NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बाबा साहब की अनदेखी का प्रतिफल : घुटन भरा वर्तमान और आशंका भरा कल 
आज डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 130वीं जयन्ती है - इसे समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है - इसलिए उन्हीं की चेतावनियों पर नज़र दौड़ाना सामयिक  होगा। 
बादल सरोज
14 Apr 2020
बाबा साहब

मौजूदा समय विडम्बना का समय है। 

बिना किसी अतिशयोक्ति के कहा जाए तो देश और समाज एक ऐसे वर्तमान से गुजर रहा है जिसमें प्राचीन और ताजे इतिहास में, अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी के लिए लड़ते लड़ते  जो भी सकारात्मक उपलब्धि हासिल की गयी थी वह दांव पर है। समाज को धकेल कर उसे मध्ययुग में पहुंचाने पर आमादा अन्धकार के पुजारी पूरे उरूज़ पर हैं - संविधान और संसदीय लोकतंत्र निशाने पर है।  कल्याणकारी राज्य की अवधारणा उलटी जा रही है।  मनुष्यों के बीच समानता और हर तरह की गैरबराबरी को मिटा देने की समझदारी को अपराध यहां तक कि राष्ट्रद्रोह बताया जा रहा है।  इधर बाकी सब को अधीनस्थ दास बनाने को ही राज चलाने का  सही तरीके मानने वाले चतुर दुनिया के खुदगर्ज बड़े दानवों के मातहत और सेवक बनने पर गर्वित और गौरवान्वित महसूस कर  रहे हैं।  असहमतियों को कुचल कर, विमर्श को प्रतिबंधित करके आज को घुटन भरा बनाकर आगामी कल को आशंकाओं भरा बना  दिया गया है। 

क्या यह आपदा अचानक आ गयी? नहीं।  इस देश की महान शख्सियतें इस तरह की हालात के बारे में आशंकित थीं और इनसे सजग रहने तथा इनकी आमद- उस दौर में जब ये दूर दूर तक नजर नहीं आ रही थी तब-   को रोकने के सुझाव और तरीके बताती  रही थीं।  बजाय बाकियों के उल्लेख के आज डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 130वीं जयन्ती है - इसे समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है - इसलिए उन्हीं की चेतावनियों पर नज़र दौड़ाना सामयिक  होगा। 

25 नवम्बर 1949 को संविधान सभा में दिए अपने आख़िरी भाषण में डॉ. बी आर अम्बेडकर ने कहा था कि "संविधान कितना भी अच्छा बना लें, इसे लागू करने वाले अच्छे नहीं होंगे तो यह भी बुरा साबित हो जाएगा।’" इस बात की तो संभवत: उन्होंने कल्पना तक नहीं की होगी कि ऐसे भी दिन आएंगे जब संविधान लागू करने का जिम्मा ही उन लोगों के हाथ में चला जाएगा जो इस मूलत: इस संविधान के ही खिलाफ होंगे। जो सैकड़ों वर्षों के सुधार आंदोलनों और जागरणों की उपलब्धि में हासिल सामाजिक चेतना को दफनाकर उस पर मनुस्मृति की प्राणप्रतिष्ठा के लिए कमर कसे होंगे।

उन्होंने कहा  था कि  "अपनी शक्तियां किसी व्यक्ति - भले वह कितना ही महान क्यों न हो - के चरणों में रख देना या उसे इतनी ताकत दे देना कि वह संविधान को ही पलट दे ‘संविधान और लोकतंत्र’ के लिए खतरनाक स्थिति है।" इसे और साफ़ करते हुए वे बोले थे कि ‘'राजनीति में भक्ति या व्यक्ति पूजा संविधान के पतन और नतीजे में तानाशाही का सुनिश्चित रास्ता है।’' 1975 से 77 के बीच आतंरिक आपातकाल भुगत चुका देश पिछले छह वर्षों से जिस भक्त-काल और एकल पदपादशाही को अपनी नंगी आँखों से देख रहा है उसे इसकी और अधिक व्याख्या की जरूरत नहीं है। 

सवाल सिर्फ इतना भर नहीं है कि ये कहाँ आ गए हम अंग्रेजों के भेदियों और बर्बरता के भेडिय़ों के साथ सहअस्तित्व करते करते? सवाल इससे आगे का है ; क्यों और कैसे आ गये का भी है। इसके रूपों को अम्बेडकर की ऊपर लिखी चेतावनी व्यक्त करती है तो इसके सार की व्याख्या उन्होंने इसी भाषण में दी अपनी तीसरी और बुनियादी चेतावनी में की थी। उन्होंने कहा था कि; ‘'हमने राजनीतिक लोकतंत्र तो कायम कर लिया - मगर हमारा समाज लोकतांत्रिक नहीं है। भारतीय सामाजिक ढाँचे में दो बातें अनुपस्थित हैं, एक स्वतन्त्रता (लिबर्टी), दूसरी भाईचारा-बहनापा (फेटर्निटी)’ उन्होंने चेताया था कि ‘यदि यथाशीघ्र सामाजिक लोकतंत्र कायम नहीं हुआ तो राजनीतिक लोकतंत्र भी सलामत नहीं रहेगा।’' 

इस तरह दरअसल बाबा साहब की अनदेखी का प्रतिफल  है यह घुटन भरा वर्तमान और आशंका भरा कल !! रास्ता भी वहीँ से निकलेगा - उस अनकिये को करने से निकलेगा।  इसके लिए उनके भरोसे तो कदापि नहीं रहा जा सकता जिन्होंने बाबा साहब को जातियों के प्रतिशत की गणना के कैलकुलेटर, ईवीएम मशीन के बटन और पद-प्रसिद्धि पाने के एटीएम कार्ड में बदल कर रख दिया है।  जिन्होंने बाबा साहब को ठीक वही बनाकर रख दिया जिसके वे ताउम्र खिलाफ रहे;  उनकी मूर्ति बनाकर पूजा शुरू कर दी, हाथ में संविधान की किताब पकड़ा दी और उनकी कालजयी रचना "जातियों का विनाश" (एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट) सहित उनके क्रांतिकारी दर्शन को गहरे में दफ़ना दिया।  उनकी प्रतिज्ञाओं को झांझ-मंजीरों के शोर में गुम कर दिया।     

रास्ता डॉ. अम्बेडकर की इन  चेतावनियों को उनके 1936 के उस मूलपाठ के साथ मिलाकर पढ़ने से निकलेगा जो उन्होंने अपने हाथ से अपनी पहली राजनीतिक पार्टी - इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी, जिसका झंडा लाल था - के घोषणा पत्र में लिखा था।  इसमें उन्होंने साफ़ साफ शब्दों में कहा था कि "भारतीय जनता की बेड़ियों को तोडऩे का काम तभी संभव होगा जब आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह की असमानता और गुलामी के ख़िलाफ़ एक साथ लड़ा जाये।"  अभी भी देर नहीं हुयी है - यूं भी शुरुआत करना हो तो कभी देर नहीं होती।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और किसान-मज़दूर नेता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

B R Ambedkar
ambedkar jaynti
Constitution of India

Related Stories

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

यति नरसिंहानंद : सुप्रीम कोर्ट और संविधान को गाली देने वाला 'महंत'

कौन हैं ग़दरी बाबा मांगू राम, जिनके अद-धर्म आंदोलन ने अछूतों को दिखाई थी अलग राह

भारतीय लोकतंत्र: संसदीय प्रणाली में गिरावट की कहानी, शुरुआत से अब में कितना अंतर?

लोकतंत्र के सवाल: जनता के कितने नज़दीक हैं हमारे सांसद और विधायक?

बाबा साहेब की राह पर चल देश को नफ़रती उन्माद से बचाने का संकल्प

एक आधुनिक लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण की डॉ. आंबेडकर की परियोजना आज गहरे संकट में

पत्नी नहीं है पति के अधीन, मैरिटल रेप समानता के अधिकार के ख़िलाफ़

दलित और आदिवासी महिलाओं के सम्मान से जुड़े सवाल

एक व्यापक बहुपक्षी और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License