आमतौर पर बजट अर्थव्यवस्था से जुड़े देश के बड़े प्रणालीगत मुद्दों को संबोधित नहीं करता है। क्योंकि बजट केवल वर्ष के सरकारी राजस्व और उसके ख़र्च की व्यवस्था का लेखा-जोखा पेश करते हैं। लेकिन, अगर पानी आपके सिर के ऊपर से बहने लगे तो बजट भी काफ़ी हद तक कुछ बेहतर शुरू करने का एक मज़बूत संकेत दे सकता है। बजट के द्वारा नीतिगत परिवर्तनों की शुरुआत की जा सकती है, और एक दृढ़ राजनीतिक इरादे की घोषणा भी कर सकता है।
देश में बढ़ती बेरोज़गारी निश्चित रूप से उन भयंकर संकटों में से एक है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के नए जारी आंकड़ों के अनुसार, 27 जनवरी को औसत साप्ताहिक बेरोज़गारी 7.2 प्रतिशत थी, जो अब अपने एक साल के उच्च स्तर पर चल रही है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा किए गए तिमाही सर्वेक्षणों के परिणाम बताते हैं कि जनवरी 2016 से दिसंबर 2019 के बीच की अवधि में रोज़गार शुदा व्यक्तियों की कुल संख्या 40 करोड़ 40 लाख से बढ़कर 40 करोड़ 60 लाख 50 हज़ार हो गई है। यानी इन चार निर्णायक वर्षों में 20 लाख 50 हज़ार या प्रति वर्ष औसतन लगभग 6.3 लाख के शुद्ध रोज़गार इसमें जुड़े हैं। यह भारत की हाल की यदाश्त में सबसे कम नौकरियों की वृद्धि दर है और इसे कुछ चक्रीय या बाहरी घटनाओं के नाम पर ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। यह एक गहरी और प्रणालीगत समस्या है।
नौजवान तबक़ा रोज़गार खो रहा है
लेकिन मौजूदा सर्वेक्षण में और भी अधिक हैरान और चौंकाने वाला पहलू सामने आया है। 30 वर्ष से कम आयु के रोज़गारशुदा लोगों के बीच 2016 से 2019 के बीच शुद्ध रोज़गार में गिरावट आई है – यह 10 करोड़ 30 लाख से घटकर 8 करोड़ 50 लाख रह गया है। यह क़रीब 18 प्रतिशत कम हुआ है, या पाँच रोज़गार में से लगभग एक ख़त्म हुआ है। [नीचे चार्ट देखें]

30 वर्ष से कम आयु के वेतनभोगी व्यक्तियों के उप-समूह में, 2016 में से 2019 में 3 करोड़ से ढाई करोड़ तक की स्पष्ट गिरावट है।
याद रखें: भारत की एक-तिहाई से अधिक आबादी इसी आयु वर्ग से संबंधित है। यह प्रसिद्ध जनसांख्यिकीय लाभांश है। ज़ाहिर है, इस महत्वपूर्ण आयु वर्ग में गिरती रोज़गार दर किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी है और किसी भी सरकार के लिए यह निर्लज्ज स्थिति है।
इसके चलते भारत में कार्यबल की उम्र का प्रोफ़ाइल उच्च आयु की तरफ़ स्थानांतरित हो रहा है। 2016 में, 40 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों की भारत में कर्मचारियों की संख्या 49 प्रतिशत थी। 2019 के अंत तक आते-आते यह तेज़ी से बढ़कर 56 प्रतिशत हो गई है।
मोदी के वादे और वास्तविकता
नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों के अपने अभियान में वादा किया था कि वह हर साल एक करोड़ (10 मिलियन) नौकरियां पैदा करेंगे। उन्होंने इस तरह की एक सुनहरी तस्वीर को पेश किया था, और बड़े ही उत्साह के साथ, लोगों ने उन्हें मसीहा के रूप में समझ लिया था। उनके ‘अच्छे दिन’ के नारे पर आम लोगों ने बड़े ही सहज रूप से विश्वास कर लिया।
अब, मोदी द्वारा दिखाया गया हर सपना चकनाचूर होता नज़र आ रहा है क्योंकि किए गए वादे पूरे नहीं हुए। वास्तव में, मोदी की कई नीतियों ने बढ़ती बेरोज़गारी को और अधिक बढ़ा दिया है, जैसे कि गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स(जीएसटी), जिसने छोटे और मध्यम उद्योग को बर्बाद कर दिया है जो कि बड़े पैमाने पर रोज़गार प्रदान करता था या करता है। नौकरियां पैदा करने की योजनाएं - ज़्यादातर कौशल विकास पर आधारित हैं जो इतनी अवास्तविक थीं क्योंकि वे ख़ुद ही त्रुटिपूर्ण थीं। ग्रामीण नौकरी की गारंटी योजना कम फंड के कारण लगातार कमज़ोर होती जा रही है, और इसलिए कम वेतन पर कुछ हफ़्तों के काम के बाद राहत के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं होता है।
दूसरी तरफ़, मोदी और उनके सलाहकारों ने अपनी सभी नीतियाँ नवउदारवादी सुधारों की बदनाम टोकरी में डाल दी हैं- निजी क्षेत्र को खुली छुट, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण की मूहीम, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं का निजीकरण करना, श्रम क़ानूनों को समाप्त करने आदि के लिए व्यापक रियायतें दी गईं। कॉर्पोरेट्स को कर कटौती और अन्य तरीक़ों से बड़ी राहतें और छूट दी गईं। ऐसा करने के पीछे विचार यह था कि यह बाज़ार की 'पशु आत्माओं' को जगाएगा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा, और रोज़गार भी पैदा करेगा। जबकि यह रास्ता बुरी तरह से विफल हो गया।
इस बजट से आशा?
उदाहरण के लिए, 1 फ़रवरी को संसद में पेश होने वाला बजट देश में रोज़गार को बढ़ावा देने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों की घोषणा कर सकता है। ये ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) जैसी राहत योजनाओं को अधिक धन आवंटन करने से लेकर रोज़गार पैदा करने के नए और बेहतरीन कार्यक्रमों की घोषणा कर सकता है।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार अपने ख़र्च को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ा सकती हैं ताकि औद्योगिक गतिविधियां बढ़ें और मांग को पूरा कर सकें। यह संभावित रूप से अधिक नौकरियां पैदा करेगा। इस दिशा में, वे किसानों को बेहतर मूल्य और ग्रामीण मज़दूरों को बेहतर मज़दूरी दे सकते हैं - ये दोनों उपाय मांग को बढ़ावा देंगे और रोज़गार पैदा करने में मददगार साबित होंगे।
इस तरह के अन्य उपायों की झड़ी लगाई जा सकती है - बशर्ते मोदी और उनकी सरकार उस पिंजरे से बाहर निकले जिसके भीतर वे धँसे बैठे हैं। यह देश आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के एजेंडे को नहीं चाहता है, जिसे ‘अच्छे दिन’ और सबका साथ, सबका विकास की आड़ में तस्करी करके लाया गया है। यह एक वास्तविक और सार्थक कार्रवाई चाहता है। ख़ासकर युवा तबक़ा।
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
Budget 2020: You Did Promise Jobs, Mr. Modi, Didn’t You?