NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
भारत
राजनीति
कोविड-19: स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार उत्तर भारत में मौतों के आंकड़ों को कम बताया जा रहा है
अंतर्राष्ट्रीय संस्थान और विशेषज्ञ भारत से कोविड-19 के आकंड़े ठीक से नहीं मिल पाने को लेकर चिंता जता रहे हैं,  हालांकि क्षेत्रीय दैनिक अख़बार गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश से आ रही त्रासदी की वास्तविक आंकड़े को उजागर करना जारी रखे हुए हैं।
शिन्ज़नी जैन
21 May 2021
कोविड-19: स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार उत्तर भारत में मौतों के आंकड़ों को कम बताया जा रहा है
प्रतिकात्मक फ़ोटो:साभार: लाइवमिंट

भारत में कोविड-19 आपदा को लेकर यह बात लगातार सामने आ रही है कि कोविड-19 भारत के अंदरूनी इलाक़ों में तेज़ी से फैल रही है। अपने परिजनों के अंतिम संस्कार या दफ़नाने को लेकर जगह तलाशने के लिए संघर्ष कर  रहे परिवारों के बारे में परेशान करने वाली ख़बरें लगातार आ रही हैं।

हालांकि, इस त्रासदी के वास्तविक आंकड़े सरकारी रिकॉर्ड में तो नहीं मिलते, लेकिन अलग-अलग राज्यों के स्थानीय अख़बार और गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों का चक्कर लगा रहे पत्रकारों की तरफ़ से इसका ख़ुलासा ज़रूर किया जा रहा है। दैनिक भास्कर ने 14 मई को बताया कि उत्तर प्रदेश (UP) के कई ज़िलों-ग़ाज़ियाबाद, कानपुर, उन्नाव, ग़ाज़ीपुर, कन्नौज और बलिया के इलाक़ों में 2,000 से ज़्यादा शव गंगा नदी के किनारे या तो  ऐसे ही छोड़ दिये गये पाये गये थे या फिर उन शवों को जल्दबाज़ी में दफ़ना दिया गया था।  

इन रिपोर्टों के साथ विशेषज्ञों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों ने भी अपनी-अपनी आशंकायें जतायी हैं और अधिकारियों की तरफ़ से पेश की जा रही मौतों की कम संख्या को लेकर अपने-अपने अनुमान सामने रखे हैं। कुछ ही दिनों पहले यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन इंस्टीट्यूट फ़ॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) की एक रिपोर्ट से यह बात सामने आयी थी कि सरकार ने भारत में हुई मौतों की संख्या को कम से कम 3.4 लाख तक कम बताया है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका, मैक्सिको, ब्राज़ील और रूस में हो सकता है कि क्रमशः 4.3 लाख,  4 लाख,  1.9 लाख और 4.8 लाख लोगों की मौत हुई हो। आईएचएमई के अनुमानों के मुताबिक़, भारत में कोविड-19 से होने वाली मौतों की संख्या जितनी बतायी जा रही है, उसके मुक़ाबले तक़रीबन तीन गुना ज़्यादा मौत हुई हैं। इस रिपोर्ट में रूस में हुई वास्तविक मौत का आंकड़ा बतायी गयी संख्या से लगभग 5.5 गुना होने का अनुमान लगाया गया है, रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मामले में रूस की रिपोर्टिंग सबसे ख़राब है।

आईएचएमई के मौजूदा अनुमानों के मुताबिक़, भारत में 1 सितंबर,  2021 तक 1.2 मिलियन (12.4 लाख) से ज़्यादा मौतें हो चुकी होंगी।

वायरोलॉजिस्ट और महामारी के दौरान सबसे प्रमुख मुखर वैज्ञानिकों में से एक, डॉ शाहिद जमील ने बताया कि कोविड-19 से प्रति दिन हो रही 4,000 मौतें देश में हो रही प्राकृतिक मौतों की महज़ 15% होगी।उनके मुताबिक़, श्मशान घाट और क़ब्रिस्तान में लाशों की इस तरह की छोटी संख्या से ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता, लिहाज़ा इस पर  किसी का ध्यान तक नहीं जाता है। उनके मुताबिक़, श्मशान और क़ब्रिस्तान में जिस तरह की क़तारें देखी जा रही हैं, उससे तो यही लगता है कि हो रही मौतों की तादाद 5-10 गुना ज़्यादा है।

वह आगे कहते हैं,  “जब देश की स्थिति सामान्य थी, तब भी इस देश में मौतों के पंजीकरण का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा था और इस तरह पंजीकरण का हमारा रिकॉर्ड कमज़ोर रहा है। जिस समय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली चरमरायी हुई हो, उस समय लोग कोविड का परीक्षण नहीं करवा पाते हैं। कोविड के ऐसे हज़ारों मामले हो रहे हैं, जहां परीक्षण होते ही नहीं हैं, ऐसे लोग कोविड-पॉजिटिव के तौर पर नहीं गिने जाते हैं। यहां तक कि अगर किसी कोविड-पॉजिटिव शख़्स की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो जाती है, तो इसे कोविड से हुई मौत के बजाय कार्डियक अरेस्ट से हुई मौत कहा जाता है। इसलिए, इस तरह की कमतर गणना पूरे देश में हो रही है,  और इसलिए मुझे लगता है कि यह संख्या कम है।”

हाल ही में जमील ने देश के जीनोम सिक्वेंसिंग निर्माण का समन्वय करने वाले वैज्ञानिक सलाहकार समूह, इंडियन SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टिया (INSACOG) के प्रमुख के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।

कोविड-19 से हो रही बेशुमार मौतों के दावों की पुष्टि मध्य प्रदेश,  गुजरात,  बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों की ज़मीनी रिपोर्टों और स्थानीय समाचार पत्रों की जांच-पड़ताल से भी होती है। जो आंकड़े गुजरात से सामने आ रहे हैं, वे चौंकाने वाले हैं और वे जांच की मांग करते हैं।

14 मई को गुजराती दैनिक, दिव्य भास्कर की प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 1 मार्च से 10 मई के बीच इस राज्य में पिछले साल की इसी अवधि के मुक़ाबले तक़रीबन 61, 000 ज़्यादा मौतें हुई हैं। उस रिपोर्ट में बताया गया है कि स्थानीय निकायों ने 1 मार्च से 10 मई के बीच 1, 23, 871 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किये थे, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में कुल 58, 000 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किये गये थे। ये आंकड़े 33 ज़िलों और आठ शहरों की नगरपालिका के अधिकारियों की तरफ़ से किये गये ख़ुलासे पर आधारित थे। इसी रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इसी अवधि में 33 ज़िलों की तरफ़ से कोविड-19 के लिए जारी किये गये मृत्यु प्रमाण पत्र 4,218 की संख्या थी।

जब कांग्रेस के विपक्षी नेता, परेश धनानी ने कोविड-19 से हो रही मौतों की संख्या को कथित तौर पर कम बताये जाने की जांच की मांग की,  तो मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने कहा,  “कोविड-19 की मौतें आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार ही दर्ज की जा रही हैं। अगर किसी ऐसे शख़्स की मौत हो जाती है, जो कोविड के साथ-साथ किसी और बीमारी से ग्रस्त रहा हो, तो विशेषज्ञों की एक समिति तय करती है कि मृत्यु के प्राथमिक और गौण कारण क्या थे। मिसाल के तौर पर, अगर यह पता चलता है कि मौत का मुख्य कारण दिल का दौरा था,  तो ऐसे शख़्स को कोविड-19 से हो रही मौतों में नहीं गिना जा सकता है, भले ही वह शख़्स पोज़िटिव रहा हो। पूरे देश में इसी प्रणाली का पालन किया जाता है।”

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के गुजरात चैप्टर के निवर्तमान अध्यक्ष, डॉ. चंद्रेश जरदोश का कहना है कि आंकड़ों का यह बेमेल दरअसल कई रोगों से ग्रस्त रोगियों को आधिकारिक आंकड़ों से जानबूझकर अलग करने का नतीजा है। अप्रैल के महीने में गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को इस बात को लेकर फटकार लगायी थी और टिप्पणी की थी कि वास्तविक तस्वीर को छुपाने से राज्य को कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। अदालत ने कहा, "सही आंकड़ों को दबाने और छिपाने से आम लोगों में भय, अविश्वास, दहशत सहित बड़े पैमाने पर और भी कई गंभीर समस्यायें पैदा होंगी।"

अप्रैल के आख़िर में आर्टिकल 14 की तरफ़ से प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार के छह शहरों-पटना, कानपुर, जामनगर, मोरबी, राजकोट और पोरबंदर से उनके पत्रकारों द्वारा एकत्र किये गये साक्ष्यों से पता चला था कि कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत किये गये अंतिम संस्कार आधिकारिक तौर बतायी गयी संख्या के मुक़ाबले तीन से 30 गुना ज़्यादा थे। इस रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि गुजरात के छोटे-छोटे शहरों में कोविड से हो रही मौतों की संख्या को कमतर दिखाया जाना बहुत आम है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक़,  कानपुर में 23 और 24 अप्रैल को कोविड-19 से मरने वालों की संख्या को सरकारी रिकॉर्ड में जहां क्रमश: 9 और 13 दिखाया गया है। वहीं श्मशान से जो सूचनायें मिल रही हैं, उससे पता चलता है कि यह संख्या सात गुनी है। पोरबंदर के सरकारी रिकॉर्ड में अप्रैल में दो मौतें और पिछले साल से अब तक छह मौतें दिखायी गयी हैं,  जबकि एक श्मशान के रिकॉर्ड में प्रति दिन 30 मौतें दर्ज हैं। एक श्मशान के ट्रस्टी ने बताया कि उन्होंने अप्रैल से प्रतिदिन 30-40 मौतें होते देखी हैं,  जबकि सरकारी रिकॉर्ड में पिछले साल से अबतक कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या महज़ 75 दर्ज है।

यूपी के क़स्बों और शहरों से आयी रिपोर्टें से भी इसी तरह की स्थितियां उजागर होती हैं। 1 मई को न्यूज़लॉन्ड्री की एक रिपोर्ट में इस बात पर रौशनी डाली गयी थी कि मेरठ ज़िले के आधिकारिक आंकड़ों में कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या को श्मशान के रिकॉर्ड में दर्ज मौतों की संख्या से सात गुना कम बताया गया है। अप्रैल के मध्य में हिंदुस्तान टाइम्स ने बताया कि यूपी के ग़ाज़ियाबाद में हिंडन श्मशान घाट में आये शवों के अंतिम संस्कार को लेकर मारा-मारी हो रही थी, जबकि ज़िला प्रशासन ने उस महीने सिर्फ़ दो कोविड-19 मौतों को दर्ज किया था।

15 अप्रैल की एकदम शुरुआत से ही मध्य प्रदेश (एमपी) से कोविड-19 से हो रही मौतों की कमतर गिनती की ख़बरें आने लगी थीं। हालांकि, सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले सप्ताह प्रतिदिन कोविड-19 के औसतन मामले 6, 477 और प्रति दिन हो रही मौतों की संख्या 32 है,  जबकि हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सिर्फ़ 13 अप्रैल को भदभदा विश्राम घाट पर कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत 47 शवों, सुभाष नगर में 28 शवों का अंतिम संस्कार किया गया था और जहांगीराबाद क़ब्रिस्तान में नौ शव दफ़नाये गये थे।

2 मई को एमपी से मौत के आंकड़े को कमतर दिखाने को उजागर करने वाली एक और रिपोर्ट सामने आयी थी। जहां आधिकारिक आंकड़ों में भोपाल ज़िले से एक महीने में कोविड-19 से होने वाली मौतों की संख्या 104 दर्ज है,  वहीं भोपाल में दो श्मशान और एक क़ब्रिस्तान के प्रबंधकों ने पीटीआई को बताया कि पिछले महीने इस ज़िले के 2, 557 कोविड-19 रोगियों का अंतिम संस्कार भोपाल में किया गया था। पिछले ही हफ़्ते न्यूज़क्लिक ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाक़े खुद को चुनौतियों से घिरा हुआ पा रहा है, क्योंकि टीकाकरण अभियान के दौरान चिकित्सा सुविधाओं की कमी,  ग़लत उपचार और परामर्श के अभाव में मरीज़ों की मौत हो रही है।

टिप्पणीकार एक लेखिका और न्यूज़क्लिक के साथ जुड़ी रिसर्च एसोसिएट हैं। इनके विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

COVID-19: Local Reports Reveal Massive Under-counting of Deaths in North India

COVID 19 Deaths
Under reporting of COVID 19 Deaths
COVID 19 Second Wave
Madhya Pradesh
Gujarat Government
VIJAY RUPANI
Underreporting of Deaths
Overcrowded Crematoria

Related Stories

मध्यप्रदेश में ओमीक्रोन के ‘बीए.2’ उप-वंश की दस्तक, इंदौर में 21 मामले मिले

गुजरात: सरकारी आंकड़ों से कहीं ज़्यादा है कोरोना से मरने वालों की संख्या!

मध्य प्रदेश: महामारी से श्रमिक नौकरी और मज़दूरी के नुकसान से गंभीर संकट में

बिहार: कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में आड़े आते लोगों का डर और वैक्सीन का अभाव

अजब ग़ज़ब मध्यप्रदेश: ज़िंदगी में कभी शुमार नहीं हुये, अब मौत में भी गिनती में नहीं

यूपी में कोरोनावायरस की दूसरी लहर प्रवासी मजदूरों पर कहर बनकर टूटी

कोविड-19: बिहार के उन गुमनाम नायकों से मिलिए, जो सरकारी व्यवस्था ठप होने के बीच लोगों के बचाव में सामने आये

कोविड-19: दूसरी लहर अभी नहीं हुई ख़त्म

कोविड-19 : कोल्हापुरी चप्पलें बनाने वाले लॉकडाउन से गहरे संकट में, कई संक्रमित

कोविड-19: बंद पड़े ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्र चीख-चीखकर बिहार की विकट स्थिति को बयां कर रहे हैं 


बाकी खबरें

  • वसीम अकरम त्यागी
    विशेष: कौन लौटाएगा अब्दुल सुब्हान के आठ साल, कौन लौटाएगा वो पहली सी ज़िंदगी
    26 May 2022
    अब्दुल सुब्हान वही शख्स हैं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के बेशक़ीमती आठ साल आतंकवाद के आरोप में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बिताए हैं। 10 मई 2022 को वे आतंकवाद के आरोपों से बरी होकर अपने गांव पहुंचे हैं।
  • एम. के. भद्रकुमार
    हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा
    26 May 2022
    "इंडो-पैसिफ़िक इकनॉमिक फ़्रेमवर्क" बाइडेन प्रशासन द्वारा व्याकुल होकर उठाया गया कदम दिखाई देता है, जिसकी मंशा एशिया में चीन को संतुलित करने वाले विश्वसनीय साझेदार के तौर पर अमेरिका की आर्थिक स्थिति को…
  • अनिल जैन
    मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?
    26 May 2022
    इन आठ सालों के दौरान मोदी सरकार के एक हाथ में विकास का झंडा, दूसरे हाथ में नफ़रत का एजेंडा और होठों पर हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का मंत्र रहा है।
  • सोनिया यादव
    क्या वाकई 'यूपी पुलिस दबिश देने नहीं, बल्कि दबंगई दिखाने जाती है'?
    26 May 2022
    एक बार फिर यूपी पुलिस की दबिश सवालों के घेरे में है। बागपत में जिले के छपरौली क्षेत्र में पुलिस की दबिश के दौरान आरोपी की मां और दो बहनों द्वारा कथित तौर पर जहर खाने से मौत मामला सामने आया है।
  • सी. सरतचंद
    विश्व खाद्य संकट: कारण, इसके नतीजे और समाधान
    26 May 2022
    युद्ध ने खाद्य संकट को और तीक्ष्ण कर दिया है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका को सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि यूक्रेन में जारी संघर्ष का कोई भी सैन्य समाधान रूस की हार की इसकी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License