NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
बिहार: लॉकडाउन से पहले और बाद मनरेगा कितना सफल?
इस वर्ष जारी किए गए कुल नए जॉब कार्डों में से 12 प्रतिशत बिहार से हैं। इस योजना के तहत 2020-21 में लगभग 38 लाख परिवारों को रोज़गार मिला है, जो पिछले तीन वर्षों में सबसे अधिक है। हालांकि, काम आसान नहीं था। 
शाइनी चक्रवर्ती
10 Nov 2020
Translated by महेश कुमार
मनरेगा

कोविड-19 की महामारी के प्रसार से निपटने के लिए 24 मार्च को अचानक 21 दिनों का लॉकडाउन शुरू कर दिया गया था, लेकिन इसे 17 मई, 2020 तक बढ़ा दिया गया। इसका श्रम बाजार पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा, विशेषकर उन मजदूरों पर जो स्थायी नौकरी करते थे या फिर सामाजिक सुरक्षा या ज़िंदा रहने के लिए पूरी तरह से दैनिक मजदूरी पर निर्भर थे। 

भारत के अधिकांश अन्य राज्यों की तरह, बिहार में भी बेरोजगारी दर में भारी वृद्धि देखी गई और अप्रैल 2020 में, यह 46.6 प्रतिशत (राष्ट्रीय औसत से अधिक) थी। ऐसा राज्य, जो पहले ही महिला कार्यबल की भागीदारी की दर (डब्ल्यूपीआर) के मामले में सबसे खराब स्थान पर था, यहां तक कि महामारी से पहले भी देश में सबसे बड़ा रिवर्स माईग्रेशन देखा गया है और 25 से 30 लाख के बीच प्रवासी मजदूर बिहार लौट आए थे। 

इन हालात को देखते हुए, लौटने वाले प्रवासियों और वंचित स्थानीय आबादी के लिए एकमात्र संभव आजीविका का अवसर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) था। चूंकि इसे मांग आधारित कार्यक्रम के रूप में डिज़ाइन किया गया था, इसलिए मनरेगा किसी भी वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों के काम की गारंटी वाले रोजगार का भारत का सबसे बड़ा सार्वजनिक रोजगार कार्यक्रम है। हालाँकि, क्या भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक यानि बिहार में आर्थिक संकट से निपटने के मामले में मनरेगा को लागू की दर पर्याप्त थी? महामारी से पहले या बाद में बिहार का प्रदर्शन अन्य राज्यों के मुक़ाबले कैसा रहा की तुलना करने की जरूरत है? यह देखते हुए कि अधिकांश वापस लौटे प्रवासी मजदूर अभी भी अपनी आय या आजीविका के किसी भी स्रोत के माध्यम से जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, इसलिए यह पता लगाना जरूरी है कि रोजगार ढूँढने वालों में से कितने को काम मिला है, उनमें कितनी महिलाएं हैं और क्या काम का पैमाना मांग से मेल खाता है।

यह नोट करना काफी निराशाजनक है कि महामारी से पहले भी, बिहार में मनरेगा के तहत तैयार किए गए मेनडेज की संख्या प्रति घर 100 दिनों के मानक से काफी कम थी। बिहार में 100 दिनों का रोजगार पूरा करने वाले परिवारों की संख्या 2019-20 में केवल 20,445 थी, राज्य नीचे से पांचवें स्थान पर था (चित्र 1 देखें)। प्रति व्यक्ति रोजगार की राष्ट्रीय औसत 48 थी जबकि बिहार में यह आंकड़ा 42 दिन था; राज्य ने 2019-20 में देश में बनाए गए कुल कार्य-दिवस (मेनडेज) का केवल 5.4 प्रतिशत था। 

तालिका1: पूर्व कोविड-19 अवधि (2019-20) के दौरान मनरेगा के तहत रोज़गार का गैप

मनरेगा के रोजगार पैदा करने की क्षमता में व्यापक अंतर है, क्योंकि 2019-20 में 18 प्रमुख राज्यों में से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने अन्य प्रमुख राज्यों की तुलना में बहुत खराब प्रदर्शन किया। इन सभी राज्यों में 2019-20 में रोजगार की मांग के बावजूद पांच लाख से अधिक परिवारों को मनरेगा के तहत रोजगार नहीं मिला पाया। इसके अलावा, 11 प्रमुख राज्यों (इन 18 में से) में, अकुशल मजदूरों को मिलने वाली दैनिक मजदूरी मनरेगा में दी जाने वाली मजदूरी दर से अधिक थी, अकुशल मजदूरों को मिलने वाली कानूनी दैनिक न्यूनतम मजदूरी बहुत अधिक थी और अकुशल मजदूरों के लिए कानूनी रूप से निर्धारित न्यूनतम के मुक़ाबले मजदूरी मनरेगा के तहत औसत मजदूरी दर 50 प्रतिशत थी जो 75 प्रतिशत के बीच थी। 

चालू वित्त वर्ष के दौरान, देश में 114.2 लाख परिवारों को नए जॉब कार्ड मिले और प्रमुख राज्यों में, नए जॉब कार्ड प्राप्त करने वाले परिवारों की संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे अधिक थी। इस वर्ष जारी किए गए कुल नए जॉब कार्ड में से 29 प्रतिशत और 12 प्रतिशत क्रमशः उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं। बिहार में, 2020-21 में 38 लाख परिवारों को रोजगार मिला है, जो पिछले तीन वर्षों में सबसे अधिक रहा है।

पूरे वित्तीय वर्ष (2019-20) में 14 करोड़ व्यक्ति-दिनों की तुलना में बिहार में पहले सात महीनों में लगभग 13.6 करोड़ काम के व्यक्ति-दिन पैदा हुए हैं। हालांकि, राज्य में केवल 6,187 परिवार ही 100 दिन का काम पूरा कर पाए है। जबकि इसके उलट एक लाख से अधिक परिवारों ने आंध्र प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा में 100 दिनों का रोजगार लॉकडाउन और पोस्ट-लॉकडाउन अवधि के दौरान पूरा किया। तालिका 1 से पता चलता है कि बिहार में, 17 प्रतिशत परिवारों को मनरेगा के तहत रोजगार नहीं मिला, बावजूद इसके कि काम की मांग अक्टूबर 2020 तक बहुत अधिक थी। इसके अलावा, बिहार में इस वर्ष (अक्टूबर 2020 तक) प्रति परिवार औसतन 35 दिन का काम उपलब्ध कराया गया है।

तालिका 1: महामारी के दौरान और उसके बाद बिहार में रोजगार की स्थिति (1 अप्रैल, 2020 से)

स्रोत: मनरेगा एमआईएस के अनुसार 31-10-2020 तक 

प्रवासी मजदूर संकट से निपटने के लिए भारत के प्रधानमंत्री ने प्रवासियों और अन्य ग्रामीण निवासियों को रोजगार देने के उद्देश्य से 116 जिलों में 125 दिनों का काम देने के लिए 20 जून को गरीब कल्याण रोज़गार अभियान (GKRA) का शुभारंभ किया था। इन 116 जिलों में से, बिहार में जीकेआरए को लागू करने के लिए बड़े स्तर परवासी मजदूरों वाले जिलों (जिसमने 12 आकांक्षात्मक जिले भी शामिल हैं) की पहचान की गई थी। हालांकि, बिहार में जीकेआरए जिलों और गैर-जीकेआरए जिलों के बीच मनरेगा के तहत रोजगार के अवसर पैदा करने में कोई उल्लेखनीय अंतर नहीं था।

सभी जीकेआरए के महत्वाकांक्षी जिलों में, बिहार में 3/4 से अधिक परिवारों के पास केवल 50 दिनों से कम दिन का रोजगार मिला है। इसके अलावा, मनरेगा दिशानिर्देशों के अनुसार, सामग्री-गहन कार्य की  एक सीमा होनी चाहिए, और सामग्री अनुपात में मजदूरी हमेशा 60:40 के अनुपात में होनी चाहिए। बेरोज़गारी की दर 20 प्रतिशत और काम की मांग केपी पूरा किए बिना चिंताजनक बात है कि बिहार में 2020-21 के दौरान सामग्री-गहन कार्यों में वृद्धि हुई है।

यद्द्पि मनरेगा हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन लॉकडाउन लगाने के बाद उभरे बेरोजगारी के संकट के मद्देनजर इसका नए सिरे से महत्व बढ़ा है। चूंकि महामारी का प्रभाव कभी भी लिंग-तटस्थ नहीं होता है, इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सरकार इस कार्यक्रम के तहत महिलाओं के रोजगार को बढ़ावा दे। लेकिन, भारत में, बिहार में भी, 2019-20 और 2020-21 की अवधि में मनरेगा के तहत कार्यरत महिलाओं के अनुपात में गिरावट आई है; राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार में गिरावट अधिक है। इसके विपरीत, मध्य प्रदेश और ओडिशा में, मनरेगा के तहत काम करने वाली महिलाओं का अनुपात उसी अवधि के दौरान बढ़ा है।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले ही मनरेगा की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार कर लिया है कि रोजगार गारंटी योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है, इस सब के मद्देनजर उन्होंने घोषणा की कि केंद्र इस योजना के लिए वर्तमान में 61,500 करोड़ रुपये के मूल आवंटन के अतिरिक्त इसी वित्तीय वर्ष में 40,000 करोड़ रुपये का आवंटन करेगा। क्योंकि मूल बजटीय आवंटन आधे से भी कम साल में समाप्त हो गया था और इसलिए मनरेगा के तहत कोविड-19 राहत पैकेज अभी भी जारी होना बाकी है। 9 सितंबर, 2020 तक, 64,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं और इसके परिणामस्वरूप, भारत सरकार के पास कुल लंबित देनदारियां ज्यों की त्यों पड़ी हैं। इसके अलावा, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और हरियाणा जैसे कुछ राज्यों में देयताएं यानि देनदारियाँ या बकाया बहुत अधिक हैं।

इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कम संसाधनों के आवंटन के कारण मनरेगा को लागू करने में कोताही बरती गई है। यह दुर्दशा कानूनी न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देने, कम रोजगार-दिवस पैदा करने तथा ईस तरह के लाभकारी रोजगार को हासिल करने से घरों की एक बड़ी संख्या को छोड़ देने में में परिलक्षित होता है।  

वर्तमान में रोजगार और आजीविका के संकट की गहराई और प्रकृति को देखते हुए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनरेगा के तहत रोजगार की मांग इस वर्ष और आने वाले वर्ष में बढ़ने वाली है। इसलिए, रोजगार-दिवस की संख्या को बढ़ाकर 200 दिनों का काम हर घर में देना वह भी कानूनी न्यूनतम मजदूरी दर के साथ काम की मांग पूरी करना बिहार सरकार का लक्ष्य होना चाहिए। यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार इस संकट की गंभीरता को स्वीकार करे और जल्द से जल्द प्रस्तावित विशेष राहत पैकेज जारी करके अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए सुधारात्मक उपाय करे ताकि जल्द से जल्द मनरेगा के तहत वास्तविक आवंटन बढ़ाया जा सके। 

लेखक एक  शोधकर्ता हैं और दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज़ से जुड़े हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Bihar: How Successful has MGNREGA been, Before and After the Lockdown?

MGNREGA Bihar
NREGA
Bihar NREGA
Bihar Elections
Employment Scheme
COVID-19
Lockdown

Related Stories

राजस्थान ने किया शहरी रोज़गार गारंटी योजना का ऐलान- क्या केंद्र सुन रहा है?

यूपी चुनाव: बग़ैर किसी सरकारी मदद के अपने वजूद के लिए लड़तीं कोविड विधवाएं

यूपी: महामारी ने बुनकरों किया तबाह, छिने रोज़गार, सरकार से नहीं मिली कोई मदद! 

यूपी चुनावों को लेकर चूड़ी बनाने वालों में क्यों नहीं है उत्साह!

लखनऊ: साढ़ामऊ अस्पताल को बना दिया कोविड अस्पताल, इलाज के लिए भटकते सामान्य मरीज़

किसान आंदोलन@378 : कब, क्या और कैसे… पूरे 13 महीने का ब्योरा

पश्चिम बंगाल में मनरेगा का क्रियान्वयन खराब, केंद्र के रवैये पर भी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उठाए सवाल

यूपी: शाहजहांपुर में प्रदर्शनकारी आशा कार्यकर्ताओं को पुलिस ने पीटा, यूनियन ने दी टीकाकरण अभियान के बहिष्कार की धमकी

दिल्ली: बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ मज़दूर, महिला, छात्र, नौजवान, शिक्षक, रंगकर्मी एंव प्रोफेशनल ने निकाली साईकिल रैली

पश्चिम बंगाल: ईंट-भट्ठा उद्योग के बंद होने से संकट का सामना कर रहे एक लाख से ज़्यादा श्रमिक


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License