NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
महिलाएं
भारत
राजनीति
पिछले 5 साल में भारत में 2 करोड़ महिलाएं नौकरियों से हुईं अलग- रिपोर्ट
क़ानूनी कामकाजी उम्र के 50% से भी अधिक भारतवासी मनमाफिक रोजगार के अभाव के चलते नौकरी नहीं करना चाहते हैं: सीएमआईई 
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
26 Apr 2022
women
प्रतीकात्मक तस्वीर- रॉयटर्स

कानूनी कामकाजी उम्र के 90 करोड़ भारतीयों में से 50% से अधिक लोग, जिनमें विशेषकर महिलाएं, सही प्रकार के रोजगार न मिल पाने की बढ़ती हताशा के कारण नौकरी नहीं करना चाहती हैं। इन चौंकाने वाले आंकड़ों की सूचना को मुंबई स्थित एक निजी शोध फर्म सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के द्वारा रिपोर्ट किया गया है।

सीएमआईई डेटा का हवाला देते हुए ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि  2017 से लेकर 2022 के बीच में, लगभग 2 करोड़ महिलाएं कुल श्रमशक्ति से गायब हो गई हैं, केवल 9% योग्य आबादी ही ऐसी है जो रोजगारशुदा है या सही पदों को लेकर आशान्वित है। इसी अवधि के दौरान सकल श्रमिक दर भी 46% से घटकर 40% हो गई।

ये आंकड़े ऐसे समय में सामने आये हैं जब भारत अपनी युवा श्रम शक्ति पर दांव लगा रहा है, जो अवसरों के अभाव के चलते लगातार निराश होता जा रहा है। हालाँकि इससे पहले सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च में बेरोजगारी की दर फरवरी में 8.10% से घटकर 7.6% हो गई थी। लेकिन यदि भारत के कानूनी तौर पर कामकाजी उम्र की विशाल संख्या को ध्यान में रखें तो यह प्रतिशत काफी अधिक है।

मार्च में हरियाणा में सबसे अधिक बेरोजगारी की दर 26.7% दर्ज की गई थी, जिसके बाद राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में से प्रत्येक में 25%, बिहार में 14.4%, त्रिपुरा में 14.1% और पश्चिम बंगाल में 5.6% की बेरोजगारी की दर बनी हुई थी। 

नवीनतम सीएमआईई डेटा इस बात को दर्शाता है कि कैसे रोजगार सृजन करने की समस्या, विशेष तौर पर श्रम बल छोड़ने वाली महिलाओं की बढती संख्या, एक बड़े खतरे में तब्दील होती जा रही है। आबादी के 49% हिस्से का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद, महिलाएं आर्थिक उत्पादन में सिर्फ 18% का योगदान कर रही हैं, जो कि वैश्विक औसत का लगभग आधा हिस्सा ही है। 

सीएमआईई के महेश व्यास ने ब्लूमबर्ग के साथ अपनी बातचीत में बताया, “महिलाएं ज्यादा संख्या में श्रम शक्ति में शामिल नहीं हो रही हैं क्योंकि नौकरियां अक्सर उनके प्रति दयालु नहीं मिल रही हैं। उदाहरण के लिए, पुरुष अपनी नौकरियों तक पहुँचने के लिए ट्रेन की अदला-बदली के लिए तैयार रहते हैं; लेकिन महिलाओं के लिए ऐसा करने के लिए तैयार हो पाने की संभावना काफी कम है। ऐसा बड़े पैमाने पर हो रहा है।”

सेंटर फॉर इकॉनोमिक डेटा एंड एनालिसिस और सीएमआईई की एक संयुक्त रिपोर्ट, जिसका शीर्षक जनवरी में “भारत की सिकुड़ती महिला श्रम शक्ति’ था, ने पूर्व- कोविड-19 से लेकर महामारी के बाद के स्तरों की तुलना की है, जिससे पता चलता है कि 2021 में महिलाओं का राष्ट्रीय औसत मासिक रोजगार की दर 2019 की तुलना में 6.4% कम था। 

शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के औसत मासिक रोजगार की दर में भी काफी तेज गिरावट आई है, जिसमें 2019 की तुलना में 22.1% कम महिलाएं रोजगारशुदा थीं। 2019 और 2020 दोनों की तुलना में 2021 में कम महिलाओं ने सक्रिय रूप से नौकरियों की तलाश की थी, यह गिरावट बाद के वर्ष में तेजी से बढ़ी है, रिपोर्ट ने इस बात का दावा किया है।  

चार राज्यों ने 2019 की तुलना में 2021 में औसत मासिक महिला रोजगार के क्षेत्र में 50% से भी अधिक की गिरावट देखी- तमिलनाडु (-50.9), गोवा (-56%), जम्मू-कश्मीर (तब एक राज्य, -61%) और पंजाब (57.9%) की दर से गिरावट देखी गई है। 

2021 में भारत का औसत मासिक महिला रोजगार दर 2020 की तुलना में 4.9% अधिक था, लेकिन 2019 की तुलना में 6.4% कम था। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंतर अधिक था।  2021 में शहरी भारत में औसत महिला रोजगार की स्थिति 2020 की तुलना में 6.9% कम थी और 2019 के महामारी पूर्व वर्ष की तुलना में 22.1% कम था। जनवरी की रिपोर्ट ने दर्शाया है, हालाँकि ग्रामीण भारत में, 2021 में महिला रोजगार वर्ष 2020 की तुलना में 9.2% अधिक था और 2019 की तुलना में मात्र 0.1% कम था।    

2019 की तुलना में शहरी भारत में 2021 में 22.1% कम महिलाएं कार्यरत थीं। इसके अलावा, 2021 में पहले से अपेक्षाकृत कम महिलाएं सक्रिय तौर पर नौकरियों की तलाश कर रही थीं। जबकि 2019 में हर महीने करीब 95 लाख महिलाएं सक्रिय रूप से नौकरियों की तलाश कर रही थीं, वहीँ 2020 में यह संख्या घटकर 83 लाख हो गई थी और 2021 में सिर्फ 65.20 लाख ही रह गई थी। यह प्रवृति शहरी और ग्रामीण भारत दोनों में देखने को मिली। 

जून 2019 में जारी 2017-18 के लिए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण ने कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में  चौंकाने वाली भारी गिरावट का खुलासा किया। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के सर्वेक्षण के 68वें दौर के अनुमान के मुताबिक, कामकाजी उम्र की महिलाओं में से केवल 22% हिस्से को ही (जिसे 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र के तौर पर परिभाषित किया गया है) मनमाफिक रोजगार हासिल हो सका था, जो कि 2011-12 में 31% घट गया था। 

मार्च में भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर 21 वर्ष करने की केंद्र की योजना से अधिक महिलाओं को श्रम शक्ति में शामिल करने के लिए प्रेरित कर सकती है, क्योंकि वे उच्च शिक्षा और कैरियर के विकल्प को चुन सकती हैं। 

एसबीआई इकोरैप ने कहा है, “हमारा मानना है कि क़ानूनी उम्र को बढ़ाने से भारत का एमएमआर (मातृत्व मृत्यु दर) संभावित रूप से घटेगा और इसके चलते और अधिक संख्या में महिलाएं स्नातक बन सकती हैं और इस प्रकार श्रम शक्ति में शामिल हो सकती हैं। इसका एक दूसरा फायदा यह है कि क़ानूनी विवाह की आयु पुरुषों और महिलाओं के लिए एक समान हो जाएगी।” 

जहाँ एक तरफ नौकरी की चाह रखने वालों की संख्या लगातार तेजी से बढ़ती जा रही है, वहीं नरेंद्र मोदी सरकार पर्याप्त रोजगार के अवसर मुहैया करा पाने में विफल साबित हुई है। मैकिंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट की 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को 2030 तक कम से कम 9 करोड़ गैर-खेतिहर रोजगार को सृजित करने की जरूरत है, यदि उसे अपनी वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि को 8% से 8.5% तक बनाये रखना है। 

बेंगलुरू में सोसाइटी जेनरल जीएससी प्राइवेट के अर्थशास्त्री कुणाल कुंडू ने कहा, “निराश श्रमिकों के बड़े हिस्से से इस बात का खुलासा होता है कि भारत को अपनी युवा आबादी से जो लाभांश प्राप्त करने की उम्मीद थी उसकी संभावना नहीं है। भारत के मध्य-आय के मकड़जाल में फंसे रहने और के-शेप विकास की राह पर आगे बढ़ने के साथ-साथ असमानता को और बढ़ावा देने की संभावना बनी हुई है।”

पूर्व के सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले तीन वर्षों के दौरान शहरी बेरोजगारी की दर लगभग 8% के आसपास मंडरा रही है। अप्रैल-मई 2020 में नासमझी भरे पहले लॉकडाउन के दौरान यह 25% तक बढ़ गई थी। इसके बाद इसमें कुछ कम आई लेकिन मई 2021 में यह फिर से ऊपर चली गई और कोविड-19 की घातक दूसरी लहर और साथ में लगाये गए प्रतिबंधों के दौरान यह तकरीबन 15% तक पहुँच गया था। प्रतिबंधों में ढील देने के साथ यह फिर से नीचे आ गया था। लेकिन जब यह नीचे आया तो सके बाद से यह 8% या उससे अधिक के स्तर पर टिका हुआ है, और इससे कम नहीं हो रहा है।  

सीएमआईई के अनुमानों के मुताबिक, जनवरी 2019 में शहरी भारत में रोजगार शुदा व्यक्तियों की कुल संख्या 12.84 करोड़ थी। दिसंबर 2021 की शुरुआत में यह संख्या घटकर 12.47 करोड़ हो गई थी। दूसरे शब्दों में कहें तो, भले ही जनसंख्या में वृद्धि हुई है (और इस प्रकार कामकाजी-उम्र की आबादी भी बढी है), लेकिन शहरी क्षेत्रों में लगभग 37 लाख रोजगारशुदा लोगों में पूर्ण गिरावट आई है। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: 

2 Crore Women in India Quit Workforce in 2017-22

BJP
unemployment rate
Job Creation
Jobs
Employment
Women
Labour
workforce
Pandemic
CMIE
Economy
Narendra modi

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

मैरिटल रेप : दिल्ली हाई कोर्ट के बंटे हुए फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, क्या अब ख़त्म होगा न्याय का इंतज़ार!

माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?

लखनऊः नफ़रत के ख़िलाफ़ प्रेम और सद्भावना का महिलाएं दे रहीं संदेश

मेरे लेखन का उद्देश्य मूलरूप से दलित और स्त्री विमर्श है: सुशीला टाकभौरे

लड़कियां कोई बीमारी नहीं होतीं, जिनसे निजात के लिए दवाएं बनायी और खायी जाएं

बलात्कार को लेकर राजनेताओं में संवेदनशीलता कब नज़र आएगी?

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

सवाल: आख़िर लड़कियां ख़ुद को क्यों मानती हैं कमतर


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License