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बिहार: ‘जंगलराज’ का डर दिखाकर सत्तासीन होने वाले ‘सुशासन’ की असलियत दिखाई गुलनाज़ हत्याकांड ने
इस हत्याकांड के ख़िलाफ़ बुधवार, 18 नवंबर को भाकपा माले– ऐपवा– आइसा और इनौस के राज्यव्यापी प्रतिवाद की घोषणा के तहत पूरे राज्य में कई स्थानों पर व्यापक विरोध कार्यक्रम संगठित किए गए।
अनिल अंशुमन
18 Nov 2020
bihar
सुपुर्दे-ख़ाक से पहले पटना के कारगिल चौक पर गुलनाज़ के शव के साथ प्रदर्शन करते पीड़ित परिजन। फोटो सोशल मीडिया से

...शायद ये हमारे समय का सबसे त्रासद दौर ही कहा जाएगा जब एक ओर , लोकतन्त्र निर्वहन की शपथ लेनेवाले देश के प्रधानमंत्री से लेकर उनके सभी मंत्री – नेता एक स्वर से चीख चीख कर बिहार की जनता को विपक्ष के ‘जंगल राज’ की वापसी का डर दिखाकर लोगों से वोट मांगते हैं। वहीं दूसरी ओर, ऐन चुनाव के दौरान 30 अक्टूबर को वैशाली की मासूम गुलनाज़ खातून को सरेआम ज़िंदा जला दिया जाता है और इस अमानवीय कृत्य को दबाकर सुशासन के लिए वोट मांगा जाता है। गोदी मीडिया भी अपनी पसंद की सरकार का वोट खराब न हो इसलिए इस हत्याकांड की खबर को सिरे से गायब कर देती है।

दुर्भाग्य है कि पूरा मामला सोशल मीडिया के जरिये तभी सामने आया जब 17 दिनों से 70% से भी अधिक जली अवस्था में पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती होकर मौत से जूझती मासूम गुलनाज 15 नवंबर की देर रात ज़िंदगी की जंग हार जाती है। 16 नवंबर को गम और आक्रोश से भरे उसके माता – पिता अपनी बेटी की लाश को लेकर राजधानी के व्यस्ततम चौराहे कारगिल चौक की सड़क पर बैठ जाते हैं। हर आने जानेवाले से अपनी मासूम बेटी के लिए इंसाफ की गुहार लगाते हुए सुशासनी सरकार से मांग करते रहे कि – गुलनाज के हत्यारों को पुलिस संरक्षण देना बंद करो - छुट्टा घूम रहे अपराधियों को गिरफ्तार करो, बिहार को यूपी मत बनाओ ! लेकिन घंटों सड़क बैठे रहने के बावजूद न तो किसी ने फरियाद सुनी और न ही मीडिया ने कोई महत्व दिया। वहाँ मौजूद पुलिस ने उल्टा – सीधा समझाकर बेटी की लाश के साथ गाँव पहुंचाकर आनन फानन में गुलनाज़ को दफ्न करवा दिया।

यह भी विडम्बना ही कही जाएगी कि एक दिन बाद ही 17 नवंबर को जब राजधानी में देश के गृहमंत्री के सामने ‘सुशासनी सरकार ’ की ताजपोशी होती है तो उधर, इंसाफ की आस लिए मासूम गुलनाज़ खातून दफ्न कर दी जाती है। देश के प्रधानमंत्री तक विपक्ष के ‘जंगलराज’ को सत्तासीन होने से रोकने में सफल होने पर चैन की सांस लेते हुए ढेरों बधाई देते हैं।

गुलनाज़ खातून की जलाकर हत्या की खबर पाकर वैशाली ज़िला ऐपवा और भाकपा माले की संयुक्त जांच टीम देसरी के चांदपूरा ओपी स्थित रसूलपुर हबीब गाँव पहुंची। संयुक्त जांच टीम के सदस्यों ने गुलनाज़ की माँ शैमूना खातून से ऐपवा राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी से मोबाइल पर बात कारायी। जिसमें उन्होंने बताया कि उनकी 20 वर्षीय गुलनाज़ खातून जिसका दो माह बाद ही निकाह तय था, गाँव के ही दबंग मनचले अक्सर छेड़खानी कर जबरन शादी के लिए दबाव डाला करते थे तो गुलनाज़ उसका डटकर विरोध करती थी। इसकी शिकायत उन मनचलों के परिजनों से की गयी तो 30 अक्टूबर को जब गुलनाज़ अपने घर से बाहर कूड़ा फेंकने आई तो उन्होंने उसपर किरोसन डालकर आग लगा दी। देर शाम गंभीर रूप से जली हुई अवस्था में गुलनाज़ को परिजनों ने पड़ोसियों की मदद से हाजिपुर स्थित संप्रभु निजी अस्पताल में भर्ती कराया। जहां अस्पताल संचालक की सूचना पर सदर थाना की पुलिस ने पीड़िता गुलनाज़ का फ़र्द बयान दर्ज़ किया। अपने लड़खड़ाते शब्दों में उसने पूरी घटना का ब्योरा देकर उसे जलानेवाले युवकों का पहचान नाम भी बताया। देर रात उसकी हालत बिगड़ जाने के कारण पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस जघन्य कांड की तत्काल जानकारी होने पर भी ज़िला पुलिस ने कोई सक्रियता नहीं दिखलाई। तीन दिन बाद 2 नवंबर को देसरी पुलिस ने आकर बयान दर्ज़ करने की फ़क़त औपचारिकता निभाकर चली गयी और अभियुक्तों पर कोई कार्रवाई न करके उन्हें छुट्टा छोड़ रखा। बाद में आरोपियों से एक की गिरफ़्तारी की ख़बर आई।

 

विपक्ष के अनुसार सरकार ने अपने चुनावी फायदे के लिए ही विधानसभा चुनाव का दूसरे और अंतिम दौर का मतदान सम्पन्न होने के बाद भी पूरे मामले को दबाये रखा। शायद यह मामला रफा दफ़ा कर दिया जाता। लेकिन इस बीच गुलनाज़ की मौत हो जाती है और इसी दौरान सोशल मीडिया में यह खबर और गुलनाज़ के बयान का वीडियो वायरल हो जाता है। विडम्बना ही कही जाएगी कि अगले ही दिन 17 नवंबर को इसी राजधानी में सुशासन के नाम पर सरकार ने फिर से सत्तासीन होने के शपथग्रहण समारोह का जश्न मनाया। जिसमें प्रदेश के लोगों की जान-माल की हिफाज़त का कागजी संकल्प लिया गया। इधर सुशासन कुमार कहे जाने वाले माननीय नेता जी ने देश के गृहमंत्री की उपस्थिति में मुख्यमंत्री की ताजपोशी करायी, उधर इंसाफ की आस लिए गुलनाज़ भी हमेशा के लिए दफ्न कर दी गयी। दुर्भाग्य है कि दूसरे दिन कि खबरों में भी मीडिया ने मासूम गुलनाज़ हत्याकांड की खबर दबाकर अपनी पसंद की सुशासनीराज के फिर से सत्तासीन होने की खबर को पूरे हर्षोल्लास के साथ प्रकाशित किया।

इस जघन्य हत्याकांड के खिलाफ स्थानीय ग्राम वासियों के साथ साथ वायरल हुई खबर को देखने – जाननेवालों ने काफी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सवाल उठाए कि –बेटी बचाओ का नारा देनेवाली सुशासनी सरकार एक मासूम को ज़िंदा जलानेवाले हत्यारों को क्यों बचा रही है! ऐपवा और भाकपा माले की संयुक्त जांच टीम द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि – जांच टीम के सदस्यों ने मृतका गुलनाज के परिजनों और स्थानीय ग्रामीणोंसे भी मिलकर वस्तुस्थित की पूरी जानकारी लेने के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि इस मामले में आरोपी अपराधियों के साथ पुलिस की मिलीभगत साफ दिखती है। जिसने दिखावे के लिए सिर्फ केस दर्ज़ करने की खानापूर्ती कर सत्ताधारी दल को चुनावी फायदे के लिए मामले को पूरी तरह से दबये रखा। वहीं पीड़िता का वीडियो वायरल होने के बावजूद पुलिस ने चार दिनों बाद दर्ज़ FIR के बावजूद दोषियों के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की। इस लिए जांच टीम ने मांग करती है कि – 1. गुलनाज़ के हत्यारों को संरक्षण देनेवले चांदपुरा ओपी प्रभारी और देसरी थाना प्रभारी को तत्काल बर्खास्त किया जाय। 2. सभी आरोपी अभियुक्तों को फौरन गिरफ्तार किया जाय और स्पीडी ट्रायल कर कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाय। 3. मृतका गुलनाज़ के गरीब परिवार को समुचित मुआवजा और माँ को सरकारी नौकरी दी जाये।

 

ऐपवा महासचिव ने यह भी कहा है कि जिस तरीके से विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री - मुख्यमंत्री और सत्ताधारी एनडीए सरकार के नेता – मंत्रियों ने मतदाताओं को जंगलराज की वापसी का झूठा डर दिखाकर जनादेश हड़प लिया है, मासूम गुलनाज़ हत्याकांड ने उनके कुशासन का असली चेहरा एक बार फिर से उजागर कर दिया है। गुलनाज़ हत्याकांड की खबर पर त्वरित संज्ञान लेते हुए कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट के माध्यम से गहरा रोष जाहिर करते हुए कहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री बनाए गए नीतीश कुमार को सुशासन बाबू का दर्जा दिया गया है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि उनकी नींव में कुशासन है। गुलनाज़ हत्याकांड मामले में अपराधियों से ज़्यादा खतरनाक सरकार और प्रशासन है जिसने चुनावी फायदे के लिए इस पर पर्दा डाले रखा।

सीपीआई (एम) के वैशाली ज़िला नेताओं की जांच टीम ने भी घटनास्थल का दौरा कर वही मांगे उठाई हैं जो ऐपवा–माले की जांच टीम ने निष्कर्ष के तौर पर उठाई हैं।

वामपंथी छात्र – युवा संगठन आइसा ने इस कांड के खिलाफ त्वरित विरोध करते हुए कई स्थानों पर प्रतिवाद मार्च निकाल कर मुख्यमंत्री के पुतले जलाकर मृतका के इंसाफ के लिए कैन्डल जलाए।

17 नवंबर को हाजीपुर में SC/ST / OBC माइनीरिटी मोर्चा के बैनर तले भी नगर के ट्रैफिक चौक से शहीद स्मारक तक विरोध मार्च निकाला गया। मोर्चा ने भी गुलनाज़ के परिजनों को इंसाफ तथा दोषियों को अविलंब गिरफ्तार कर सज़ा देने की मांग की है। इस कांड को लेकर सोशल मीडिया में यह भी कहा जा रहा है कि यदि गुलनाज़ की जगह कोई हिन्दू लड़की और हत्यारे मुस्लिम युवा होते तो जिस गोदी मीडिया ने इस खबर को दबाकर रखा, अब तक ‘लव जिहाद’के खिलाफ जंग के नाम पर सांप्रदायिक उन्माद फैलाने का ‘देशहित कार्य’ कर डाला होता।

आज 18 नवंबर को गुलनाज़ हत्याकांड के खिलाफ भाकपा माले– ऐपवा– आइसा और इनौस के राज्यव्यापी प्रतिवाद की घोषणा के तहत पूरे राज्य में कई स्थानों पर व्यापक विरोध कार्यक्रम संगठित किए गए।

 

पटना में सम्पन्न हुई भाकपा माले पोलित ब्यूरो तथा राज्य कमेटी के बैठक से यह घोषणा की है कि सुशासनी राज के सत्तासीन होते ही प्रदेश के नवादा – भोजपुर – सीवान – दरभंगा और वैशाली समेत कई इलाकों में चुनाव बाद आपराधिक हमलों की बाढ़ सी आ गयी है । जिसके खिलाफ पार्टी सदन से लेकर सड़कों तक जुझारू प्रतिवाद जन आंदोलनों का सिलसिला निरंतर जारी रखेगी। यकीनन देखा जाय तो देश के ताज़ा हालात में एक करगर – लड़ाकू विपक्ष की ज़रूरत आज काफी शिद्दत से महसूस की जा रही है। इसी परिपेक्ष में देखना है कि बिहार का महागठबंधनी विपक्ष और विशेषकर उसके प्रमुख घटक सभी वामपंथी दल और उनके संगठन गुलनाज़ खातून जैसी बेटियों के इंसाफ के लिए ‘ जंगलराज वापसी का डर दिखाकर’ जनता का वोट झटकने वाले एनडीए शासन के दहशत राज के खिलाफ संघर्ष में कहाँ तक क़ामयाब होते हैं!

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