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आंदोलन
भारत
राजनीति
CAA-NRC : महिलाओं का विरोध प्रदर्शन तेज, देश भर में बने कई नए शाहीन बाग
CAA-NRC के विरोध में चल रहे  आंदोलन का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं। वो महिलाएं जिनसे सरकार और मंत्री भी खौफ़ खाते नज़र आ रहे हैं। सवा सौ करोड़ की आबादी वाले भारत में 30 से ज्यादा जगहों पर महिलाएं रोज़ाना रात में सड़कों पर बैठकर धरना दे रही हैं और सरकार से बेखौफ होकर सवाल पूछ रही हैं। इन प्रदर्शनों में रोज नए इलाकों के नाम जुड़ रहे हैं।
सोनिया यादव
24 Jan 2020
CAA

नागरिकता संशोधन कानून पर सरकार भले ही एक इंच भी पीछे हटने को तैयार न हो लेकिन इसके विरोध में प्रदर्शन करने वालों के हौसले बुलंद हैं। दिन-प्रतिदिन प्रदर्शनों की संख्या में इज़ाफा हो रहा है। पुलिस लाठीचार्ज कर रही है, लोगों पर मुकदमे दर्ज कर जेलों में भर रही है, लेकिन इसके बावजूद बढ़ते विरोध को रोक नहीं पा रही है। आलम ये है कि दिल्ली के शाहीन बाग की तर्ज पर देश के कई अन्य इलाकों में महिलाओं ने इस कानून के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

मोदी सरकार के मंत्री और नेता भले ही नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए और एनआरसी के विरोध को राजनीति से प्रेरित बता रहे हों लेकिन हकिकत ये है कि इस कानून के विरोध में राजनीतिक पार्टियां बहुत पीछे नज़र आती हैं। इस आंदोलन का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं। वो महिलाएं जिनसे सरकार और मंत्री भी खौफ़ खाते नज़र आ रहे हैं। सवा सौ करोड़ की आबादी वाले भारत में 30 से ज्यादा जगहों पर महिलाएं रोज़ाना रात में सड़कों पर बैठकर धरना दे रही हैं और सरकार से बेखौफ होकर सवाल पूछ रही हैं। इन प्रदर्शनों में रोज नए इलाकों के नाम जुड़ रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, देवबंद, इटावा के बाद अब वाराणसी, आजमगढ़ और गोंडा में भी महिलाओं ने व्यापक प्रदर्शन की शुरुआत कर दी है। पुलिस और प्रशासन की तमाम चेतावनियों के बावजूद महिलाएं डटकर खड़ी हैं, आजादी के नारे लगा रही हैं और संविधान बचाने की बात कर रही हैं।
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वाराणसी के बेनियाबाग इलाके में प्रदर्शन कर रहीं शाजिया बताती हैं, ‘हम शांतिपूर्ण धरना देना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने भीड़ को देखकर भारी पुलिस बल बुला लिया और जबजस्ती लोगों को उठाने लगे। जो महिलाएं नहीं उठ रही थीं, उनके बच्चों को पुलिस उनसे अलग करने लगी। ये लोग औरतों को गालियां दे रहे थे, मारने-पीटने की बात कर रहे थे। ये कौन सा लोकतंत्र है? क्या हम अब विरोध भी नहीं कर सकते।'

आज़मगढ़ के कपूरा शाह दिवान बाग में भी महिलाओं का बड़ा विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। यहां गुरुवार 23 जनवरी से महिलाएं धरने पर बैठी हैं और सीएए को वापस लेने की मांग कर रही हैं। संविधान बचाओ संघर्ष समीति के बैनर तले हो रहे इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में ग्रामिण इलाकों से आए लोग शामिल हो रहे हैं।

मुबारकपुर कस्बे के फवाद ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, ‘सरकार कह रही है कि इस कानून से मुस्लमानों को डरने की जरूरत नहीं है, उन्हें कोई हाथ भी नहीं लगा सकता। फिर सरकार ने आखिर इस नागरिकता कानून से मुस्लमानों को ही सिर्फ अलग क्यों रखा है। क्यों सरकार धर्म के आधार पर नागरिकता बांट रही है। ये कानून पूरी तरह असंवैधानिक है, संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।'

बिहार के कई छोटे-बड़े इलाकों में भी इस कानून के खिलाफ कई बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं। पटना के सब्जीबाग चौराहा, फुलवारीशरीफ, किशनगंज, काशीपुर टाकिया इमामबाड़ा सहित गया के शांति बाग, मुंगेर के अब्दुल हमीद चौक, मुजफ्फरपुर और अररिया में महिलाएं इस प्रदर्शन की अगुआई कर रही हैं।

चंदवारा की निवासी शामली बताती हैं, ‘सीएए में नागरिकता देने और लेने की बात ही नहीं है, बात संविधान की मूल भावना धर्मनिर्पेक्षता की है, बराबरी और समानता की है। आखिर सरकार एक समुदाय के लोगों को इस कानून से बाहर कर क्या साबित करना चाहती है? जब पहले से मौजूद नागरिकता कानून में किसी धर्म का जिक्र नहीं था तो नए कानून में इसकी क्या जरूरत पड़ गई?’
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उत्तराखंड के हल्दवानी में भी सीएए और एनआरसी के खिलाफ आज़ादी के नारे गूंज रहे हैं। 22 जनवरी बुधवार से यहां धरना जारी है, जिसमें हर उम्र के लोग शिरकत कर रहे हैं लेकिन इसका नेतृत्व भी महिलाएं ही कर रही हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार सीएए वापस नहीं लेती है तो हल्द्वानी के ताज चौराहे को दिल्ली का शाहीन बाग बना देंगे।

हल्दवानी की उर्मिला नेगी ने न्यूज़क्लिक को बताया, ‘हमारी मांग है कि सरकार सीएए और एनआरसी को वापस ले। हम इसे काला क़ानून मानते हैं, ये संविधान के ख़िलाफ़ है, देश की धर्मनिरपेक्षता पर हमला है। साथ ही पड़ोसी देशों के साथ नाइंसाफ़ी भी है।'

झारखंड की राजधानी रांची और जमशेदपुर में भी सीएए और एनआरसी के खिलाफ देश बचाओ आंदोलन ने जोर पकड़ लिया है। डोरंडा मैदान में हजारों की संख्या में महिलाएं और नागरिक समाज के लोग रोज़ प्रदर्शन कर रहे हैं। महिलाएं धरने पर बैठ रही हैं, हाथों में सीएए और एनआरसी के विरोध की तख्तियां लहरा रहीं हैं, नारे लगा रही हैं।

रांची के प्रदर्शन में शामिल शबनम ने कहा, ‘आखिर सरकार को इस वक्त सीएए लाने की क्या जरूरत थी, क्या देश का मौजूदा कानून लोगों को नागरिकता नहीं दे रहा था? अगर कुछ कमी थी तो सरकार उसे दुरूस्त कर सकती थी, लेकिन यहां तो एक समुदाय को ही इससे बाहर कर दिया गया, जो सरकार की मंशा को साफ दिखाता है कि ये लोग अपने हिंदू राष्ट्र के ऐजेंडे को आगे बढ़ाना चाहते हैं।'

गौरतलब है कि शाहीन बाग की तर्ज पर दिल्ली के तुर्कमान गेट, सुंदरीनगर, खुरेजी, हौजरानी समेत कई छोटे- इलाकों में भी प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हैदराबाद, कोलकाता में लंबे समय से विरोध की आवाज उठ रही है। आने वाले समय में शाहीन बाग का धरना रहे ना रहे लेकिन इस धरने ने देश में एक नए आंदोलन का बिगुल तो फूंक ही दिया है।

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