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राजनीति
CAA-NPR-NRC : गांधी जी के शहीद दिवस 30 जनवरी से वाराणसी में जेल भरो आंदोलन
"धारा 144 का उल्लंघन करते हुए एक दिन में पाँच या इससे अधिक लोग गिरफ़्तारी देंगे। ...हम जेल जाएंगे लेकिन काग़ज़ नहीं दिखाएंगे।"
रिज़वाना तबस्सुम
20 Jan 2020
CAA-NRC-NPR

वाराणसी : नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी के विरोध में देश भर में लगातार विरोध हो रहे हैं। एक तरफ जहां देश के सामाजिक कार्यकर्ता और आम नागरिक इस बिल का विरोध कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ देश भर के अलग-अलग विश्वविद्यालय के छात्र और राजनेता भी इस बिल के विरोध में आ चुके हैं। कुछ जगह विद्यार्थी व स्थानीय लोग सीएए और एनआरसी को वापस लेने की मांग को लेकर धरने पर बैठे हुए हैं तो कुछ जगह जैसे दिल्ली, इलाहाबाद, कानपुर, कोलकाता में महिलाएं धरने पर बैठीं हैं।

इसी कड़ी में सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ वाराणसी से भी बड़े संघर्ष का ऐलान कर दिया गया है। वाराणसी के ऐतिहासिक पराडकर भवन में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें छात्र, स्थानीय नागरिक, वरिष्ठ नागरिक जैसे लोग इकट्ठा हुए। इतना ही नहीं इस कार्यक्रम में कांग्रेसी भी थे तो वामपंथी भी। साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता भी उपस्थित थे। 'संविधान बचाओ, देश बचाओ शीर्षक' से आयोजित इस सर्वदलीय सभा में वो लोग भी शामिल थे जो 19 दिसंबर को नागरिकता कानून के विरोध में जेल गए थे। इस मौके पर सभी लोगों ने केंद्र सरकार के 6 साल के कार्यकाल को देश का 'काला काल' करार दिया और कहा कि, 'आने वाले तीस जनवरी यानी गांधी जी के शहीद दिवस से जेल भरो आंदोलन की शुरुआत की जाएगी।

आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने आह्वान किया कि जो पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नीतियों से नाखुश हैं और जो देश के संविधान की रक्षा में विश्वास रखते हैं वो इस आंदोलन से सहमति जता सकते हैं और इसमें हिस्सा ले सकते हैं। इस कार्यक्रम का संचालन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता और 19 दिसंबर को नागरिकता कानून के विरोध में जेल जाने वाले संजीव सिंह ने कहा कि, 'सत्ता में आने के पहले भारतीय जनता पार्टी ने देश से जो-जो वादे किए थे उनमें से जब हर मुद्दे पर वो फ्लॉप हुए तो 2019 में दोबारा सत्ता में आने के बाद उन मुद्दों को एक-एक कर लागू करना शुरू किया जिसके नाम पर वो आमजन की भावनाओं को भड़का कर सत्ता में आए थे। लेकिन उनमें से कई मसलों पर देश में शांति रही। तब उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे के तहत नागरिकता कानून थोपने की कोशिश की जिसका देश व्यापी विरोध शुरू हुआ।'

बनारस के पूर्व सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजेश मिश्रा ने कहा, 'यह कानून पूरी तरह से संविधान को तोड़ने वाला है, देश को बांटने नहीं बल्कि तोड़ने वाला है। इस कानून से न सिर्फ अल्पसंख्यक यानी मुसलमान की नागरिकता खतरे में पड़ेगी बल्कि इसके दायरे में करोड़ों बहुसंख्यक यानी हिंदू भी आएंगे। उन्होंने आगाह किया कि एनआरसी और सीएए से पहले एनपीआर को समझना जरूरी है क्योंकि इस बार की जनगणना में 8 ऐसे बिंदू हैं जिन्हें भरने के बाद जब एनआरसी लागू होगा तो हर नागरिक परेशान होगा। उसे मूल दस्तावेज की तलाश में कहां-कहां भटकना होगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। पढ़ाई-लिखाई, रोजी-रोजगार छोड़ कर, घर-गृहस्थी छोड़ कर केवल दस्तावेज जुटाने में जुटना होगा। कितना समय बर्बाद होगा, कितनी आर्थिक क्षति होगी इसका अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता।

मानवाधिकार कार्यकर्ता लेनिन रघुवंशी ने अपनी बात रखते हुए कहते हैं कि, 'सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर अपने आंदोलन और सत्याग्रह के लिए एक सूचना देनी चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि संविधान को बचाने के लिए काशी के सनातनी लोगों को आगे आना चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता अरविंद सिंह कहते हैं कि, 'वर्तमान सरकार आजादी के तत्काल बाद के उस काल में ले जाना चाहती है जब संपूर्ण भारत वर्ष में छोटी-छोटी रियासतें थीं। ये सरकार सरदार बल्लभ भाई पटेल के उन प्रयासों पर भी पानी फेरना चाहती है जिसके तहत पटेल ने टुकड़ों में बंटे देश को एक माला में पिरोया था। उन्होंने कहा कि ये सरकार अपने हिडेन एजेंडे के तहत पूरे देश को एक वैचारिक ढांचे में बदलना चाहती है। लेकिन देश का नौजवान, देश का छात्र, अधिवक्ता, व्यापारी, उद्यमी, समाजसेवी ऐसा होने नहीं देगा।'

वरिष्ठ अधिवक्ता बनारस बार के पूर्व महामंत्री विनोद शुक्ला कहते हैं कि, 'यह हमारी लड़ाई विचारधारा के विरोध में होगी। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि, 'आंदोलन सविनय अवज्ञा की तर्ज पर होगा। और तो और हम गांधीवादी रास्ते से आंदोलन को चलाएँगे। काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव सर्वदलीय सभा में तय किया गया कि आंदोलन से पहले एक न्यूनतम 21 सदस्यीय संचालन समिति बनेगी। आंदोलन शुरू होने से पहले इसका एजेंडा सभी मिल बैठ कर तय करेंगे। तय एजेंडे को उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश, मानवाधिकार आयोग को भेजा जाएगा। उसकी प्रति जिले के डीएम व एसएसपी को सौंपी जाएगी। पूरी लड़ाई संविधान के दायरे में होगी और पूरी तरह से अहिंसक और लोकतांत्रिक ढंग से होगी।

पूर्व एमएलसी अरविंद सिंह ने बताया कि, 'आंदोलन में यह भी ध्यान रखा जाएगा कि किसी भी तरह से कोई हिंसक शामिल न हो। इस पूरे आंदोलन में किसी से चंदा नहीं लिया जाएगा। यहां तक कि एनजीओ को आंदोलन से दूर रखने का भी आह्वान किया गया। कार्यक्रम में यह भी तय हुआ कि कोई भी आंदोलनकारी कोई दस्तावेज न दिखाएगा, न सौंपेगा। और तो और इसके लिए आम नागरिकों को भी जागरूक किया जाएगा कि वो सरकारी फरमान का विनय पूर्वक, महात्मा गांधी के सिद्धांतों के अनुरूप बहिष्कार करेंगे।'

जेल भरो आंदोलन के बारे में बताते हुए सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण सिंह बबलू बताते हैं कि, 'धारा 144 का उल्लंघन करते हुए एक दिन में पाँच या इससे अधिक लोग गिरफ्तारी देंगे। वे कहते हैं कि, 'हम जेल जाएंगे लेकिन काग़ज़ नहीं दिखाएंगे। इतना ही नहीं प्रवीण सिंह ये भी कहते हैं कि, 'जेल जाएंगे लेकिन जमानत नहीं करवाएँगे।'

(रिज़वाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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