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सीएए विरोध : दिल्ली में दिख रही है विश्वविद्यालयों प्रशासनों की 'हिपोक्रिसी'
“यह कैंपस स्पेस के भीतर असंतोष को रोकने का एक प्रयास है। विश्वविद्यालय, भाजपा सरकार के तहत, केवल उन विचारों के प्रचार- प्रसार की अनुमति देते हैं जो उनके कथन के अनुकूल हों"।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
24 Jan 2020
Ambedkar University

विश्वविद्यालय विचारों के आदान-प्रदान का केंद्र होते  हैं। मोदी सरकार के नए भारत में लगत है यह विचार की जगह नहीं है , खासकर अगर यह विचार उनकी सरकार के कामों या उनके नीति के खिलाफ हो।  

इसे दिल्ली के दो प्रमुख विश्वविद्यालयों - दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री राम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स (एसआरसीसी) और अंबेडकर विश्वविद्यालय (एयूडी) के प्रशासन के बाद एक मानक के रूप में देखा जा सकता है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए),एनआरसी  और एनपीआर को लेकर एक चर्चा होनी थी। जिसे प्रशासन ने नहीं होने दिया।

पहले, SRCC के प्रिंसिपल ने 23 जनवरी को " असम क्यों विरोध कर रहा है?"इस  पर एक चर्चा रद्द कर दी , वो भी कार्यक्रम से केवल एक घंटे पहले ऐसा किया। इस कर्यक्रम का आयोजन उत्तरपूर्व के छात्रों संगठन ने किया था। उन्होंने  एक बयान में आरोप लगाया कि उन्हें "कैंपस में हिंसा होने की संभावना के कारण उन्हें कार्यक्रम नहीं करने दिया गया।इसी के कारण चर्चा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई"।

“हमें यह भी बताया गया कि हमारे पैनल में कोई संतुलन नहीं था और हमारे सभी वक्ताओं एक ही विचार के समर्थक थे।  उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस कार्यक्रम को बाद में आयोजित किया जाए और कहा कि इस तरह के वातावरण में ये कार्यक्रम करना नासमझी है।

इस घटना को लेकर शुक्रवार को छात्रों ने  SRCC के बहार प्रदर्शन किया। इसमें अन्य कॉलेज के छात्रों ने भी भागीदारी की सभी ने प्रशासन के इस कदम की निंदा की।

इससे पहले, एक अन्य विश्वविद्यालय के प्रशासन, एयूडी ने विवादास्पद अधिनियम पर एक पैनल चर्चा के लिए कश्मीरी गेट कैंपस में सीपीएम नेता प्रकाश करात को प्रवेश देने से इनकार कर दिया । विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय राजधानी में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए लागू आदर्श आचार संहिता का हवाला दिया। परिणामस्वरूप, करात ने परिसर के गेट के बाहर से सभा को संबोधित किया।

स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (SFI), कार्यक्रम के आयोजकों ने एक बयान में कहा ," हकीकत में घटना किसी भी संहिता का उल्लंघन नहीं किया गया था   हमारे वक्ताओं में से कोई भी मंत्री या आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार नहीं थे,। छात्रसंघ ने भी AUD प्रशासन के नियमों को "अलोकतांत्रिक" और "मनमाना" कहा।

हालाँकि, ऐसा नहीं था कि 'सभी कैंपस इतने 'अलोकतांत्रिक' हैं. दक्षिणी दिल्ली के राम लाल आनंद कॉलेज का प्रशासन ने  इस तरह की चर्चा की अनुमति दी। शायद इन्हे अभी देश के वतावरण की जानकारी नहीं लगती क्योंकि इन्होंने 17 जनवरी को कॉलेज के छात्रसंघ द्वारा "सीएए-एनआरसी: मिथकों और तथ्यों" नामक एक चर्चा का आयोजन होने दिया था।  जिसमें संसद के पूर्व सदस्य और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता बलबीर पुंज ने छात्रों को संबोधित किया।

यदि यह पर्याप्त नहीं है, तो अब प्रयागराज में उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय (यूपीआरटीओयू) द्वारा सीएए को लकेर बने असमंजस को खत्म करने के लिए सीएए टू 'फॉग क्लियर के नाम से तीन महीने का सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया गया है।

आउटलुक ने विश्वविद्यालय के कुलपति कामेश्वर नाथ सिंह के हवाले से कहा कि यह नागरिकता देने के लिए एक अधिनियम हैन की लेने वाला।  आगे वो कहते है कि “ हम चाहते हैं कि सरकार और संसद की मंशा लोगों तक विश्वसनीय और विश्वसनीय तरीके से पहुंचे। इसके अलावा, हम भ्रांतियों और उसके आस-पास के दोषों को ख़त्म करना चाहते हैं।  

आचार संहिता के बावजूद दिल्ली के आरएलए  में कार्यक्रम की अनुमति दी गई थी, लेकिन उन छात्रों ने ठीक नहीं किया। जिन्होंने पुंज द्वारा कही गई बातों  में कुछ गलतियां और 'सांप्रदायिक रूप से की गई टिप्पणी की थी।

छात्रों द्वारा जारी बयान को पढ़ें, "हम RLAC के छात्र 17 जनवरी को आयोजित सेमिनार के दौरान स्पीकर द्वारा दिए गए बयानों की निंदा करते हैं ... उन्होंने जो बयान दिए वे असंवेदनशील, इस्लामोफोबिक थे, और छात्र समुदाय की भावनाओं को गहरी ठेस पहुंचाते हैं।"

आरएलए के छात्रों ने कहा कि उन्हें हाल ही में कथित तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से  धमकी मिल रही है।

छात्रों ने रामलाल आनंद, अंबेडकर विश्वविद्यालय और एसआरसीसी के प्रशासनों द्वारा दिए गए इन दोहरे निर्देशों को प्रशासन की 'हिपोक्रिसी' क़रार दिया है। 

इन सभी घटनाओं पर एसएफआई के दिल्ली अध्यक्ष सुमित कटारिया ने इसे " विश्वविद्यालय के विचार पर हमला कहा, जहां विचारों का खुला आदान-प्रदान सुरक्षित और संवृद्ध होना चाहिए।"

कटारिया ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, “यह कैंपस स्पेस के भीतर असंतोष को रोकने का एक प्रयास है। विश्वविद्यालय, भाजपा सरकार के तहत, केवल उन विचारों के प्रचार-प्रसार की अनुमति देते हैं जो उनके कथन के अनुकूल हों। इस पूरे घटनाक्रम में यही दिख रहा है कि छात्रों को सीएए, एनआरसी, एनपीआर पर बोलने से रोका जा रहा है।"

विवादास्पद अधिनियम के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहे है। इसमें लोगों की भारी  भागीदारी देखी जा रही हैं। विशेषकर महिलाओं की भागीदारी सराहनीय हैं। अधिनियम को "असंवैधानिक" कहते हुए, प्रदर्शनकारियों ने सीएए को ख़त्म करने और एनआरसी के लागू होने की आशंका को भी ख़त्म करने के मांग की है।

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