निरस्त करने के लिए एक क़ानून पारित कर इसे औपचारिक रूप नहीं दे दिया जाता है।

एक बड़ा क़दम उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार की सुबह राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए यह ऐलान किया कि उनकी सरकार ने उन तीनों कृषि क़ानूनों को निरस्त करने का फ़ैसला कर लिया है, जिनके पिछले साल सितंबर में संसद में पारित होने के चलते किसानों के संगठनों ने देश भर में ज़बरदस्त विरोध किया था।  

मोदी ने अपने सम्बोधन में "राष्ट्र से माफ़ी मांगते हुए" कहा कि दिसंबर के अंत में शुरू होने वाले आगामी संसद सत्र में इन क़ानूनों को निरस्त करने की प्रक्रिया पूरी हो जायेगी। उन्होंने प्रदर्शन कर रहे किसानों से अब अपने-अपने घरों को लौट जाने की अपील की।

यह हैरतअंगेज़ ऐलान गुरु नानक जयंती के उस शुभ अवसर पर हुआ, जो सिख समुदाय के लिए बहुत धार्मिक अहमियत रखता है, और दिल्ली के बॉर्डर पर किसानों के धरने के एक साल पूरा होने में कुछ ही दिन बाक़ी है।

मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक, 2020 का किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता; किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020; और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 जैसे "सुधार-उन्मुख" इन तीन कृषि क़ानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए ख़ास तौर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से से हज़ारों किसानों ने पिछले साल 26 नवंबर को राष्ट्रीय राजधानी में मार्च किया था।

शहर में दाखिल होने से रोक देने के बाद वह मार्च जल्द ही धरना-प्रदर्शन में बदल गया था और आंदोलनकारी किसानों ने तब राष्ट्रीय राजधानी के सीमावर्ती फ़ाटकों,यानी सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बैठने का फ़ैसला किया था।

शुक्रवार, 19 नवंबर को इन तीनों बॉर्डर पर 'किसान एकता ज़िंदाबाद' के नारे हावाओं में गूंज़ने लगे। सिंघु बॉर्डर पर मौजूद पंजाब के गुरदासपुर ज़िले के किसान सरबजीत सिंह का कहना था, “मोदी सरकार को आख़िरकार झुकना पड़ा। यह किसानों के आंदोलन और इस समय सत्ता में बैठे लोगों के ख़िलाफ़ अपना ग़ुस्सा निकालने को लेकर हमारे साथ शामिल होने वाले लाखों दूसरे लोगों की भी जीत है।”

टिकरी बॉर्डर पर भारतीय किसान संघ (एकता उगरहां) के प्रीतम सिंह ने कहा, “आख़िरकार,तक़रीबन एक साल के संघर्ष के बाद यह किसान विजेता बनकर उभरे हैं। यह राष्ट्र के लिए एक महान पल है, क्योंकि यह आंदोलन उन लोगों की ताक़त के बारे में बोलता है, जब वे एक साथ मिल आते हैं।”

जश्न मनाने वाले किसानों ने किये गये इस ऐलान के समय पर भी सवाल उठाया। कई लोगों का मानना था कि यह ऐलान उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब सहित चुनाव होने वाले उन राज्यों में "मतदाताओं" को ख़ुश करने के अलावा और कुछ नहीं है, जहां पिछले साल इन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ नारे गूंजते रहे हैं। सिंघु बॉर्डर पर एक किसान ने नाम नहीं छापने की बात करते हुए कहा, “उन्होंने इतने महीनों तक इंतज़ार क्यों किया। यह सरकार राजनीति और अपने फ़ायदे के अलावा और कुछ सोचती ही नहीं है।”

जहां कई प्रदर्शनकारी ख़ुश लग रहे थे, वहीं कुछ प्रदर्शनकारी ने "जश्न मनाने में बहुत जल्दबाज़ी दिखाने" को लेकर आगाह भी किया। उन्होंने इस बात पर रौशनी डाली कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाली मौजूदा केंद्र सरकार "जुमलेबाज़ी" में माहिर है। इस 'जुमले' को सरकार की ओर से किये जाने वाले झूठे वादों को दर्शाते हुए एक राजनीतिक शब्द के रूप में वर्णित किया जा सकता है। यह शब्द 2014 में भाजपा की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की जीत के बाद चलन में आया था।

टिकरी सीमा पर मौजूद लुधियाना की गुरिंदर कौर ने कहा, “इस सरकार का जुमला बनाने का इतिहास रहा है। इसलिए, हमें जश्न मनाने में बहुत जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। हमें सरकार पर अपना भरोसा नहीं रहा है। सरकार को इन क़ानूनों को उसी तरह निरस्त करने दें, जिस तरह उसने इन्हें पारित किया था,यानी संसद में एक विधेयक तो पारित करें।"

कुरुक्षेत्र के इंद्रजीत सिंह ने भी कहा कि यह जश्न मनाने का “समय नहीं” है, क्योंकि केंद्र ने किसान आंदोलन की “मांगों” में से महज़ एक पर ही सहमति जतायी है। उन्होंने कहा, "एमएसपी और बिजली क़ानूनों के सम्बन्ध में किसानों की मुख्य मांग अभी भी पूरी नहीं हुई है।" उन्होंने कहा कि जबतक ये मांगें पूरी नहीं हो जातीं,तब तक यह आंदोलन "बंद" नहीं होगा।

किसान 2003 के बिजली क़ानून में संशोधन को वापस लेने के साथ-साथ सभी फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सुनिश्चित करने के लिए भी एक विधेयक की मांग कर रहे हैं।

विरोध करने वाले किसानों से अब घर लौट जाने की पीएम मोदी की अपील पर उनकी प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा कि यह तो आंदोलन का नेतृत्व कर रहे किसान संगठनों के छतरी संगठन-संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के नेता तय करेंगे।

 संयुक्त किसान मोर्चा ने शुक्रवार को मोदी के ऐलान को किसानों की 'ऐतिहासिक पहली जीत' क़रार दिया।

“...अभी भी कई मांगें लम्बित हैं, और प्रधानमंत्री मोदी इन लम्बित मामलों को लेकर जानते हैं। एसकेएम को उम्मीद है कि भारत सरकार…विरोध करने वाले किसानों की उन सभी जायज़ मांगों को पूरा करने के लिए पूरी ताक़त लगायेगी, जिनमें लाभकारी एमएसपी की गारंटी के लिए वैधानिक क़ानून भी शामिल है।” मोर्चा ने शुक्रवार को प्रेस को जारी एक बयान में कहा कि बन रही स्थिति के आकलन के बाद आने वाले दिनों में एक और फ़ैसला लिया जायेगा।

ऐलान को लेकर मनाये जाने वाले जश्न के बीच शुक्रवार को आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को भी श्रद्धांजलि दी गयी। एसकेएम ने मांग रखी कि पंजाब सरकार उन "साहसी शहीदों" के लिए एक स्मारक बनाये।

हालांकि, पंजाब के बरनाला के गुरमीत सिंह का मानना है कि स्मारक बनाना पर्याप्त नहीं है। "हम सभी को आंदोलन में मारे गये किसानों के लिए मुआवज़े और उनके परिवार के कम से कम एक सदस्य के लिए नौकरी की मांग करनी चाहिए।"

एक अनुमान के मुताबिक़, पिछले साल नवंबर से अब तक तक़रीबन 700 किसानों की मौत अलग-अलग कारणों से हुई है, जिनमें आत्महत्या या किसी बीमारी से हुआ संक्रमण भी शामिल है।

ट्रेड यूनियन समर्थक नोदीप कौर ने भी इन कृषि क़ानूनों को निरस्त करने के ऐलान का स्वागत करते हुए कहा कि यह "जीत" श्रमिक आंदोलन को "मज़बूती" देने में भूमिका भी निभायेगी।

उन्होंने सिंघु बॉर्डर पर चल रहे समारोह में शामिल होते हुए कहा, "हमें याद रखना चाहिए कि पिछले साल सितंबर में पारित श्रम क़ानूनों को अभी तक वापस नहीं लिया गया है। किसानों की जीत निश्चित रूप से ट्रेड यूनियन आंदोलन को मज़बूती देगी।लेकिन, हमें तब तक नहीं रुकना चाहिए, जब तक कि मज़दूर विरोधी नीतियों को भी वापस नहीं ले लिया जाता।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Amid Celebrations at Delhi Borders, a Question on Farmers’ Lips: ‘Why Did Govt Wait This Long’

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