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भारत
राजनीति
बात बोलेगी: मोदी के भाषण में जमा नहीं रंग, राहुल की ज़मीनी पकड़ तेज़
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आज पहली चुनावी रैली में इस बात का आभास हो गया, कि एनडीए के लिए मामला इतना आसान नहीं है। उन्हें बिहार की जनता को नया देने के लिए कुछ नहीं है, वे बस 15 साल पहले का ख़ौफ़ दिखाकर मैदान मारना चाहते हैं।
भाषा सिंह
23 Oct 2020
bihar election
बिहार चुनाव में आज एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महागठबंधन की ओर से कांग्रेस नेता राहुल गांधी की एंट्री हुई। दोनों ने अलग-अलग स्थानों पर चुनाव सभाएं कीं।

बिहार की धरती क्या गुल खिलाएगी, किसे जिताएगी, किसे हराएगी ये तो खैर बाद से सामने आ ही जाएगा, लेकिन लड़ाई तो बहुत दिलचस्प और तीखी हो गई है। ऐसा आकलन शायद केंद्र की मोदी सरकार और राज्य में 15 साल से सत्तासीन नीतीश सरकार का नहीं था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आज पहली चुनावी रैली में इस बात का आभास हो गया, कि एनडीए के लिए मामला इतना आसान नहीं है। उन्हें बिहार की जनता को नया देने के लिए कुछ नहीं है, वे बस 15 साल पहले का खौफ दिखाकर मैदान मारना चाहते हैं।

सासाराम, गया और भागलपुर में शुक्रवार (23 अक्तूबर) को चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे की दिशा से ज्यादा खौफ दिखाया विपक्ष का। पिछले 15 सालों से ज्यादा उनका ध्यान, और 15 साल पहले के बिहार की तस्वीर को पेश करने पर गया। बार-बार वह राजद के चुनाव चिह्न लालटेन को गैर-जरूरी बता रहे थे और इस बहाने बिहार के विकास की बात कह रहे थे। उन्हें बिहार के शहीदों की याद आई, लेकिन बिहार के नौजवानों की नहीं।

आज के प्रधानमंत्री के भाषण से एक बात साफ हो गई कि बिहार को आगे बढ़ाने का कोई ठोस विजन इस समय मोदी-नीतीश के गठबंधन के पास नहीं है। हालांकि अभी जनता दल यू और भारतीय जनता पार्टी को इस बात पर पूरा भरोसा है कि आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम के जलवे से हवा उनके पक्ष में हो जाएगी। अभी वैसे भी मतदान में समय है और कई पत्ते सत्ताधारी पार्टी के पास हो सकते हैं। लेकिन अभी तक जनता दल यू और भाजपा रक्षात्मक और नकारात्मक ग्राउंड पर खेल रही है। मिसाल के तौर पर प्रचार लाइन भी-  “क्यूँ करें विचार, ठीके तो हैं नीतीश कुमार”  बहुत कुछ कहती हैं। अभी तक एंटी इनकंबेंसी को पार पाने के लिए लालू यादव के दौर का जिक्र करने पर निर्भरता बनी हुई है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण भी इसी परिधि में रहे, जहां उन्होंने बिहार के पिछड़ेपन के लिए 90 के दशक की अव्यवस्था को दोषी दिखाया। आज सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा टेलिप्रॉप्टर से पढ़ते हुए भाषण पर भी खूब मजाक उड़ा—लोग पूछ रहे थे कि बिहार की धरती ने आखिर उन्हें वापस यहां पहुंचा दिया।   

उधर महागठबंधन की रैलियों में जिस तरह का जोश और उत्साह नजर आ रहा है, वह बिहार में राजनीतिक परिवर्तन की शुरुआती सुगबुगाहट का संकेत दे रहा है। राजद के तेजस्वी यादव की सभाओं में युवाओं की भारी पैमाने में शिरकत, बेरोजगारी की भीषण मार से त्रस्त नौजवानों की वेदना से जुड़ रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नवादा, भागलपुर में बिहार से जुड़े बुनियादी सवाल पूछते हुए, यह सवाल भी उछाल दिया कि लोगों को प्रधानमंत्री का भाषण कैसा लगा। बिहार से ही जवाब मिलेगा मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों का—इस तरह का हौसला राहुल गांधी ने अपने भाषण में जताया। एक बात जो साफ दिखाई दे रही थी, वह यह कि प्रधानमंत्री ने आज जिन बातों का जिक्र अपने भाषण में किया था, उनका तर्कसंगत जवाब राहुल गांधी दे रहे थे। ऐसा लगता है कि इस बार बिहार में रोजगार एक बड़े मुद्दे के तौर पर राजनीति को गर्मा रहा है।

दोनों ही तरफ से वादों की बारिश हो रही है। लेकिन मोदी और नीतीश के लिए मुश्किल यह है कि इतने सालों तक सत्ता में रहने के बावजूद नौकरी औऱ रोजगार देने के उनके तमाम वादे झूठे साबित हुए। अगर बुनियादी सवालों पर बिहार का चुनाव केंद्रित रहता है तो निश्चित तौर पर परिणाम चुनावी जुगलबंदियों और भविष्यवाणियों से इतर हो सकते हैं।

Bihar Elections 2020
Assembly elections
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Nitish Kumar
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Grand Alliance
Rahul Gandhi
Tejashwi Yadav

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