NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भोजपुरी सिने स्टार की चुनावी रैली में बिहारियों ने बिहार के सिनेमा और गाने पर क्या कहा?
एक सवाल मैंने तकरीबन सभी लोगों से किया कि  क्या चुनावी रैलियों में हीरो-हीरोइन को बुलाना ठीक है? इस सवाल पर सब का एक ही जवाब था कि यह बिल्कुल गलत है। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम खुद यहां मनोरंजन के लिए आए हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं।
अजय कुमार
06 Nov 2020
चुनावी रैली

"मोदी जी पर 'पटना टू पाकिस्तान' फिल्म सूट करेगा। मुझे लगता है कि अगर मोदी जी को कहा जाएगा कि वह भोजपुरी सिनेमा में कोई फिल्म करें तो मोदी जी इसी फिल्म का चुनाव करेंगे।" वाल्मीकि नगर विधानसभा क्षेत्र के दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ के चुनावी रैली में आए एक शख्स से जब मैंने यह पूछा कि आपको क्या लगता है कि नरेंद्र मोदी भोजपुरी सिनेमा के किस फिल्म में खुद को हीरो की तरह पेश करेंगे। तो उस शख्स ने यह जवाब दिया कि नरेंद्र मोदी 'पटना टू पाकिस्तान' पर जरूर कब्जा कर लेंगे। वजह है कि इस फिल्म को देखने के बाद लोग अपना पराया सब भूल कर खूब तालियां पीटते हैं। पाकिस्तान से नफरत के भाव में भर जाते हैं। मोदी जी को यही तो चाहिए कि नफरत पैदा कर तालियों के जमीन पर अपनी चुनावी इमारत ऊंची से ऊंची बनाते रह जाए।

दिनेश लाल यादव निरहुआ भोजपुरी फिल्म के चहेते चेहरे हैं हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से समाजवादी पार्टी के अगुआ अखिलेश यादव के खिलाफ आजमगढ़ से चुनाव भी लड़ चुके हैं। इस बार बिहार चुनाव में भाजपा की तरफ से जमकर प्रचार किए हैं। खूब भीड़ बटोरे हैं।

जब यह बात पता चली कि चुनाव प्रचार के लिए भोजपुरी सिनेमा के सितारे की महफिल जमने वाली है तो मैंने सोचा क्यों ना अबकी बार सवालों के साथ थोड़ी राजनीति की जाए। आम जनता से सरोकार का विषय भोजपुरी सिनेमा गीत संगीत अभिनेता अभिनेत्री और लोक संस्कृति और कला रखा जाए।

दिन के 12:00 बज चुके थे। शुरुआती ठंड की थपकी देने वाली धूप की वजह से हवाएं ठंड की हमसफर बन चुकी थीं। तभी मैंने एक ऐसे लड़के को देखा जिसे मैंने राहुल गांधी की चुनावी रैली के वक्त भी देखा था। मैंने पूछा आज इतना सज धज के क्यों? राहुल गांधी की चुनावी रैली में तो तुम जैसे हो वैसे ही चल दिए थे। उस ने मुस्कुराते हुए कहा आप नहीं समझिएगा निरहुआ आ रहा है। निरहुआ अकेले थोड़े ना आएगा। उसके साथ कोई ना कोई हीरोइन भी आएगी। तो थोड़ा बन ठन के जाना तो फर्ज बनता ही है। मैंने कहा की भारी भीड़ में तुम्हें कैसे लग रहा है कि वह तुम्हें देख ही लेगी? उसने फिर से मुस्कुराते हुए कहा कि जिंदगी में सब कुछ देखने दिखाने के लिए ही तो होता है। वह नहीं देखेगी। मुझे भी पता है। लेकिन मैं तो देखूंगा ना। मेरे अंदर तो वह फीलिंग होनी ही चाहिए कि अगर वह देख ले एक पल तो  मेरी बात बन जाए। चुनाव तो केवल हार जीत के लिए होता है। असल जिंदगी तो यह है। हम दोनों मुस्कुराए और अपने अपने मकसद की तरफ बढ़ चले।

सुरक्षा के मकसद से मौजूद खाकी वर्दी को देखकर मेरे मन में एक सवाल आया। मैंने सामने से आ रहे एक सुरक्षा कर्मी से पूछा कैसा लगता है आपको जब कोई अभिनेता और अभिनेत्री आता है और आप लोगों को सुरक्षा के लिहाज से तैनात किया जाता है।

सुरक्षाकर्मी बीएसएफ का जवान था। आंध्र प्रदेश से था। वह मेरे सवाल पर मुस्कुराया और अपनी टूटी-फूटी हिंदी में कहा कि ना तब अच्छा लगता है जब हम बॉर्डर पर होते हैं और ना ही अभी अच्छा लग रहा है। लेकिन जिंदगी केवल ' अच्छे लगने के सहारे' नहीं काटी जा सकती है। 'अच्छा लगना या ना लगना' अलग बात है। यह मेरी ड्यूटी है। मेरा परिवार इसी से चलता है। जो भी है ठीक है।

आगे बढ़ा तो दो लेडी कांस्टेबल खड़ी थी। उनसे भी यही सवाल किया। उन्होंने मुझसे बात ना करने वाली अभिव्यक्ति प्रस्तुत करते हुए कहा कि सब अच्छा है। अच्छा लग रहा है। हमें सैलरी मिलती है। उनके हाव-भाव से लगा कि वह किसी सवाल से टकराना नहीं चाहती हैं।

अपनी आदत के मुताबिक मैं हेलीपैड देखने गया। वहां पर एक सुरक्षाकर्मी ने मुझे दूर से ही देखते कहा घबराओ मत निरहुआ आ रहे हैं। मैंने झट से अपना सवाल इस सुरक्षाकर्मी के सामने भी रख दिया। सवाल सुनते ही बीएसएफ के जवान ने कहा तो अच्छा तो आप पत्रकार हैं। कोई दिक्कत नहीं सब ठीक है। मैंने कहा की बॉर्डर पर तो देश सेवा वाली फीलिंग आती होगी। क्या यहां पर भी ऐसी फीलिंग आती है? बीएसएफ के जवान ने कहा कि सच बताऊं तो नेता लोगों की सुरक्षा के काम में थोड़ा भी अच्छा नहीं लगता है। अगर अभिनेता अभिनेत्री आ जाएं तो अंदर से कोफ्त भी होती है। ऐसे वक्त में हल्का भी जी नहीं लगता। बॉर्डर पर देश सेवा वाली फीलिंग आती है। गोली लगी तो कहा जाएगा कि देश सेवा करते हुए मरे। लेकिन यहां पर गोली लगी या कुछ हुआ तो कोई भी नहीं समझेगा। मैंने कहा आप ऐसा क्यों सोचते हैं? असल में आप नागरिक सुरक्षा के लिहाज से ही तो बॉर्डर पर भी मौजूद होते हैं। यहां पर भी आप केवल हीरो हीरोइन की सुरक्षा के लिए तो नहीं है। इसके साथ यहां के लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी तो आप लोगों के कंधे पर ही हैं?

जवान ने कहा कि आप अपने दूसरे तरह के पत्रकार लग रहे हैं। बात आपकी सही है। खाली समय में कंधे पर बंदूक लेकर घूमते घूमते यही सब सोचकर मन को संतोषी करते हैं कि लोग ही तो बचाने हैं। यहां बचाया जाए या वहां। इससे क्या फर्क पड़ता है। लेकिन फिर वही मन इतना जल्दी मानता कहां है। मेरी वर्दी और बंदूक को देखकर सामने वाले लोगों में जो रेस्पेक्ट और इज्जत है। वह उन्हीं लोगों में आप जैसे पत्रकारों के लिए नहीं होगी। यही अंतर है जिसकी वजह से बॉर्डर पर लड़ना देश सेवा लगता है और बॉर्डर के अंदर लड़ना कुछ भी नहीं।

इसके बाद अब मैं भीड़ में टहलने लगा। लोगों ने कहा कि यहां इस चुनाव में दो रैलियां हुईं। लेकिन जितनी भीड़ आज हुई है,उतनी भीड़ पहले नहीं हुई। मैंने पूछा ऐसा क्यों? लोगों ने जवाब दिया कि  'नचनिया बजनिया खातिर एटना भीड़ ना होई त केकरा खातिर हुई, एक बार बोलते हुए हाथ चमका देगा सब या डाढ़ लचका देगा सब त पूरा पब्लिक दीवाना हो जाई',  हिंदी के लहजे में कहा जाए तो यह कि नाचने और बजानेवाले आएंगे तो भीड़ होगा ही, उनकी अदाओं पर पब्लिक दीवानी जो ठहरी।

इन जवाबों को बड़े ध्यान से पढ़ा जाए तो साफ है कि बिहारी मन में नाचने गाने बजाने वालों को लेकर  एक तरह की तुच्छता का भाव है। लेकिन नाचने गाने और बजाने वालों की अदाओं पर बिहारी मन बेकाबू हो जाता है। यह बात भी वह कह रहे हैं।

इसके बाद एक सवाल मैंने तकरीबन सभी लोगों से किया कि  क्या चुनावी रैलियों में हीरो-हीरोइन को बुलाना ठीक है? इस सवाल पर सब का एक ही जवाब था कि यह बिल्कुल गलत है। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम खुद यहां मनोरंजन के लिए आए हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं।

लेकिन जब मैंने लोगों से पूछा कि भोजपुरी संस्कृति और कला का आपके लिए क्या मतलब है? यकीन मानिए मेरी बात को सबने बड़ी हैरत के साथ सुना। मेरी तरफ अजीब निगाहों से देखा। किसी ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया। इसकी वजह थी किसी को मेरे सवाल की भाषा ही नहीं समझ में आई। तब मुझे सवाल बदलना पड़ा। मैंने पूछा भोजपुरी सिनेमा में गाने बजाने नाचने वाले सिनेमा देखने को लेकर आप लोगों की क्या राय है?

इस पर सबकी प्रतिक्रिया अलग-अलग थी। किसी ने कहा अच्छा है। भोजपुरी सिनेमा नाच गाना ठीक है। जब मैंने पूछा कि बाहर के लोग भोजपुरी सिनेमा फूहड़ कहते हैं तो जवाब मिला नहीं ऐसा नहीं है। बाहर के लोग भोजपुरी समझते नहीं है। उन्हें भोजपुरी शब्द का अता पता नहीं होता। इसलिए ऐसा कहते हैं। फिर मैंने पूछा कि क्या आप अपने बच्चे और परिवार के साथ भोजपुरी सिनेमा और गाना देख सुन सकते हैं? लोगों का जवाब था कैसी बात कर दिया आप? सिनेमा और गाना भी भला परिवार के साथ देखने के लिए बना होता है। इसे अकेले में ही देखा जाना चाहिए। हम अकेले ही मोबाइल पर देखते हैं। फुहड़ता है लेकिन क्या यह केवल भोजपुरी सिनेमा में है? हिंदी सिनेमा में सलमान खान क्या करता है? कटरीना और प्रियंका क्या करते हैं? क्या वह फूहड़ नहीं है? अगर हिंदी फूहड़ है तो भोजपुरी भी फूहड़ है। अगर हिंदी फूहड़ नहीं है तो भोजपुरी में फूहड़ नहीं है। मैंने कहा कि लोग कहते हैं कि भोजपुरी सिनेमा और गाने बहुत ज्यादा फूहड़ है? इस पर जवाब था कि लोगों के सोचने समझने का नजरिया है।

मुझे लगता है कि जिन्हें भोजपुरी नहीं आती है और भोजपुरी से जिन्हें प्यार नहीं है, वही ऐसा कहते हैं। यह बातचीत सुनकर कोई दूसरा आया। दूसरे ने कहा नहीं भोजपुरी में कुछ अच्छा है तो कुछ बहुत बुरा है। कुछ फिल्में और गाने आप केवल परिवार के साथ नहीं बैठ कर सुनते हैं बल्कि वह पूरा गांव पर्व त्योहार पर सुनता है। लेकिन कुछ गाने और फिल्म आप परिवार के साथ नहीं देख सकते हैं। मौजूदा समय में इस तरह के गाने ज्यादा बन रहे हैं। गांव में भी बड़े बाजे पर लगा कर इसे सुना जाता है। अब पुराने लोग नहीं हैं। बिहार के लोक और लोग के नाम पर बिहारी फिल्म और गानों में भी बंबइया रंग समाया हुआ है। बिहार का बिहारीपन गायब होता जा रहा है। सब के जवाब में एक बात कॉमन थी कि तकरीबन सभी ने कहा कि भोजपुरी हमारी मातृभाषा है। इसलिए अच्छा लगता है।

चूंकि बातचीत की जगह भाजपा की चुनावी रैली थी इसलिए कानों में मंच से आती हुई वे आवाजें भी सुनाई दे रहीं थी जो समाज में बटवारा और नफरत का काम करती है। मंच से खड़े होकर माथे पर तिलक लगाए एक बूढ़े साहब राहुल गांधी के खानदान को बता रहे थे। फिरोज गांधी का नाम लेकर राहुल गांधी को मुस्लिम साबित कर रहे थे। सोनिया गांधी को लेकर वह सारी बातें कह रहे थे जिनकी चर्चा पूरे हिंदुस्तान में उन्हें विदेशी बताए जाने के लिए की जाती हैं। बख्शा तो उन्होंने तेजस्वी यादव को भी नहीं था। विधायक के लिए खड़े हुए विपक्षी उम्मीदवार को मस्जिद में जाकर टोपी पहनकर नमाज पढ़ने वाला हिंदू बता रहे थे। इसके साथ कह रहे थे कि हम भारत माता की जय कहने वाले लोग कुछ भी कर सकते हैं लेकिन मस्जिद में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकते हैं। हमसे तो यह नहीं हो पाएगा। यह सुनते ही मैंने आसपास के लोगों से पूछा कि जो माइक से बोला जा रहा है उस सब पर आप लोग विश्वास कर लेते हैं। लोगों ने कहा कि बोलना उनका काम है।

इसलिए वह बोल रहे हैं। तभी अचानक एक बूढ़े आदमी ने कहा कि ई पार्टी देश बर्बाद करे वाला पार्टी हिय। ईहे तरे बोले ले। यानी या पार्टी देश बर्बाद करने वाली पार्टी है। इसी तरह बोलती है। तभी माइक से आवाज आई कि भारत के विद्वान पत्रकार अर्नब गोस्वामी को महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने जेल में डाल दिया है। लोकतंत्र पर यह हमला नहीं सहा जाएगा। वाल्मीकि नगर की जनता इसका विरोध करते हुए वोट भाजपा को देगी। बिहार के सबसे पिछड़े इलाके में अर्नब का नाम सुनकर मेरे जैसा पत्रकार अचानक से चौक गया। आसपास के लोगों से पूछा कि अर्नब को जानते हैं। लोगों ने कहा होई कोनो। यानी कोई होगा।

दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ ने मंच पर आकर हवा देने का काम किया। राष्ट्रवाद का हवा। ऐसे ऐसे वाकया सुनाएं जो लोगों के मन में यह भरें कि भारतीय जनता पार्टी देशभक्त पार्टी है बाकी सारी पार्टियां देशद्रोही। साथ में संस्कृत के दो चार श्लोक पढ़कर यह भी बताने की कोशिश की कि वह कलाकार के साथ प्रकांड पंडित भी हैं। लोगों को पता नहीं कितना समझ में आया, लेकिन सबसे अधिक तालियां निरहुआ के जरिए बोले गए इस श्लोक पर ही पड़ी कि ऐष न विद्या न तपो न दानम..... मैंने पूछा की संस्कृत के इस श्लोक में आपको क्या समझ में आया? तो एक शख्स ने कहा की यह सुनकर ऐसे लगा जैसे कोई महा विद्वान बोल रहा है। संस्कृत भारत के देवताओं की भाषा है।

निरहुआ अपनी बातचीत की अंध राष्ट्रवादी शैली से लोगों को रिझाने में लगे हुए थे। इधर मैंने किसी से पूछ दिया कि भोजपुरी सिनेमा में किसी भी ऐसे तीन फिल्म का नाम बताइए जो आपको बहुत पसंद हों? सामने वाला सोच में पड़ गया। बोला कि हम फिल्म देखते हैं। भोजपुरी फिल्में देखते हैं। लेकिन अब हमारी उम्र नहीं रही। दिन भर के काम के थकान के बीच फिल्म गाने केवल मनोरंजन का जरिया है। देखते हैं और भूल जाते हैं। इतना याद नहीं रहता। भोजपुरी फिल्म और संगीत में जो हो रहा है वह ठीक ही होगा। इन सब पर हम ज्यादा सोचते नहीं। आखिरकार नचनिया बाजनिया के बारे में सोच कर हमारा पेट थोड़ी ना भरेगा।

कलाकारों के प्रति तकरीबन सब का यही रवैया था। लोग उनके दीवाने तो थे। लेकिन वे उनके काम को ऐसी नजर से नहीं देख रहे थे कि वे उसे अपनी नजर में सम्मान की जगह दें। नचनिया, बजनीया शब्द बार-बार आ रहा था। निकृष्टता के साथ आ रहा था।

सबसे अजीब बात तो यह थी कि मर्दों ने कहा कि औरतें सबसे अधिक आई हैं। औरतों ने कहा की मर्द सबसे अधिक आए हैं। बूढ़ों ने कहा कि जवनकन के बहार लौट ल बा। और नौजवानों ने कहा कि बुढ़वा खूब आइल बाड़न स। अजीब था। सब के अंदर एक चोर था। चोर समाज के दबाव में रहकर अपने अंदर के इंसान को मारने पर उतारू था।

रैली खत्म हो चली थी। हेलीकॉप्टर उड़ चला था। बिहार के 2020 के विधानसभा चुनाव की लड़ाई के अंतिम दिन की शाम आ चुकी था। इस इलाके में शनिवार, 7 नवंबर को मतदान होना है। मैं भी लौटने लगा। रास्ते में देखा तो सज धज के आए उस लड़के से फिर से मुलाकात हुई जिससे सुबह मुलाकात हुई थी। बेचारे की पैंट फट चुकी थी। मैंने पूछा कैसे हुआ। उसने कहा हम थोड़ा नजदीक से जाकर देखने की कोशिश कर रहे थे। पुलिस ने दौड़ा दिया था। मैंने मुस्कुराते हुए कहा कि सजने धजने के साथ हमारे देश में चुनाव भी बहुत कुछ होता है। बहुत अधिक सोच समझकर वोट देना। जरूर सोचना कि पुलिस ने तुम्हें क्यों दौड़ाया? उनके खिलाफ एक भी शब्द क्यों नहीं बोला जो मंच से सरेआम झूठ बोल रहे थे। चलता हूं। जीवन में सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा तो बिहार के अगले चुनाव कि किसी रैली में बातचीत करते हुए फिर मुलाकात होगी। अलविदा...

Bihar election 2020
Bihar Polls
Election rally
Bhojpuri Cine Star's
Dinesh Lal Yadav
Nirahua
BJP
Narendra modi

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License