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बिहार चुनाव: दूसरे चरण में 13 सीटों पर वाम की भाजपा-जदयू को सीधी टक्कर
दूसरे चरण में राज्य के 17 जिलों की 94 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। मीडिया के चुनावी आकलन में अब इस बात को फोकस किया जाना कि यह चुनाव ‘ विकास बनाम बदलाव की बयार’ के बीच हो रहा है, काफी अहम है।
अनिल अंशुमन
02 Nov 2020
बिहार चुनाव

बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के लिए मंगलवार, 3 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। इस चरण में राज्य के 17 जिलों की 94 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। मीडिया के चुनावी आकलन में अब इस बात को फोकस किया जाना कि यह चुनाव ‘ विकास बनाम बदलाव की बयार’ के बीच हो रहा है, काफी अहम है। यह इस बात का भी प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जिस बिहार के चुनाव को सिर्फ जातीय ध्रुवीकरण केन्द्रित बताने व समझने–समझाने की परिपाटी रही वो नज़र नहीं आ रही है।

इस बार बिहार चुनाव में कोई भी यहाँ आकर खुली आँखों से देख–समझ सकता है कि सत्ता प्रायोजित गोदी मीडिया की तमाम भ्रमपूर्ण कोशिशों के बावजूद यह चुनाव, प्रदेश और देश तक के जलते हुए सवालों से किस कदर सरगर्म हो चला है। सत्ता सियासत के तमाम चुनावी दिग्गजों की सोशल इंजीनियरिंग भी जीत की गारंटी नहीं करा पाने के कारण अब वे बौखलाहट में 2015 के चुनाव की भांति विपक्षी महागठबंधन के खिलाफ अनर्गल प्रलाप पर उतारू हो गए हैं।

एक ओर खुद प्रधानमंत्री और उनके केंद्रीय मंत्री बिहार के लोगों के लिए ‘ फ्री कोरोना वैक्सीन ’ देने की घोषणा करते हुए 15 वर्ष पूर्व की सरकार का खौफ दिखला कर महागठबंधन के नेता को जंगलराज का युवराज कह रहें हैं, तो  राज्य के मुख्यमंत्री– मंत्री और नेता– प्रत्याशी वर्षों पूर्व बने सड़क–पुल–पुलिया निर्माण इत्यादि को प्रदेश का विकास बताकर मतदाताओं को रिझा रहें हैं।  साथ ही विपक्षी महागठबंधन नेता तेजस्वी यादव को अनुभवहीन बताते हुए उनपर निजी पारिवारिक आक्षेप भी किए जा रहें हैं।

बिहार के युवाओं में तेजस्वी यादव की बढ़ती लोकप्रियता के साथ साथ यह भी गौरतलब है कि ऐसा पहली बार है जब प्रदेश की कई सीटों पर एनडीए प्रत्याशियों को महागठबंधन में शामिल वामपंथी दलों के प्रत्याशी सीधी टक्कर दे रहें हैं। जिनके खिलाफ भाजपा के स्टार प्रचारक तक अपनी चुनावी सभाओं में खूब ज़हर उगल रहें हैं। भाकपा माले को विध्वंसक ताक़तें, सीपीआई – सीपीएम को राष्ट्रविरोधी, टुकड़े– टुकड़े गैंग और मजदूर–किसानों को भड़काने वाली शक्तियाँ बताते हुए राजद पर अवसरवादी गठजोड़ करने के आरोप लगा रहें हैं।

मीडिया के ही हवाले से दूसरे चरण के 13 विधानसभा सीटों पर लेफ्ट बनाम भाजपा-जदयू की सीधी टक्कर है। जिसमें सीपीआई के 4  ( बखरी, टेघड़ा, बछवाड़ा और झंझारपुर सीट) , सीपीएम के 3 (विभूतिपुर, मांझी और मटीहानी) और भाकपा माले के 6 ( भोरे– सु., जीरादेई, दारौली– सिटिंग, दरौंधा, दीघा और फुलवारीशरीफ) प्रत्याशी मैदान में हैं।

भाजपा – जदयू द्वारा वामपंथी प्रत्याशियों के खिलाफ किए जा रहे दुष्प्रचार और अनर्गल बयानों से परे ‘ बदलो सरकार और नया बिहार’ का नारा बुलंद करते हुए सभी वामपंथी दलबिहार में बदलाव को एकमात्र विकल्प बता रहें हैं। अपने चुनावी प्रचार में – आलू / प्याज़ की जमाखोरी करनेवाली सरकार को सबक सिखाने, भाजपा– जदयू की चक्की में पिसते किसान–युवा–गरीब!, खेती की नीलामी– कॉरपोरेट की गुलामी नहीं सहेंगे तथा भूख – पलायन – बुलडोजर की मार के खिलाफ सरकार बदलने के की अपील की जा रही है।

29 अक्टूबर को पटना में आयोजित संयुक्त वामपंथी दलों के संवादता सम्मेलन को सीपीएम महासचिव सीताराम येचूरी, सीपीआई महासचिव डी राजा तथा भाकपा माले पोलित ब्यूरो सदस्य कविता कृष्णन ने संबोधित करते हुए पहले चरण के मतदान आकलन में महागठबंधन की बढ़त के लिए जनता को धन्यवाद देते हुए कहा कि बिहार की जनता ये फैसला कर चुकी है कि इस बार सरकार को बदल देना है। पहले चरण की भांति अगले चरण के मतदान में भी यही साबित होगा। मोदी जी व उनके नेताओं के महागठबंधन और वामपंथी दलों के विरुद्ध किए जा रहे दुष्प्रचार का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि – वे जनता को भूतकाल के अंधेरे में ले जाना चाहते हैं, वहीं वामपंथी दल, लोगों को भविष्य के उजाले में ले जाने के लिए संकल्पबद्ध हैं। भाजपा द्वारा महागठबंधन की जीत को बिहार में जंगल राज की वापसी कहने को बिहार की जनता का अपमान बताते हुए कहा कि यह चुनाव इस देश के लोकतन्त्र और संविधान पर किए जा रहे सत्ता– हमलों के खिलाफ इसे बचाने का भी संघर्ष है  जिसमें सभी वाम दल एकजुट होकर महागठबंधन के साथ हैं।

प्रधानमंत्री द्वारा तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज कहे जाने की प्रतिक्रिया में कविता कृष्णन ने कहा कि उन्हें यह उपाधि यूपी की अपनी पार्टी सरकार के मुख्यमंत्री को देनी चाहिए। जिन्होंने अपने प्रदेश में भयावह दमन, सत्ता संरक्षण में महिला उत्पीड़न-बेलगाम अपराध और आतंक का राज कायम कर रखा है। जिसके खिलाफ बिहार के लोगों ने भी तय कर लिया है कि बिहार को यूपी नहीं बनने देंगे।

एनडीए गठबंधन दलों (जेडीयू – लोजपा) में भाजपा द्वारा आपसी फूट पैदा करने की छिड़ी चर्चाओं पर बोलते हुए माले महासचिव ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा है कि – भाजपा न तो गठबंधन धर्म निभा सकती है न हिन्दू धर्म और न ही राजधर्म।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के समय सत्ताधारी नेताओं के महागठबंधन की जीत से पाकिस्तान में विजय के पटाखे फूटेंगे... जैसे बयानों की भांति इस चुनाव में भी वैसे ही अनर्गल प्रलाप कर वोट ध्रुवीकरण की कवायद जारी है। मसलन, देश में 300 आतंकी घुसनेवाले हैं, अभिनंदन है सीमा पर चीन के छक्के छुड़ाने वाले बिहारी सैनिकों का...!

उक्त संदर्भों में वरिष्ठ साहित्यकार– बुद्धिजीवी चौथीरम यादव जी का सोशल मीडिया पोस्ट - बिहार में नहीं गल पा रही सांप्रदायिकता की दाल ...कभी भी धार्मिक कट्टरता को जगह नहीं मिल पायी है .... क़ाबिले गौर है। जो इस सवाल पर भी ध्यान खींचता है कि जब जाति पूरे देश की सच्चाई है तो फिर बिहार को ही सबसे अधिक बदनाम क्यों किया जाता है? विश्लेषक बताते हैं कि चौथीरम यादव जी के दावे को आधार प्रधान करता है बिहार की मिट्टी में वामपंथी आंदोलनात्मक चेतना की मजबूत उपस्थिति..!

(अनिल अंशुमन स्वतंत्र लेखक और संस्कृतिकर्मी हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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