NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
बोरिस जॉनसन ने मोदी पर एक एहसान किया है
पीएम नरेंद्र मोदी का ब्रिटिश पीएम को निमंत्रण जल्दबाज़ी और समय से पहले लिया गया फ़ैसला था क्योंकि इस वर्ष का गणतंत्र दिवस भारत को ब्रिटिश निज़ाम से मिली स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ का साल है।
एम. के. भद्रकुमार
12 Jan 2021
Translated by महेश कुमार
बोरिस जॉनसन ने मोदी पर एक एहसान किया है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 26 जनवरी-गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन को निमंत्रण देना जल्दबाजी और समय से पहले लिया गया फैंसला था।  यह सही है कि ऑक्सफ़ोर्ड वैक्सीन भारत के निराशाजनक भविष्य को बदल सकती है, लेकिन फिर भी ब्रिटिश प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने का विचार 2022 के गणतंत्र दिवस के लिए आरक्षित रखना चाहिए था, क्योंकि मौजूदा वर्ष ब्रिटिश शासन से भारत की मुक्ति की 75 वीं वर्षगांठ का वर्ष है।

महान वर्षगांठों को प्रतिकात्मक तौर पर मनाया जाता है। भारतीय इतने मूढ बनते जा रहे हैं कि वे उन्हे अपने इतिहास के बारे में कोई ज्ञान नहीं हैं। ऐसा लगता है कि जॉनसन ने मोदी के निमंत्रण पर खेद व्यक्त करके संभवतः अनजाने में 'बचाव का काम' किया है। अच्छी बात यह है कि हमारे पास अभी भी 2022-गणतंत्र दिवस पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने का अवसर है और हम संयुक्त रूप से मध्ययुगीन सामंतवाद से आधुनिक युग में भारत के परिवर्तन के लिए ग्रेट ब्रिटेन के गहन योगदान का जश्न मना सकते है।

जॉनसन को मोदी द्वारा दिए गए निमंत्रण के बारे में किसी का जो भी देखने का नज़रिया हो सकता है, लेकिन मेरे मन के मुताबिक इसमें विदेश मंत्री एस जयशंकर की छाप है। जयशंकर ने देश की यात्रा पर आए ब्रिटिश विदेश सचिव डॉमिनिक राब के साथ 15 दिसंबर को जो संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और उसमें जिस तरह का उत्साह दिखाया था उससे कहानी साफ हो जाती है कि जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ के विकल्प को ढूंढने में थोड़ी जल्दबाज़ी कर दी, पोम्पिओ जोकि 2019 में उनके मंत्री बनने के बाद से उनके करीबी दोस्त, विश्वासपात्र और मार्गदर्शक रहे हैं।

निश्चित तौर पर इस तरह की कल्पना करना कि राब जैसा व्यक्ति जो एक माना हुआ बुद्धिजीवी और ज्ञानी है कि वह पश्चिमी दुनिया का काऊ बॉय बनेगा अपने आप में घनघोर गलतफहमी होगी। लेकिन 'चाइना बग' ने हमारी सोचने समझने की शक्ति को ढा दिया है। भारत के कुलीन समाज में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जिसे इस कीड़े ('चाइना बग') ने न काटा  हो। 

इस सब से हमारी विदेश नीति नतीजतन कुछ हद तक मसालेदार हो सकती है, लेकिन यह एक दीर्घकालिक संभावनाओं/समझ के मामले में अपनी बहुमुखी प्रतिभा, फुर्ती और व्यावहारिकता को खोने के खतरे में पड़ गई है। एक ही उसूल पर आधारित कूटनीति विदेश नीति के विकल्पों को कम कर देती है- ये ऐसा हो गया कि नमस्ते मंत्री जी, अगर आपका चीन से बैर रखते है, तो आइए साथ मिलकर कप्पा (केरल की जाना-माना नाश्ता) खाते हैं।'

अगर हमें लगता है कि ब्रिटेन चीन के साथ टकराव के रास्ते पर है तो हम खुद को भ्रमित ही कर रहे होंगे। बेशक, 2016 की नाउम्मीदी के दिनों के मुक़ाबले अब चीजें बदल गई हैं, जब ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन ने यूके-चीन संबंधों में "गोल्डन एरा" की कल्पना की थी। ब्रिटेन अब हांगकांग को भूल गया है। और यह बात भी ब्रिटेन को पसंद नहीं आ सकती है कि एशिया-प्रशांत में एक मात्र एंग्लो-सैक्सन ऑस्ट्रेलिया को बीजिंग ने इस बात के लिए दंडित किया है कि उसने चीन की राष्ट्रीय संप्रभुता में घुसने के लिए ‘लाल रेखाओं’ को पार करने की जुर्रत की थी। 

लेकिन ब्रिटेन कोई खुद पाँच देशों का गठबंधन यानि फाइव आइज़ नहीं है। इसके इतिहास के की समृद्ध टेपेस्ट्री पर, हांगकांग किसी एक भाप के साबुन ओपेरा के जरिए स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ सकता है। परिणामस्वरूप अब बीबीसी के अलावा लंदन में कोई भी हांगकांग की बात नहीं करता है।

हालांकि पिछले साल अप्रैल में, एक साहब जो ब्रिटेन MI6 के पूर्व प्रमुख जॉन सॉवर्स थे, जिन्होंने पहली बार आरोप लगाया था कि चीन ने कोरोनोवायरस के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी को छुपाया था और इसलिए उसे इस धोखे का जवाब दिया जाना चाहिए, ब्रिटेन ने इस मुहिम को आगे न बढ़ाने का फैसला लिया और दूर हो गया लेकिन रात के पहरेदार के तौर उसने ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन को छोड़ दिया। इस बारे में (गैरेथ इवांस ने मॉरिसन की इस मूर्खता पर Australia’s China Problem नामक शीर्षक से एक बेहतरीन ब्लॉग लिखा है, जो भारत सरकार के लिए उपयोगी हो सकता है।)

यूरोपीयन यूनियन से नाता तोड़ने और पोस्ट-ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन ‘वैश्विक’ बनने की योजना बना रहा है। यह एक खतरनाक सफर है। आगे का वक़्त मुश्किल है। ब्रिटिश अर्थव्यवस्था 11 प्रतिशत (भारत की तुलना में कम) सिकुड़ गई है और मौजूदा लॉकडाउन हालात को और बिगाड़ सकता है। सभी संभावनाओं के मद्देनजर 2023 से पहले महामारी से पहले के समय में वापसी संभव नज़र नहीं आती है।

राष्ट्रीय कर्ज़ नई ऊंचाइयों को छू रहा है और यह अपरिहार्य लगता है कि बैंक ऑफ इंग्लैंड, ब्रिटेन का केंद्रीय बैंक, डूबती वित्तीय प्रणाली को किनारे लगाने के लिए अपनी संपत्ति-खरीद योजना की गति को बढ़ा सकता है। ब्रेक्सिट एक ऐतिहासिक भूल रही है। यूरोपीयन यूनियन के साथ व्यापार सौदा भ्रामक लगता है, क्योंकि यह नई समस्याओं को पैदा कर सकता है। व्यापार प्रक्रियाओं में लंबे समय तक की अनिवार्य निर्यात घोषणा और लाल टेप मुख्य भूभाग तक ब्रिटिश बाजार की पहुंच को कम कर सकती है। जॉनसन के पास इसका कोई समाधान नज़र नहीं आता है।

फिर देखें कि 30 दिसंबर का यूरोपीयन यूनियन-चीन निवेश समझौते का मतलब है कि ब्रिटेन यूरोप के मुख़ालिफ़ चलेगा क्योंकि चीन की वित्तीय विनिर्माण और सेवा बाजार बर्लिन, पेरिस, रोम, मैड्रिड, एथेंस, ब्रुसेल्स, आदि के लिए और अधिक खुलने वाले हैं। उदाहरण के लिए देखें कि  जर्मनी निश्चित रूप से ब्रिटेन के ऑटो निर्यात के लगभग बड़े हिस्से को चीनी बाजार में ले जाएगा।

इसका जवाब यूके-चीन मुक्त व्यापार समझौते में मिल सकता है, जबकि यूके-यूएस एफटीए की संभावनाओं में और अधिक कमी आई है। यह कहना सही होगा कि ब्रिटेन के पास चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को पुनर्जीवित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जिसके बुनियादी ढांचे को  पुनर्जीवित करने के लिए निवेश की बुरी तरह से जरूरत है; जिनके पर्यटक और छात्र मोटी रकम लेकर आते हैं; जिनके विकास के लिए घरेलू बुनियादी ढाँचे का निवेश इतना चौंका देने वाले  अनुपात में है, और जो ब्रिटिश उद्योग के लिए बहुत ही आकर्षक हो सकता है; जिनके लोगों की डिस्पोजेबल आय में लगातार वृद्धि हो रही है और उन ब्रिटिश उत्पादों के लिए खरीद या उपभोग की ताक़त काफी बढ़ रही है, जिनकी चीनी उपभोक्ताओं के बीच बड़ी मांग हैं।

कुल मिलाकर, 15 ट्रिलियन डॉलर की चीनी अर्थव्यवस्था, जो ब्रिटेन की पांच गुना से अधिक है, वह अपूरणीय है। विश्व बैंक/आईएमएफ के एक अनुमान के अनुसार, चीन की अर्थव्यवस्था 2021 और 2022 में सालाना 8 प्रतिशत की दर से अधिक बढ़ने की तैयारी में है। जाहिर है, यूके-चीन संबंधों का "गोल्डन युग" का आकर्षण बना रहेगा और बीजिंग इसके लिए तैयार भी है और तत्पर भी है।

इसलिए, बड़ा सवाल यह है कि: ऐसा क्या है जिसे जयशंकर ब्रिटेन को क्वाड (चार देशों के गठजोड़) में आकर्षित करने के लिए राब को पेश कर सकते हैं? हिंद महासागर में अपनी पहली यात्रा पर नव-निर्मित ब्रिटिश विमान वाहक पर मेजबानी? जयशंकर को हाउडी मोदी की तरह एक और गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए था।

निसंदेह जब ब्रिटेन वैश्विक बने तो भारत को भी इसका हिस्सा होना चाहिए। ब्रिटेन के पास अभी भी बहुत कुछ है। ब्रिटेन का बहुसांस्कृतिक समाज हमारे सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग के लिए मूल्यवान सबक है। दोनों अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे की काफी पूरक है। ब्रिटेन का अंतर्राष्ट्रीयवाद हमें यह पता लगाने में मदद कर सकता है कि जिस छेद से हम अपने आप को खोदकर बाहर निकले हैं, उसे चीन के साथ साझा शत्रुता पर भारत-ब्रिटेन संबंधों को टिकाए रखने की जरूरत नहीं है।

Courtesy: Indian Punchline

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Boris Johnson has Done Modi a Favour

Boris Johnson
Narendra modi
COVID 19
Covid Vaccine

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License