NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा के लिए भाजपा की राजनीति भी ज़िम्मेदार है
ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई झड़पें उस तबाही के मुक़ाबले कुछ नहीं हैं जो भाजपा के मनमानी भरे रवैये की वजह से हुई हैं।
एजाज़ अशरफ़
29 Jan 2021
Translated by महेश कुमार
गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा के लिए भाजपा की राजनीति भी ज़िम्मेदार है
Image Courtesy: PTI

गणतंत्र दिवस ट्रैक्टर परेड के दौरान किसानों का जुझारूपन, जाहिर तौर पर निंदनीय है, यह अब विरोध प्रदर्शनों के उस परिचित फ्रेम में फिट बैठता है कि आंदोलन हिंसक हो गया। मई 2014 में जब से भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई है, तभी से विरोध स्थलों पर होने वाली झड़पों की व्यापक घटनाएं चौंकाने वाली है।

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में 2017 किसान आंदोलन पर गोलीबारी के बारे में सोचो; सोचो भीमा कोरेगांव की 2018 की हिंसा के बारे में; अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम को कमजोर करने के विरोध में हुए 2018 के भारत बंद के दौरान बेतरतीब गोलीबारी और हिंसा के बारे में सोचो; जम्मू और कश्मीर में 2019 में अनुच्छेद 370 को खारिज करना; जनवरी 2020 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पर हमला; नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन और पिछले साल दिल्ली में हुए दंगों के बारे में सोचो। अब इस सूची में, 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड भी शामिल हो गई है।

इनमें से अधिकांश विरोध स्थलों पर, या तो नागरिकों के समूह या पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर हमले किए। या वे अपनी दुर्दशा के प्रति हुकूमत की उदासीनता से निराश थे, जोकि किसान आंदोलन का सच है, लाल रेखा को पार करते ही प्रशासन ने उनके खिलाफ जबरदस्त कार्रवाई करने को उचित ठहराया। यह भाजपा की शासन और राजनीति की एक घायल करने वाली रणनीति रही है कि ऐसे विरोध प्रदर्शनों का अंत हिंसा में हो जैसा की बड़े पैमाने में भाजपा शासित प्रदेशों देखा गया है।

सीएए के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन के दौरान यह रणनीति उल्लेखनीय रूप से सामने आई थी। जिन प्रदेशों में हिंसा और पुलिस कार्रवाई हुई वे राज्य उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और असम थे, तीनों में भाजपा का शासन था। सीएए के विरोध के दौरान दिल्ली में हिंसा की प्रवृत्ति कोई अपवाद नहीं थी, क्योंकि केंद्र सरकार राजधानी में पुलिस को नियंत्रित करती है।

शायद सबसे बड़ा उदाहरण असम का है, जहां मुख्य रूप से हिंदुओं के नेतृत्व में सीएए का विरोध चला था। वे इसलिए नाराज थे क्योंकि सीएए ने उन बंगाली हिंदुओं को भी नागरिकता प्रदान की जो इस तथ्य को स्थापित करने के दस्तावेजों प्रस्तुत नहीं कर पाए थे कि वे 24 मार्च 1971 से पहले असम आए थे, जोकि नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर में शामिल होने की कट-ऑफ तारीख है। एनआरसी लागू करने का समर्थन करने में भाजपा सभी राष्ट्रीय दलों में सबसे अधिक मुखर थी। 

फिर भी बड़े ही पाखंडी तरीके से जब असम में सीएए के खिलाफ आंदोलन भड़क गया, तो राज्य में भाजपा सरकार ने प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए उन पर मुकदमें थोपे और अन्य आंदोलनकारियों के अलावा  कृषक मुक्ति संघर्ष समिति के संस्थापक अखिल गोगोई को युपा (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। एक साल बीत गया लेकिन गोगोई आज भी जेल में बंद है, अब केएमएसएस ने इस गर्मी में होने वाले असम विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए एक राजनीतिक पार्टी बनाई है। नागरिकों का एक ऐसी सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ लड़ना अवश्यंभावी है जो अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए धोखेबाज़ी का इस्तेमाल करती है।

दरअसल, सीएए के खिलाफ, धारा 370 को खारिज करने, और तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन करने के सिद्धांत से निकले हैं। मोदी का मानना है कि चूंकि उनकी पार्टी को लोकसभा में बहुमत हासिल है, इसलिए उनके फैसले लोकप्रिय इच्छाशक्ति की अभिव्यक्ति हैं। लोकतंत्र यह मांग करता है कि उनके विधायी अधिनियमों को स्वीकार किया जाना चाहिए, यहां तक कि उन अधिनियमों को जो लोगों को पीड़ा देते हैं या पहले किए गए वादों का उल्लंघन करते हैं। इसलिए मोदी के दृष्टिकोण से देखा जाए तो  यह लोकप्रिय इच्छा अगले आम चुनाव तक जम चुकी है। यह किसी अन्य धारा में पिघल और बह नहीं सकती है जिसका उन्हे पहले अनुमान नहीं था।

यह उनके लिए भी अप्रासंगिक मसला है कि उनकी पार्टी को पंजाब, कश्मीर और अन्य राज्यों में इतना समर्थन हासिल नहीं है। उनकी आबादी को उनकी राष्ट्रीय इच्छा के अनुरूप होना चाहिए, जिसके वे अवतार हैं। यदि उन राज्यों के लोग उसके निर्णयों को स्वीकार नहीं करते हैं और विरोध करते हैं, तो उन्हें लगता है कि वह जबरन उन्हें न्यायसंगत ठहरा रहे हैं। वे नागरिक जो मोदी सरकार के खिलाफ उठे असंतोष को कुचलने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं, वे ऐसे तत्व हैं जिन्हें राष्ट्रीय माना जाता है। इसलिए, उनके अपराधों को माफ किया जाता है। उन्हें सजा से बचा लिया जाता है। 

मोदी के शासन करने की इस शैली का सबसे बड़ा उदाहरण भीमा कोरेगांव में 2018 में हुई  हिंसा में स्पष्ट था। एफआईआर में दावा किया गया कि, वहाँ झड़पें तब हुई जब हिंदुत्व के नेता संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे ने दलित आइकन गोविंद गायकवाड़ की समाधि का अपमान किया या उसे नापाक करने की कोशिश की जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने शिवाजी के बेटे का अंतिम संस्कार किया था।

भिडे को गिरफ्तार किया जाना बाकी है। एकबोटे को 2018 में गिरफ्तार किया था लेकिन एक महीने बाद रिलीज कर दिया था। इसके विपरीत, 17 सिविल राइट एक्टिविस्ट्स के खिलाफ कथित तौर पर भीमा कोरेगांव हिंसा के लिए यूएपीए (UAPA) के तहत मुकदमा दर्ज़ किया गया था। इस हिंसा की जांच भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस की निगरानी में हुई थी। इसी तरह, इससे पहले कि पूर्वोत्तर दिल्ली में सीएए का विरोध हिंसा में बदले, बीजेपी के चहेते नेता कपिल मिश्रा ने फरवरी 2020 में भड़काऊ भाषण दिया था। फिर भी उसके खिलाफ (कपिल मिश्रा) मुकदमा न दर्ज़ कर उल्टे युवा कार्यकर्ताओं के एक समूह के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमें दर्ज़ किए गए और उन्हे जेल में डाल दिया गया था। 

सत्ता में आने वाली पार्टी को देश में शासन करते वक़्त तटस्थता बरतनी चाहिए। हालाँकि, भारतीयों का एक बड़ा तबका मानता है कि मोदी सरकार उन्हें दुश्मन मानती है, जिन्हें दुख-तकलीफ सहने के लिए छोड़ दिया गया है। देश भर में विरोध प्रदर्शनों के प्रकोप की जड़ में यही एकमात्र तथ्य रहा है। न ही सरकार को प्रदर्शनकारियों पर भरोसा है। न ही प्रदर्शनकारियों को इस बात सरकार पर भरोसा है कि इससे उन्हें न्याय मिलेगा।

वैसे भी, गणतंत्र दिवस पर उनके समर्थकों एक छोटे से हिस्से द्वारा हिंसा और लाल किले की प्राचीर से सिख धार्मिक झंडा फहराने को भाजपा के पाखंडियों ने किसान यूनियन के नेताओं पर अनदेखी का आरोप लगाना अपने आप में एक पाखंड का काम है। हिंदुस्तान की कोई भी राजनीतिक पार्टी अपनी राजनीतिक तरक्की के लिए धर्म और हिंसा का इस्तेमाल करने की भाजपा की रणनीति से मेल नहीं खाती है। इससे भी बुरी बात यह है कि केंद्र और कई राज्यों में सत्ता में रहने के बावजूद पार्टी इस रणनीति को आगे बढ़ा रही है।

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए धन इकट्ठा करने के लिए आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों ने जुलूस निकाले। इनमें से कई जुलूसों को मुस्लिम-बहुल बस्तियों से निकाला गया, जहां मुस्लिम निवासियों को उकसाने के लिए नारे लगाए गए। मध्य प्रदेश में, इन जुलूसों ने कम से कम तीन जिलों- उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में सांप्रदायिक तनाव पैदा कर दिया था।

बीजेपी में जो लोग लाल किले पर सिख धार्मिक झंडा यानि निशान साहिब को फहराने पर इतना आहात महसूस कर रहे हैं, उन्हें इंदौर के चंद्रा खेड़ी गाँव और मंदसौर के डोराना गांव की ईदगाह मस्जिद पर हमला करते हुए जारी वीडियो देखने चाहिए। पिछले साल उत्तर-पूर्व दिल्ली के दंगों में, संघ के कार्यकर्ताओं ने करीब एक दर्जन से अधिक मस्जिदों में तोड़फोड़ की और उन्हें आग के हवाले कर दिया था। 

दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों द्वारा की जाने वाली हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है। इन संगठनों ने 7 नवंबर 1966 में गौ-रक्षकों की रैली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और संसद के रास्ते के आसपास की कई इमारतों को आग लगा दी थी। फिर राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान, 1989 और 1991 के बीच, संघ-भाजपा ने अक्सर बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मुद्दे को हल करने के लिए केंद्र सरकार की दलीलों को कभी नहीं माना। न ही आरएसएस-भाजपा ने अयोध्या में अपने कार्यकर्ताओं के समय-समय पर जमावड़ा करने से बचने के लिए केंद्र सरकार के अनुरोधों पर ध्यान दिया। उस समय या उन सालों में इनके जुलूस अक्सर लोगों को आतंकित करते थे और कई शहरों में हिंसा भड़काते थे।

1992 में, आरएसएस-भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट से वादा किया था कि वह अयोध्या में एक प्रतीकात्मक कार सेवा करेगी, लेकिन फिर 6 दिसंबर को उसने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। इस विध्वंस की प्रतिक्रिया में हुए दंगों और हिंसा में हजारों लोग मारे गए। इसके नेताओं ने दावा किया कि बाबरी विध्वंस हिंदुत्व अनुयायियों के गुस्से का नतीजा था। यह ठीक-ठीक वैसी ही व्याख्या है जिसे कि कुछ किसान यूनियन नेताओं ने 26 जनवरी की हिंसा के बारे में दी है, जो कि पूर्व में आरएसएस-बीजेपी की तुलना में नगण्य है। गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के लिए भाजपा की राजनीति और उसकी शासन की शैली को भी दोषी ठहराया जाना चाहिए।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

BJP’s Politics is Also to Blame for R-Day Violence

Farmer protest
babri masjid
26 January
CAA
Bhima Koregaon
Delhi Violence

Related Stories

इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद

शाहीन बाग़ : देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ!

शाहीन बाग़ ग्राउंड रिपोर्ट : जनता के पुरज़ोर विरोध के आगे झुकी एमसीडी, नहीं कर पाई 'बुलडोज़र हमला'

चुनावी वादे पूरे नहीं करने की नाकामी को छिपाने के लिए शाह सीएए का मुद्दा उठा रहे हैं: माकपा

CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा

भीमा कोरेगांव: HC ने वरवर राव, वर्नोन गोंजाल्विस, अरुण फरेरा को जमानत देने से इनकार किया

उमर खालिद पर क्यों आग बबूला हो रही है अदालत?


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License