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ग्रामीण भारत में कोरोना-3 : यूपी के लसारा कलां के किसान गेहूं कटाई में देरी और कृषि श्रमिकों की कमी को लेकर चिंतित
हाल ही में हुई बेमौसम बारिश से खेतों में खड़ी गेहूं की फसल को पहले ही कुछ नुकसान हो चुका है। इसके अलावा, पंजाब से ख़रीदे जाने वाले कंबाइन हार्वेस्टर भी अभी तक गांव नहीं पहुंच पाए हैं। इससे किसानों को लगता है कि इस बार फसल कटने में देरी हो सकती है।
संतोष वर्मा
09 Apr 2020
ग्रामीण भारत
Image Courtesy: Pixabay

इस श्रृंखला की यह तीसरी रिपोर्ट है,जो COVID-19 से जुड़ी नीतियों का ग्रामीण भारत के जीवन पर पड़ने वाले असर को दिखाती है। सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च की इस श्रृंखला में अलग-अलग जानकारों की रिपोर्ट शामिल हैं, जो भारत के अलग-अलग हिस्सों के गांव का अध्ययन कर रहे हैं। यह रिपोर्ट अध्ययन किये जा रहे उन गांवों में रहने वाले लोगों के साथ टेलीफ़ोन पर की गयी बातचीत से मिली प्रमुख जानकारियों के आधार पर तैयार की गयी है। इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के लसारा कलां गांव की स्थिति के बारे में बताया गया है। निर्माण कार्य में लगे अधिकतर श्रमिकों के पास काम नही है,जबकि गेहूं की फ़सल कटाई के लिए किसानों के पास श्रमिक और उपकरणों दोनों की कमी है।इस कारण उन्हें अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि कटाई का मौसम नज़दीक आ गया है।

लसारा कलां गांव उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले में है। इस गांव में 293 घर हैं। भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, इस गांव की कुल आबादी का 27% अनुसूचित जाति (एससी) की है और गांव के अधिकतर परिवार अपनी आय के मुख्य स्रोत के रूप में कृषि पर निर्भर हैं। इस गांव में बहुत कम संख्या में किराने की दुकानें हैं, और गांव के बाक़ी कर्मचारी या तो लम्बे समय वाले वेतनभोगी कर्मचारी हैं या दिहाड़ी मज़दूर हैं। गांव के किसान जो फसलें उगाते हैं,उनमें रबी और ख़रीफ़ दोनों फसलें शामिल हैं। रबी फसलों में गेहूँ, आलू, सफ़ेद सरसों/सरसों, चना और हरी मटर शामिल हैं, जबकि ख़रीफ़ फसलों में धान, मक्का, अरहर (तूर) और बाजरा (मोती बाजरा) शामिल हैं। खेती बाड़ी के अलावा, जिन क्षेत्रों में श्रमिक लगे हुए हैं, उनमें निर्माण, ड्राइविंग और कभी-कभी मिलने वाले अलग-अलग तरह के मज़दूरी वाले कार्य हैं।

फ़रवरी 2020 के पहले सप्ताह तक, लसारा कलां गांव के किसानों ने आलू, सफ़ेद सरसों / सरसों, चना और मटर की अपनी फ़सलें काट ली थीं। लॉकडाउन शुरू होने से पहले कुछ किसानों ने अतिरिक्त आलू को कोल्ड स्टोरेज में डाल दिया था। ज़्यादातर किसानों का कहना था उनके पास उनकी ज़रूरत से ज़्यादा सफ़ेद सरसों हैं और वे इसे नहीं बेच सकते,क्योंकि क़ीमतें बहुत कम हैं। हालांकि इस  सफ़ेद सरसों / सरसों का सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 4,425 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन इसे ख़रीदने वाला कोई भी व्यापारी 3,300 रुपये प्रति क्विंटल से ज़्यादा का देने के लिए तैयार नहीं है।

हाल ही में हुई बेमौसम बारिश के कारण खेतों में खड़ी गेहूं की फसल को पहले ही कुछ नुकसान हो चुका है। गेहूं की कटाई अप्रैल के दूसरे सप्ताह से शुरू होनी है। गांव के बड़े किसान कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग करते हैं,जो गेहूं की कटाई के लिए किराये पर उपलब्ध होते हैं। हालांकि कुछ कंबाइन हार्वेस्टर अगल-बगल के इलाक़ों के लोगों के स्वामित्व में हैं। इनमें से ज़्यादातर कंपाइन हार्वेस्टर पंजाब से आते हैं। आमतौर पर मार्च के आख़िरी हफ़्ते में ड्राइवर, मैकेनिक और हेल्पर्स पंजाब से इन कंबाइन हार्वेस्टर को ले आते हैं। हालांकि, COVID-19 के फैलने और इसकी वजह से देशव्यापी बंद के कारण उन्हें अभी तक गांव में लाने का कोई मौक़ा ही नहीं मिला है। मौजूदा हालात को देखते हुए किसानों को अनुमान है कि गेहूं की फ़सल में देरी होगी और कृषि संकट गहरा होगा।

कम्बाइन हार्वेस्टर चलाने वालों से संपर्क वाले कुछ किसानों का कहना है कि लॉकडाउन में राज्यों के बीच परिवहन के लिए कंबाइन हार्वेस्टर मालिकों को अभी तक पास नहीं मिला है। वे किसान,जो अपने गेहूं की कटाई को इकट्ठा करने के लिए कृषि मज़दूरों का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें डर है कि अगर लॉकडाउन जारी रहता है, तो वे मज़दूरों को काम पर नहीं लगा पायेंगे। हालांकि, जवाब देने वालों में से एक ने कहा कि स्थानीय मज़दूर, जिनके पास लॉकडाउन के कारण खेती बाड़ी के बाहर वाला कोई काम नहीं है, वे खेती बाड़ी में मज़दूरी करने के लिए तैयार हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें पैसे की ज़रूरत होगी।

गांव के भीतर और गांव के आस-पास निर्माण कार्य सबसे अहम ग़ैर-कृषि गतिविधि है। हालांकि, लॉकडाउन के कारण, निर्माण सामग्री उपलब्ध नहीं है और केवल उन कुछ ही घरों में निर्माण कार्य चल रहे हैं,जो निर्माण सामग्री पहले ही ख़रीद चुके थे। लॉकडाउन की शुरुआत के बाद से लसारा कलां के ज़्यादातर निर्माण कार्य बंद है। लिहाज़ा इन निर्माण कार्यों में लगे मज़दूरों के पास इस समय कोई काम नहीं है।

गांव के कुछ परिवार स्थानीय बाज़ार में दूध पहुंचाने का काम करते हैं। लेकिन, बाज़ार बंद होने के कारण, ये परिवार दूध भी नहीं बेच पा रहे हैं।नतीजतन आय का नुकसान हुआ है। गांव वालों का कहना है कि सूखे पुआल, हरे चारे (तिपतिया घास) और दूसरे प्रकार के पशु चारे स्थानीय रूप से गांव में ही उत्पादित कर लिये जाते हैं और इसीलिए अब तक, पशु चारे को लेकर किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा है।

सूचना देने वालों के मुताबिक़, लॉकडाउन लागू होने से पूर्व के पहले हफ़्ते के बनिस्पत लॉकडाउन लागू होने वाले पहले सप्ताह में अनाज और सब्ज़ियों की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी हुई थी। अरहर की दाल, आलू, प्याज़, टमाटर, और लहसुन, साबुत चना, चीनी और गेहूं के आटे के साथ-साथ भिंडी, परवल और फूलगोभी जैसी सब्ज़ियों के दामों में लॉकडाउन के पहले सप्ताह में बढ़ोत्तरी देखी गयी। इन ज़रूरी वस्तुओं में से कुछ की क़ीमतों में हुए बदलाव नीचे दी गयी तालिका में सूचीबद्ध है।

तालिका 1. लॉकडाउन के पहले और लॉकडाउन के दौरान लसारा कलां में ज़रूरी वस्तुओं की क़ीमतें

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स्रोत: गांवों से मिली सूचना के आधार पर

गांव के दुकानदारों की शिकायत थी कि स्थानीय दुकानें 21 मार्च से बंद हैं। जवाब देने वालों में से एक, सिलाई मशीन बेचने वाली दुकान के मालिक हैं, उनका कहना था कि शादी के मौसम के दौरान बढ़ती मांग की उम्मीद में उन्होंने नई मशीनें ख़रीदने के लिए 2 लाख रुपये उधार ले लिए थे। लेकिन, इसी बीच लॉकडाउन हो गया। इससे उनके कारोबार पर बुरा असर पड़ा है। उन्होंने यह भी बताया कि उनके कई ग्राहकों ने उधार लेकर मशीनें ख़रीदी थीं, और अब वह अपने उस क़र्ज़ को चुकाने में असमर्थ हैं। स्थानीय बाज़ार में फ़र्नीचर की दुकान चलाने वाले एक कारोबारी ने कहा कि लॉकडाउन के कारण लकड़ी की आपूर्ति ही बंद हो गयी है। आने वाले शादी के मौसम से पहले उन्हें कुछ ऑर्डर पूरे करने थे, लेकिन अब उस समय सीमा को पूरा कर पाना अब नामुमकिन लगता है। उन्होंने कहा कि जब तक काम जल्द ही फिर से शुरू नहीं होता, तब तक वह अपने दो श्रमिकों के वेतन का भुगतान करने में भी असमर्थ होंगे।

गांव से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया की स्थानीय शाखा है, जो लसारा कलां का सबसे नज़दीकी बैंक है। एटीएम बिल्डिंग के भीतर लगा हुआ है और वहां केवल ऑफ़िस टाइम के दौरान ही जाया जा सकता है। गांव के निवासी नक़दी की ज़रूरत होने पर स्थानीय बाज़ार में उपलब्ध फिनो पेमेंट्स सिस्टम का उपयोग करते हैं। फ़िनो पेमेंट्स बैंक स्थानीय बाज़ार में किसी व्यक्ति को अधिकृत किया हुआ होता है,जहां गांव के निवासियों को उनके एटीएम कार्ड का उपयोग करके या उनके उस आधार कार्ड के ज़रिये उन्हें पैसा दिलवाता है, जो उनके बैंक खातों से जुड़ा हुआ होता है। एजेंट इन पैसों के भुगतान करवाने के एवज़ में 1% चार्ज लेता है। जवाब देने वालों ने कहा कि लॉकडाउन के बीच इस भुगतान सेवा को भी बंद कर दिया गया है, इसका नतीजा यह हुआ है कि नक़दी की कमी हो गयी है। हालांकि, स्थानीय प्रशासन ने एजेंट को हर दिन कुछ घंटों के लिए अपना ऑफ़िस खोलने की अनुमति दी हुई है।

अगर कुल मिलाकर कहा जाए, तो कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए लगाए गये इस देशव्यापी लॉकडाउन में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पिस गयी है। अगले दो हफ़्तों में किसान गेहूं की कटाई का इंतज़ाम कर पायेंगे कि नहीं या फिर कैसे कर पायेंगे, ये बेहद अहम सवाल हैं। दुकानें बंद हैं और ज़रूरी वस्तुओं की क़ीमतों में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है, ऐसे में गांव के निवासियों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

इस लॉकडाउन के दौरान गांव में कोई मनरेगा कार्य भी नहीं हुआ है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ज़रिये पात्र-गृहस्थी और अंत्योदय राशन कार्ड धारकों को गेहूं और चावल का वितरण अप्रैल के पहले सप्ताह में होना था। [यह लेख 29 मार्च से 31 मार्च, 2020 के बीच 18 लोगों से टेलीफ़ोन पर की गयी बातचीत के ज़रिये उपलब्ध जानकारी पर आधारित है, इन 18 व्यक्तियों में नौ किसान, पांच दुकानदार, तीन सरकारी कर्मचारी और एक ड्राइवर शामिल हैं। इस बातचीत में शामिल सभी के पास कुछ न कुछ कृषि भूमि है; उनमें से तीन ने खेती-बाड़ी के लिए ज़मीन पट्टे पर भी ली हुई है। तीन में से दो बटाईदार अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) से हैं, और एक एससी है।]

इस लेख का दूसरा हिस्सा आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

लेखक हैदराबाद स्थित TISS में सहायक प्रोफ़ेसर हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

COVID-19 in Rural India- III: Farmers in UP’s Lasara Kalan Worried Over Delayed Wheat Harvesting, Lack of Agri Labour

COVID 19 Pandemic
COVID 19 Lockdown
Delay in Harvesting
Rabi Crop
Rural Economy
COVID Impact on Economy
Uttar pradesh
construction workers
Migrant Labour

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