NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
बिग टेक को आम लोगों का हिस्सा होना चाहिए
मेल-इन मतपत्रों पर डोनाल्ड ट्रम्प के नवीनतम ट्वीट ने राष्ट्रपति और बिग-टेक को लेकर उनकी कथित कश्मकश को सुर्खियों में ला दिया है।
सुभाष राय
30 May 2020
trump

जैसे-जैसे नाटकीयता की स्थिति आगे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे मेल-इन मतपत्रों पर ट्रम्प की तरफ़ से किये गये उनके ट्वीट पर ट्वीटर द्वारा तथ्यों की जांच करने के ख़िलाफ़ ट्विटर को बंद किये जाने को लेकर राष्ट्रपति की धमकियों का मामला तूल पकड़ता दिख रहा है। नव-उदारवादी प्रलाप के प्रतीक ट्रम्प को मोटे तौर पर "स्वतंत्र दुनिया के नेता" के रूप में उनकी मौजूदा हैसियत बनाने का श्रेय सोशल मीडिया को ही जाता है। ऐसे में कोई भी इस बात को लेकर सजग रहेगा कि टेक प्लेटफ़ॉर्म को बंद करने को लेकर उनकी दी गयी धमकियां कड़वे बोल से ज़्यादा कुछ नहीं है। कोई मानसिक रूप से असंतुलित राष्ट्रपति भी इस बारे में गंभीरता से सोच सकता है कि उसकी कार्रवाई के समर्थन में कोई क़ानून नहीं है, वैसे भी सोशल मीडिया की सहायता के बिना ट्रम्प का फिर से चुनाव जीतने की संभावनायें क्या होंगी?

twir.png

हालांकि ट्रम्प की धमकी कई स्तरों पर खोखली दिखती है, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म और दिग्गज तकनीक कंपनियों को आम लोगों का हिस्सा बनाने का मामला एक गंभीर विषय है। इसमें कोई शक नहीं कि दिग्गज तकनीकी कंपनियों ने सभी स्रोतों से जानकारी लेने और उनकी चुनी हुई ख़बरों और सत्ता में बैठे लोगों पर सवाल उठाकर लोगों की निजता के अधिकार को ख़तरे में डाल दिया है।

वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपे एक रिपोर्ट के मुताबिक़, फेसबुक को आंतरिक शोध से पता चला था कि ध्रुवीकरण और सामूहिक व्यवहार को सक्षम बनाते हुए इस मंच का "एल्गोरिदम मानव मस्तिष्क के भेद-भाव को लेकर जो आकर्षण होता है, उसका इस्तेमाल करता है।"  जर्नल की रिपोर्ट आगे दिखाती है कि फ़ेसबुक ने शोध के निष्कर्षों को किस तरह नज़रअंदाज़ किया है, इस कंपनी के मालिक मार्क जुकरबर्ग की तरफ़ से इसके दृष्टिकोण को तब स्वर मिला, जब उन्होंने कहा कि वह "उन लोगों के ख़िलाफ़ होंगे, जो कहते हैं कि सोशल मीडिया पर नये प्रकार के समुदाय हमें विभाजित कर रहे हैं।”  यह बात पिछले सप्ताह एक टेक ट्रांसपेरेंसी प्रोजेक्ट की खोज के दौरान सामने आयी थी कि फ़ेसबुक पर 113 श्वेत वर्चस्ववादी समूह फल-फूल रहे थे। भारत में इसी तरह की कोई परियोजना इस बात से पर्दा उठा सकती है कि यहां भी बहुत सारे दक्षिणपंथी समूह फ़ेसबुक पर बेहद सक्रिय हैं।

हालांकि दक्षिणपंथी समूहों ने फ़ेसबुक की "पितृवादी" नहीं होने की आकांक्षा का लाभ तो उठाया है, लेकिन इससे कहीं अधिक पिछले कुछ वर्षों में इस मंच को वामपंथी स्वरों को चुप कराने की आतुरता के मंच के तौर पर अधिक इस्तेमाल करते हुए पाया गया है, जिनमें वेनेजुएलाएनालिसिस और तेलंगुर इंग्लिश जैसे डी-प्लेटफॉर्म पेज के प्रयास भी शामिल हैं। इसके संपूर्ण हद तक वाम विचार विरोधी पूर्वाग्रह उस समय ज़्यादा साफ़-साफ़ दिखे, जब इसने झूठी ख़बरों से निपटने के लिए 2018 में अटलांटिक काउंसिल के साथ साझेदारी कर ली थी। एलन मैक्लियड द्वारा तैयार FAIR की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, इस काउंसिल में कोंडोलीज़ा राइस, कॉलिन पॉवेल, हेनरी किसिंजर और जेम्स बेकर जैसे निदेशक और अन्य नव-रुढ़िवादी दिग्गज हैं।

रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन, मुकेश अंबानी ने अपने फ़्लैगशिप जियो नेटवर्क को लॉन्च करते हुए चतुराई के साथ कहा था कि "डेटा इस समय का नया तेल है"। डेटा को लेकर कही जा रही इस तरह की कहावतों की ओट में इस सच्चाई  को छुपा लिया जाता है कि यहां जो कुछ बेचा जा रहा है, वह प्राकृतिक संसाधन नहीं है, बल्कि आपका और हमारा व्यक्तिगत डेटा है। इस प्रकार के जन्मजात विशेषज्ञों का काम ही है कि वे हर रोज़ इस तरह के सभी नियम विरुद्ध कार्यकलापों को लेकर उदासीनता की स्थिति बना दे। सीएमएस वायर में लिखते हुए डेविड रो इसे स्पष्ट करते हैं कि “तकनीकी कंपनियों के लिए डेटा एक बड़ा व्यवसाय है, जो उन विपणन कंपनियों के लिए काम करता है,जो प्रतिस्पर्धी बढ़त के लिए डेटा ख़रीद रहे हैं। हालांकि हम इस विचार को पसंद नहीं कर सकते हैं कि सैद्धांतिक रूप से वेबसाइटों के नियमों और शर्तों को स्वीकार करते हुए हम जिन वेबसाइटों पर जाते हैं, वहां हमारे व्यक्तिगत डेटा को पहली फुर्सत में इकट्ठा कर लिया जाता है, हम उन नियमों और शर्तों के मानने के ज़रिये स्वीकार कर लेते हैं कि हमारे कम से कम कुछ व्यक्तिगत डेटा का उपयोग किया ही जायेगा।”

हालांकि फ़ेसबुक विशाल डेटा को इकट्ठा करता है, जो अपने प्लेटफ़ॉर्म पर उपयोगकर्ता की गतिविधियों से आगे जाकर पूरे वेब पर ब्राउजिंग की आदतों का विस्तार कर देता है, गूगल के "पूर्ण स्पेक्ट्रम" उत्पादों के समूह में संपूर्ण प्रकाशन मूल्य श्रृंखला मज़बूती से पकड़ में आ जाती है। लोकप्रिय मेल सेवा और दुनिया के शीर्ष दो सर्च इंजनों से लेकर प्रकाशकों के लिए इसके उपकरणों के समूह तक, जिसमें ट्रैफ़िक विश्लेषण प्लेटफ़ॉर्म भी शामिल है, इसके ज़रिये गूगल बहुत कुछ जान लेता है कि हमारे जीवन में क्या चल रहा है और साथ ही यह भी पता कर लेता है कि हम दुनिया के बारे में क्या जानना चाहते हैं। 

मोबाइल उपकरणों के आगमन ने एप्पल, गूगल, फ़ेसबुक और अमेज़ॉन के लिए इस उपलब्ध डेटा को नाटकीय रूप से रूपांतरित कर दिया है। और व्यवहार को नियंत्रित करने की गुंजाईश के साथ, प्रौद्योगिकी की अस्पष्टता यह सुनिश्चित कर देती है कि नियमित अंतराल पर ऐसी अनियंत्रित लक्षण सामने आते रहें: एरिज़ोना ने हाल ही में गूगल के ख़िलाफ़ शिकायत की है कि उसने अवैध रूप से एंड्रॉइड स्मार्टफ़ोन उपयोगकर्ताओं के स्थानों को ट्रैक किया है।

यूरोपीय संघ के जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन या ऑस्ट्रेलियाई प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष रॉड सिम्स और फ़्रांसीसी नियामक इसाबेल डे सिल्वा जैसे लोगों की तरफ़ से सूचना प्रौद्योगिकी की दिग्गज कंपनियों पर लगाम लगाने के अबतक के सभी हालिया प्रयास नाकाफ़ी हैं। क्योंकि कोई भी वाशिंगटन डीसी में बिग टेक यानी सूचना प्रौद्योगिकी की दिग्गत कंपनियों की पहुंच को कम नहीं कर सकता।

इसलिए, इस बात को लेकर कोई अचरज नहीं हुआ था,जब 2017 में झूठी ख़बरों के मुक़ाबले की कोशिश में कई प्रगतिशील साइट भी बहुत बुरी तरह पिट गयी थी। एलन मैकलॉड के मुताबिक़, "अल्टरनेट का गूगल ट्रैफ़िक 63 प्रतिशत, मीडिया मैटर्स 42 प्रतिशत, ट्रूथऑउट 25 प्रतिशत और द इंटरसेप्ट 19 प्रतिशत तक गिर गया था।" हालांकि इसके सर्च इंजनों का एल्गोरिदम, रैंकिंग के शीर्ष पर बने रहने वाला सर्च इंजन के बदलते रहने वाले गोपनीय उपाय और दुनिया की किसी भी वेबसाइट पर ट्रैफ़िक का अनुमान लगाने की उसकी क्षमता गंभीर चिंता के विषय हैं।

अपनी किताब,’एसएडी डिज़ाइन’ में गीर्ट लोविंक बताते हैं, "गंदगी एकत्र होती है, डेटा लीक हो जाता है, और सीटी बज जाती है - फिर भी कुछ नहीं बदलता है।" ऐसे में यह ज़रूरी है कि अगर हम एक सामान्य खेल का मैदान और एक ऐसी खुली सूचना प्रणाली चाहते हैं, जो इंटरनेट के वादे को पूरा करती है, जैसा कि इसे लेकर परिकल्पना की गयी थी, तो बिग टेक यानी सूचना पर वर्चस्व रखने वाली बड़ी कंपनियों को छोटा करना होगा और इन प्लेटफ़ॉर्मों को आम लोगों का हिस्सा बनाना होगा।

अंग्रेज़ी में लिखा लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Big Tech Should be Part of the Commons

Big Tech
Social Media
Facebook
google

Related Stories

विज्ञापन में फ़ायदा पहुंचाने का एल्गोरिदम : फ़ेसबुक ने विपक्षियों की तुलना में "बीजेपी से लिए कम पैसे"  

बीजेपी के चुनावी अभियान में नियमों को अनदेखा कर जमकर हुआ फेसबुक का इस्तेमाल

फ़ेसबुक पर 23 अज्ञात विज्ञापनदाताओं ने बीजेपी को प्रोत्साहित करने के लिए जमा किये 5 करोड़ रुपये

कानून का उल्लंघन कर फेसबुक ने चुनावी प्रचार में भाजपा की मदद की?

रामदेव विरोधी लिंक हटाने के आदेश के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया की याचिका पर सुनवाई से न्यायाधीश ने खुद को अलग किया

भारती एयटेल में एक अरब डॉलर का निवेश करेगी गूगल, 1.28 फीसदी हिस्सेदारी भी खरीदेगी

यूपी चुनावः कॉरपोरेट मीडिया के वर्चस्व को तोड़ रहा है न्यू मीडिया!

अफ़्रीका : तानाशाह सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए कर रहे हैं

मोदी का मेक-इन-इंडिया बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा श्रमिकों के शोषण का दूसरा नाम

डेटा निजता विधेयक: हमारे डेटा के बाजारीकरण और निजता के अधिकार को कमज़ोर करने का खेल


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License