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भारत
राजनीति
क्यों मुसलमानों के घर-ज़मीन और सम्पत्तियों के पीछे पड़ी है भाजपा? 
पिछली सदी के दौरान दिल्ली में राजकीय तंत्र द्वारा मुसलमानों को घनी बस्तियों में अपनी जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर किया गया है।
टिकेंदर सिंह पंवार
23 Apr 2022
bulldozer

प्रसिद्ध राजनीतिक दार्शनिक, लेखक और होलोकास्ट (प्रलय) से जीवित बच कर निकलने वाले, हन्नाह अरेंडट ने द ओरिजिन ऑफ़ तोटेलिटारियनरिज्म (अधिनायकवाद के मूल) ने लिखा: “सिर्फ भीड़ और अभिजात वर्ग को ही अधिनायकवाद की गति से आकर्षित किया जा सकता है। जबकि आम जनता को प्रचार से जीतना होगा।” इस बात का जिक्र करते हुए कि कैसे 20वीं शताब्दी के शुरूआती दशकों में जर्मनी में नाज़ी गिरोहों ने फासीवाद को कितने वृहद पैमाने पर क्रूरता से लागू किया था। 

भारत में इसके समानांतर उदाहरण के तौर पर ‘भीड़, अभिजात एवं बिग मीडिया हाउस’ हैं, जो न सिर्फ अल्पसंख्यकों पर हमलों को सुनिश्चित करते हैं बल्कि अपने विकृत तर्कों से इसे न्यायोचित भी ठहराते हैं। हाल ही में राम नवमी और हनुमान जयंती के जुलूसों के दौरान कुछ इसी प्रकार की खतरनाक प्रवृत्ति देखने को मिली है, जो हिंदुत्व के गिरोहों के ऊँचे स्वर वाले प्रचार का प्रतीक था।

यहाँ पर काम करने का ढंग एक जैसा था: कान-फोडू संगीत बजाने वाले गिरोह का मुस्लिम आस-पड़ोस की बस्तियों में प्रवेश करना, भड़काऊ नारों का इस्तेमाल, वहां के निवासियों के साथ गाली-गलौज करना, मस्जिदों पर भगवा झंडों को फहराने की कोशिश, और उनकी संपत्तियों के साथ तोड़-फोड़ शामिल था। जब वहां के निवासियों ने इसका विरोध किया, तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्य सरकारों ने पुलिस और बुलडोजर के माध्यम से अवैध इमारतों को जमींदोज करने के बहाने, मुख्यतया मुसलमानों की इमारतों या दुकानों को ध्वस्त करने के काम में लिया।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राम नवमी के दौरान हुई झड़पों के बाद आयोजित एक प्रेस वार्ता में कहा “दंगाइयों को बक्शा नहीं जायेगा।” इसके साथ ही खरगोन में अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित कई ढांचों और घरों को जमींदोज कर दिया गया और 121 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था, जिनमें से ज्यादातर मुस्लिम थे। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इनमें से कुछ घर तो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत खरगोन में बनाये गए थे। एक अन्य मीडिया रिपोर्ट में पता चला कि ‘आगजनी करने वालों में’ से एक जिसका नाम आरोपियों की सूची में दर्ज था, वह पिछले कई महीनों से जेल में बंद है और उसका इस दंगे से कोई लेना-देना नहीं था।

इसी प्रकार वसीम शेख पर रामनवमी की शोभायात्रा पर पथराव करने का आरोप लगाने के बाद उनके घर को ध्वस्त करने वाली खरगोन प्रशासन को इस बात का भी अहसास नहीं रहा कि 2005 में बिजली के झटकों के बाद उनके हाथ तो काट दिए गए थे। दो बच्चों के इस पिता के पास पांच लोगों के परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी है। 

जवाहरलाल नेहरु विश्विद्यालय, दिल्ली में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कथित सदस्यों ने एक छात्रावास में घुसकर छात्रों के साथ मारपीट की और उन्हें रामनवमी पर मांसाहारी भोजन न खाने की चेतावनी दी। जब मीडिया के द्वारा इस घटना को व्यापक रूप से रिपोर्ट किया गया, तो इस गिरोह ने जवाहरलाल नेहरु छात्र संघ पर हवन के दौरान हमला करने का आरोप मढ़ दिया। अभी तक इस संदर्भ में किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है।

इस भयावह प्रवृत्ति में जो नवीनतम इजाफा हुआ है वह है हनुमान जयंती के अवसर पर जहांगीरपुरी दंगा, और उसके बाद भाजपा संचालित उत्तरी दिल्ली नगर निगम के द्वारा मुसलमानों से संबंधित दुकानों और भवनों को ढहा देने की घटना रही है। सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा इस पर रोक के आदेश के बावजूद अगले दो घंटे तक यहाँ पर ‘अतिक्रमण-विरोधी’ मुहिम जारी रही। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन को इस अभियान को रोकने के लिए व्यक्तिगत तौर पर हस्तक्षेप करना पड़ा और सीपीआई(एम) की राज्यसभा सांसद बृंदा करात को अदालत के आदेश की कॉपी को लहराते हुए बुलडोजर को रोकना पड़ा।

अल्पसंख्यकों पर इस प्रकार के हमलों को सर्वोच्च स्तर पर आधिकारिक संरक्षण के तहत सुनियोजित तरीके से तैयार किया जा रहा है। यह अल्पसंख्यकों के बीच में भय पैदा करने और उन्हें इस प्रकार हिन्दू राष्ट्र के अपने नए संस्करण को स्वीकार करने के लिए मजबूर करने का यह भाजपा का नया हथकंडा है।

मुसलमानों का पृथक्करण 

लीला नामक एक नेटफ्लिक्स सीरीज़ इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण है कि यदि हिंदुत्व की परियोजना सफल तो हिंदू राष्ट्र के क्या मायने हो सकते हैं। इस धारावाहिक में प्रौद्योगिकी और सांप्रदायिकता के संयोजन को प्रदर्शित किया गया है और जैसा कि वे कहते हैं, "भाजपा का वर्तमान दौर दरअसल सांप्रदायिकता और प्रौद्योगिकी के बीच एक ब्याह के जैसा है"।

भाजपा राज के मुताबिक, कानूनी और गैर-क़ानूनी होने का प्रश्न ही सापेक्ष है- अल्पसंख्यकों ने जो कुछ भी निर्मित किया है वह अवैध है। दिल्ली में मुस्लिमों की पृथक (घेटो) बस्ती पर स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, दिल्ली (जिसमें मैं एक गाइड की भूमिका में था) के छात्रों द्वारा किए गए एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि राजकीय तंत्र के द्वारा किस प्रकार से पिछली शताब्दी में मुसलमानों को झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने के लिए मजबूर किया गया था।

केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि शहरी कामगार वर्ग के बड़े हिस्से को शहरी विकास के अत्यधिक विशिष्ट स्वरूप को अपनाने के कारण झुग्गी बस्तियों में रहने के लिए धकेल दिया गया था। 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से यह समस्या और अधिक बढ़ गई है।

डेल्ही स्क्वैटर्स रिसेटलमेंट प्रोजेक्ट (दिल्ली अतिक्रमण पुनर्वास परियोजना) पर 1977 के डीडीए पुस्तिका में प्रवासी गरीबों को "विकृतियों" के साथ घिरे होने का सबसे अधिक खुलासा करने वाला बयान मौजूद है, जिसमें कहा गया है कि: "शहरी गरीब खस्ताहाल बस्तियों में रहते हैं जो जोखिमों के साथ पहाड़ी क्षेत्रों से चिपके हुये हैं, बदबूदार नालों की पंक्ति, सड़क के किनारे या शहर के अंदर की गलियों में भीड़भाड़ के साथ रहते हैं। अपने जीर्ष-शीर्ण दुख में, वे उन सभी लोगों की आकांक्षा का मजाक उड़ाते हैं जो अपने शहरों को परिष्कृत और आधुनिक बनाने के लिए बेकरार रहते हैं। इसके अलावा, ये लोग स्वागतयोग्य नहीं हैं क्योंकि इनके द्वारा शहरी भूमि पर झोंपड़ियों का निर्माण किया जाता है, जिस पर उनका कोई कानूनी अधिकार नहीं है और जिसके लिए सार्वजनिक सेवाओं के लिए बेहद कम या कोई बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं है। इस समस्या की भयावहता और जटिलता के संदर्भ में ही दिल्ली स्क्वैटर्स पुनर्वास परियोजना को समझा जा सकता है।”

दिल्ली नगर निगम के झुग्गी विकास विभाग के अभिलेखागार एक और महत्वपूर्ण तथ्य को उद्घाटित करते हैं: "मुस्लिमों के गढ़ तुर्कमान गेट में किया गया नरसंहार, आपातकाल के दौर में (1977) में हुई कुख्यात त्रासदियों में से एक है। सामाजिक कार्यकर्ता रुकसाना सुल्ताना के द्वारा दुजाना हाउस में शुरू किए गए नसबंदी अभियान से यहाँ के निवासियों के बीच में भारी अशांति व्याप्त हो गई थी। जैसे ही भय फैलना शुरू हुआ, स्थानीय निवासियों का एक प्रतिनिधिमंडल डीडीए के तत्कालीन उपाध्यक्ष जगमोहन के पास पहुंचाउनसे जानना चाहा कि क्या तुर्कमान गेट के लोगों को एक ही कॉलोनी में एक साथ बसाया जा सकता है? ऐसा कहा जाता है कि विस्थापित मुसलमानों के एक साथ मिलकर अपनी ताकत बढ़ाने के विचार से क्रुद्ध जगमोहन ने जवाब दिया, 'क्या आपको लगता है कि हम पागल हैं जो एक पाकिस्तान को जमींदोज  करने के बाद एक दूसरे पाकिस्तान को निर्मित करेंगे?'

इस वर्तमान शासन का भी यही नजरिया है - लेकिन गरीबों और विशेष रूप से मुसलमानों के प्रति तो यह और भी अधिक प्रबल रूप से है।

यह ग्राफ स्पष्ट रूप से दिखाता है कि कैसे विकास की इस भागमभाग के दौरान गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों को शहर के हाशिए पर धकेल दिया गया है।

एक्यूमुलेशन बाई सेग्रेगेशन: मुस्लिम लोकलटीज इन डेल्ही  में गज़ाला जमील ठीक ही इंगित करती हैं कि मुस्लिम बस्तियों के पृथकक्करण के पीछे की वजह रणनीतियों के नवउदारवादी हमले से लेकर मुसलमानों के उत्पीड़न तक में मौजूद है। इसलिए, जो कुछ भी मुसलमान के द्वारा संपत्ति के रूप में निर्मित किया जाता है उसे जानबूझकर अवैध करार कर दिया जाता है और राज्य द्वारा उसके विध्वंस को सही ठहराया जाता है। भाजपा न सिर्फ ऐसे ढांचों को ध्वस्त करने की इच्छुक है, बल्कि इस प्रकार की संपत्तियों को निर्मित करने और उनके मालिकाने के विचार को ही सिरे से ख़ारिज करने के प्रति तत्पर है।

इस प्रक्रिया में, कई मुस्लिम परिवारों को घेटो बस्तियों में शरण लेने के लिए मजबूर कर दिया गया है, और इस प्रकार उन्हें शहर से और भी अलग-थलग कर दिया गया है और ठीक यही चीज हिंदुत्व गिरोह चाहता है।

(लेखक शिमला, हिमाचल प्रदेश के पूर्व डिप्टी मेयर रहे हैं। व्यक्त किये गए विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: 

BJP Wants to Demolish Idea of Muslims Owning Assets

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