NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार ने दिया है वाम दलों को और मज़बूती से जनता की लड़ाई लड़ने का जनादेश
इस चुनाव के शुरुआती रूझानों ने यह सत्यापित कर दिया था कि वामदल इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने जा रहे हैं। वाम दलों ने 1995 के बाद इस तरह का प्रदर्शन किया है।
मुकुंद झा
11 Nov 2020
left

बिहार चुनाव के सभी परिणाम आ गए है कांटे की टक्कर में एनडीए गठबंधन की जीत हुई और महागठबंधन की हार हुई। लेकिन इस नतीजे तक पहुंचने में बहुत समय लगा और मंगलवार देर रात तक इसका निर्णय हुआ की कौन विजेता है परन्तु इस चुनाव के शुरुआती रूझानों ने यह सत्यापित कर दिया था कि वामदल इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने जा रहे हैं। वाम दलों ने 1995 के बाद इस तरह का प्रदर्शन किया है।

चुनावी राजनीति में पिछले काफी समय से हाशिये पर रहे वामदलों ने इस बार दिखाया कि अगर वोटों का बंटवारा न हो तो उनके पास जनाधार है। पिछले विधानसभा चुनाव में तीन प्रमुख वाम दल- सीपीआई यानी भाकपा, सीपीएम यानी माकपा और सीपीआई-एमएल यानी भाकपा (माले) में से सिर्फ भाकपा (माले) को तीन सीटें मिली थीं। साल 2010 में भाकपा सिर्फ एक सीट जीती थी। लेकिन इसबार इन तीनों दलों ने केवल 29 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसमें से 16 पर विजय दर्ज की और एक संदेश दिया कि उनके अंदोलन और राजनीति को नकारना इतना आसान नहीं है।

राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल तीन प्रमुख वाम दलों- भाकपा (माले), भाकपा और माकपा ने कुल 29 सीटों पर चुनाव लड़ा। भाकपा (माले) ने 19, भाकपा ने छह और माकपा ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा। इनमें माले 12 और भाकपा और माकपा ने दो-दो सीटों पर जीत दर्ज की है। अगर हम वामदलों के प्रदर्शन को उनके लड़ी गई सीटों के अनुपात में देखें तो उन्होंने गठबंधन में सबसे बेहतर प्रदर्शन किया। वाम दलों का जीतने का प्रतिशत 55 रहा वही राजद का 52%और सबसे खराब कांग्रेस का 27% रहा है।

इसके साथ ही उम्मीदवारों की जीत का अंतर भी बहुत बेहतर रहा है। भाकपा माले के केवल एक विधायक के जीत का अंतर 5 हज़ार से कम रहा है बाकि सभी के जीत का अंतर 10 से अधिक का था। बलरामपुर से महबूब आलम तो 53 हज़ार से अधिक मतों से जीते। जबकि सीपीएम के विधायक अजय कुमार के जीत का अंतर 40 हज़ार से अधिक एक और विधयक सतेन्द्र यादव का 25 हज़ार से अधिक जीत का अंतर रहा था। वही सीपीआई के बखरी से जीते विधायक सूर्य कांत पासवान 777 के अंतर से जीते इनके यहां मुकाबला बहुत करीबी रहा था जबकि तेघड़ा से जीते विधायक राम रत्न सिंह 45 हज़ार से अधिक अंतर से जीते है।

 

वाम दलों के इस प्रदर्शन पर सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि वाम दलों को खारिज करना गलत साबित हुआ और अगर वामपंथी पार्टियों को बिहार में चुनाव लड़ने के लिए और सीटें मिलती तो वे इससे भी ज्यादा सीटें जीतते।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमारी शुरुआत से ही स्पष्ट सोच थी कि भाजपा को हराना है। ...अगर हमें और सीटें मिलतीं तो हम इससे भी ज्यादा सीटें जीतते।’’

भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘हमारी बढ़त उम्मीद के मुताबिक है। यह अलग तरह का चुनाव था। एक तरह से जनांदोलन था। हमने नौजवानों, छात्र नेताओं, किसानों के लिए संघर्ष करने वाले नेताओं को उम्मीदवार बनाया। हमारा प्रयास सफल होता दिख रहा है।’’

माकपा के बिहार राज्यसचिव अवधेश सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि वाम दलों इस प्रदर्शन का कारण हमारे जमीनी संघर्ष है जो हम रोज़ाना लड़ते हैं। उन्होंने बताया कि पूर्णिया और उजियारपुर जैसे कई सीट थीं जो हमारे परंपरगत संघर्ष का इलाक़े रहे है, अगर हमें वहां से मौका मिलता तो हम और अच्छा कर सकते थे।

इसके साथ ही अवधेश सिंह ने कहा कि वाम दलों की इस सफ़लता के पीछे उनके उम्मीदवार थे जो जन आंदोलन के संघर्ष से निकले है।

वाम के इस प्रदर्शन के मायने

अक्सर देखा जाता है कि पांच साल सड़क पर वामपंथी संघर्ष करते हैं, वे न्यूनतम वेतन, समान काम का समान वेतन, स्कीम वर्कर का सवाल हो या फिर किसानों के सवाल या छात्रों के सवाल पर सरकार के खिलाफ लड़ते हैं लेकिन चुनाव में उन्हें उसका परिणाम नहीं मिलता। उनके आंदोलनों का फायदा अन्य दल उठा लेते हैं। हर चुनाव में कहा जाता है वामपंथी अंदोलन तो करते है लेकिन चुनाव नहीं जीत पाते। दूसरी बात कि जब कोई गठबंधन होता है तब वाम दल अपना वोट ट्रांसफर करवा देते हैं लेकिन सहयोगी का वोट अपने पक्ष में नहीं कर पाते हैं। इसके आलावा इनके पास नए चेहरे नहीं है। इस चुनाव इस तरह की कई धारणाओं को तोड़ते हुए वाम ने अपनी एक मज़बूत स्थिति दर्ज कराई है। उन्होंने दिखाया कि सड़क का संघर्ष सदन में उतनी मज़बूती से पहुंचता है, दूसरा वो अपने सहयोगी से तालमेल करने में भी कुशल हैं, तीसरा इसबार वामदल के जीतने वाले अधिकतर उम्मीदवार नए चहेरे हैं और जन आंदोलनों से निकले नेता हैं।

वाम दलों के पक्ष में आये इस परिणाम ने चुनावी राजनीति में उन्हें मज़बूत किया है और साथ ही एक उम्मीद भी जगाई है कि वो जनता के सड़क पर हुए संघर्षों को सदन में लड़ेंगे। अगर वो ऐसा कर पाते हैं तो आने वाला समय वामदलों के लिए सुनहरा अवसर लिए खड़ा है, क्योंकि आज भी बिहार मज़बूत विपक्ष की ख़ोज में है। वाम दल उसका मुखर आवाज़ बन सकते हैं। क्योंकि उनके द्वार उठाए गए सवाल ज़मीन से जुड़े और प्रसांगिक हैं।

वाम दल के नेता भी इस बात को मान रहे हैं कि इस परिणाम के जरिये जनता ने उनके संघर्ष को और मज़बूती से लड़ने का आदेश दिया है जिसे वो लड़ेंगे। 

 

Bihar
Bihar Elections 2020
Left politics
CPIM
cpml
CPI
Left movements

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान

बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग

त्रिपुरा: सीपीआई(एम) उपचुनाव की तैयारियों में लगी, भाजपा को विश्वास सीएम बदलने से नहीं होगा नुकसान

मिड डे मिल रसोईया सिर्फ़ 1650 रुपये महीने में काम करने को मजबूर! 

बिहार : दृष्टिबाधित ग़रीब विधवा महिला का भी राशन कार्ड रद्द किया गया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License