NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
बजट 2020 : अंधेरे में तीर चलाती मोदी सरकार
टैक्स संग्रह पहले से कम हो गया है और मोदी सरकार मंत्रालयों के ख़र्च में कटौती कर संकट को और गहरा कर रही है।
सुबोध वर्मा
29 Jan 2020
Translated by महेश कुमार
बजट 2020 : अंधेरे में तीर चलाती मोदी सरकार

दो दशकों में पहली बार, कॉर्पोरेट और आयकर संग्रह के 2019-20 में गिरने की उम्मीद है। यह भयंकर रूप से बर्बाद होती अर्थव्यवस्था की तरफ़ इशारा है जिसे नरेंद्र मोदी सरकार ने कॉर्पोरेटों पर करों को कम कर और सरकारी ख़र्च को निचोड़ कर चरमराती अर्थव्यवस्था को कथित रूप से ऊपर उठाने की कोशिश की है। नज़दीक आ रही 1 फ़रवरी को जब 2020-21 का नया बजट पेश किया जाएगा, तो सरकार समाधान पेश करने की कोशिश करेगी - लेकिन उसके पास इस  संकट का अंतत कोई भी समाधान नहीं होगा।

चालू वित्त वर्ष 2019-20 में प्रत्यक्ष कर के संग्रह का लक्ष्य पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान से लगभग 12 प्रतिशत अधिक रखा गया था, जो 13.4 लाख करोड़ रुपए था। सरकार के सूत्रों के हवाले से मिली ताज़ा रिपोर्ट से पता चला है कि 23 जनवरी तक प्राप्त वास्तविक प्रत्यक्ष कर संग्रह केवल 7.3 लाख करोड़ रुपए है। विभिन्न आर्थिक विशेषज्ञ भविष्यवाणी कर रहे हैं कि इस वित्तीय वर्ष के समाप्त होते-होते अंत में क़रीब 2 लाख करोड़ रुपये तक की कमी होने की संभावना है।

टैक्स संग्रह में गिरावट क्यों?

बाज़ार में डूबती मांग की वजह से आर्थिक मंदी के अलावा जो अन्य तथ्य हैं उनमें कॉर्पोरेट करों में कटौती करने के सरकार के विचित्र फ़ैसले से प्रत्यक्ष कर के राजस्व में भी गिरावट आ गई है। अनुमान यह लगाया गया है कि पिछले साल सितंबर में घोषित कटौती के कारण सरकारी खज़ाने को 1.45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा।

मौजूदा कंपनियों के लिए बुनियादी (बेस) कॉर्पोरेट टैक्स को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत किया गया था और नई विनिर्माण फ़र्मों के लिए 25 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत तक की कटौती की गई – यह 28 वर्षों की सबसे बड़ी कटौती है। यह सरकार के समस्त दृष्टिकोण का एक हिस्सा था, जिसमें उन्होंने अर्थव्यवस्था को तेज़ करने के लिए कॉर्पोरेट्स की मदद यह कह कर की कि वे लोग "धन निर्माता", हैं और इसलिए इनकी मदद करने से अधिक निवेश होगा और अर्थव्यवस्था रास्ते पर आ जाएगी। इसी समझ के आधार पर सरकार ने पोर्टफ़ोलियो निवेशकों पर पूंजीगत लाभ कर में भी कटौती कर दी थी, जिससे सरकारी खज़ाने को 11,400 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। विशिष्ट क्षेत्रों में मदद करने की सरकार की मुहिम ने  सरकारी संसाधनों की लूट में योगदान दिया है।

जहां तक अप्रत्यक्ष करों का सवाल है सीमा शुल्क संग्रह वर्ष दर वर्ष 12.5 प्रतिशत और नवंबर तक उत्पाद शुल्क संग्रह 3.8 प्रतिशत तक गिर गया है, जैसा कि आधिकारिक तौर पर लेखा महानियंत्रक के जारी आंकड़ों के से पता चला है। माल और सेवा कर संग्रह में ज़रूर वृद्धि हुई है लेकिन वह भी केवल 3.9 प्रतिशत की मामूली दर है।

Budget.jpg

सैद्धांतिक रूप से देखा जाए तो अगर सरकार को अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए इस वित्तीय वर्ष में शुद्ध कर संग्रह के लिए पिछले चार महीनों में एक असंभव 9.9 करोड़ रुपये का संग्रह करना होगा - यानी कुल करों का लगभग 54 प्रतिशत। स्पष्ट रूप से, यह असंभव है। इसलिए, अनुमानित कमी रहेगी।

इसलिए, हाल के वर्षों में सरकार ने स्वयं के कुप्रबंधन से स्थिति को अधिक ख़राब कर दिया है, जो कम से कम कहने के लिए काफ़ी गंभीर है। अगर सरकार ने कॉर्पोरेट और शेयर बाज़ार के शेयरों के करों में कटौती नहीं की होती, और अधिक सार्थक तरीक़ों से अपने स्वयं के खर्च को बढ़ाया होता तो आज अर्थव्यवस्था इस दुखद स्थिति में नहीं पहुँचती। इसका सीधा प्रभाव बढ़ती बेरोज़गारी और उपभोक्ता ख़र्च को कम करने पर पड़ रहा है, जो संकट को और अधिक तीव्र कर रहा है। और, ज़ाहिर है, अब यह आम लोगों के लिए भारी संकट का कारण बन गया है।

ख़र्च को कम करना

सरकार की अदूरदर्शी की नीतियों के सबूत मंत्रालयों के नवीनतम ख़र्च के आंकड़ों से मिलते हैं। महालेखा नियंत्रक, जो दो महीने के अंतराल में मासिक डाटा जारी करता है, ने नवीनतम आंकड़े जारी किए है, यानी नवंबर माह के आंकड़े। उसके बाद का कोई और डाटा उपलब्ध नहीं है क्योंकि अब केंद्रीय बजट की घोषणा की जाएगी।

नवंबर 2019 के आंकड़ों में यह चौंकाने वाली तस्वीर मिलती है: कृषि मंत्रालय ने अपने आवंटन का केवल 49 प्रतिशत ही ख़र्च किया है, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 60.7 प्रतिशत,  रेलवे ने 60.2 प्रतिशत, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने 59.9 प्रतिशत और पेयजल और स्वच्छता विभाग ने 59.5 प्रतिशत ही ख़र्च किए हैं। इससे पता चलता है कि कुछ प्रमुख मंत्रालय जो बड़ी संख्या में वंचित वर्गों को लाभान्वित करने के लिए कार्यक्रम चलाते हैं, उन्हें बहुत तंग स्थिति रखा जा रहा है। ख़र्च के मामले में आत्मसंयम रखने का अभियान चल रहा है, जिसे छिपा कर किया जा रहा है और धरातल पूरी मुस्तैदी से जारी है।

इसके अलावा, सरकार ने अपने सभी विभागों से कहा है कि वे अपना खर्च वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में बजट अनुमान के 25 प्रतिशत तक सीमित रखें। पहले यह सीमा 33 प्रतिशत थी। पिछले महीने के  खर्च की सीमा पहले 15 प्रतिशत के मुक़ाबले 10 प्रतिशत किया  है।

इसका मतलब स्पष्ट है कि कई मंत्रालय और विभाग अपने आवंटित मोटी रकम को ख़र्च नहीं कर पाएंगे। उनके लिए पहले से ही मौत लिख दी गई है। योजनाओं और कार्यक्रमों का विवरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह निश्चित है कि उनमें से अधिकांश फंड की कमी का सामना कर रहे हैं।

जैसा कि हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है कि फंडिंग कम करने का एक और असर हो सकता है: वह यह कि ज़रूरतों को सीमित फंडों से पूरा नहीं किया जा सकता है, भले ही वे आवंटन के अनुरूप क्यों न हों। इसका उदाहरण ग्रामीण रोज़गार योजना (मनरेगा) है, जहां इस महीने तक लगभग पूरे धन का उपयोग किया गया है और शेष अवधि के लिए काम पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लग गया है। यह एक ऐसे दौर में है जब नौकरियों की कमी के कारण मनरेगा के काम की मांग बहुत तेज़ी से बढ़ रही है।

यह सब, निश्चित रूप से, चालू वर्ष का मसला है। मोदी आने वाले वर्ष को कैसे संभालेंगे, वह  आगामी केंद्रीय बजट में दिखाई देगा, यह भी स्पष्ट नहीं है। लेकिन, एक बात लगभग तय है - सरकार की वर्तमान नीतियों के बने रहने से हालात और अधिक ख़राब होंगे।

Union Budget 2020-21
Modi government
Tax Collection
Revenue Shortfall
Economic slowdown
Govt Spending
MGNREGA
Welfare Schemes

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया

छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक


बाकी खबरें

  • Chhattisgarh
    रूबी सरकार
    छत्तीसगढ़: भूपेश सरकार से नाराज़ विस्थापित किसानों का सत्याग्रह, कांग्रेस-भाजपा दोनों से नहीं मिला न्याय
    16 Feb 2022
    ‘अपना हक़ लेके रहेंगे, अभी नहीं तो कभी नहीं’ नारे के साथ अन्नदाताओं का डेढ़ महीने से सत्याग्रह’ जारी है।
  • Bappi Lahiri
    आलोक शुक्ला
    बप्पी दा का जाना जैसे संगीत से सोने की चमक का जाना
    16 Feb 2022
    बप्पी लाहिड़ी भले ही खूब सारा सोना पहनने के कारण चर्चित रहे हैं पर सच ये भी है कि वे अपने हरफनमौला संगीत प्रतिभा के कारण संगीत में सोने की चमक जैसे थे जो आज उनके जाने से खत्म हो गई।
  • hum bharat ke log
    वसीम अकरम त्यागी
    हम भारत के लोग: समृद्धि ने बांटा मगर संकट ने किया एक
    16 Feb 2022
    जनवरी 2020 के बाद के कोरोना काल में मानवीय संवेदना और बंधुत्व की इन 5 मिसालों से आप “हम भारत के लोग” की परिभाषा को समझ पाएंगे, किस तरह सांप्रदायिक भाषणों पर ये मानवीय कहानियां भारी पड़ीं।
  • Hijab
    एजाज़ अशरफ़
    हिजाब के विलुप्त होने और असहमति के प्रतीक के रूप में फिर से उभरने की कहानी
    16 Feb 2022
    इस इस्लामिक स्कार्फ़ का कोई भी मतलब उतना स्थायी नहीं है, जितना कि इस लिहाज़ से कि महिलाओं को जब भी इसे पहनने या उतारने के लिए मजबूर किया जाता है, तब-तब वे भड़क उठती हैं।
  • health Department
    एम.ओबैद
    यूपी चुनाव: बीमार पड़ा है जालौन ज़िले का स्वास्थ्य विभाग
    16 Feb 2022
    "स्वास्थ्य सेवा की बात करें तो उत्तर प्रदेश में पिछले पांच सालों में सुधार के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ। प्रदेश के जालौन जिले की बात करें तो यहां के जिला अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सक पिछले चार साल से…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License