NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
दुनिया भर की: स्वीडन को पहली महिला प्रधानमंत्री का इंतज़ार
स्कैंडिनेवियाई देशों (डेनमार्क, नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड) में इस समय केवल स्वीडन ही अकेला देश है जहां कभी महिला प्रधानमंत्री नहीं रही।
उपेंद्र स्वामी
15 Nov 2021
Magdalena Andersson
फाइल फोटोः सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी की नेता मैगडेलीना एंडरसन और निवर्तमान प्रधानमंत्री स्टीफन लॉफवेन। फोटो साभारः रायटर्स

स्टीफन लॉफवेन के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद स्वीडन को इस बात का इंतजार है कि क्या मैगडेलीना एंडरसन देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बन पाएंगी। उन्हें इसके लिए एक वोट के रूप में संसद से मंजूरी हासिल करनी होगी। अभी तक के संकेतों से तो यही यह लग रहा है कि सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी की नेता एंडरसन लेफ्ट पार्टी के समर्थन से सरकार बना सकती हैं।

स्कैंडिनेवियाई देशों (डेनमार्क, नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड) में इस समय केवल स्वीडन ही अकेला देश है जहां कभी महिला प्रधानमंत्री नहीं रही। बाकी देशों में बहुत पहले ही महिला नेता सत्ता संभाल चुकी थीं और, फिनलैंड व डेनमार्क में तो इस समय भी महिला प्रधानमंत्री ही देश का शासन संभाले हुए हैं। इस लिहाज से यह मुनासिब है लगता है कि स्वीडन में भी महिला ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे।

लॉफवेन ने पिछले हफ्ते इस्तीफा दे दिया था और उनकी सरकार में वित्त मंत्री की जिम्मेदारी संभालने वाली मैगडेलीना एंडरसन को उत्तराधिकारी के तौर पर नियुक्त कर दिया था। किसी जमाने में एक वेल्डर और यूनियन नेता रह चुके लॉफवेन 2014 से ही ग्रीन पार्टी के साथ मिलकर एक अल्पमत गठबंधन सरकार चला रहे थे। उन्होंने इस साल के शुरू में कहा था कि वह सितंबर 2022 में होने वाले अगले आम चुनावों से पहले अपना पद छोड़ देंगे।

इस्तीफा देने से पहले ही एंडरसन, लॉफवेन की जगह सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी की नेता बन गई थीं। लिहाजा माना यही जा रहा है कि प्रधानमंत्री के तौर पर संसद का पहला विकल्प वहीं होंगी। लॉफवेन ने अगस्त में कहा था कि आम चुनावों में बमुश्किल एक साल बचा है और जरूरी है कि सत्ता का हस्तांतरण तुरंत व सहजता से हो जाए।

अब यह कहना तो मुश्किल है कि एंडरसन के पास संसद की स्वीकृति पाने के लिए पर्याप्त वोट हैं या नहीं, लेकिन प्रधानमंत्री पद पर बैठने के लिए उन्हें संसद का बहुमत नहीं चाहिए। उन्हें तो बस यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके खिलाफ वोट करने वाले बहुमत में न हों। स्वीडन की संसद में 349 सीटें हैं।

स्वीडन की सेंटर पार्टी इस बात पर रजामंदी जहिर कर चुकी है कि वह एंडरसन की दावेदारी का विरोध नहीं करेगी, बशर्ते बिल्डिंग नियमों को थोड़ा आसान बना दिया जाए और जंगलों के स्वामित्व के कानूनों में थोड़ा बदलाव कर दिया जाए। फिर भी एंडरसन को पूर्व की कम्युनिस्ट मौजूदा लेफ्ट पार्टी का साथ तो चाहिए ही होगा, सरकार के भीतर रहकर नहीं तो बाहर से ही सही। लेकिन इसके लिए लेफ्ट पार्टी के नेता नूशी दादगोस्तार नीतियों में अपना भी थोड़ा-बहुत दखल मांग रहे हैं।

अब दिक्कत यही है कि एंडरसन यदि लेफ्ट पार्टी को इस तरह का कोई वादा करती हैं तो उनके सामने सेंटर पार्टी का समर्थन खोने का डर रहेगा। सेंटर पार्टी की जड़ों का झुकाव थोड़ा दक्षिणपंथी रहा है और वह सरकार पर किसी तरह के वामम प्रभाव के पक्ष में नहीं है।

दिक्कत तभी है जब संसद का बहुमत एंडरसन के खिलाफ वोट कर दे। उस स्थिति में मॉडरेट (उदार) पार्टी के नेता उल्फ क्रिस्टेरसन को मौका मिलेगा। क्रिस्टेरसन को स्वीडन डेमोक्रेट्स का समर्थन हासिल है जो मुख्य तौर पर शरणार्थी-प्रवासी विरोधी पार्टी है। लेकिन हकीकत यह भी है कि सेंटर पार्टी और लेफ्ट पार्टी- दोनों ही अगली सरकार पर स्वीडन डेमोक्रेट्स का किसी तरह का असर नहीं चाहते। ऐसे में सेंटर व लेफ्ट, दोनों से यह अपेक्षा रहेगी कि वे अपनी स्थिति से थोड़ा-थोड़ा आगे-पीछे हों।

फिलहाल संसद के स्पीकर एंद्रियास नॉर्लेन ने संसद में प्रतिनिधित्व रखने वाली सभी आठ पार्टियों के नेताओं से अलग-अलग चर्चा कर ली है और उसके बाद उन्होंने एंडरसन को पहला मौका देने का फैसला किया है। स्वीडिश भाषा में इस प्रक्रिया को तालमंसरुंडा कहते हैं। तालमन वहां संसद के स्पीकर को कहा जाता है और रुंडा यानी दौर या चक्र, इससे बना स्पीकर की चर्चाओं का दौर यानी तालमंसरुंडा।

अब एंडरसन के पास मंगलवार यानी कल सवेरे तक का समय है कि वह अपनी दावेदारी की रजामंदी स्पीकर तक पहुंचा दें। फिर, दो दिन बाद यानी 18 नवंबर को संसद में प्रधानमंत्री के लिए वोट हो सकता है और एंडरसन उसमें कामयाब हो जाएं तो 22 नवंबर को उनकी नई सरकार सत्ता संभाल सकती है। हालांकि यदि एंडरसन को लगता है कि उनके पास जीत के लायक वोटों का जुगाड़ नहीं हो पाया है तो वह स्पीकर से कुछ दिन का वक्त और मांग सकती हैं।

स्वीडन की संसदीय व्यवस्था थोड़ी उलट है। वहां आपको बहुमत हासिल करने की जगह यह सुनिश्चित करना होता है कि आपके खिलाफ बहुमत वोट न पड़ें। लेकिन यदि अंतर कम हो तो फिर स्थिर सरकार चलाना तलवार की धार पर चलने जैसा होता है।

संसद में सोशल डेमोक्रेट्स की 100 सीटें हैं और उसके साथ गठबंधन में शामिल ग्रीन पार्टी के पास 16 सांसद हैं। इसके अलावा सेंटर पार्टी की 31 सीटें हैं और लेफ्ट पार्टी की 28। इन सबको मिला लिया जाए तो 349 में से बहुमत के लायक कुल 175 वोट बन जाते हैं। दक्षिणपंथी पार्टियों के इससे महज एक कम यानी 174 वोट हैं। यह सारा समीकरण काम कर जाए, इसके लिए जरूरी है कि पार्टियों का समर्थन सुनिश्चित करने के राह की सारी बाधाएं दूर कर ली जाएं। लॉफवेन ने तो सेंटर पार्टी से बातचीत के बाद ही इस्तीफा दिया था। लिहाजा सेंटर पार्टी ने एंडरसन को समर्थन देने का वादा कर लिया था। अब रह गया है लेफ्ट पार्टी को मनाने का मसला जिसपर एंडरसन लगी हुई हैं।

लॉफवेन फिलहाल कामचलाऊ प्रधानमंत्री बने हुए हैं। अभी उनकी सरकार को बजट प्रस्ताव भी संसद से पारित कराने हैं। इनपर संसद में 24 नवंबर को वोट होना है और न तो सेंटर पार्टी और न ही लेफ्ट पार्टी ने सरकार के बजट को समर्थन देने का वादा किया है। लेकिन एंडरसन की सरकार बनेगी या नहीं, इसका फैसला तो उससे भी पहले हो सकता है।

(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Sweden
Magdalena Andersson

Related Stories

फ़िनलैंड-स्वीडन का नेटो भर्ती का सपना हुआ फेल, फ़िलिस्तीनी पत्रकार शीरीन की शहादत के मायने

COVID-19: क्यों भारत को संक्रमण रोकने के लिए ''स्वीडन जैसे तरीक़ों'' से परहेज़ करना चाहिए


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License