NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
समाज
भारत
राजनीति
CAA-NRC के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन भारत के लिए उम्मीद की किरण
लोकप्रियता कुछ और नहीं बल्कि वह स्थितियां हैं, जो किसी नेता को सत्ता दिलवाती हैं। लोकप्रिय अशांति आराम से किसी नेता को तख्त से उतार सकती है।
पार्थ एस घोष
29 Jan 2020
constitution

भारत के लोग विद्रोह कर रहे हैं। अब बहुत हो चुका। नए भारत का सपना और सांप्रदायिक नफरत एक साथ नहीं बेची जा सकती। शायद लोग एक उत्प्रेरक का इंतजार कर रहे थे, जिसे नागरिकता संशोधन कानून के रूप में मोदी सरकार ने बिना दिमाग लगाए दे दिया।

पहली बार इतिहास में एक कानून नागरिकता को धर्म पर आधारित कर रहा है, इसमें मुस्लिमों को खास तौर पर निशाना बनाया गया है। जबकि सरकार ने सोचा होगा कि इससे उसका हिंदू आधार मजबूत होगा। लेकिन यह रणनीति उल्टी पड़ गई। इसने सुप्त अवस्था में पड़े सेकुलर लोगों को खड़ा कर दिया और देश के बड़े हिस्से में आग लगा दी। प्रदर्शनकारियों की मांग बहुत सीधी है- कृप्या संविधान का पालन करें।

भारत दो बार ऐसे ही मौकों से गुजर चुका है। 1974-75 में गुजरात यूनिवर्सिटी के छात्रों द्वारा फीस बढ़ोत्तरी के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन संपूर्ण क्रांति में बदल गया। यह नारा जयप्रकाश नारायण ने ईजाद किया था। जयप्रकाश एक गांधीवादी पुराने राष्ट्रवादी थे। वे इस आंदोलन को तेजी देने वाले कारक थे।

2011 में मनमोहन सिंह की सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की भूख हड़ताल के साथ दूसरा बड़ा आंदोलन शुरू हुआ। दोनों आंदोलन से सत्ता में परिवर्तन आया। पहली से इंदिरा गांधी की सरकार (1971-77) गई। दूसरे से मोदी नाम की संकल्पना का उभार हुआ।

दोनों आंदोलन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ/भारतीय जनता पार्टी को लाभ हुआ। इन आंदोलन में वो अपने बेहतर संगठन की वजह से बेहतर प्रतिक्रिया दे पाए। लेकिन अब उल्टा हो रहा है। आज उठी लहर का हिस्सा होने की तो बात दूर, यह पूरी लहर ही इनके खिलाफ है।आज भारत की पंथनिरपेक्षता दांव पर लगी हुई है, जिसे बीजेपी अपने हिंदुत्व के प्रोजेक्ट के ज़रिए लगातार नुकसान पहुंचा रही है। बीजेपी सरकार के खिलाफ खड़े होने वाले छात्रों के साथ आज समाज का बड़ा तबका जुड़ चुका है, इसमें मुस्लिमों की बड़ी संख्या है। यह लोग खुद को नए कानून में भेदभावकारी मानते हैं, यह भेदभाव उनके साथ हाल के समय में लगातार हो रहा है। मोदी सरकार मुद्दे को कितना भी घुमाने की कोशिश करे, पर अब लहर उठ चुकी है और इनके झूठ के पुलिंदे खुल रहे हैं।

क्या मोदी का जादू इस आग से पार पाने में कामयाब रहेगा? या पंथनिरपेक्ष ताकतों और हिंदू राष्ट्र की मांग करने वाली शक्तियों के बीच अब लकीर खिंच चुकी है। आज गृह युद्ध की स्थिति कोरी कल्पना मात्र नहीं रह गई है? आरएसएस ने मोदी सरकार के कार्यकाल में खून चख लिया है और वो अपने फायदों को आसानी से वापस नहीं जाने देगी। अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में संघ और सरकार के भीतर तनाव हुआ करता था। लेकिन मोदी कार्यकाल में संघ पिछले 6 साल से हनीमून मना रहा है।

आरएसएस अपने शाखाओं के चलते आज इतिहास में सबसे ज्यादा ताकतवर है। जैसा वाल्टर के एंडरसन और श्रीधर डी दामले अपनी किताब RSS: अ व्यू टू द इनसाइड में बताते हैं, 1990 से आरएसएस की सदस्यता करीब बीस लाख और बढ़ चुकी है और यह दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ बन गया है। यह रोजाना संतावन हजार शाखाएं, चौदह हजार साप्ताहिक शाखाएं और सात हजार मासिक शाखाएं लगाता है। 2016 में यह शाखाएं करीब 36,293 जगहों पर हुईं।

इसके साथ संगठन के पास करीब साठ लाख पुराने स्वयंसेवक और इससे जुड़े हुए कार्यकर्ता भी हैं। अब यह विकास और तेजी से बढ़ रहा है। 2015 में लगने वाली 51,332 शाखाएं, 2016 में बढ़कर 57,000 हो गईं।

अब इस ताकतवर आधार में मोदी की लोकप्रियता भी जोड़ दीजिए। पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी भी लोकप्रिय थीं। लेकिन मोदी आज उनसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। उनकी रैलियों में मोदी-मोदी चिल्लाते लोग आज उनके नाम की ताकत दिखाते हैं। इसलिए झारखंड से लेकर दिल्ली तक के चुनावों में, बीजेपी मोदी के व्यक्तित्व को बेचती नज़र आती है। मोदी नाम के ट्रंप कार्ड पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता बीजेपी के लिए खराब हो सकती है। जैसा इंदिरा गांधी पर कांग्रेस की निर्भरता से हुआ।

लेकिन इससे एक सवाल खड़ा होता है: आज उठ रही लहरें मोदी और बीजेपी/RSS के खिलाफ कितने वक्त तक टिक सकती हैं? एक बिना नेतृत्व का आंदोलन ज्यादा वक्त तक नहीं चलता। अरब स्प्रिंग का अनुभव हमें यही बताता है। लेकिन भारत से यह तुलना बेमानी है। अरब दुनिया से अलग, भारत के पास लोकतांत्रिक प्रयोगों का लंबा अनुभव है, जो 1915 में महात्मा गांधी के राष्ट्रीय आंदोलन में पैर रखने से शुरू होता है। भारत कई मायनों में बहुलतावादी है। इन्हें देखते हुए भले ही भारत का आंदोलन आज नेतृत्वहीन लग रहा हो, लेकिन इस अचानक उभरी भीड़ में एक ढांचा है, जो अब रोजाना की बात बनता जा रहा है।क्या यह लहर बीजेपी और आरएसएस को चुनौती दे पाती है या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा।

 इस बीच तीन बातों को नजरंदाज करना नामुमकिन है। पहली, यह लहर अचनाक उभर कर आई है, जो किसी भी पार्टी द्वारा प्रायोजित नहीं है। दूसरी बात, यह लहर पूरी तरह नेपथ्य में पहुंच चुके मुस्लिमों को दोबारा राजनीति की मुख्यधारा में लेकर आई है। तीसरी और आखिरी बात, छात्र और युवा, जो बेरोजगारी और मौकों की कमी से जूझ रहे हैं, उन्हें अपने समर्थन में बड़ा आधार मिला है, जो 1974-75 में जेपी आंदोलन की याद दिलाता है।

इस लहर की सबसे खास बात, भारत के सेकुलर और समावेशी संविधान की प्रतिष्ठा दोबारा कायम करने वाली मांग है। इस बेहद सीधी मांग से ही आरएसएस और बीजेपी की जुड़वा जोड़ी आज पीछे ढकेल दी गई है। भारत के इस अभूतपूर्व नजारे में आदमी, औरत और बच्चे एक साथ संविधान की प्रस्तावना पढ़ने नजर आ रहे हैं।

''हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी ,पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।'' 

किस आधार पर मोदी सरकार इन प्रदर्शनकारियों को देशद्रोही बता सकती है? कई बार आजमाया जा चुका यह नुस्खा सबसे पहले जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में फरवरी 2016 में अपनाया गया था। उस वक्त जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर ''भारत तेरे टुकड़े होंगे'' जैसे नारे लगाने का एक दोगला आरोप लगाकर, एक सरकारी गाली (सरकार प्रायोजित) को जन्म दिया गया।

अचानक इस देश में टुकड़े-टुकड़े गैंग की बाढ़ आ गई और जो भी असहमति रखता, उस पर ब्रिटिश काल का भयावह देशद्रोह के कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया जाता। कन्हैया कुमार ने विरोध करते हुए कहा कि नारे लगाते हुए उनका वीडियो झूठा है और यह उन्हें बदनाम करने की साजिश है। यह आवाज किसी के कानों तक नहीं पहुंची और दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। बता दें यह वीडियो मीडिया में चलाया गया, जिसमें पत्रकारिता के बुनियादी उसूलों का तक ध्यान नहीं रखा गया। कन्हैया जेल में एक छात्र नेता के तौर पर गया, पर जब वह बाहर आया तो कन्हैया भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रवक्ता और एक राष्ट्रीय व्यक्तित्व बन चुका था। जेल में लिखी उसकी डायरी ''बिहार से तिहाड़'' तक एक बेस्ट सेलर है।

बीजेपी ने कन्हैया कुमार को एक हीरो बना दिया। वे आज जेएनयूएसयू अध्यक्ष आईशी घोष के साथ भी यही गलती कर रहे हैं। यह बेहद दिलचस्प है कि बीजेपी जेएनयू से कितनी नफरत करती है, जबकि यह संस्थान न केवल एक अग्रणी विश्वविद्यालय है, बल्कि इसका छात्र समुदाय सत्ता के खिलाफ हमेशा से मुखर रहा है, चाहे वह बीजेपी की सरकार हो या कांग्रेस की या किसी और की।

याद करिए किस तरह इंदिरा गांधी की इमरजेंसी में जेएनयू छात्रों को खासतौर पर निशाना बनाया गया था। इनमें से कई को महीनों जेल में सड़ना पड़ा। लेकिन इमरजेंसी के उलट, जेएनयू से बीजेपी की नफरत इसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण और बौद्धिक विमर्श विरोधी होने से उपजती है। जैसे जेएनयू को वामपंथी राजनीति के लिए लगातार निशाना बनाया जाता है। लेकिन यह आलोचना इस बात को भूल जाती है कि इसके छात्र राजनीतिक तौर प्रगतिशील होते हैं। वह युवाओं के जरूरी आदर्शवाद से प्रेरित होते हैं। आखिर अगर कोई युवा होते हुए तय नियमों पर सवाल नहीं उठाता तो मुश्किल है वह उम्र ढलने के साथ ऐसा करेगा। इसलिए यह देखना बहुत दुखी करता है कि उन्हें टुकड़े-टुकड़े गैंग, अर्बन नक्सल और देशद्रोही जैसे शब्दों से नवाजा जाता है।

इस बात को मानिए कि आज भारती युवा और अल्पसंख्यक शांत नहीं है। मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित पत्रकार रवीश कुमार ने हिंदी क्षेत्र की उच्च शिक्षा पर एक लंबी सीरीज चलाई। यह प्रदेश चाहे बीजेपी शासित हों या कांग्रेस, इनमें छात्र-शिक्षकों की संख्या का अनुपात हमेशा गड़बड़ रहता है, शिक्षक स्कूलों से गायब रहते हैं, यहां तक कि क्लासरूम, लाइब्रेरी, शौचालय या दूसरी सुविधाएं भी नहीं होतीं। इन स्थितियों में साफ दिखता है कि राजनीतिक वर्ग ने सफलता से मध्यम वर्ग का ब्रेनवाश कर दिया है। अगर ऐसा नहीं होता तो वे अपने लोगों के लिए अच्छे शिक्षण संस्थानों की मांग करते।

बेहतर शिक्षा की मांग के बजाए आज वे बीजेपी की लाइन पर चलते हैं और शिकायत करते हैं कि छात्र करदाताओं के पैसे की बर्बादी करते हैं। इनकी चिंताएं तब कहां चली जाती हैं, जब बीजेपी सरदार पटेल की मूर्ति बनाने के लिए तीन हजार करोड़ रुपये खर्च कर देती है। इसमें भी ज्यादातर सामान चीन से मंगवाया गया?
एक आखिरी बात। सभी उदारवादी कला विषयों में इतिहास के साथ दो बाते हैं। एक तरफ इसे बेकार करार दिया जाता है, तो दूसरी तरफ इसमें बहुत सारा सरकारी हस्तक्षेप किया जाता है। कोलकाता में हाल ही में अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इतिहासकारों ने केवल राजनीतिक सत्ता और संघर्ष का ही अध्ययन किया। उन्होंने आम आदमी और उनकी समस्याओं को पूरी तरह नजरंदाज किया। काश की मोदी का भाषण लिखने वाले ने इतिहास के सबालटर्न स्कूल की प्राथमिक पढ़ाई भी की होती।

प्रोफेसर रणजीत गुहा पचास साल पहले इस तरह के इतिहास लेखन में अग्रणी रहे। मोदी गलत और झूठे तरीके से जिस चीज को नजरंदाज करने की बात कहते हैं, दरअसल उस पर सबालटर्न इतिहासकारों ने कागजों पर कागज भर दिए। उन्होंने दुनियाभर के इतिहासकारों के काम को प्रभावित किया। लेकिन मुझे क्यों इस बात पर अचंभा नहीं है? मोदी ने तो अमर्त्य सेन को भी अर्थशास्त्र पढ़ाने की कोशिश की है।

पोस्टस्क्रिप्ट: देहरादून में एक साल पहले हुई एक कॉन्फ्रेंस में मेरी मुरली मनोहर जोशी से कुछ दोस्ताना बातचीत हुई। जोशी लंबे वक्त तक बीजेपी से सांसद रहे और अटल बिहारी की सरकार में वे मानव संसाधन मंत्री थे। जोशी ने उस दिन सुबह विज्ञान-सामाजिक विज्ञान इंटरफेस पर केंद्रित लेक्चर दिया था। मेरी उनसे बातचीत अच्छी रही थी, उनके भाषण की तारीफ करने के बाद मैंने कुछ और मीठी बात कहते हुए उनसे कहा- ''सर आप सिर्फ बीजेपी के नहीं है, आप तो पूरे देश के लिए हैं।'' उन्होंने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा- ''ऐसा क्यों है कि राजनीतिज्ञ, जब राजनीति से विदा हो जाता है तो वह अच्छा दिखाई पड़ने लगता है?
क्या जोशी वही एचआरडी मंत्री नहीं थे, जिन्होंने आरएसएस के एजेंडे के हिसाब से हिंदुत्व के नज़रिए से इतिहास लेखन को प्रोत्साहित किया?

दुर्भाग्य से आज वही प्रोजेक्ट प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्रो में भी लागू किया जा रहा है। इस सिलसिले में भारत के मौजूदा मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल का बयान समझना चाहिए।  भारत का मंगल मिशन रॉकेट अब खगोलीय गणना नहीं, बल्कि अच्छे मुहूर्त के ज्योतिषीय हिसाब से लॉन्च होगा, यह सोचकर ही कंपकंपी छूट जाती है!

लेखक इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, दिल्ली में सीनियर फैलो हैं। वे ICSSR के पूर्व नेशनल फैलो रहे हैं और उन्होंने साउथ एशियन यूनिवर्सिटी और जेएनयू में पढ़ाया भी है। यह उनके निजी विचार हैं।
 

NRC-CAA-NPR
BJP-RSS
Narendra modi
BOOK ON RSS
POLRISATION IN INDIAN SOCIETY

Related Stories

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

जलियांवाला बाग: क्यों बदली जा रही है ‘शहीद-स्थल’ की पहचान

सद्भाव बनाम ध्रुवीकरण : नेहरू और मोदी के चुनाव अभियान का फ़र्क़

एक व्यापक बहुपक्षी और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता

हम भारत के लोगों की असली चुनौती आज़ादी के आंदोलन के सपने को बचाने की है

हम भारत के लोग : इंडिया@75 और देश का बदलता माहौल

हम भारत के लोग : हम कहां-से-कहां पहुंच गये हैं

संविधान पर संकट: भारतीयकरण या ब्राह्मणीकरण

झंझावातों के बीच भारतीय गणतंत्र की यात्रा: एक विहंगम दृष्टि

आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हमारा गणतंत्र एक चौराहे पर खड़ा है


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License