NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार: पिछले एक महीने में क्यों ध्वस्त हो गईं गोपालगंज के तीन नवनिर्मित पुलों की एप्रोच रोड?
बिहार के गोपालगंज जिले में गंडक नदी पर स्थानीय लोगों को खुश करने के लिए बहुत कम दूरी पर कम लंबाई के तीन पुल बना तो दिये गये। मगर उनकी डिजाइन में इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि बाढ़ आने की स्थिति में क्या ये पुल नदी का दबाव झेल पायेंगे।
पुष्यमित्र
17 Aug 2020
बिहार
सत्तर घाट पुल का सम्पर्क पथ इसके उदघाटन के एक महीने के भीतर ध्वस्त हो गया था।

बिहार के गोपालगंज जिले में गंडक नदी पर बने तीन पुलों के संपर्क पथ (एप्रोच रोड) पिछले एक महीने के दौरान ध्वस्त और क्षतिग्रस्त हो गये। इन घटनाओं ने भ्रष्टाचार के नजरिये से तो लोगों का ध्यान खूब खींचा। इस पर राजनीतिक बहसें भी हुईं। मगर इन पुलों के संपर्क पथों के एक साथ क्षतिग्रस्त होने के असली कारणों की तफ्तीश नहीं हुई।

जानकारों का मानना है कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि राजनीतिक कारणों से स्थानीय लोगों को खुश करने के लिए बहुत कम दूरी पर कम लंबाई के तीन पुल बना तो दिये गये। मगर उनकी डिजाइन में इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि बाढ़ आने की स्थिति में क्या ये पुल नदी का दबाव झेल पायेंगे। अगर इनकी जगह बेहतर डिजाइन वाला एक या दो पुल बनता तो स्थिति ऐसी नहीं होती।

पिछले महीने, 15 जुलाई को गोपालगंज के एक बड़े पुल के एप्रोच रोड के बहने की घटना ने पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। पहले खबर यह फैली कि उद्घाटन के महज 29 दिन के भीतर यह पुल ध्वस्त हो गया। मगर बाद में सरकार ने यह स्पष्टीकरण जारी किया कि मुख्य पुल नहीं बहा है, उसके संपर्क पथ पर बनी एक छोटी पुलिया ध्वस्त हुई है। इस घटना के लगभग एक महीने बाद, 12 अगस्त को फिर से एक बड़े पुल के संपर्क पथ के ध्वस्त होने की खबर आयी।

गोपालगंज के ही बंगराघाट पर बने पुल का संपर्क पथ उसी रोज ध्वस्त हो गया, जिस रोज मुख्यमंत्री उस पुल का उद्घाटन कर रहे थे। इस बीच गोपालगंज जिले के ही एक अन्य बड़े पुल मंगलपुर सेतु के भी संपर्क पथ में दरार आने की खबर है, वह पुल 2015 में बना था।

बिहार के गोपालगंज जिले में गंडक नदी पर बने इन तीन बड़े पुल जिनकी लंबाई औसतन डेढ़ से दो किमी के बीच है और उनकी लागत भी 250 से 500 करोड़ रुपये के बीच है। इसी जिले में गंडक नदी पर बना एक चौथा पुल जिसे वहां डुमरिया घाट पुल कहते हैं, जर्जर हाल में है और वहां एक अन्य निर्माणाधीन पुल बरसों से आधा बना हुआ और कहा जाता है कि उस पुल का ठेकेदार निर्माण आधा छोड़ कर भाग गया है।

पहले तीन पुलों का निर्माण पिछले पांच वर्षों में हुआ है और इन तीन पुलों के निर्माण पर 1112. 4 करोड़ खर्च करने के बाद भी गोपालगंज से तिरहुत और चंपारण के इलाके को जोड़ने के लिए कोई भरोसेमंद रास्ता नहीं है।

इस रास्ते पर पहले एनएच 28 पर एक पुल हुआ करता था, जिसे बैकुंठपुर पुल कहते हैं। उस पुल की स्थिति काफी खराब है। उस पुल के बदले वहां बरसों से एक पुल निर्माणाधीन है, अधूरा बना पड़ा है, जिसके पूरा होने की संभावना नहीं है। उसके बाद 2015 में 330 करोड़ की लागत से यादोपुर-मंगलपुर सेतु बना, जिसकी लंबाई 1.92 किमी है।

2020 में चुनावी वर्ष में इसी जिले में गंडक नदी पर दो और पुलों का उद्घाटन हुआ। पहले सत्तरघाट पुल का उद्घाटन जून महीने में हुआ, जिसकी लंबाई 1.44 किमी है और उस पर 263.43 करोड़ की राशि खर्च हुई है। फिर 12 जुलाई को बंगराघाट पुल का उद्घाटन हुआ, जिसकी लागत 508.98 करोड़ बतायी जा रही है, इसकी लंबाई 1.5 किमी है।

दिलचस्प है कि ये सभी पुल एक ही जिले गोपालगंज में, एक ही नदी गंडक पर एक ही दिशा में बने हैं। इन सभी चार पुलों से होकर गोपालगंज के लोग या तो चंपारण के जिलों में जाते हैं, या मुजफ्फरपुर। इन चारों पुलों के बीच एक पुल से दूसरे पुल की दूरी भी बमुश्किल 10 से 12 किमी बतायी जा रही है। हालांकि स्थानीय लोगों को यह देखकर अच्छा लगता है कि उनके नदी पार करने के लिए छोटी-छोटी दूरी पर एक साथ चार पुल हो गये हैं। मगर कई लोग यह सवाल भी उठाते हैं कि क्या एक ही नदी पर एक ही रास्ते में जाने के लिए गोपालगंज जैसे जिले में चार बड़े पुल होने चाहिए।

दिलचस्प बात यह भी है कि बंगराघाट पुल के उद्धाटन के दिन 12 जुलाई को बैकुंठपुर से स्थानीय विधायक मिथिलेश तिवारी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सालेमपुर घाट पर एक और पुल की मांग कर डाली, उन्होंने कहा कि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी इस पुल के लिए मौखिक सहमति दे चुके हैं।

यह मामला इसलिए भी समझ से परे है, क्योंकि गोपालगंज को छोड़ दिया जाये तो बिहार के किसी अन्य जिले में एक ही नदी को पार करने के लिए एक साथ इतने बड़े पुल नहीं हैं। राजधानी पटना में भी गंगा नदी को पार करने के लिए सिर्फ दो पुल है, जिसमें एक महात्मा गांधी सेतु क्षतिग्रस्त है, उसके मरम्मत का काम चल रहा है। दूसरे दीघा घाट सेतु पर सिर्फ छोटे वाहनों के परिचालन की अनुमति है।

गंगा और गंडक के बाद बिहार की एक अन्य बड़ी नदी कोसी पर सिर्फ पांच बड़े पुल हैं, मगर ये सब पर्याप्त दूरी पर अलग-अलग जिलों में हैं। इनमें से दो सहरसा में हैं, मगर अलग-अलग दिशा में, अलग-अलग जिलों को जोड़ने के लिए। एक सुपौल में, एक मधेपुरा और एक कटिहार में है। ऐसे में गोपालगंज जैसे जिले में एक ही नदी पर चार बड़े पुलों का होना अजीब लगता है।

एक स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अवधेश राजन कहते हैं कि ऐसा यहां के स्थानीय विधायकों के दबाव में हो रहा है। हर कोई अपने क्षेत्र में पुल बनाकर अपने क्षेत्र की जनता का समर्थन हासिल करना चाह रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस वजह से भी इन नेताओं की मांग को मान ले रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पारंपरिक रूप से राजद का गढ़ रहे इस क्षेत्र में उनकी पैठ बढ़ेगी। बैकुंठपुर के विधायक के ताजा बयान से भी इस बात की पुष्टि होती है।

वे कहते हैं, मगर छोटी-छोटी दूरी पर चार पुल बना देने से भले ही लोगों को तात्कालिक तौर पर खुशी मिल जाए, मगर उनकी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो पा रहा। इन पुलों के संपर्क पथ पर गंडक नदी का बार-बार हमलावर होना इसी का संकेत है।

वे कहते हैं, पुल तो चार बन गये, मगर ज्यादा से ज्यादा लोगों को खुश करने के चक्कर में एक भी पुल ऐसा नहीं बन सका जिससे गंडक नदी निर्बाध रूप से बहती। इस्टीमेट कम करने और ज्यादा पुल बनाने के चक्कर में हर बार पुल की लंबाई कम की गयी और इसके डिजाइन में बदलाव किया गया। यह उसी का नतीजा है।

बिहार में नदियों के बड़े जानकार रंजीव कहते हैं, किसी भी नदी पर पुल बनाते वक्त इस बात का समुचित ध्यान रखना चाहिए कि पुल की लंबाई उस नदी के मैक्सिमम फ्लड डिस्चार्ज को, यानी उस लंबाई को जिसमें अपने इतिहास के सबसे बड़े बाढ़ के वक्त में नदी बहती रही हो, पुल को बनाना चाहिए। अगर नदी के दोनों तरफ तटबंध बने हो, तो उस तटबंध पर ही एक तरफ से दोनों तरफ पुल बनने चाहिए। मगर अमूमन पुल बनाते वक्त इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता है।

वे कहते हैं, पैसों की कमी की बात भी ठीक नहीं लगती। क्योंकि वहां तीन पुलों पर 11 सौ करोड़ से अधिक की राशि खर्च हुई है, अगर इन पैसों से एक पुल बनता तो उसकी डिजाइन ठीक रखी जा सकती थी। मगर राजनीतिक कारणों से वहां इन्हीं पैसों में तीन छोटी लंबाई के पुल बन गये और तीन नाकाम साबित हो रहे।

वे कहते हैं, हालांकि यह बात सच है कि इस साल गंडक की बाढ़ भी भीषण है, मगर इसके बावजूद अगर पुलों की संरचना सही होती तो नुकसान नहीं होता। वैसे भी पुलों को बाढ़ के खतरे को देखते हुए ही बनाना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कहते हैं, कि पहले के जमाने में पुलों के दोनों तरफ सीमेंट की दीवारें भी बनती थी, जो नदी के हमले से पुल को बचाती थी, मगर अब नये डिजाइन में वे भी बनने बंद हो गये हैं।

इस तरह देखें तो ऐसा प्रतीत होता है, राजनीतिक कारणों से गोपालगंज में गंडक नदी बने तीन पुल अपनी डिजाइन की गड़बड़ियों की वजह से संदिग्ध हो गये हैं।

इस बारे में जब बिहार राज्य पुल निर्माण निगम के प्रबंध निदेशक सुरेंद्र यादव से पूछा गया तो उन्होंने यह कहा कि पुल कैसे बने यह तो हम बता सकते हैं, मगर इतनी कम दूरी पर गोपालगंज में चार पुल क्यों बन गये, यह बताना हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है। हमें जो आदेश दिया जाता है, उसे हम पूरा करते हैं। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Bihar
Bihar government
Nitish Kumar
Bridges of Gopalganj

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग

मिड डे मिल रसोईया सिर्फ़ 1650 रुपये महीने में काम करने को मजबूर! 

बिहार : दृष्टिबाधित ग़रीब विधवा महिला का भी राशन कार्ड रद्द किया गया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका

बिहार पीयूसीएल: ‘मस्जिद के ऊपर भगवा झंडा फहराने के लिए हिंदुत्व की ताकतें ज़िम्मेदार’

बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License