NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
COVID-19: सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पलट जाना उसकी विश्वसनीयता को कम करता है
सुप्रीम कोर्ट द्वारा COVID-19 के लिए मुफ़्त परीक्षण पर अपने पहले के आदेश के उलट फ़ैसला देने को लेकर जवाब से कहीं ज़्यादा सवाल पैदा होते हैं। ऐसा होना वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है।
आनंद ग्रोवर
16 Apr 2020
COVID-19

आठ अप्रैल, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया था : “COVID-19 से जुड़े परीक्षण…निजी प्रयोगशालाओं में मुफ़्त किया जायेगा।” यह आदेश एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में जारी किया गया था। अन्य बातों के साथ-साथ, उस जनहित याचिका में 17.03.2020 को ICMR की जारी उस ऐडवाइज़री को चुनौती दी गयी थी, जिसमें COVID-19 परीक्षण की लागत 4,500 रुपये तय की गयी थी। यह देखते हुए कि भारत में COVID-19 के मामले बढ़ रहे थे, अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत याचिका में जो प्रथम दृष्टया तत्व था, वह यह था कि इस समय राष्ट्रीय आपदा के समय प्राइवेट लैब यानी निजी प्रयोगशाला को COVID -19 की स्क्रीनिंग और पुष्टिकरण परीक्षण के लिए 4,500 रुपये लेने की अनुमति इस देश की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के उपलब्ध संसाधन के भीतर नहीं दी जा सकती है और कोई भी व्यक्ति 4500 रुपये की राशि का भुगतान नहीं करने के चलते COVID-19 परीक्षण से वंचित नहीं रह सकता है…।”

इसमें आगे कहा गया था: “इस राष्ट्रीय संकट के समय में परोपकारी सेवाओं का विस्तार करके महामारी को बड़े पैमाने पर बढ़ने से रोकने में प्रयोगशालाओं सहित निजी अस्पतालों की अहम भूमिका है। इस प्रकार, हम संतुष्ट हैं कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी को निर्देश जारी करने के लिए मान्यता प्राप्त निजी लैब्स को निशुल्क COVID-19 परीक्षण का संचालन करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने का मामला बनाया है।”

उसके मुताबिक़ ही निर्देश दिया गया कि: “COVID-19 से जुड़े परीक्षण, चाहे अनुमोदित सरकारी प्रयोगशालाओं या अनुमोदित निजी प्रयोगशालाओं में हों, मुफ़्त होंगे।”

ICMR द्वारा 4,500 रुपये के मूल्य को तय किये जाने के पीछे के तर्क को अदालत ने नहीं माना। 20 मार्च, 2020 को घोषित ICMR दिशानिर्देश में कहा गया था : “नेशनल टास्क फ़ोर्स की सिफ़ारिश है कि परीक्षण नमूने की अधिकतम लागत 4,500 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसमें संदिग्ध मामलों के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट के रूप में 1,500 रुपये और पुष्टि परीक्षण के लिए बाक़ी रक़म शामिल हो सकती है।” ICMR ने अपनी दलील देते हुए आगे कहा, “हालांकि, ICMR राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के समय मुफ़्त या रियायती परीक्षण को प्रोत्साहित करता है।”

इस प्रकार, ICMR ने कहा कि अगर कोई स्क्रीनिंग टेस्ट पोज़िटिव दिखाता है और इसके लिए एक पुष्टिकरण परीक्षण किया जाना है, तो कुल कीमत 4,500 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। हालांकि, पक्षों को ऐसा लगता है कि यह क़ीमत 4,500 रुपये तय की गयी है। इसके अलावा, इसने निजी क्षेत्र से राष्ट्रीय लक्ष्यों के लिए काम करने का आग्रह किया। जैसा कि 20 मार्च की ऐडवाज़री से साफ़ है और 9 अप्रैल, 2020 को जारी ऐडवाइज़री से इस बात की पुष्टि होती है कि व्यावहारिक रूप से इस परीक्षण में ICMR रणनीति के मुताबिक़ नीचे दिये गये मामलों में परीक्षण किया जाना चाहिए :

1.         “पिछले 14 दिनों में अंतर्राष्ट्रीय यात्रा करने वाले वे सभी लोग, जिनमें कोरोना के लक्षण दिखते हैं
2.         जिन लक्षण वाले रोगियों के मामले को प्रयोगशालायें पुष्टि करती हैं
3.         इस रोग के लक्षण वाले सभी स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता
4.         गंभीर तीव्र सांस की बीमारी (बुखार और खांसी और / या सांस की तकलीफ़) वाले सभी रोगी
5.         पुष्ट मामले वाले रोगियों और उच्च जोखिम वाले लोगों के संपर्कों में आने वालों का 5 दिन और 14 दिनों के बीच एक बार परीक्षण किया जाना चाहिए।”

इस प्रकार, यह ICMR की अपनी धारणा है कि ऊपर बतायी गयी श्रेणियों वाले लोगों का COVID-19 के लिए परीक्षण किया जाना चाहिए। उस मायने में, परीक्षण अनिवार्य है और ऐसे लोगों के लिए यह सवाल नहीं है कि 'परीक्षण करवाना है या नहीं। इसका मक़सद समुदाय में COVID-19 के फैलने को रोकना है। ऐसे में COVID-19 परीक्षण एक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए उठाया गया क़दम हो जाता है,जिसे संक्रमण की पहचान करने और इसे निजी हित में किसी व्यक्ति के इलाज के लिए नियोजित नहीं किया जाता है। अगर ऐसा है, तो क्या परीक्षण करने के इच्छुक व्यक्ति को परीक्षण के लिए एक निजी प्रयोगशाला द्वारा 4,500 रुपये देने के लिए कहा जा सकता है ? मान लीजिए कि कोई व्यक्ति परीक्षण करवाने से मना कर देता है ! तो क्या उसे परीक्षण करवाने और उसके लिए पैसे देने को लेकर मजबूर किया जा सकता है? ! बेशक,ऐसा बिल्कुल नहीं किया जा सकता है।

कोई यह भी मान सकता है कि स्वैच्छिक परीक्षण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह तो उन लोगों के पक्ष में जाता है,जो यह कहते हैं कि COVID-19 के इस दौर में किसी को अपनी दिनचर्या को जारी रखने के लिए COVID-19 मुक्त प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा। उस मामले में, 4,500 रुपये की क़ीमत के आधार को जांचने-परखने के लिए पर्याप्त कारण बन जाते हैं, ख़ासकर तब, जब प्रोफ़ेसर पार्थो सरोती रे जैसे लोगों ने परीक्षण की इस लागत को 700 रुपये के आंकड़े का दिखाया था।

हैरानी होती है (या शायद हैरानी की बात नहीं भी है) कि यह सब अदालत के संज्ञान में नहीं लाया गया था। 8 अप्रैल के आदेश की स्याही सूखने से पहले ही निजी प्रयोगशालाओं ने अपने पैरों तले ज़मीन को खिसकते हुए पाया और वे सक्रिय हो गये। जबकि “ICMR ने ख़ुद ही इसकी क़ीमत 4,500 रुपये तय की थी, सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के आने के कुछ ही समय के भीतर समाचार चैनल इस नहीं टिक सकने वाले आदेश को लेकर बातें करने लगे थे।” बेशक, चैनलों के एंकरों में से किसी ने भी ICMR की उस ऐडवाइज़री को सत्यापित करने की जहमत नहीं उठायी। वे निजी क्षेत्र की धुन ही गाते रहे, इसी बात पर वे चर्चा करते रहे कि ‘आख़िर निजी लैब के लिए यह कैसे मुमिकन होगा”।

बेशक, किसी ने भी निजी प्रयोगशालाओं के राष्ट्रहित में अपना काम कर करने को लेकर या सरकारों की उस ज़िम्मेदारी को लेकर बातें नहीं की, जिसके तहत उन्हें COVID -19 के फ़ैलने के रोकने के लिए रोगनिरोधी के रूप में व्यापक परीक्षण सुनिश्चित करना चाहिए।

अब लीजिए, कुछ ही दिनों के भीतर, सुप्रीम कोर्ट में 8 अप्रैल के आदेश पर सवाल उठाते हुए प्रार्थना पत्र दायर कर दिये गये।

यह समझना मुश्किल नहीं है कि निजी प्रयोगशालायें परीक्षण की क़ीमत को शून्य कर दिये जाने पर रो रही थीं, अदालत ने उनके विलाप का संज्ञान कुछ इस तरह लिया: “रोहतगी ने निवेदन किया है कि COVID-19 परीक्षण के लिए लैब्स के ख़र्चों को पूरा करने के लिए ICMR ने उदार स्तर पर 4,500/ - रुपये तय किये हैं।” यह भी कहा गया: "वह मानता है कि इसे लेकर प्रयोगशालाओं को परीक्षणों के लिए कोई शुल्क नहीं लेना चाहिए, लेकिन वित्तीय दबावों और अन्य ज़रूरी कारकों के चलते इस परीक्षण को जारी रख पाना उनके लिए नामुमकिन होगा।"

हालांकि, सरकार के रुख को समझ पाना मुश्किल है, जिसे कोर्ट ने कहा, " भारत के विद्वान सॉलिसिटर जनरल,श्री तुषार मेहता ने ICMR की ओर से दिनांक 12.04.2020 को दायर हलफ़नामे का हवाला देते हुए निवेदन किया है कि... ICMR के प्रोटोकॉल के अनुसार, मेडिकल प्रैक्टिशनर की सिफ़ारिश पर कोई भी प्रभावित व्यक्ति सरकारी अस्पतालों और सरकारी लैब्स में उपलब्ध मुफ़्त टेस्ट का लाभ उठा सकता है। लेकिन, जहां तक निजी लैब्स द्वारा परीक्षण का सवाल है, तो ICMR ने सभी सम्बन्धित कारकों पर विचार करने के बाद 4,500 /-  की राशि तय की है।”

अदालत ने व्यक्ति की हैसियत से याचिकाकर्ता के इस निवेदन पर ध्यान दिया कि, "समाज के ऐसे बड़े वर्ग हैं, जो इस समय COVID-19 परीक्षण के लिए 4,500/-  का भुगतान करने में असमर्थ हैं ...इस घटना में एक परिवार में जब किसी एक व्यक्ति का परीक्षण पोज़िटिव आ जाता है, तो पूरे परिवार को परीक्षण कराये जाने की ज़रूरत होती है। उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पतालों में बहुत ज़्यादा भीड़ है, इसलिए ऐसे लोगों को निजी प्रयोगशालाओं में मुफ़्त COVID-19 परीक्षण की अनुमति दी जा सकती है।”
अंत में, न्यायालय ने एक आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया:

1. वे लोग,जो आयुष्मान भारत योजना और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की किसी भी अन्य श्रेणी में आते हैं, उन्हें सरकार द्वारा अधिसूचित किया जायेगा, वे मुफ़्त परीक्षण के हक़दार होंगे।

2. सरकार किसी भी अन्य आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों पर विचार कर सकती है,जो नि: शुल्क परीक्षण के पात्र होंगे।

3. निजी प्रयोगशालायें परीक्षणों की लागत के लिए शुल्क लेने की हक़दार होंगी।

4. यदि वे नि:शुल्क परीक्षण करती हैं, तो सरकार इसके एवज में निजी प्रयोगशालाओं को भुगतान करने की योजना तैयार कर सकती है।

बेशक, कोई भी पक्ष आईसीएमआर की ऐडवाइज़री या इस परीक्षण के औचित्य को न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाया। और न ही कोर्ट के संज्ञान में इस बात को लाया गया कि इस "टेस्ट" की क़ीमत 4,500 रुपये तय करने के पीछे की दलील क्या थी। इस प्रकार, न्यायालय के पास इस मुफ़्त परीक्षण से जुड़े तमाम तथ्य नहीं थे या अदालत के सामने आईसीएमआर की परीक्षण ऐडवाइज़री या 4,500 रुपये मूल्य के निर्धारण के पीछे की दलील नहीं रखी गयी थी।

ये ऐडवाइज़री स्वैच्छिक परीक्षण पर विचार नहीं करते हैं। इस ऐडवाइज़री में केवल संकेत किया गया है कि परीक्षण अनिवार्य है। वे अपनी प्रकृति में स्वैच्छिक नहीं हैं। अगर ऐसा है, तो परीक्षण इस आधार पर नहीं किया जा सकता है कि जिस व्यक्ति का परीक्षण किया जाना प्रस्तावित है, वह परीक्षण के लिए भुगतान कर रहा है या नहीं।

भले ही यह मानते हुए कि यह विचार स्वैच्छिक परीक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए था, लेकिन, किसी ने अदालत के संज्ञान में यह नहीं लाया कि क़ीमत कम भी हो सकती है। लागत को कम करने या परीक्षण को सब्सिडी देने के उपायों की संभावना का पता लगाने पर विचार नहीं किया गया। COVID परीक्षण करने के लिए सार्वजनिक हित को माने बिना या निवारक रणनीति के रूप में बड़े पैमाने पर परीक्षण करने की राज्य की ज़िम्मेदारी के बिना, क़ीमत का बोझ केवल व्यक्तिगत ‘उपभोक्ता’ के माथे पर डाल दिया गया।

यह मानते हुए कि निजी लैब एक लागत शुल्क और इसके ऊपर एक उचित लाभ वसूल सकते हैं, और यह मानते हुए कि सार्वभौमिक परीक्षण वही कुछ है, जिसका महामारी के इस दौर में पालन करना ज़रूरी है, जिसमें इस समय हम हैं,  यह समझना महत्वपूर्ण है कि निजी प्रयोगशालाओं को मान्यता दिये जाने के पीछे का कारण, सरकारी कार्यक्रम के मुताबिक़ इस महामारी से निपटने के लिए परीक्षण की क्षमता में वृद्धि करना है। उस स्थिति में सरकार निजी प्रयोगशालाओं द्वारा किये जाने वाले परीक्षण के लिए फ़ंड दे सकती है। अदालत ने केवल विशिष्ट श्रेणियों के मामले में ऐसा किया है। परीक्षण के सार्वजनिक स्वास्थ्य औचित्य को देखते हुए यह ऐसा सबके मामले में होना चाहिए।

इस प्रकार,न्यायालय को मामले के इन पहलुओं से अवगत नहीं कराया गया और इसलिए उन पर विचार भी नहीं किया गया। ये फिर भी महत्वपूर्ण हैं। सस्ता इलाज उतना ही अहम है, जितनी कि सस्ती दवायें, उस स्वास्थ्य के अधिकार को ज़मीनी हक़ीक़त बनाने के लिए ऐसा करना ज़रूरी है, जो कि हमारे संवैधानिक अधिकारों का हिस्सा है। जिन हालात में हम इस समय हैं, उस ग़ैर-मामूली हालात और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल में ये सभी और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

दुर्भाग्य से, सुप्रीम कोर्ट के ये दोनों आदेश इन महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करने की कमी से ग्रस्त हैं और नतीजतन, दोनों फ़ैसलों का एक दूसरे से उलट आना सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता को कमज़ोर करता है। इसलिए, आख़िरी आदेश की समीक्षा किये जाने की ज़रूरत है।

TheLeaflet के लिए आनंद ग्रोवर

लेखक भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

COVID-19: Flip-Flop in Supreme Court’s Orders Undermine its Credibility

COVID19
Coronavirus
supreme court coronavirus
Rs 4500 coronavirus testing
coronavirus tests

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के घटते मामलों के बीच बढ़ रहा ओमिक्रॉन के सब स्ट्रेन BA.4, BA.5 का ख़तरा 

कोरोना अपडेट: देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के सब स्ट्रेन BA.4 और BA.5 का एक-एक मामला सामने आया

कोरोना अपडेट: देश में फिर से हो रही कोरोना के मामले बढ़ोतरी 

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत

कोरोना अपडेट: दुनियाभर के कई देशों में अब भी क़हर बरपा रहा कोरोना 

कोरोना अपडेट: देश में एक्टिव मामलों की संख्या 20 हज़ार के क़रीब पहुंची 

देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, PM मोदी आज मुख्यमंत्रियों संग लेंगे बैठक


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License