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PCR और सीरोलॉजिकल टेस्ट का मिश्रण ही हमारे लिए सबसे बेहतर तकनीक है
सीरोलॉजिकल टेस्टिंग पूरी तरह सही नहीं हो सकती, और PCR तेज़ी के साथ नतीजे नहीं दे पाता। इसलिये दोनों का एक न्यायोचित मिश्रण ही बेहतर ज़रिया हो सकता है।
निरंजना राजलक्ष्मी
11 Apr 2020
सीरोलॉजिकल टेस्टिंग
image Courtesy: Live Science.com

SARS CoV-2 (कोविड-19) वायरस 212 देशों में पहुंच चुका है। संक्रमण से जान गंवाने वालों का आंकड़ा भी 85,000 पार कर चुका है। भारत भी इस बीमारी से जूझ रहा है। इस संक्रमण को ठीक करने के लिए ज़रूरी वैक्सीन की ज़रूरत है, दुनियाभर के विशेषज्ञ इस पर काम कर रहे हैं। लेकिन फिलहाल संक्रमण का तेजी से पता लगाने और उसमें स्वास्थ्य हस्तक्षेप करना सबसे ज़्यादा जरूरी है। ऐसा करने से वैज्ञानिकों के अलावा आम लोग भी स्थिति की गंभीरता को समझकर लाभ ले सकेंगे।

फिलहाल COVID-19 की जांच में ''दो बुनियादी प्रक्रियाओं या तरीक़ों'' का पालन किया जा रहा है। पहली प्रक्रिया के टेस्ट में सीधे वायरस का पता लगता है, वहीं दूसरी प्रक्रिया में वायरस के खिलाफ़ शरीर में पैदा हुईं एंटीबॉडीज़ का पता लगाया जाता है। सीधे वायरस का पता लगाने के लिए ''पोलीमेरेज़ चेन रिएक्शन (PCR, जिसे रिवर्स ट्रांसक्रिपटेज़ PCR भी कहा जाता है)'' नाम का आणविक डॉयग्लोनिस्टिक टेस्ट किया जाता है। PCR में DNA की एक प्रति को ही थर्मोसाइकिलर नाम के उपकरण की मदद से लाखों प्रतियों में बदला जाता है।

RT-PCR प्रक्रिया

SARS CoV-2 एक श्वांस संबंधी वायरस है। यह श्वांसनली के ऊपरी और निचले हिस्से में पैठ बनाता है। इसलिए PCR टेस्टिंग के लिए सैंपल सावधानीपूर्वक शरीर के ''नैसोफाराइनजिल'' इलाके में कॉटन स्वैब डालकर निकाला जाता है। नैसोफाराइनजिल वह जगह है, जहां गर्दन और नाक मिलते हैं। यह सबसे प्रभावी तरीका माना जाता है। कुछ मामलों में मरीज़ से सैंपल इकट्ठा करने के लिए नलिका डाली जाती है, तो कभी बाहर आ चुकी लार से सैंपल लिया जाता है।

इकट्ठा किए गए सैंपल को फिर सावधानी से लैबोरेट्री तक ले जाकर RT-PCR प्रक्रिया से गुजारा जाता है। इसके बाद वायरस का ''न्यूक्लियक एसिड'' वाला हिस्सा अलग किया जाता है। न्यूक्लियक एसिड, वायरस के जेनेटिक मटेरियल की जांच करता है। यह DNA या RNA, कुछ भी हो सकता है। SARS-CoV-2 एक RNA वायरस है। RNA, DNA की तुलना में ज़्यादा भंगुर होता है।  इसकी वजह DNA की संरचना में दो धागे या लड़ियां होना होता है, वहीं RNA में एक ही लड़ी होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो RNA वायरस के जल्द खराब होने की संभावना बनी होती है। इसके चलते उसे अलग करने और इकट्ठा करने वाली दोनों प्रक्रियाएं कठिन हो जाती हैं। COVID-19 में भी यही हो रहा है।

RNA की एक विशेषता    और भी है कि DNA के उलट, PCR द्वारा इसकी सीधे तौर पर संवर्द्धन नहीं किया जा सकता। ऐसा ''टाक DNA पोलीमेरेज़ एंजाइम'' के कारण होता है। इससे PCR की प्रक्रिया तेज होती है। यह DNA में होता है, पर RNA में नदारद पाया जाता है। इसलिए RNA को अलग करने के बाद, अगले कुछ कदमों की श्रंखला में इसे काम्प्लीमेंट्री (cDNA) DNA में बदलना पड़ता है।

cDNA संश्लेषण के लिए रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज़ को इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए पूरी प्रक्रिया को RT-PCR कहा जाता है। अंतत: cDNA को थर्मोसाइकिलर में लाखों प्रतियों में संवर्द्धित कर दिया जाता है। फिर पॉजिटिव सैंपल की 'सीक्वेंसिग' होती है। जीनोम में न्यूक्लियोटाइड्स का क्रम सीक्वेंसिंग कहलाता है। फिर इन सीक्वेंस की तुलना पहले से मौजूद पॉजिटिव सैंपल से की जाती है। इसी आधार पहर किसी सैंपल को PCR द्वारा पॉजिटिव या नेगेटिव घोषित किया जाता है।

सीरोलॉजिकल जांच प्रक्रिया (सीरम पर आधारित)

दूसरी प्रक्रिया को सीरोलॉजिकल जांच कहा जा सकता है। इसमें वायरस को नहीं खोजा जाता, बल्कि वायरस की प्रतिक्रिया में शरीर में बनने वाले एंटीबॉडीज़ की निशानदेही की जाती है। एंटीबॉडी शरीर को सुरक्षा देने वाला वह प्रोटीन होता है, जिसे विशेष तरह की श्वेत रक्त कणिकाएं (WBCs) बनाती हैं। इन विशेष श्वेत रक्त कणिकाओं को ''B-लिम्फोसाइट्स'' कहा जाता है, जब कोई बाहरी तत्व (कोरोना संक्रमण के मामले में SARS CoV-2) शरीर में आता है, तो यह सक्रिय हो जाती हैं। एंटीबॉ़डी अणुओं को ग्लायकोप्रोटीन में वर्गीकृत किया जाता है, जिन्हें इम्यूनोग्लोबुलिन्स (Ig) कहा जाता है। शरीर में पांच अलग-अलग तरह के Ig का रिसाव होता है।  इनमें से IgG और IgM ही खोजने योग्य अवस्था में मौजूद रहते हैं। यह खून के सीरम में मिलते हैं। IgM संक्रमण फैलने के तीन से पांच दिन के भीतर मिलता है, वहीं IgG 10 दिन के बाद पाया जा सकता है।

SARS CoV-2 की तेजी से जांच करने के लिए कैसेट वाली किट मौजूद हैं। कैसेट में पुन:संयोजी SARS CoV 2 प्रोटीन रहता है। लेकिन यह मुश्किल है, क्योंकि वायरस के कुछ हिस्से SARS CoV-2 के अलावा मौजूद ''दूसरे कोरोना वायरसों'' से भी एकरूपता दिखा सकता है। COVID-19 की टेस्टिंग के लिए पूरे खून या सीरम को प्राथमिकता दी जाती है। जब कैसेट में किसी सैंपल को डाला जाता है, तो सैंपल में मौजूद IgG या IgM तुरंत वायरल प्रोटीन से चिपक जाएंगे। इससे एक कॉम्पलेक्स बनेगा, जो एक रंगबिरंगे बैंड का निर्माण करेगा। इस तरह यह कैसेट किसी ''प्रेग्नेंसी किट या HIV किट'' की तरह काम करती है। हाल ही में ICMR ने देश में सात रैपिड डॉयग्नॉस्टिक किटों को अनुमति दी है।

सीरोलॉजिकल टेस्ट किसी भी क्लीनिकल लैबोरेटरी में किए जा सकते हैं, जबकि RT-PCR टेस्ट करने के लिए बॉयोसेफ्टी लेवल-2 फैसिलिटी से लैस लैब की जरूरत होती है। रैपिड डॉयग्नोस्टिक किट द्वारा 30 मिनट के भीतर रिजल्ट दे दिया जाता है। यह PCR टेस्ट में लगने वाले वक़्त से काफ़ी कम है। एपिडेमियोलॉजिकल अध्ययनों में एंटीबॉडी डिटेक्शन टेस्ट काफ़ी उपयोगी साबित होंगे। इससे आगे वैक्सीन बनाने में मदद मिलेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि वायरस के खिलाफ़ जो एंटीबॉडीज़ शरीर में पैदा होते हैं, वो खून में लंबे वक़्त तक मौजूद रहते हैं।

हांलाकि रैपिड टेस्ट के साथ सही होने का संशय बरकरार रहता है। खून में एंटीबॉ़डीज़ बनने में एक हफ़्ते का वक़्त लगता है। इसलिए सीरोलॉजिकल टेस्ट से शुरूआती स्तर में वायरस के न होने की बात तय तौर पर नहीं की जा सकती। जबकि RT-PCR टेस्ट किसी भी स्तर पर यह जांच कर सकता है। हाल ही में एक एडवॉयज़री में WHO ने कोरोना टेस्ट के लिए RT-PCR करने की सलाह दी है। लेकिन बढ़ते संक्रमण के आंकड़ों के चलते कम वक़्त में RT-PCR टेस्ट किए जाने संभव नहीं हैं। इसलिए इन दोनों तरीकों से संतोषजनक परिणाम निकालने जरूरी हैं। हाल ही में ICMR ने ऐसा ही किया है।

एंटीजन की पहचान करने वाले किट का निर्माण भी किया जा रहा है। PCR की तरह ही इस प्रक्रिया में भी वायरस की पहचान की जाती है। लेकिन इसमें संवर्द्धन जरूरी नहीं होता। इसके बजाए संबंधित आशंका वाले सैंपल में वायरल प्रोटीन की खोज एंटीबॉडी से कॉम्प्लेक्स बनाते वक्त ही हो जाती है। 30 मिनट के बाद एक दृश्य माध्यम से हमें नतीज़ों के संकेत मिल जाते हैं। इस तरीके में पिछले दो तरीकों की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। इससे एक नया रास्ता खुलेगा, जिससे कम समय में ही शुरूआती चरणों में संक्रमण का पता लगा लिया जाएगा।

लेखक वेटेरनरी माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

COVID-19: Why a Combination of PCR and Serological Tests is our Best Bet

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