NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार चुनाव: संघ प्रचारक और कद्दावर भाजपा नेता राजेंद्र सिंह के लोजपा में जाने के मायने
मंगलवार को एक तरफ भाजपा आधिकारिक रूप से खुद को नीतीश के साथ बताने की कोशिश करती रही, मगर अनाधिकृत रूप से पार्टी के कई बड़े और कद्दावर नेता चिराग पासवान को मजबूत करने लोजपा में चले गये।

पुष्यमित्र
07 Oct 2020
संघ प्रचारक और कद्दावर भाजपा नेता राजेंद्र सिंह के लोजपा में जाने के मायने

मंगलवार की शाम को जब बिहार के भाजपा और जदयू नेता संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि राज्य में एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगा, ठीक उससे पहले बिहार भाजपा के एक कद्दावर नेता राजेंद्र सिंह की तस्वीर लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के साथ सोशल मीडिया में तैर रही थी। मंगलवार को वे लोजपा में शामिल हो गये, उनके साथ-साथ भाजपा के कई दूसरे बड़े नेता लोजपा में शामिल हुए। इनमें झाझा के वर्तमान विधायक रवींद्र यादव भी हैं। भागलपुर के एक बड़े नेता मृणाल शेखर का नाम भी लोजपा में शामिल होने वालों की सूची में बताया गया। एक अन्य बड़े भाजपा नेता रामेश्वर चौरसिया को भी लोजपा ने अपना सिंबल दिया, मगर उनके पार्टी छोड़ने की खबर में अभी किंतु-परंतु लगा है।

मंगलवार को एक तरफ भाजपा आधिकारिक रूप से खुद को नीतीश के साथ बताने की कोशिश करती रही, मगर अनाधिकृत रूप से पार्टी के कई बड़े और कद्दावर नेता चिराग पासवान को मजबूत करने लोजपा में चले गये। इन विरोधाभासी घटनाओं ने एक बार फिर से यह संशय उत्पन्न कर दिया है कि क्या बिहार में भाजपा सचमुच पूरी तरह जदयू के साथ है, या फिर वह अंदर ही अंदर लोजपा को मजबूत कर रही है। खास तौर पर संघ के प्रचारक रह चुके राजेंद्र सिंह का लोजपा में शामिल होना अभी भी लोगों के गले सहजता से नहीं उतर रहा। लोग मान नहीं पा रहे कि महज एक चुनावी टिकट के लिए राजेंद्र सिंह जैसा नेता भाजपा को छोड़ सकता है और लोजपा में शामिल हो सकता है।

संघ और भाजपा में बड़ा कद रहा है राजेंद्र सिंह का

बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले राजेंद्र सिंह का भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बड़ा कद रहा है। वे संघ के प्रचारक थे और वहां उनकी स्थिति इतनी मजबूत थी कि वे उन तीन लोगों में से एक हैं, जिनके कहने पर संघ के संविधान में बदलाव हुए। बाकी दो पीएम नरेंद्र मोदी और हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर हैं। भाजपा में आने के बाद भी उनकी स्थिति काफी मजबूत रही। 2014 में उन्हें झारखंड का प्रभारी बनाया गया और उस साल वहां भाजपा की जीत में उनकी काफी महत्वपूर्ण भूमिका बतायी गयी। उसके बाद 2015 में वे बिहार आ गये और पार्टी ने उन्हें यहां से दिनारा की सीट से उम्मीदवार बनाया।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जब भाजपा जदयू से अलग होकर चुनाव लड़ रही थी, तब यह चर्चा सरेआम थी कि राजेंद्र सिंह बिहार में भाजपा के अघोषित सीएम कैंडिडेट हैं। हालांकि उस चुनाव में भाजपा बिहार में तीसरे नंबर पर रही और खुद राजेंद्र सिंह भी अपना चुनाव हार गये। उस चुनाव में दिनारा सीट से जीते जदयू नेता जयकुमार सिंह फिलहाल बिहार सरकार में मंत्री हैं और वे एनडीए के उम्मीदवार भी हैं। ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि राजेंद्र सिंह हर हाल में दिनारा से चुनाव लड़ना चाहते हैं, इसलिए वे भाजपा को छोड़कर लोजपा में शामिल हो गये। इसके बावजूद राजनीतिक विश्लेषकों के गले यह बात नहीं उतर रही कि भाजपा का कोई इतना बड़ा कद्दावर नेता, जिसकी संघ की भी मजबूत पृष्ठभूमि रही हो, वह पार्टी छोड़कर लोजपा ज्वाइन कर सकता है।

प्रभात खबर अखबार के कारपोरेट एडिटर रहे राजेंद्र तिवारी इस मसले पर कहते हैं कि मंगलवार के एनडीए के प्रेस कांफ्रेंस से यह साफ है कि भाजपा का लोजपा के प्रति साफ्ट स्टैंड है। पार्टी के किसी नेता ने लोजपा का ठीक से नाम नहीं लिया और कोई कड़ा रुख नहीं अपनाया। ऐसे में यह लगता है कि पार्टी अंदर ही अंदर लोजपा को मजबूत करना चाहती है और संगठन में रहकर काम करने के लिए जाने-जाने वाले राजेंद्र सिंह को बहुत मुमकिन है कि इसी वजह से लोजपा में भेजा गया हो। क्योंकि भाजपा और संघ के कार्यकर्ता और नेता अपने अनुशासन के लिए जाने जाते हैं। वे अमूमन ऐसा कदम नहीं उठाते। राजेंद्र सिंह तो संघ के काफी करीबी रहे हैं। अगर उनकी कोई महत्वाकांक्षा रहती तो वे निर्दलीय चुनाव लड़ते। उनके लोजपा में शामिल होने की बात बहुत सहज नहीं लगती।

हालांकि कुछ विश्लेषक इस बात से सहमत नहीं नजर आते कि राजेंद्र सिंह किसी मिशन के तहत लोजपा गये हैं। वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, मुझे लगता है कि चिराग पासवान बिहार में भाजपा को उलझन में डाल रहे हैं। वे ऐसे भाजपाई नेताओं को पार्टी में शामिल करा रहे हैं, जिन्हें जदयू के साथ गठबंधन की वजह से टिकट नहीं मिल रहा और फिर वे उन्हें जदयू के खिलाफ खड़ा करेंगे। वैसे भी बिहार में भाजपा दो धड़े में बंटी दिख रही है। एक जदयू के साथ खड़ी नजर आती है तो दूसरी जदयू से अलग होकर चुनाव लड़ना चाहती है।

यह मुमकिन है कि बिहार में अपना स्वतंत्र अस्तित्व खड़ा करने और बड़ी पावर बनने के लिए चिराग ऐसा कर रहे हों। मगर ऐसे में सवाल यह भी है कि अगर भाजपा से आये बागियों की वजह से वे कई सीटें जीत जाते हैं और ऐसी संभावना बनती है कि भाजपा के साथ मिलकर वे सरकार बना लें। क्या तब भी भाजपा लोजपा के साथ नहीं जायेगी? दिलचस्प यह है कि भाजपा ने इस बारे में कोई साफ बात नहीं कही है।

इस चुनाव में भाजपा के कोर वोटरों का समर्थन लोजपा को मिल सकता है। राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन भी ऐसी संभावना जता रहे हैं। वे कहते हैं कि बिहार में भाजपा की कोर समर्थक सवर्ण जातियां हैं और वे अमूमन पिछड़ी जाति के नेताओं से बिदकते हैं और उनके बनिस्पत दलितों के साथ सहज रहते हैं। ऐसे में जहां जदयू के खिलाफ लोजपा खड़ी होगी वहां मुमकिन है कि भाजपा के कट्टर समर्थक जदयू के बदले लोजपा को वोट करे। जाहिर है कि ऐसे में जदयू की स्थिति काफी कमजोर होने वाली है। मगर राजेंद्र सिंह किसी रणनीति के तहत लोजपा में शामिल हुए हैं, यह अभी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता।

राजनीतिक हलकों से ऐसी खबरें भी हैं कि अभी बड़ी संख्या में मजबूत भाजपा नेता लोजपा में शामिल होने जा रहे हैं। इससे चिराग पासवान को दो फायदे होंगे। पहला यह कि उन्हें बैठे बिठाये ऐसे उम्मीदवार मिल जायेंगे, जिससे वे जदयू को कड़ी चुनौती दे सकें। दूसरा फायदा यह होगा कि भाजपा के कोर वोटरों में मैसेज जायेगा कि लोजपा भाजपा की टीम बी है और जहां भाजपा नहीं है, वहां लोजपा को जिताकर ही भाजपा को मजबूत कर सकते हैं। अगर भाजपा किसी नीति के तहत ऐसा नहीं कर रही, तब भी यह स्थिति उसके अनुकूल है और वह इस तरफ से आंखें मूंदे है। जदयू के साथ रहने की औपचारिकता का निर्वाह कर रही है। 

 

(पुष्यमित्र पटना से रिपोर्ट करते हैं। आप वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

 

LJP
Bihar Elections 2020
Bihar
RSS

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग

मिड डे मिल रसोईया सिर्फ़ 1650 रुपये महीने में काम करने को मजबूर! 

कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!

बिहार : दृष्टिबाधित ग़रीब विधवा महिला का भी राशन कार्ड रद्द किया गया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License