NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
बाग़ाजान तेल क्षेत्र आग: उत्तर पूर्व में पारिस्थितिक आपदा का पूर्वाभास  
न्यायिक देखरेख के तहत विशेषज्ञों की केवल एक स्वतंत्र जांच समिति ही उस धमाके को लेकर पूरी सच्चाई का पता लगा सकती है, जिसने मानव जीवन, निवास, आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है।
डी. रघुनन्दन
17 Jun 2020
Baghjan Oil Field Fire: A Prelude to Ecological Disaster in North East

डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क और बायोस्फ़ीयर रिज़र्व पारिस्थितिक रूप से समृद्ध और नाज़ुक है। इसके आस-पास कई अन्य पारिस्थितिक हॉटस्पॉट भी हैं। यहां से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर सार्वजनिक क्षेत्र की ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) का प्राकृतिक गैस कुआं संख्या 5 असम के तिनसुखिया ज़िले में स्थित बाग़जान तेल क्षेत्र पूर्वी असम में स्थित है। इसी कुएं में 27 मई, 2020 को धमाका हुआ था, यानी हवा में उच्च दबाव पर भारी मात्रा में गैस फेंकते हुए अनियंत्रित रूप से प्राकृतिक गैस की निकासी होने लगी थी। 9 जून, 2020 को अभी तक नामालूम कारणों से कुएं में आग लग गयी और उत्तर-पूर्व की ओर कम से कम 5 किमी की दूरी तक यह आग तेज़ी से फैल गयी। इस आग लगने की वजह से कम से कम दो फ़ायरमैन और शायद आसपास के गांवों के अन्य लोगों की मौत हो गयी। आसपास के कई घरों में घुटन होने लग गयी और 7,000 से अधिक ग्रामीणों को 12 राहत शिविरों में भेज दिया गया है।

इस धमाके और इस धमाके से लगने वाली आग ने मानव जीवन, आवास और आजीविका, और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र, विशेष रूप से फ़सलों, मिट्टी, जल निकायों और जलीय जीवन, वन्यजीवों विशेषकर पक्षियों और सूक्ष्म जीवों को व्यापक नुकसान पहुंचाया है। आग लगने से ठीक एक दिन पहले सिंगापुर स्थित एलर्ट डिज़ास्टर कंट्रोल कंपनी के विशेषज्ञों को ओआईएल के धमाके को नियंत्रित करने में सहायता करने के लिए बुलाया गया था । अब, अमेरिका और कनाडा के अतिरिक्त विशेषज्ञों को भी इसके लिए बुला लिया गया है। भारी मशीनरी और अन्य उपकरण अन्य जगहों पर उपलब्ध ओआईएल और ओएनजीसी क्षेत्र और आंध्र प्रदेश से लाये जा रहे हैं। कोई शक नहीं कि एक कार्य योजना तैयार कर ली गयी गयी है और आग पर काबू पाने के लिए ऑपरेशन जारी हैं और लगभग चार सप्ताह तक इसके चलने की उम्मीद है।

सामने आयी इस घटना ने एक बार फिर भारत में लगातार होती औद्योगिक आपदाओं की घटनाओं और कंपनियों का ख़राब रिकॉर्ड, केंद्र सरकार द्वारा पर्यावरण नियमों के ख़तरनाक विघटन को जारी रखते हुए मानव जीवन, आजीविका और निवास स्थान के नुकसान के साथ-साथ बड़े पैमाने पर बार-बार होती पारिस्थितिक क्षति जैसे कई अंतर-सम्बन्धित पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर दिया है।

धमाके और आग

बाग़जान की कुआं संख्या 5 ओआईएल के सबसे समृद्ध गैस जलाशयों में से एक है। यह 4,200 पाउंड प्रति वर्ग इंच (PSI) के दबाव में लगभग 4 किमी की गहराई से गैस का उत्पादन करता है, जो लगभग 2,700 PSI से ज़्यादा है।

आधुनिक समय में बेहतर ड्रिलिंग तकनीक, बेहतर ड्रिलिंग तरल पदार्थ और एडवांस ब्लोआउट निवारक (बीओपी ने बी-ओ-पी नॉट बीओपी) के कारण तेल या गैस धमाके जैसी घटनायें अपेक्षाकृत एक दुर्लभ घटना हैं, हालांकि अज्ञात नहीं है। बीओपी बेहद भारी वॉल्व या इसी तरह के यांत्रिक उपकरण होते हैं, जो स्वाभाविक रूप से कुएं पर बैठ जाते हैं और ड्रिलिंग तरल पदार्थ के पंपिंग को सक्षम करते हुए गैस, तेल या कुएं के किसी भी वेंटिलेशन को रोक देते हैं। गैस और तेल के दबाव में बदलाव से 'झटके' पैदा होते हैं, जिसे ड्रिलिंग ऑपरेशन के दौरान ऑपरेटरों द्वारा कई तरीक़ों से महसूस किया जा सकता है। अंततः बीओपी की तैनाती के ज़रिये अगर इस तरह के 'झटके' को नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो नतीजा धमाके के तौर पर सामने आ सकता है।

ओआईएल के मुताबिक, उस मनहसू दिन बाग़जान की कुआं संख्या 5 के स्रोत की मरम्मत की जा रही थी। कुएं को ‘ख़त्म’ कर दिया गया था, यानी कि उत्पादन बंद कर दिया गया था, और मरम्मत को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बीओपी हटा लिया गया था। लेकिन, इसके साथ ही नज़दीक स्थित एक नये डिपॉजिट में ‘वर्कओवर’ या परीक्षण-ड्रिलिंग चल रही थी। अचानक, कुआं संख्या 5 से गैस बाहर रिसना शुरू हो गयी और जल्द ही एक ज़बरदस्त धमाके के साथ अस्थायी बैरियर फट गया।

ओआईएल के प्रवक्ताओं के मुताबिक़, इस धमाके के बाद जो पहला क़दम उठाया गया, वह था- पानी की छतरी की आड़ में बीओपी को बदलकर कुआं खोदना। हालांकि अब "बहुत सीमित स्थान और कुएं के स्रोत के ऊपर खुले स्थान की अनुपलब्धता के कारण यह एक बड़ी चुनौती और उच्च जोखिम जैसा मामला है।" यह कुएं के दोषपूर्ण डिज़ाइन और ग़लत तरीक़े से बनाये गये ढांचे की ओर इशारा करता है।

ओआईएल को अब कुएं को ढकने के लिए एक भारी हाइड्रोलिक ट्रांसपोर्टर लगाना होगा, फिर ड्रिलिंग कीचड़ में पंप करना होगा, और पास के डंगोरी नदी में एक विशेष अस्थायी जलाशय का निर्माण करके कुएं तक पाइपलाइन बिछाना होगा। यह आगे आपातकालीन स्थितियों के लिए खराब व्यवस्था को रेखांकित करता है।

ख़त्म कर दिये गये कुएं में धमाका क्यों और कैसे हुआ, इसकी जांच ओआईएल द्वारा की जा रही है, हालांकि साइट पर तैनात दो ओआईएल कर्मचारियों को अज्ञात कारणों से निलंबित कर दिया गया है। असम सरकार ने इस घटना को लेकर एक वरिष्ठ नौकरशाह के नेतृत्व में जांच का आदेश दे दिया है।

हालांकि, केंद्र और राज्य सरकारों और नियामक अधिकारियों के दबाव से मुक्त ख़ास तौर पर न्यायिक पर्यवेक्षण के तहत विशेषज्ञों की एक समिति द्वारा की जाने वाली केवल एक स्वतंत्र जांच से ही शक्तिशाली सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, ओआईएल, आपदा के पीछे के सभी कारणों के साथ-साथ इसमें शामिल विभिन्न संगठनों और संस्थानों की ज़िम्मेदारियां का ठीक से पता लगाया जा सकता है।

चूंकि ओआईएल के क्षेत्र में कई ऐसे कुएं हैं, जो ओआईएल के सभी कच्चे तेल और उसकी प्राकृतिक गैस के क़रीब 90% उत्पादन में योगदान देते हैं, लेकिन इस क्षेत्र के भीतर ओआईएल  आपातकाल में काम करने वाली टीम और इसके बुनियादी ढांचे की कमी गंभीर चिंता का विषय है।

पहले बर्मा ऑयल के रूप में, फिर 1961 में ओआईएल के साथ संयुक्त उद्यम और अंत में 1981 के बाद से पूरी तरह से सरकारी स्वामित्व वाली इकाई के रूप में भारत में 100 से अधिक वर्षों के संचालन का अनुभव रखने के बावजूद ओईएल की तेल / गैस धमाकों को लेकर इसकी इन-हाउस विशेषज्ञता में स्पष्ट तौर पर लगातार कमी दिखती रही है, जो कि एक गंभीर चिंता का विषय है। इसी तरह की कमी 2004 और अन्य दुर्घटनाओं में हुए इस क्षेत्र के पहले के धमाकों में भी सामने आती रही है। 

ओआईएल को ख़ासतौर पर बाग़जान तेल क्षेत्र के 18 अन्य कुओं और असम के कुल 59 कुओं में तत्काल सुरक्षा और आपातकालीन तैयारियों और उसके बाद उठाये जाने वाले क़दमों के सामने पेश आने वाली समस्याओं से निपटने की ज़रूरत है, जहां बाग़जान आपदा में ओआईएल द्वारा खराब और देर से उठाये गये क़दमों के बाद जनता का ग़ुस्सा और भय चरम पर है।

मानव जीवन, आजीविका, आवास और सेहत को नुकसान

इस गैस धमाके में प्रोपेन, मीथेन, प्रोपलीन और अन्य गैसों का मिश्रण पैदा हुआ,जो लगभग 5 किमी के दायरे की हवा में फैल गया। कई दिनों तक, ग्रामीण फ़सलों, भूमि और जल निकायों पर अपनी आंखों में जलन, सिरदर्द, गैस लगने जैसी शिकायतें करते रहे। हालांकि कई ग्रामीणों ने स्वास्थ्य से जुड़ी शिकायतों की सूचना दी थी, लेकिन आज तक उनमें से किसी की मौत की पुष्टि नहीं हुई है।

सेहत पर पड़ने वाले इस असर की निगरानी स्पष्ट रूप से लम्बे समय तक जारी रखनी होगी। ज़ाहिर तौर पर आग से बचने की कोशिश करते हुए डूबने से मर गये दो फ़ायरमैन के परिवारों को ओआईएल द्वारा मुआवजे का भरोसा दिया गया है, हालांकि उस पर आगे भी नज़र रखना ज़रूरी है।

आसपास के लगभग 50 घर पूरी तरह या आंशिक रूप से जल गये हैं और कुछ हज़ार परिवार अब राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। इन सभी परिवारों के पुनर्वास के साथ-साथ उनके घरों के पुनर्निर्माण और नुकसान की क्षतिपूर्ति का ध्यान स्पष्ट रूप से आगे भी रखना होगा।

कई और लोग भी अपनी फ़सलों, ज़मीन, पशुधन और आजीविका को नुकसान से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। हवा द्वारा बहा ले गये घनीभूत गैस और दहन के अवशेष भूमि, कृषि उत्पाद और जल निकायों पर जमा हो गये हैं। सुपारी, केला, चाय और बांस की खेती के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ज़मीन को नुकसान पहुंच सकता है,बल्कि आने वाले दिनों में खेतीबाड़ी पर भी इसका असर पड़ सकता है।

 मानसून के दौरान ब्रह्मपुत्र और कई छोटी नदियों में बाढ़ आती है, और खेती की ज़मीन, जल निकायों और यहां तक कि घरों में भी इस बाढ़ की गाद जमा हो जाती है। मशहूर मगुरी-मोटापुंग वेटलैंड्स या झीलनुमा ठहरे हुए पानी वाली आर्द्रभूमि (बील), डिब्रू-सैखोवा रिज़र्व के अंदर ही स्थित है और बाग़जान 5 से सिर्फ़ दो 2 किमी दूरी पर है, इस बील के आसपास के क़रीब सभी घरों की खाद्य आपूर्ति और आजीविका को ख़तरा है। इस प्रकार, मानवीय आजीविका और निवास स्थान और इस क्षेत्र की अत्यधिक संवेदनशील पारिस्थितिकी को बेहद नुकसान पहुंचा है।

 पारिस्थितिक क्षति

यह पूरा क्षेत्र कई आरक्षित वनों, वन्यजीव अभयारण्यों, संरक्षित जल निकायों, जंगलों और अन्य पारिस्थितिकी प्रणालियों का घर है। असम स्थित डिब्रू-सैखोवा बायोस्फ़ीयर रिज़र्व अरुणाचल प्रदेश के नामदाफ़ा नेशनल पार्क और देवमाली एलिफेंट रिज़र्व के साथ जुड़ता है, साथ ही साथ इससे भारत-म्यांमार जैव विविधता हॉटस्पॉट में एक बड़ा वन्यजीव गलियारा भी बनता है।

मगुरी-मोटापुंग वेटलैंड्स जलीय वनस्पतियों और जीवों से समृद्ध है, इनमें लुप्तप्राय गंगा डॉल्फ़िन (Gangetic Dolphin) भी शामिल हैं, जिनमें कम से कम एक गंगा डॉल्फ़िन के मृत पाये जाने की सूचना है, ये सभी जीव और बनस्पतियां बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। इस वेटलैंड का पानी दूषित हो जाने के कारण कथित तौर पर नीला और पीला रंग का हो गया है। यह रिज़र्व और वेटलैंड अपने साथ रहने वाले विविध जीव-जंतु-वनस्पतियों के साथ-साथ प्रवासी पक्षियों, तितलियों, जंगली बिल्लियों और जंगली घोड़ों के लिए भी मशहूर है।

चूंकि यह रिज़र्व, ब्रह्मपुत्र और पूर्वोत्तर की लोहित, दिब्रू, दिबांग और सियांग जैसी अन्य नदियों के संगम के क़रीब स्थित है, इसलिए इन नदियों के ज़रिये व्यापक रूप से घनीभूत गैसों और दहन अवशेषों से संदूषण के फैलने की आशंका है। इस पारिस्थितिकी तंत्र के अहम हिस्सों को भी स्थायी नुकसान पहुंच सकता है। वन्यजीव, जैव-विविधता, जल निकायों और इस क्षेत्र में व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए की जाने वाली कार्रवाई को लेकर व्यवस्थित और सावधानीपूर्वक मूल्यांकन की ज़रूरत है।

यहां हो रहे तेल का रिसाव, स्थिर पानी वाले इस झीलनुमा आर्द्रभूमि यानी बील के प्रबंधन की योजना में पारिस्थितिकी तंत्र के एक संभावित ख़तरे की ओर इशारा करता है और गैस के धमाके से होने वाले नुकसान को देखते हुए कोई भी इस क्षेत्र में किसी भी तेल कुएं में होने वाले धमाके के प्रभाव की कल्पना आसानी से कर सकता है,जो अब हुआ,तो वह कहीं ज़्याद बड़ा  धमाका होगा। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBW) ने इस क्षेत्र में किये गये निरीक्षण के दौरान इस क्षेत्र में तेल ड्रिलिंग गतिविधियों के और विस्तार के ख़िलाफ़ पहले ही चेतावनी दे दी थी।

पर्यावरण की अंधाधुंध सफ़ाई

विडंबना ही है कि उसी एनबीडब्ल्यू ने 24 अप्रैल, 2020 को कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी, नॉर्थ-ईस्टर्न कोल फील्ड्स (NECF) और भूमिगत कोयला खनन के लिए बहुत व्यापक क्षेत्र द्वारा ओपन-कास्ट-कोल खनन के लिए पास के देहिंग-पटकाई एलिफ़ेंट रिज़र्व के हिस्से के इस्तेमाल की अनुमति दे दी थी। यह केंद्र सरकार द्वारा जंगलों, अभयारण्यों और संरक्षित क्षेत्रों में अंधाधुंध उद्योगों और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के संचालित करने और नियमों और विनियमों की धज्डियां उड़ाने की अनुमति देने की तेज़ी से बढ़ती प्रवृत्ति को रेखांकित करता है।

 पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने कथित तौर पर विशेषज्ञों द्वारा सावधानीपूर्वक जांच किए बिना अभी हाल ही में 11 मई, 2020 को डिब्रू-सैखोवा नेशनल पार्क के सात स्थानों में हाइड्रोकार्बन के लिए ओआईएल द्वारा खोजपूर्ण ड्रिलिंग के लिए पर्यावरणीय मंज़ूरी दे दी है।

 ओआईएल ने इसे यह कहते हुए सही ठहराया है कि वह "राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश नहीं करेगा", लेकिन वह पहले से मौजूद कुएं के स्रोत पर इस पार्क की सीमा से 1.5 किमी दूर एक प्लिंथ से विस्तारित रीच ड्रिलिंग (ईआरडी) का इस्तेमाल करेगा, जो पार्क की सतह के नीचे एक नये कुएं तक पहुंचने के लिए 3.5 किमी तक खोदेगा। इस तरह के व्यापक अन्वेषण और इसके नतीजे के रूप में तेल और / या गैस के निष्कर्षण से इस क्षेत्र के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को ख़तरा पैदा होता है और यह क्षेत्र में होने वाली दुर्घटनाओं को लेकर बहुत अधिक जोखिम को सामने लाता है।

अगर कोई धमाका या रिसाव यहां होता है, तो कुएं का मुंह पार्क के अंदर है या बाहर है, इसका बहुत कम मतलब रह जाता है। मिसाल के तौर पर, बाग़जान में होने वाले धमाके से पैदा होने वाली गैसें और इससे लगने वाली आग इस पार्क और आर्द्रभूमि के कई किलोमीटर तक फैल गयी थीं, और हवा में घुलमिल जाने और नदी प्रणालियों में प्रवेश कर जाने के कारण कई जल निकायों और पारिस्थितिकी प्रणालियों को प्रभावित किया है।

 विशेषज्ञों द्वारा सख़्त पर्यावरणीय आकलन के बिना पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ़सीसी) द्वारा दी गयी त्वरित और पूर्ण मंज़ूरी से परियोजना धारकों, ख़ास तौर पर बड़े और शक्तिशाली सार्वजनिक उपक्रमों और कॉर्पोरेट घरानों को पर्यावरणीय विचारों की अनदेखी करने, एहतियाती उपायों को नज़रअंदाज़ करने और सार्वजनिक चिंताओं और विरोध प्रदर्शनों को लेकर अपने आंख-कान बंद कर लेने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। मसौदा पर्यावरण प्रभाव अधिसूचना,2020 में अन्वेषण के लिए इस तरह की पूर्ण मंज़ूरी को नियमित करने का प्रस्ताव है।

हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (DGH) ने अगस्त 2019 में एक ओपन एक्रेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP) की घोषणा की थी, जो अनिवार्य रूप से निजी संस्थाओं को अपने चुने गये स्थलों में खोज के लिए आवेदन की अनुमति देती है। यह क़दम आग में घी डालने जैसा है। बोली लगाने वालों के लिए अन्वेषण और संबंधित गतिविधियों में केवल एक वर्ष का अनुभव होना ज़रूरी है, इस तरह बिना तजुर्बा वाली और अयोग्य कंपनियों के लिए अन्वेषण का दरवाज़ा का खोला जाना सिर्फ़ पर्यावरण और स्थानीय आबादी की लागत पर मुनाफ़ा कमाने की मंशा को दर्शाता है। अगर ओआईएल जैसी बड़ी और 100 साल पुरानी कंपनियां भी मुश्किल में पड़ जाती हैं, या पर्याप्त सुरक्षा सावधानी बरतने को लेकर बेपरवाह रहती हैं, तो यह सोचकर ही कंपकंपी छूटती है कि तब क्या होगा,जब इस क्षेत्र में नौसिखिए श्रेणी की कंपनियां प्रवेश करेंगी।

 स्वतंत्र जांच ज़रूरी

जैसा कि हमेशा होता है, ओआईएल, असम सरकार, पुलिस, ज़िला प्रशासन और इसी  तरह की और एजेंसियां जांच-पड़ताल में लगी हुई हैं। हालांकि,इससे तेल एवं गैस के क्षेत्र में बड़े पीएसयू की शक्ति और प्रभाव को देखते हुए, राज्य में ओआईएल की निरंतर गतिविधियों में असम सरकार का मज़बूत निहित स्वार्थ और राज्य के साथ-साथ केंद्र, विशेष रूप से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पर्यावरण नियामक अधिकारियों की सक्रिय मिलीभगत लगती है,क्योंकि न्यायिक पर्यवेक्षण के तहत विशेषज्ञों की केवल एक स्वतंत्र जांच समिति ही ज़रूरी नतीजे तक पहुंच सकती।

 व्यापक संदर्भ में इस तरह की जांच से इस घटना के सिलसिले में पूरी सच्चाई का पता लगना चाहिए, इससे होने वाले पारिस्थितिक नुकसान का व्यापक मूल्यांकन होना चाहिए, इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी की बहाली के लिए आवश्यक उपचारात्मक कार्रवाई की सिफ़ारिश होनी चाहिए और इससे जुड़ी हुई लागत को ओआईएल द्वारा वहन किया जाना चाहिए, और जीवाश्म ईंधन की खोज और कम से कम उत्तर पूर्व के इस हिस्से में निष्कर्षण के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दी जा रही बेपरवाह पर्यावरणीय मंज़ूरी को पलटे जाने के उपाय भी सुझाये जाने चाहिए।

इस चल रही जांच को ख़ास तौर पर जिन बातों पर ग़ौर करना चाहिए,उनमें शामिल हैं- धमाके को लेकर ओआईएल बाग़जान की कुआं संख्या 5 के डिज़ाइन और लेआउट और उससे जुड़े हुए बुनियादी ढांचे, इस स्थल पर और आम तौर पर बाग़जान तेल क्षेत्र में सुरक्षा के उपाय और आपातकालीन तैयारियां, धमाके के समय मौके पर मौजूद ओआईएल कर्मियों की परिचालन सम्बन्धी त्रुटियां और क्षमतायें, क्या किसी भी शुरुआती चेतावनी के संकेत का पता लगाया गया था या नहीं और दुर्घटना को रोकने के लिए यदि कोई उपाय था,तो वह अपनाया गया था या नहीं आदि-आदि। ओआईएल द्वारा आउटसोर्स की गयी गुजरात की जॉन एनर्जी को एक नये 'खोज क्षेत्र' के नज़दीक चल रहे वर्कओवर की इस धमाके में संभावित भूमिका की भी जांच की ज़रूरत है। और आख़िरकार बाग़जान ऑयलफ़ील्ड के सभी अन्य तेल कुओं और उत्तर पूर्व में दूसरे साइटों,विशेष रूप से आपातकालीन तैयारी और घटना के दौरान उठाये जाने वाले क़दमों को लेकर एक सुरक्षा ऑडिट अवश्य किया जाना चाहिए।

 मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

Baghjan Oil Field Fire: A Prelude to Ecological Disaster in North East

https://www.newsclick.in/Baghjan-Oil-Field-Fire-Prelude-Ecological-Disaster-North-East

Baghjan oilfield
Oil
Assam fire
Assam Gas blowout
Ecological Damage
environment ministry
EIA Notification

Related Stories


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License