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राजनीति
बिहार चुनाव; स्पेशल रिपोर्ट:  “चल ई नरक बराबर जिंदगी में एक हेलीकॉप्टर तो देख लीहनी”
कैसे आते हैं नेता, कैसे जाते हैं नेता। कैसे जुटती है भीड़, क्या सोचती है भीड़। आइए आपको लिए चलते हैं बिहार की एक चुनावी रैली में...। यह रैली है कांग्रेस नेता राहुल गांधी की, लेकिन आप उनकी जगह नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी किसी भी नेता का नाम रख सकते हैं। नज़ारा लगभग यही मिलेगा। हां, खर्चा और तामझाम और भी शायद दस-बीस गुना ज़्यादा।
अजय कुमार
30 Oct 2020
बिहार चुनाव

'5 मिनट की बातचीत में अगर आप 50 बार अपने सीनियर को सर जी, सर जी..., कह रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप काम नहीं कर रहे बल्कि किसी की गुलामी कर रहे हैं।'

यह शब्द एक सरकारी अधिकारी के हैं। एक ऐसे सरकारी अधिकारी के जिसकी ड्यूटी चुनावी रैली में लगी हुई है। अपना नाम न बताए जाने की सहमति लेकर सरकारी अधिकारी ने मुझसे बातचीत करनी शुरू की।

सरकारी अधिकारी ने कहा कि यह बात सही है चुनावी रैलियां होनी चाहिए। नेता को जनता से संवाद करना ही चाहिए। लेकिन जब कोई बड़ा नेता आता है तो पूरे जिले का सरकारी अमला यहां जुट जाता है, अभी चाय की दुकान पर बैठा एक बूढ़ा आदमी कह रहा था कि पूरा फोर्स ही आ गया है का भाई! उसकी आवाज मेरे कानों तक पहुंची और मैं मन ही मन मुस्कुराया भी और शर्मिंदा भी हो गया। इस रैली के लिए हमें सब कुछ छोड़ कर पिछले 5 दिनों से तैयारी करनी पड़ी है। ऐसे काम करते हुए हमारे तामझाम को देखकर लोगों को भव्यता का एहसास होता होगा लेकिन मेरे जैसे कई सरकारी अधिकारियों को निर्थकता का एहसास होता है।

अधिकारी ने कहा- मैं यह नहीं कह रहा हूं कि चुनावी रैलियां नहीं होनी चाहिए। लेकिन इन रैलियों के सहारे आपको यह बताना जरूर चाह रहा हूं कि जिसे हम लोकतंत्र कहते हैं उस तंत्र के चुनाव में आम जनता महज भीड़ है वह जनप्रतिनिधि या उम्मीदवार के तौर पर खड़ी नहीं हो सकती है। ऐसे में चुनावी रैलियों और चुनाव का कोई मायने नहीं रह जाता है। मैं थोड़ा निराशावादी लग रहा होऊंगा लेकिन हकीकत तो यही है।

सरकारी अधिकारी से बातचीत करने के बाद मेरी दिलचस्पी इस बात में हुई कि किसी से पूछने की कोशिश जरूर की जाएगी कि पूरे रैली में खर्च कितना हुआ होगा। अच्छी बात यह रही कि मुझे एक ऐसा शख्स मिल गया। यह रैली में साउंड बॉक्स लगाने आया था। इस शख्स ने कहा- मैं कानपुर से आया हूं। आज दिन के चंद घंटों के लिए यह sound box 3 लाख रुपये भाड़े पर आया है।  उसके बाद उसी व्यक्ति ने कहा कि भूल जाइए कि यहां के तामझाम का खर्चा 5 लाख होगा। उसने बताया कि उसका अनुमान है कि कम से कम खर्चा 20 से 30 लाख के बीच में हो सकता है। अभी हेलीपैड बनवाने में ही तकरीबन 8 से 10 लाख का खर्च हुआ है। उसके बाद टेंट शामियाना मंच से लेकर खाना पीना और तमाम तरह के तामझाम जोड़ दीजिएगा तो यह खर्चा 20 लाख से ऊपर जाएगा ही जाएगा।

उसकी बात सुनकर मैं मन ही मन सोचने लगा कि मेरे जैसा नौकरीपेशा व्यक्ति अगर अपने महीने के मेहनताना का एक भी रुपया खर्च न करे तो पूरे 5 साल काम करने के बाद वह 20 लाख रुपये जमा करेगा और अगर इतनी बचत करना चाहे तो शायद उमर निकल जाए। और इतने रुपये को केवल चंद घंटे के लिए हवा में उड़ा दिया गया।

आप सोच रहे होंगे कि मैं अपने लेख में जनता की परेशानियों की बजाय इसे क्यों बता रहा हूं? तो इसका जवाब वरिष्ठ राजनीतिक विशेषज्ञ अभय कुमार दुबे के शब्दों में कहूं तो यह है कि आज के चुनाव इतने खर्चीले हो चुके हैं कि इन चुनावों में सड़क पर हो रहे आंदोलन और मजबूती से लोगों के हक हकूक के लिए लड़ने वाले लोगों के लिए जनप्रतिनिधि बनने का कोई अवसर नहीं है।

इस बात का जिक्र करने के बाद मैं आप सभी पाठकों को साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए वाल्मीकि नगर विधानसभा क्षेत्र के दवनहा गांव में 28 अक्टूबर को हुई राहुल गांधी के चुनावी रैली से जुड़ी कुछ बातों को पेश कर रहा हूं। यह सिर्फ़ एक उदाहरण है। आप राहुल गांधी की जगह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली को भी रख सकते हैं। समझ सकते हैं। जांच परख सकते हैं।  

रैली की शुरुआत से एक दिन पहले चलते हैं। रैली के आयोजन के लिए दो-तीन दिन पहले से ही गाड़ियों का तांता लग रहा था। रैली के एक दिन पहले की शाम को बड़ी बड़ी महंगी गाड़ियों की संख्या और अधिक बढ़ गई थी। कांग्रेस के कार्यकर्ता के नाम पर अधिकतर धन्ना सेठ थे। इसी में एक धन्ना सेठ उर्फ नेता की बड़ी सी गाड़ी मिट्टी में फंस गई। ड्राइवर को छोड़कर भावी चुनावी नेता और नेताजी के चमचे गाड़ी से बाहर निकल कर दूर चले गए। दैनिक मजदूरी पर काम करने वाले कुछ गरीब और स्कूल से महरूम कुछ गरीब बच्चे गाड़ी को धक्का देने लगे। दूर से देखने पर ऐसा लगा जैसे मार्क्स के “दुनिया के मजदूर एक हो” वाला नारा एक बड़ी आलीशान गाड़ी के पीछे दम तोड़ता हुआ दिख रहा है।

पास जाकर जब लोगों से बात की तो पता चला कि वे इस उम्मीद में धक्का दे रहे हैं कि अगर गाड़ी बाहर निकल जाएगी तो नेताजी उन सभी को कम से कम सौ-दो सौ देकर जाएंगे। ड्राइवर से पूछा तो ड्राइवर ने कहा कि अब नेता होकर गाड़ी को धक्का देंगे तो कैसा लगेगा। उनकी छवि खराब हो जाएगी। इसलिए दूर चले गए। यहां से देखने की शुरुआत हुई तमाम रैलियों की तरह एक ऐसे चुनावी रैली की जिसका मकसद ही होता है कि नेता जनता तक अपनी बात पहुंचा सके जनता से थोड़ा जुड़ सकें।

इसके बाद रात आई। चूंकि जहां पर रैली होनी थी। उससे दो तीन किलोमीटर दूर पर ही मेरा गांव हैं, तो रात में गांव वालों की बात सुनी। गांव में बात चल रही थी कि अगर मोदी जी की रैली होती है तो यहां पर नहीं हो पाती। मोदी जी की रैली जहां पर होनी है वहां के 10 बीघा खेत के गन्ने को हटाया जा रहा है। गांव वालों के शब्दों में कहूं तो ऐसे कि मोदिया के रैली खातिर 10 बीघा जमीन के उंख (गन्ना) काटल जात बा। हमनी गांव से तीन ट्रैक्टर जाई उहुवा। राम लखन कहत बाड़े की हर आदमी के 100 रुपया दीयल जाई। जबकि काल के राहुल गांधी के रैली खातिर हमनी गांव में कोनो रेट फिक्स नहीं नईखे। लेकिन बगहा (जहां पर रैली होनी है वहां से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर) में रेट फिक्स भईल बा। 50 रुपये पर लोग आवत बा।

ऐसे ही बातचीत के साथ राहुल गांधी की रैली के इंतजार में रात खत्म हुई। अगले दिन तकरीबन एक बजे राहुल गांधी का आगमन तय था। पूरा सरकारी आलाकमान, फोर्स, नाकेबंदी का जमावड़ा सुबह से ही हो रहा था। मंच पर सुबह 10 बजे से ही कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ताओं का भाषण जारी था। तभी अचानक तकरीबन 11  बजे आसमान में एक हेलीकॉप्टर अपनी धड़धड़ाहट के साथ जमीन पर उतरने का इशारा देने लगा। 

आसपास के गांव वालों को लगा कि उनके साथ धोखा हो गया। हेलीकॉप्टर की आवाज और ऊंचाई हेलीपैड की जगह से जितनी  दूर पहुंच सकती थी, उतनी दूर तक के लोगों को लगा कि उनके साथ धोखा हो गया। राहुल गांधी समय से पहले ही आ गए। राहुल गांधी दिखे या ना दिखे यह हेलीकॉप्टर पहले आ गया। हम तो हेलीकॉप्टर देखे नहीं पाएंगे। लोग जहां थे वहीं से भागना शुरू किए। कोई पैदल भाग रहा था कोई साइकिल से भाग रहा था बच्चे नंगे पांव दौड़ रहे थे औरतें और लड़कियां अपनी दुपट्टा को अपने शरीर में लपेट के लेकर भाग रही थी। इन सब में से अधिकतर की दिलचस्पी नेता में नहीं थी, अधिकतर की दिलचस्पी हेलीकॉप्टर में थी। अधिकतर लोगों को हेलीकॉप्टर देखना था। बड़ी नजदीक से हेलीकॉप्टर देखना था। राहुल गांधी के आने से पहले सुरक्षा का मुआयना लेने आए हेलीकॉप्टर ने ऐसा तहलका मचा दिया था। लोगों और बच्चों ने बड़ी नजदीक से देख कर अपनी आंखें तृप्त की। हेलीकॉप्टर को बड़े ध्यान से देखते एक झुंड के पीछे मैं खड़ा था।

एक औरत ने बड़ी हल्की सी आवाज में कहा की चल ई नरक बराबर जिंदगी में एक हेलीकॉप्टर तो देख लीहनी। यानी इस नरक के बराबर अपनी जिंदगी में एक हेलीकॉप्टर तो देख लिया। इसके बाद मुआयना करने का हेलीकॉप्टर कुछ देर में उड़ कर निकल लिया। लोग यह भी कहने लगे कि राहुल गांधी ने चालाकी किया है। पहले हेलीकॉप्टर भेज दिया ताकि लोगों आकर बैठ जाएं। तब वह आए। ऐसे हीं तो लोग बड़का नेता बनते हैं। राहुल गांधी एक दिन प्रधानमंत्री जरूर बनेगा।

इसके बाद मंच की ओर चला। मंच पर तकरीबन 35 से 40 साल का एक नौजवान भीड़ में जोश भर रहा था। जोश भरते भरते उसने कहा कि मुझे यहां का विधायक का टिकट मिलने वाला था। लेकिन मैंने यह टिकट बड़े भैया राजेश सिंह को दे दिया। इसके बाद अपने भीतर के गुस्से को लेकर उखड़ी हुई आवाज में ललकारते हुए बोलने लगा कि मैं आपके हर एक सुख दुख में खड़ा हुआ हूं। मैंने ही जमीन का मुआवजा दिलवाया है। मैंने ही सरकार की लाठियां खाई हैं। आगे भी आपके साथ ही खड़ा रहूंगा। मुझे भी यहां के विधायक की तरह समझिए। आगे मौका मिलेगा  तो मुझे चुनिएगा। यह बात कहते ही मंच के दूसरे लोगों ने उसे माइक से हटने को कहा। माइक छोड़ने को कहा। वह माइक छोड़कर नीचे आया। उससे मैंने किनारे में बात की। उसका कहना था कि स्वच्छ राजनीति के लिए जरूरी है कि टिकट की खरीद बिक्री ना हो। मैं कुछ कहूंगा नहीं लेकिन आप समझिए बिना पैसा तो कुछ भी मुमकिन नहीं है।

मैंने कहा अगर ऐसा है तो आपको मुखिया का चुनाव लड़ना चाहिए। अपना बेस बनाइए निर्दलीय चुनाव लड़िए। उसने कहा कि मुखिया का चुनाव भी कोई चुनाव होता है। हम बड़े नेता हैं। लड़ेंगे तो विधायकी का चुनाव ही लड़ेंगे। छोटा-मोटा चुनाव हम जैसों को शोभा नहीं देता। लड़ेंगे तो भाजपा कांग्रेस आरजेडी जेडीयू की तरफ से ही लड़ेंगे निर्दलीय भी कोई नेता होता है। और मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा कि आप लोग भी थोड़ा माइक वाइक, कैमरा वैमरा लेकर चला कीजिए। इस जमाने में कोई लिखा हुआ पढ़ता है! उससे मिली सीख लेकर मैं आगे बढ़ा।

मैंने सोचा कि थोड़ा पीछे चला जाए। देखा जाए की कितनी गाड़ियां आई हैं। रैली से तकरीबन 500 मीटर दूर ऐसी जगह पर जहां पर मीडिया का लाव लश्कर नहीं जाता है वहां आलीशान गाड़ियों का तांता लगा हुआ था। तकरीबन दो-तीन किलोमीटर के नजदीक के गांव में ट्रैक्टर खड़े थे। जिन पर पैसे के बलबूते लोग लद कर आए थे।

यह सब देखकर जब लौट रहा था तो देखा कि बिजली का पोल गिरा दिया गया है। पूछा तो पता चला की हेलीपैड बनाने की वजह से बिजली का पोल गिरा दिया गया। तब मुझे पता चला कि आखिर कल रात भर लाइट क्यों नहीं आई थी? आसपास के लोग कहने लगे कि अब कम से कम हफ्ते बाद ही लाइट आएगी। एक नेता जी के आगमन के लिए कई गांव को अंधेरे में डाल दिया गया।

रैली के नजदीक पहुंचा। रास्ते के किनारे एक पेड़ के नीचे 4,5 औरतें खड़ी थी। वह आपस में बात कर रही थीं। उनमें से एक ने कहा कि "ई लॉक डाउन में मोदी जी हमनी के जिया दिहले। एतना राशन कबो ना मिल रहल है। जितना ए बार मिलहल ह।" (मोदी जी की वजह से इस लॉक डाउन में हम सब जिंदा रह पाए। जितना राशन अबकी बार मिला है उतना कभी नहीं मिला) यह बात सुनते ही वहीं बैठी एक दूसरी बूढ़ी औरत ने कहा कि हमरा के कई साल से इंद्रा आवास ना मिलल। हमार लाईका छोटी से बड़ी हो गईं लन स लेकिन हमरा इंदिरा आवास ना मीलल ( यानी कई साल से आवेदन के बाद भी मुझे अब तक इंदिरा आवास नहीं मिला है मेरे लड़के बच्चे से जवान हो गए लेकिन अभी तक इंदिरा आवास नहीं मिला)।

किसी तरह का सवाल पूछने पर न जाने क्यों लोग कुछ बताने से इंकार कर रहे थे। लोगों की यह यह लापरवाही देखने पर लोगों के एक झुंड में यह बात कही कि अगर आप लोग हम जैसों से बात नहीं करेंगे। बात करने में इतनी कोताही करेंगे। तो आपकी बात आप ही लोगों के बीच चर्चा का हिस्सा कैसे बनेगी? केवल एक वोट दे देने के बाद आपकी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। मेरी बात सुनकर भी लोग चुप के चुप ही रहे। हंसते रहे और मुझे टालते रहे। तो उन्हें छोड़कर जब मैं आगे निकला तो उन्हीं में से एक रामाशंकर सिंह ने मुझे पीछे से पुकारते हुए रोक लिया। और बताने लगे कि गांव के लोग हैं। इसलिए डर रहे थे क्योंकि उन्हीं के बीच एक व्यक्ति ऐसा भी मौजूद था जो उनका मुखिया था। उन्हें बगहा से लेकर आया है। डर है कि कुछ बोलेंगे तो पैसा नहीं मिलेगा। मैं आपको बताता हूं बिहार की सबसे बड़ी परेशानी यहां की घूसखोरी है। सरकारी अधिकारियों की चमड़ी के भीतर का रंग घूस खा खा कर लाल से काला पड़ गया होगा। अधिकारी चला जाता है। अपने बदले किसी चमचे को रखता है। चमचा जब तक पैसा नहीं लेता तब तक दस्तखत नहीं करता है। इस घूसखोरी पर कोई नहीं बोलेगा। मैं दावे के साथ कह सकता हूं राहुल गांधी आए या तेजस्वी आए या मोदी आएं। कोई भी इस घूसखोरी पर नहीं बोलने वाला। यह बात खत्म हुई ही थी कि आसमान में हेलीकॉप्टर की आवाज धड़ धड़ आने लगी। लोग भागकर मंच के करीब जाने लगे। लेकिन जितनी भीड़ मंच के करीब थी उससे तकरीबन दोगुनी भीड़ हेलीपैड के चारों तरफ लगाए बाड़ों के किनारे थी। मैं भी भागकर हेलीपैड के किनारे गया। 

राहुल गांधी आए और उन्होंने बोलना शुरू किया। चीनी मिल के हालात पर बोले, गन्ने की कीमत पर बोले, चंपारण के महात्मा गांधी पर बोले और इसके बाद पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित वाल्मीकि नगर विधानसभा क्षेत्र की बात छोड़ कर देश के मुद्दों की तरफ बढ़ निकले।

ऐसे मुद्दे जिनका बिहार और बाल्मीकि नगर विधानसभा से जुड़े लोगों से कम सरोकार था। उनका भाषण चल रहा था। इस दौरान मैंने भीड़ में बैठे लोगों को देखना शुरू किया। उनकी निगाहों को और उनके हावभाव को कैमरे में कैद कर लिया।

तस्वीर आपके सामने हैं। आप खुद समझ सकते हैं कि राहुल गांधी की बातें लोगों को कैसी लगी होंगी। राहुल गांधी की बात के बीच में से ही लोग वापस भी लौट रहे थे। तो उनमें से एक व्यक्ति महाबली प्रसाद से बात हुई। महाबली प्रसाद कहते हैं कि रस नहीं है। मजा नहीं आ रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे शादी में केवल शादी है। परिवार अपने में व्यस्त है। बाराती सब बेकार है उससे कोई मतलब नहीं। तब तक बगल से शिवपाल सिंह चौहान गुजर रहे थे। बात सुनकर बोले अब कोई मोदी थोड़ा ना हो जाएगा। अबकी बार मन बना लिए हैं वोट देंगे पंजा पर लेकिन केंद्र में मोदी जी हमारे नेता हैं। सरकार बदलनी चाहिए। बहुत लंबा शासन कर लिया सब। इस बीच मनोहर लाल बातचीत देख कर बोले। देखिए ई जौन नेता यानी राजेश सिंह का प्रचार प्रसार करने आए हैं। यह नेता लड़ाने भिड़ाने  वाला नेता है। सीट किसी दूसरे को जाने चाहिए थी। यहां कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। बाकी राहुल गांधी सोबर नेता है। सोबर मतलब जानते हैं ना सुकुवार नेता है। देखिए कब प्रधानमंत्री बनता है। बनता भी है कि नहीं बनता है। यहां से बातचीत खत्म हुई।

तब अचानक देखा कि एक जगह बूढ़े लोग जमीन पर बैठे हुए हैं। और बहुत सारे लोग आगे कुर्सी पर बैठे हुए हैं। मैंने लोगों का मन पढ़ने के लिए बोल दिया कि जब मंच के व्यवस्थापक यह नहीं कह सकते हैं कि बूढ़े लोग कुर्सी पर आकर बैठ जाएं और जवान खड़े हो जाएं तो आप सब को क्या लगता है? यह लोग आपके बारे में सोचते भी हैं। मेरी बात सुनते ही एक बूढ़े आदमी ने कहा चार युग बीत गया। बाबू कमजोर को कोई नहीं पूछता है। यह तो कलयुग है। इसमें कौन हमको पूछेगा।

तब मैंने पूछे तब आप आए क्यों हैं? बूढ़े आदमी के साथ दूसरे लोगों ने कहा तहको सब पता है कि हम सब आए काहे हैं। फिर भी हम सब बता रहे दे रहे हैं। हम सब राहुल गांधी को देखने आए हैं।

राहुल गांधी का भाषण खत्म हुआ। लोग जिधर से लौट रहे थे मैं उसके विपरीत वाली दिशा से गुजरते हुए लोगों से पूछने लगा कि भाषण कैसा रहा? सबकी प्रतिक्रिया मिली जुली रही। एक शख्स ने कहा कि बड़ा टंच भाषण था। बिल्कुल जोरदार। राहुल गांधी सॉलिड और कंक्रीट बात करता है। दूसरे शख्स ने कहा कि ई नेता क्या समझता है सब? सारे तामझाम में दो चीज वाल्मीकि नगर के बारे में। बाकी लोकतंत्र की हत्या और महात्मा गांधी पता नहीं क्या क्या? बच्चा सब भी गणित की परीक्षा के लिए गणित की तैयारी करता है। अंग्रेजी की परीक्षा के लिए अंग्रेजी की तैयारी करता है। हिंदी के लिए हिंदी की तैयारी करता है। लेकिन नेता सब जो बात टीवी स्टूडियो में बोलता है वही लखनऊ में भी बोलता है वह इलाहाबाद में भी बोलता है वही पटना में भी बोलता है और वही वाल्मीकि नगर में भी बोलता है। नेताओं की ब्रीड बड़ी आलसी होती जा रही है। जनता को गदहा समझता है सब। तीसरी एक औरत का जवाब था। राहुल गांधी ठीक है लेकिन शराबबंदी की वजह से मेरा मर्द पहले के बनिस्बत कम दारू पी रहा है। हम तो नीतीश को पसंद करते हैं।

इस तरह से सभा खत्म हो चली थी। मैं लौट रहा था। दो गांव के बीच के रास्ते में एक कोचिंग सेंटर में कुछ लड़के मास्टर साहब का इंतजार कर रहे थे। कोचिंग सेंटर जिस इमारत में चल रहा था वह मेरे परिचित की थी। मैं पूरे अधिकार के साथ घुसा। मैंने बच्चों से पूछा आप लोग किस क्लास में पढ़ते हैं। बच्चों ने जवाब दिया कि हम सब नौवीं और दसवीं में पढ़ते हैं। मैंने पूछा आज कौन आया था। उनमें से एक ने जवाब दिया राहुल गांधी। मैंने पूछा राहुल गांधी कौन है। उनमें से एक ने कहा कि नेता है। मैंने पूछा किस पार्टी का नेता है। इसका जवाब किसी ने नहीं दिया। मैंने पूछा कांग्रेस का नाम सुना है। तो उन्होंने कहा सुना तो है। तो मैंने पूछा कांग्रेस क्या है? इसका भी जवाब किसी ने नहीं दिया। मैंने पूछा नरेंद्र मोदी कौन है? जवाब आया भारत के प्रधानमंत्री। मैंने पूछा कि क्या वह राहुल गांधी की तरह नेता नहीं है? उन्होंने कहा नहीं वे नेता नहीं है। देश के प्रधानमंत्री हैं। अंत में मैं यह सोचते हुए बाहर निकल गया की जब हमारी शिक्षा पद्धति इतने कमजोर किस्म के नागरिक बना रही है तो सारा दोष नेताओं और चुनावी रैलियों में खर्च होने वाले पैसे पर क्यों थोपा जाए।

ख़ैर वाल्मीकि नगर विधानसभा क्षेत्र में दूसरे चरण में 7 नवंबर को वोट डाले जाएंगे।

-    सभी फोटो अजय कुमार

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