NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
आंदोलन
उत्पीड़न
मज़दूर-किसान
भारत
असम: मिकिर बामुनी निवासियों के इंसाफ़ के लिए गुवाहाटी में लोगों का प्रदर्शन
पिछले छह महीनों से मिकिर बामुनी के ग्रामीण, राज्य सरकार द्वारा उनकी जमीन पर उनके अधिकार को एक निजी निगम के हाथों सुपुर्द किये जाने के खिलाफ विरोध कर रहे हैं।
संदीपन तालुकदार
25 Aug 2021
assam tribals

24 अगस्त, मंगलवार को गुवाहाटी में विभिन्न संगठनों के अनेकों कार्यकर्त्ताओं और संवेदित नागरिकों ने असम के नगांव जिले में स्थित एक गाँव मिकिर बामुनी के निवासियों के लिए न्याय की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया।

अब से लेकर पिछले छह महीनों से मिकिर बामुनी के ग्रामीण उस जमीन पर अपने अधिकारों की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसे एक बहुराष्ट्रीय कंपनी, एजयोर पॉवर के नाम कर दिया गया है। जिस भूमि को एजयोर को सौंपा गया है, उसका इस्तेमाल मिकिर बामुनी के लोग लंबे अर्से से करते आ रहे थे। एजयोर पॉवर इस भूमि पर सौर उर्जा संयंत्र स्थापित करने के लिए निर्माण कार्य शुरू कर चुका है।

गुवाहाटी में प्रदर्शनकारियों ने विरोध के प्रतीक स्वरुप एक मानव श्रृंखला निर्मित की, जिसमें मिकिर बामुनी के संघर्षरत ग्रामीणों के साथ एकजुटता का प्रदर्शन किया गया और स्वदेशी लोगों के अपनी भूमि पर अधिकारों की मांग को दोहराया गया।

विरोध स्थल से न्यूज़क्लिक से बात करते हुए आल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस), असम के सह-सचिव, जयंत गोगोई ने कहा, “सबसे पहली बात तो यह है कि असम सरकार द्वारा किसी बहुराष्ट्रीय उद्यम को उपजाऊ भूमि सौंपना ही अपने आप में एक बेहद अनैतिक एवं अन्यायपूर्ण कृत्य है। सरकार ने एजयोरपॉवर को जमीन हस्तांतरण करने से पहले एक रिपोर्ट में कहा था कि यह भूमि अनुपजाऊ है, जो कि सच को छुपाने की एक बेशर्म हरकत है। यह भूमि बेहद उपजाऊ है और मिकिर बामुनी गाँव के लोग वहां पर सदियों से खेती करते आ रहे हैं। असल में, जब एजयोरद्वारा इस भूमि पर बाड़ लगाने का काम शुरू किया जा रहा था, तो सबसे पहले धान के पौधों को वहां से हटाना पड़ा था। उस जमीन पर खेती-बाड़ी का काम ही दरअसल ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य साधन है।” 

गोगोई ने इस बारे में विस्तार से बताया कि कैसे क़ानूनी प्रावधान भी जमीन पर ग्रामीणों के अधिकार को मान्यता देते हैं। उन्होंने बताया, “असम काश्तकारी अधिनियम, 1971 के अनुसार जमीन पर ग्रामीणों को अधिकार हासिल है। मिकिर बामुनी क्षेत्र में विभिन्न जनजातियों की बसाहट है और यह इलाका पारिस्थितिकी तन्त्र के लिहाज से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। यह इलाका कार्बी हिल्स से सटा हुआ है और यहाँ से हाथी आवाजाही करते हैं।

उन्होंने आगे कहा, “वर्षों से, लोग जानवरों के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से रहते आ रहे हैं, लेकिन जबसे एजयोरद्वारा यहाँ पर बाडबंदी खड़ी की गई है, हाथियों के आवागमन का गलियारा अवरुद्ध हो गया है और मनुष्य और हाथी के संघर्ष की कोई रिपोर्ट नहीं है। सौर ऊर्जा संयंत्र यहाँ की पारिस्थितिकी संतुलन को तहस-नहस करके रख देगा और पर्यावरण पर प्रतिकूल असर डालेगा।

मिकिर बामुनी गाँव के पश्चिम की ओर बामुनी पहाड़ियाँ हैं और पूर्वी हिस्से में जुकांजुरी पहाड़ियां हैं। गाँव में विभिन्न जनजातियों जैसे कि कार्बी, टिवा, आदिवासी एवं बोडो से सम्बद्ध लोगों की एक समन्वित संस्कृति है। सदियों से उपजाऊ भूमि और जलाशय यहाँ के ग्रामीणों की आजीविका का स्रोत रहे हैं। एक अर्थ में कहें तो, यह गाँव इस क्षेत्र में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर अपने आप में एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था है।

एजयोरपॉवर का आगमन और भूमि को उनसे छीन लिया जाना, मिकिर बामुनी के लोगों के लिए आसमान से वज्रपात गिरने के समान है, जिसका उन्हें जरा भी अहसास नहीं था क्योंकि यह सौदा उन्हें अँधेरे में रखकर किया गया था।

मिकिर बामुनी के ग्रामीण अब इस मामले को गौहाटी उच्च न्यायालय में लड़ रहे हैं। मामले की अगुआई कर रहे गौहाटी उच्च न्यायालय के एक वकील, कृष्णा गोगोई ने न्यूज़क्लिक से इस सिलसिले में बातचीत की। गोगोई ने बताया कि न्यायिक प्रावधान ग्रामीणों के भूमि पर अधिकार को मान्यता देते हैं। उनका कहना था “मिकिर बामुनी की भूमि असम काश्तकारी अधिनियम, 1971 के अंतर्गत आती है। इस भूमि को मूलतः विशेष खेती करने के लिए लोगों को सौंपा गया था। दरअसल, यह जमीन उन्हें दी गई थी। यह सौंपी गई जमीन मूलतः सारदा गोहेन नामक व्यक्ति की थी। बदले में, ग्रामीण सारदा गोहेन के परिवार को टैक्स अदा करते थे। यह प्रथा काफी लंबे समय से चली आ रही थी।”

उन्होंने आगे बताया “लेकिन जब से 1971 में असम काश्तकारी अधिनियम अपने अस्तित्व में आया, तब से नए नियम बनाए गए हैं। इस अधिनियम के अनुसार, यदि किसी के द्वारा भू-राजस्व का 50% हिस्सा भू-स्वामी को भुगतान किया जाता है तो उस जमीन के टुकड़े को उसके नाम कर दिया जाना चाहिए। काश्तकारी अधिनियम के अनुसार इसे ‘खतियान’ के नाम से जाना जाता है। फिर जिसके नाम पर ‘खतियान’ है उसकी अगली पीढ़ी के नाम पर इस जमीन के अधिकार ओ हस्तांतरित कर दिया जाता है। हालाँकि, जिन लोगों के नाम पर ‘खतियान’ है, उनके अलावा किसी अन्य के नाम पर इसे हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है।”

“मिकिर बामुनी के ग्रामीणों के पास 377 बीघे से अधिक की भूमि का ‘खतियान’ (एक प्रकार का काश्तकारी प्रमाणपत्र) हो रखा है। सरकार को आदर्श तौर पर, इस भूमि को ग्रामीणों के नाम पर पंजीकृत कर देना चाहिए था, जो कि काश्तकारी अधिनियम की धारा 22 के तहत निर्धारित है। इसके बजाय, सरकार ने इस जमीन को एजयोरपॉवर के हाथ सुपुर्द कर दिया।” 

वकील गोगोई ने आगे बताया कि कैसे सरकार ने समूची प्रक्रिया को गलत तरीके से अंजाम दिया है। “सारदा गोहेन, जिनके नाम पर मूलतः यह जमीन थी वे अब इस संसार में नहीं रहे। सरकार ने 377 बीघा जमीन को स्वर्गीय सारदा गोहेन के उत्तराधिकारी के नाम पंजीकृत कर दिया और सारदा गोहेन के वारिसों द्वारा यह जमीन एजयोरपॉवर को बेच दी गई। एक बार फिर से, भूमि हदबंदी अधिनियम के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति के नाम पर अधिकतम 50 बीघा भूमि ही पंजीकृत हो सकती है। ऐसे में यह पंजीकरण कानून के मुताबिक मान्य नहीं है। हम इस मामले को अदालत में लड़ रहे हैं।”

Assam
tribal land
solar plant

Related Stories


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License