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कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
असद रिज़वी
25 May 2022
Coal

केंद्र सरकार ने कहा है कि 31 मई तक जो “ताप बिजली घर” आयातित कोयला का आदेश  नहीं करेंगे और 15 जून तक आयातित कोयले की “ब्लेंडिंग” प्रारंभ नहीं करेंगे, उन्हें बाद में 10% के बजाय 15% कोयला, 31 अक्टूबर तक आयात करना होगा। विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।

विद्युत अभियंताओं के अनुसार अगर केंद्र सरकार, कोयला आयात का दबाव बना रही है तो, इस पर आने वाले अतिरिक्त खर्च का वहन भी उसी को करना चाहिए है। अभियंताओं के अनुसार केंद्र सरकार कोयला आयात करने की जिम्मेदारी स्वयं ले और फ़िर उसको “कोल इंडिया” के मूल्य पर राज्यों को उपलब्ध कराया जाये।

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) का कहना है कि कोयला आयात करने का केंद्र सरकार द्वारा राज्यों पर बेजा दबाव डाला जा रहा है। जबकि कोयला संकट में राज्य के बिजली उत्पादन गृहों का कोई दोष नहीं है। मौजूदा कोयला संकट केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, बिजली, कोयला और रेल के आपसी समन्वय की भारी कमी के कारण पैदा हुआ है।

एआईपीईएफ का मानना है कि जब कोयला संकट के लिए राज्य की उत्पादन कंपनियां किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं। यह बिजली मंत्रालय की पूरी तरह से विफलता का परिणाम है, इसलिए बिजली मंत्रालय को कोयले का आयात करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि आयातित कोयला मौजूदा सीआईएल (कोल इंडिया) दरों पर राज्य के बिजली उत्पादन घरों को उपलब्ध कराया जाये। एआईपीईएफ के अनुसार, 01 जून के बाद डोमेस्टिक कोयले के आवंटन में भी ऐसे ताप बिजली घरों को 5 प्रतिशत कम कोयला दिया जाएगा, जिन्होंने आयातित कोयले का आदेश नहीं किया है। 

उलेखनीय है कि केंद्र सरकार अप्रैल तक यह दावा कर रही थी कि कोल इंडिया का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ा है और कोयले का कोई संकट नहीं है। दूसरी ओर अब इसके ठीक विपरीत केंद्र सरकार अब यह कह रही है कि राज्य के ताप बिजली घर कोयला आयात करें। व अब यह कोयला आयात का कार्यक्रम 31 मार्च 2023 तक बढ़ा दिया गया है। विद्युत अभियंताओं की मानें तो अधिकांश ताप बिजली घर आयातित कोयले के लिए डिजाइन नही किये गए हैं। आयातित कोयला ब्लेंड करने से इनके बॉयलर में ट्यूब लीकेज बढ़ जाएंगे। 

अभियंताओं केंद्र सरकार ने राज्य के उत्पादन गृहों  को कोयले का आयात करने का निर्देश देते हुए स्पष्ट रूप से इस कारण को भी नजरअंदाज कर दिया है कि अधिकांश राज्यों के  थर्मल स्टेशनों को कोयला आयात में कोई पूर्व अनुभव नहीं है। विशेष रूप से लोडिंग बिंदु पर कोयले की गुणवत्ता निर्धारण के लिए प्रक्रियाओं के संबंध में। अभियंताओं के अनुसार अभी भी देश के 108 ताप बिजली घरों के पास केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के “नोरमैटिव स्टॉक” की तुलना में 25% से कम कोयला है जिसे क्रिटिकल स्टेज कहा जाता है। 

विद्युत अभियंताओं ने राज्यों को कोयला आयात करने के लिए केंद्र सरकार के निर्देश को वापस लेने की मांग की है। उन्हीने यह भी कहा यदि राज्यों को कोयला आयात करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो केंद्र सरकार को इस पर आने वाला अतिरिक्त बोझ स्वयं उठाना चाहिए। ताकि पहले से ही आर्थिक रूप से संकटग्रस्त डिस्कॉम और आम उपभोक्ताओं पर अधिक बोझ न पड़े। 

एआईपीईएफ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से इस मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता पर केंद्र सरकार के सामने उठाने की भी अपील की है। मौजूदा कोयले के संकट को एआईपीईएफ केंद्र सरकार की कई नीतिगत त्रुटियों तथा विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय के अभाव का संयुक्त परिणाम मानती  है। यह स्थिति रेलवे वैगनों की कमी के कारण और भी बदतर हो गई है। 

एआईपीईएफ की केंद्र सरकार को एक पत्र भी लिखा है जिसमें मांग की है कि विद्युत मंत्रालय द्वारा 28 अप्रैल को दिये अपने आदेश,जो  राज्यों पर कोयले के आयात का वित्तीय भार डालने का प्रयास करता है, वापस लिया जाना चाहिए । क्योंकि राज्यों को भारत सरकार की नीतिगत चूक के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है।

एआईपीईएफ के पदाधिकारियों ने बताया कि पत्र में आगे कहा गया है कि रेल मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि कोयले की आवाजाही के लिए वैगनों की आवश्यकता प्रति दिन 441 रेक है और उपलब्धता/स्थापन प्रति दिन केवल 405 रेक है।

एआईपीईएफ के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे का आरोप है कि अतीत में, कोयला आयात की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और कदाचार का विषय उठता रहा है। आयातित कोयले के “ओवर-इनवॉइसिंग” और बंदरगाह पर “कोयला परीक्षण/ सकल कैलोरी मान (जीसीवी) निर्धारण” में हेराफेरी के कई मामले दर्ज हैं।

शैलेंद्र दुबे के अनुसार इन मामलों को राजस्व खुफिया विभाग, राजस्व खुफिया निदेशालय, (डीआरआई) द्वारा उठाया गया था जो वित्त मंत्रालय के अधीन है। डीआरआई ने इन मामलों को बॉम्बे के उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उठाया। डीआरआई द्वारा उठाए गए इन मामलों को तार्किक निष्कर्ष पर ले जाया जाना चाहिए। 

कोयला आयात के क़ानूनी पहलू पर बात करते हुए एआईपीईएफ के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के तहत राज्यों को निर्देश देने का कोई अधिकार नही है। धारा 11 यह निष्कर्ष निकलता है कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 11 को लागू करने में केंद्र सरकार का अधिकार क्षेत्र ऐसी जनरेटिंग कंपनी तक ही सीमित है जो उसके पूर्ण या आंशिक रूप से स्वामित्व में है। राज्य सरकार के स्वामित्व वाले उत्पादन घरों के मामले में, धारा 11 को लागू करने के मामले में यह राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र है।

(एआईपीईएफ) ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह को भेजे पत्र में मांग की है कि चूंकि भारत सरकार की नीतिगत चूकों के परिणामस्वरूप कोयले की कमी के लिए राज्यों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए। विद्युत मंत्रालय की ओर से नीतिगत चूक के लिए उच्च लागत वाले आयातित कोयले के माध्यम से राज्यों पर वित्तीय बोझ नहीं डाला जाना चाहिए।

शैलेंद्र दुबे के अनुसार कोयला आयात के मामले में केंद्र सरकार द्वारा जब कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने 2016 में 35000 करोड़ रुपये के भंडार का निर्माण किया था। नई खदानों को खोलने और मौजूदा खानों को बढ़ाने के लिए। तब भारत सरकार ने 2016 में इस अधिशेष धन को आम बजट की ओर मोड़ दिया। जबकि इस धनराशि का प्रयोग दीर्घकालिक आधार पर कोयले की कमी को दूर करने के लिए एक अत्यंत आवश्यक उपाय था।

उन्होंने कहा कि सीआईएल को अपने कामकाज को उर्वरक क्षेत्र की ओर मोड़ने का निर्देश दिया जो पूरी तरह असंगत था।जब सरकार द्वारा सीआईएल के अधिकारियों को स्वच्छ भारत के तहत शौचालयों के निर्माण का काम करने का आदेश दिया गया था (और इस तरह कोयला खदानों के विकास के अपने प्राथमिक काम को छोड़ दिया गया था), तो बिजली मंत्रालय को हस्तक्षेप करना चाहिए था और कोयले की कमी को दूर करने के लिए प्राथमिकता पर जोर देना चाहिए था।

उधर उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि पूरे देश में विदेशी कोयला खरीद से देश के 25 करोड़ विद्युत उपभोक्ताओ की बिजली दरों में 50 पैसा प्रति यूनिट से रुपया 1 प्रति यूनिट तक बढ़ोतरी होगी। जो देश के उपभोक्ताओ के साथ बड़ा धोखा है।

अवधेश कुमार वर्मा के अनुसार  केंद्रीय कोयला मंत्री श्री प्रहलाद जोशी ने खुद जानकारी दी है कि अप्रैल 2021 में कोयले का उत्पादन जहां देश में 51.62 मिलियन टन था वहीं अब 29 प्रतिशत बढकर अप्रैल 2022 में 66.58 मिलियन टन हो गया है। जो इस बात की पुष्टि करता है कि देश में घरेलू कोयले की कोई कमी नहीं है ।

उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में सभी उत्पादन इकाइयो द्वारा विदेशी कोयला खरीद पर जो कुल अतरिक्त खर्च रुपया 11000 करोड़ पर प्रदेश सरकार से अनुमति मांगी गयी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक कोई फैसला नहीं किया है। क्यों की सरकार को भी पता है कि इस पर अनुमति देने से रुपया 1 प्रति यूनिट तक बिजली की दर बढ़ेगी।

वर्कर्स फ्रंट अध्यक्ष दिनकर कपूर द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि राज्य विद्युत ईकाईयों के कोयला आपूर्ति के लिए कोल इंडिया से अनुबंध है। अगर कोल इंडिया कोयला आपूर्ति में विफल रहता है और विदेशों से मंहगा कोयला आयात करना जरूरी हो तो इसका अतिरिक्त व्यय केंद्र सरकार को वहन करना चाहिए। 

वर्कर्स फ्रंट अध्यक्ष दिनकर कपूर के अनुसार आज जिस तरह का कोयला आपूर्ति संकट पैदा हुआ है, इसकी प्रमुख वजह कोयला आवंटन को लेकर मोदी सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा है कि 1993 से 2010 तक आवंटित 218 कोल ब्लॉक में भ्रष्टाचार, नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाने आदि वजहों  214 कोल ब्लॉक का आवंटन 2014 में रद्द सुप्रीम कोर्ट द्वारा कर दिया था। इसके बाद भी मोदी सरकार ने इससे कोई सबक़ नहीं लिया। कोल इंडिया और कोल सेक्टर के निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया, जोकि कतई देश हित में नहीं है। 

ये भी पढ़ें: कोयले की किल्लत और बिजली कटौती : संकट की असल वजह क्या है?


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